Friday, April 26, 2024

बिहार में शराबबंदी का सच और मेरी जेल यात्रा

बिहार। सरकार के दावों के मुताबिक बिहार में शराबबंदी है। लेकिन यह बात किसी से छुपी नहीं है कि राज्य के कोने-कोने में अवैध तरीके से शराब की बिक्री जारी है। इस धंधे में पुलिस और शराब माफियाओं की जबरदस्त जुगलबंदी कायम है। इसका जीता जागता सबूत यह है कि शराब की अवैध बिक्री पर रोक लगाने की आवाज बुलंद करने के कारण मेरे ऊपर फर्जी मुकदमा लादकर पिछले दिनों मुझे जेल में डाल दिया गया था। उसी जेल यात्रा का अनुभव आपसे साझा कर रहा हूं।

बिहार के भागलपुर जिले का एक मोहल्ला परबत्ती है, जो मेहनतकश जनता का मोहल्ला है। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से सटे होने के कारण यहां हजारों की संख्या में बाहर से आये छात्र किराए पर रहते हैं और अपनी पढ़ाई करते हैं। इसके बाबजूद यहां के लोग आज भी शिक्षा से दूर हैं। शिक्षा के अभाव के कारण असामाजिक तत्वों का प्रवेश आसानी हो जाता है। नई उम्र के बच्चे शराब, स्मैक, गांजा जैसे नशे और जुआ जैसी लत के शिकार होकर अपराध की दुनिया में धकेल दिए जाते हैं।

परबत्ती दो कारणों से चर्चा का केंद्र बना रहता है, एक, 1989 का भागलपुर दंगा और दूसरा, उस दंगे के दाग को धोती यहां की महिलाएं। राष्ट्र सेवा दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ समाजकर्मी सुरेश खैरनार कहते हैं कि ‘भागलपुर का दंगा भारतीय राजनीति के भविष्य को निर्धारित करने वाला दंगा था। वर्तमान राजनीति की धुरी/प्रयोगशाला था भागलपुर का दंगा।’ खैरनार साहब की बात बहुत हद तक सही है। उस दंगे ने परबत्ती के विकास की भ्रूण हत्या कर दी थी।

समय एक समान नहीं रहता, परबत्ती की महिलाएं एक नया इतिहास रचने के लिए तैयार हो रही थीं। बात वर्ष 2009 की है। परबत्ती के अधिकतर परिवारों के भरण-पोषण का जरिया दैनिक मजदूरी है। शिक्षा के अभाव के कारण यहां के लोग अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को नशा और जुआ में लुटा देते हैं। जिस कारण यहां के बच्चों की परवरिश ठीक से नहीं हो पाती और महिलाओं को रोज प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता था। महिलाएं दिनभर मजदूरी कर वापस आतीं तो उनके पति उनसे रुपये लेकर नशा और जुआ में लुटाते। महिलाएं रोज-रोज की प्रताड़ना, बच्चों के बिगड़ते भविष्य की चिंता और परिवार की आर्थिक तंगी से आजीज हो गई थी।

महिलाओं को लगा कि परिवार और समाज की दुर्दशा का मूल कारण मोहल्ले में शराब का बिकना है। उस वक्त बिहार में शराबबंदी नहीं हुई थी। कुछ महिलाएं आपस में इसको लेकर चर्चा करने लगीं। सहमति बनी की मोहल्ले से सरकारी शराब की दुकान को बंद कराने के लिए आंदोलन किया जाए। कई बार इस तरह की सुगबुगाहट होती रही थी लेकिन सुगबुगाहट ठंडी पड़ जाती थी। मुझे लगा इस बार भी यही होगा। लेकिन इस बार परबत्ती की महिलाएं दृढ़ संकल्प के साथ मैदान में उतरी थीं।

उनके आंदोलन की तेजी को देखते हुए लगा कि इनका साथ देना चाहिए। मैंने भागलपुर के विभिन्न सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं के बीच इस बात को रखा। सहमति बनी और आंदोलन के समर्थन में उतर आया। करीब छह माह तक यह आंदोलन चला। छह माह में कई दफा प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठकें हुईं। स्थानीय मीडिया ने भी आंदोलन का खूब साथ दिया। अंत में प्रशासन को मोहल्ले से सरकारी शराब की दुकान को हटाया पड़ा और आंदोलन की जीत हुई।

