Thursday, April 25, 2024

बस्तर: आदिवासी ईसाईयों पर बर्बर हमला, महिलाओं तक को नहीं बख्शा

बस्तर। बस्तर संभाग में आदिवासी ईसाईयों पर फिर से बड़ा हमला हुआ है। सुकमा जिले के गादीरास थाना के चिंगावरम गाँव में 24 और 25 नवम्बर की रात को एक घटना हुई जिसमें गाँव के ही आदिवासियों द्वारा गाँव के आदिवासी-ईसाईयों पर हमला किया गया। हमले में 4 लोगों को गंभीर चोटें आईं और 15-20 घायल हुए जिनमें औरतें भी शामिल हैं।

पूरे मामले की सच्चाई जानने के लिए बस्तर अधिकार शाला की एक टीम ने मौके का दौरा किया। 29 नवंबर को हुए इस दौरे में टीम ने गाँव में जा कर जाँच की और सुकमा में पीड़ित व घायल लोगों का बयान लिया। इसके अलावा उसने थाना और जिला पुलिस अधिकारियों से भी बात की।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के मुताबिक इस गांव में 130 गोंड आदिवासियों के घर हैं। इनमें से पिछले दशक में करीब 15 परिवारों ने इसाई धर्म अपनाया है। 24 नवम्बर को मुक्का माडवी नामक एक इसाई के घर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसमें 40 मेहमान आये थे जो आस पास के गाँव और जिलों से आये थे। कार्यक्रम के पहले भाग में प्रार्थना सभा रखी गई थी जो मुक्का के आंगन में बने छोटे से गिरिजा घर में हुई। प्रार्थना के बाद उसी घर के एक छोटे बच्चे, प्रकाश, की छट्टी भी मनायी गयी। उस शाम का कार्यक्रम तकरीबन 7 बजे शुरू हुआ। छट्टी के बाद सभी ने मिल कर खाना खाया। खाने में मुर्गा, दाल और चावल बना था। खाने के उपरांत ज्यादातर लोग सोने चले गए, कुछ आपस में बात-चीत कर रहे थे और 7–10 बच्चे और युवा गीतों के धुन पर नाच रहे थे। संगीत 2 फुट ऊंचाई वाले एम्पलीफायर से बज रहा था। यह कार्यक्रम नाका पारा में चल रहा था जो गांव के एक छोर पर पड़ता है।

तकरीबन एक बजे गाँव के 50 लोग डंडे, तीर-धनुष, रॉड, गुलेल, टंगिया जैसे देसी हथियार से लैस हो कर आये और हमला बोल दिया। उनमें से कई शराब पीये हुए थे और गाली-गलोच और धमकी दे रहे थे। उन लोगों ने अंधाधुंध पिटाई शुरू कर दी – न केवल पुरुषों बल्कि महिलाओं और बच्चों को भी पीटा। पिटाई काफी समय तक चलती रही। एक पीड़ित माडवी माडका रात के दौरान छिपने में नाकाम रहा था लेकिन वह सुबह पकड़ लिया गया। उसने कहा कि “मेरे को पकड़ कर चर्च के सामने ले जा कर मार दिया डंडा से, पलट पलट कर मार दिया।” उसकी पसली और हाथ टूट गया।

इस हमले में 20 जितने महिला-पुरुष जख्मी हुए जिनमें 4 गंभीर रूप से घायल थे (माडवी माडका भी इन में एक है)। जब जांच टीम के सदस्यों की उनसे पांच दिनों बाद सुकमा में मुलाकात हुई जहाँ वे सब भाग कर शरण लिए हुए थे, तो उसने पाया कि कई पीड़ितों के शरीर पर गहरे नीले दाग थे, हड्डी पसली टूटी हुई थी।

जब हमला चल रहा था कुछ लोग स्थानीय CRPF कैंप की तरफ भागे। CRPF कैंप केवल आधा किलोमीटर दूर है। पर वहां उनको बोला गया कि “भागो यहां से। हम लोग नहीं जाएँगे रात में।” पर उनकी शरण में आये हुए लोगों ने वहां से जाने से इंकार कर दिया। गादीरास थाने से पुलिस सुबह करीब 6 बजे CRPF कैंप गई और वहां से नाकापारा पहुंची। कार्यवाही शुरू हुई। जख्मी लोगों को एम्बुलेंस में हॉस्पिटल ले जाया गया। कुछ ही घंटों में सुकमा जिला कलेक्टर और SP भी पहुंचे।

उसी दिन (25 नवम्बर) को FIR हुआ। गिरफ्तार किये गए 16 लोगों को 30,000 रुपये के मुचलके पर 26 नवंबर को छोड़ दिया गया। इस केस में भ.द.स की 147, 149, 294, 506B और 323 की धाराएँ लगाई गई हैं। गौरतलब है कि किसी के धर्म के साथ छेड़-छाड़ सम्बंधित भ.द.स. में दिए प्रावधानों का FIR में जिक्र नहीं है इसके बावजूद कि दोनों पक्षों ने कहा कि इस हमले की मूल वजह धर्म परिवर्तन से सम्बंधित है। विश्वसनीय स्रोतों से पता चला है की घटना के सांप्रदायिक स्वरूप को नज़रंदाज़ करने का निर्देश दिया गया है।

बातचीत के दौरान विरोधी पक्ष ने इसाई परिवारों के बारे में कई तरह की शिकायतें की। उनकी मुख्य शिकायत यह है कि इसाई अलग-थलग रहते हैं और गाँव की सामूहिक परंपराओं को नहीं मान रहे हैं। मिसाल के लिए, 24 नवंबर के कार्यक्रम की भी गाँव के पुरुषों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी। कुछ व्यक्तियों ने अन्य सवाल भी उठाये जैसे क्या इसाई-आदिवासियों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए? 

प्रताड़ित परिवारों में डर का माहौल बना हुआ है। गाँव वापस जाने से घबरा रहे हैं। एक युवक ने बताया कि उसको धमकी दी गई कि “अगर वापस आओगे तो हत्या हो जाएगी।”

सवाल कई है और गहरे हैं। एक तरफ संविधान में धर्म-निरपेक्षता एक बुनियादी सिद्धांत है। दूसरी तरफ आदिवासी जनजाति की संस्कृति और जीवन जीने के तरीके को बचाये रखने का उद्देश्य भी है। फिर भी क्या कोई यह मानेगा कि वाद-विवाद को सुलझाने के कई तरीके होते हैं। अपने ही भाई-बहनों को मारना क्या आदिवासी संस्कृति का भाग हो सकता है?

जाँच टीम के सदस्य: बेला भाटिया, ज्यां द्रेज़                       

बेला भाटिया, अधिवक्ता व मानव अधिकार कार्यकर्ता बस्तर, अधिकार शाला (BAS)

(जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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