आन्दोलन के दबाव के चलते सरकारी शराब की दुकान को मोहल्ले से बाहर किया गया। लेकिन शराब कारोबारी घर से भी शराब बेचता था। वर्ष 2013 में रंजीत कुमार ने परबत्ती चौक पर 9 दिनों का अनशन कर सरकारी शराब की दुकान का लाइसेंस रद्द करने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाया और इस बार भी आंदोलन की जीत हुई।

उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दिया। यह दावा तो नहीं करूंगा कि आंदोलन के प्रभाव से बिहार में शराबबंदी लागू हुई। लेकिन इस बात की चर्चा जरूर होती है कि परबत्ती की महिलाओं द्वारा किया गया शराबबंदी आंदोलन अद्भुत और साहसिक था। आंदोलन का प्रभाव आज भी है जिसका जिक्र आगे करूंगा।

2009 के बाद से लेकर आज तक शराब माफिया और नशे के कारोबारियों के क्रोध का शिकार बना हुआ हूं। बिहार में शराबबंदी का समर्थक होना सबसे बड़ा अपराध है। प्रशासन और शराब माफिया का एक बड़ा गठजोड़ बना हुआ है। भागलपुर नगर निगम चुनाव में शराबबंदी समर्थक मेरे मित्र रंजीत ने वार्ड 13 से चुनाव जीता। उसने सबसे पहली मीटिंग पुलिस और पब्लिक की कराई।

यह मीटिंग 31 जनवरी को स्थानीय थाना के S.I शिवनंदन सहनी की अध्यक्षता में हुई। उस मीटिंग में सहनी से सभी नागरिकों ने कहा कि त्यौहार का समय आ रहा है वार्ड में शराब की अवैध बिक्री पर पूर्ण पाबंदी होना चाहिए। शराब के कारण किसी भी तरह की अप्रिय घटना नहीं घटे इसके लिए सतर्क रहें। क्योंकि पिछले साल जहरीली शराब से परबत्ती मोहल्ला निवासी एक नौजवान की मृत्यु हुई थी। और उसके दो साथियों की समय से ईलाज हो जाने से जान बची थी।

जिस बात की आशंका जताई गई थी वही घटना होली के दिन (8 मार्च 2023) मोहल्ले में घटी। शराब बेचने और शराब पीने वाले के बीच मारपीट हुई और दोनों ओर से मुकदमा दर्ज कराया गया। शराब बेचने वालों ने SC/ST का हथियार बनाकर मुकदमा दायर किया और दूसरे पक्ष ने हॉकी स्टिक से मारकर सिर फोड़ने का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज कराया।

समाज में अराजक स्थिति और थाना के S.I शिवनंदन सहनी द्वारा शराब माफिया को बचाने के कारण दूसरे दिन 9 मार्च को कुछ युवकों ने विरोध में सड़क जाम कर दिया। भागलपुर के वरिष्ठ अधिकारी जाम छुड़ाने आये। उस समय पार्षद को भी घर से बुलाया गया। अधिकारियों ने कहा जाम को तोड़वा दीजिए। पार्षद ने कहा कि होली के दिन शराबबंदी सख्ती से किया गया होता तो यह स्थिति आज नहीं होती।

अधिकारियों ने मजिस्ट्रेट से मुकदमा दायर कराया, जिसमें पार्षद रंजीत कुमार को सड़क जाम करने के साजिशकर्ता के रूप में और 15 को नामजद आरोपी के साथ-साथ 25-30 को अज्ञात आरोपी बनाया गया। शराब कारोबारी के इशारों पर F.I.R  में लोगों के नाम दिए गए। 10 तारीख के अखबार में शराब माफिया से S.I शिवनंदन सहनी के साठगांठ के बारे में प्रमुखता से खबर छपी। लेकिन दायर F.I.R में सड़क जाम किस कारण से किया गया इसका जिक्र कहीं नहीं किया गया। उस F.I.R में शराब का जिक्र नहीं था।

F.I.R के तुरंत बाद पुलिसिया दमन शुरू हुआ। 17 मार्च 2023 को नगर निगम के पार्षद रंजीत कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। सामान्य परिवार से होने के कारण मेरे पिता घबराए हुए थे, उन्होंने मुझसे पूछा तुम्हारा नाम भी FIR में तो नहीं है। मैंने कहा कि नहीं, 9 मार्च को सड़क जाम के दौरान मैं परबत्ती में नहीं था। मैं उस दिन गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र, भागलपुर में आयोजित होली मिलन कार्यक्रम में था। मैंने पिता जी को समझाया कि पुलिसिया दमन हो रहा है, यदि गिरफ्तार करने आएगा, तो हम क्या कर सकते हैं? गिरफ्तारी के डर से भाग कर कहां जाएं?

मैं 20 मार्च को रांची में आयोजित “लोकतंत्र बचाओ समागम” (21, 22 और 23 मार्च) के लिए वरिष्ठ समाजसेवी रामशरण जी के साथ भागलपुर से रवाना हुआ। 25 को रांची से भागलपुर वापस आया और 26 तारीख को शाम 7 बजे करीब 30-40 पुलिस और स्पेशल फोर्स ने मेरी दुकान को घेर लिया। एक पुलिसकर्मी ने कहा कि दुकान बंद करो। मैंने पूछा क्यों? पुलिस ने कहा कुछ पूछताछ करना है। मैंने कहा पूछिये, क्या आपको जानना है? इस पर कुछ पुलिस वालों का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। कहा बात समझ में नहीं आती है तुमको, कह रहे दुकान बंद करने के लिए ना।

फिर मैंने कहा दुकान बंद नहीं होगी। आपको जहां ले जाना है, ले चलिए। फिर पिता जी वहां आये और मैंने उनसे कहा कि पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया है। मेरी गिरफ्तारी की सूचना साथियों को दे दीजिएगा। मेरी गिरफ्तारी की सूचना गांधीवादी और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मनोज मीता को मिली, उन्होंने तुरंत अपने बेटे सन्नी को थाने भेजा। सन्नी अपने साथियों के साथ थाना पहुंचे। थाना प्रभारी से उन्होंने पूछा कि गौतम को क्यों गिरफ्तार किया गया है। प्रभारी ने पूछा कि आप लोग कौन हैं? सन्नी ने कहा हम सभी इनके मित्र हैं। गौतम को किस आरोप में गिरफ्तार किया गया है?

थाना प्रभारी ने कहा कि सड़क जाम करने के आरोप में इसे गिरफ्तार किया गया है। सन्नी ने कहा कि क्या F.I.R में इनका नाम है? इस पर थाना प्रभारी ने कहा नामजद से ज्यादा बड़ा गुनाहगार होता है F.I.R का अज्ञात लोग, क्योंकि अज्ञात व्यक्ति को पहचान कर गिरफ्तार किया गया है। गौतम सड़क जाम का पोस्टर लिख रहा था। इस पर मैंने कहा कि मेरे द्वारा पोस्टर लिखने के वक्त का आपके पास कोई फ़ोटो या वीडियो तो सबूत के तौर पर होगा। आप फ़ोटो या वीडियो हमको दिखा दीजिए।

इस पर थाना प्रभारी ने कहा कि “बहस के लिए कोर्ट होता है, थाना नहीं। ऐ इन सब को गौतम की गिरफ्तारी का गवाह बनाओ।” इस पर सन्नी के दोस्तों ने कहा कि क्या मेरे सामने गौतम को आपने गिरफ्तार किया है? जो आपका गवाह बनूं। मैं समझ गया कि शराब माफिया के इशारों पर मुझे गिरफ्तार किया गया है। क्योंकि 16 नामजद आरोपी में एक रंजीत कुमार और दूसरा अज्ञात में मुझे गिरफ्तार किया गया। मैंने सन्नी से कहा कि काफी रात हो गई है, आप लोग चले जाइये।

मेरे साथ हाजत में एक लड़का और भी था, उससे पूछा कि किस जुर्म में आए हो? जवाब मिला शराब पीने में पकड़ लिया है। मैंने कहा काहे शराब पीते हो? उसने जवाब दिया कि हम मजदूर हैं, काम करते-करते थक जाते हैं, थोड़ा पी लेने से थकान दूर हो जाती है। अभी 50 रुपये का महुआ शराब लेकर आ ही रहे थे कि पुलिस ने पकड़ लिया। फिर उसने कहा कि बाबू हम गरीब हैं, घर में कोई नहीं है। मेरे घर से रात में खाने के लिए रोटी और सब्जी दिया गया था सो आधा खाना उस लड़के को दिया और उससे कहा कि सुबह मजिस्ट्रेट को कुछ फ़ाईन देकर तुम छूट जाओगे।

उस रात हाजत में रखे कंबल को बिछा कर मैं गेट पर ही सो गया। पूरी रात शौचालय से आ रही दुर्गंध और मच्छर ने सोने नहीं दिया। सुबह पिता जी नीम का दतवन और कुछ बिस्किट साथ लेते आये। मुंह धोने के बाद पिता जी दुकान से चाय लाने के लिए जैसे ही निकले तो थाना प्रभारी ने कहा सुरेश जी चाय मत लाइये, हमलोग चाय गौतम जी को पिला देते हैं। पुलिस ने चाय-नाश्ता मेरे साथ हाजत में बंद उस आदमी को भी दिया।

अब कोर्ट में पेशी के लिए ले जाने लगे। पहले सदर अस्पताल ले जाया गया, वहां कोरोना की जांच की गई। कुछ देर बाद सार्थक भरत मिलने आये, उनसे मेरी बातचीत हुई। भरत ने मेरा फ़ोटो खिंचा और चले गए। कोर्ट में कार्रवाई को पूरा किया गया। इस दौरान वरिष्ठ समाजसेवी रामशरण जी, गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मनोज मीता सहित अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ता कोर्ट में सहयोग करने आये।

मुझसे पूछा गया कि वकील किसे रखा जाए? मैंने कहा कि मेरा वकील संजय हैं, केस उन्हें दीजिए, वही केस की पैरवी करेंगे। संजय जी ने कुछ फॉर्म पर मेरे दस्तखत करवाये। पिता जी ने खाना खा लेने के लिए कहा, क्योंकि जेल में आज मुझे खाना नहीं मिलता। अब जेल ले जाने की तैयारी होने लगी, मुझे छोड़ने के लिए मेरे साथ सुरेश मंडल (पिता जी), रामरूप मंडल (पिता जी के मामा), पवन, संजय जी (वकील), जय (भाई) आये। जेल में रात्रि में खाने के लिए कुछ बिस्किट और 2 बोतल पानी मुझे दिया गया।

परिवार से बिछुड़ने का समय आ गया, पिता जी फूट-फूटकर रोने लगे। सभी की आंखें नम थीं। सभी की हालत को देखकर थोड़ी देर के लिए मैं विचलित हो गया, मेरी भी आंखों से आंसू निकल पड़े। फिर खुद को संभालते हुए पिता जी से कहा कि आप रोयेंगे तो दिक्कत होगी। पिता ने कहा परिवार का कोई सदस्य आज तक जेल नहीं गया। तुम जेल जा रहे हो।

मैंने कहा कि कुछ दिन के लिए समझ लीजिए आपका बेटा किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए घर से बाहर जा रहा। यह दौर ऐसा है कि सच्चाई के लिए कई सामाजिक कार्यकर्ता जेल में बंद हैं। यह आपके लिए गर्व की बात है कि आपका बेटा सच्चाई के लिए जेल जा रहा है। उसके बाद मैंने अपने भाई से कहा कि जेल में मिलने के लिए पिता जी, मां और भाभी को नहीं भेजना। तुम मेरे कुछ साथियों के साथ जेल में मिलने आना।

इसके बाद जेल के लिए रवाना हुआ। मेरी मां को इस बात का गुस्सा था कि मेरे बेटे को एक अपराधी की तरह शर्ट का कॉलर पकड़ कर पुलिस क्यों ले गयी। मेरे बेटे का गुनाह सिर्फ इतना ही था न कि समाज में शराब के अवैध कारोबार के खिलाफ बोलता और लिखता था। समाज को बदलने के लिए लड़ता था। उसका बस इतना ही सपना था कि जिस समाज में रह रहे हैं, वह एक सुंदर समाज बने।

कचहरी से जेल तक के सफर में मेरे मन‌ में जेल को लेकर कई सवाल उठ रहे थे। अंदर से टूटता जा रहा था, फिर खुद को संभालते हुए मन को समझाया कि जेल जैसा भी हो घर समझकर रहना होगा। रंजीत और कई साथी पहले से जेल में है। वो मेरी मदद करेंगे। भागलपुर के जेल में प्रवेश करते ही सघन जांच-पड़ताल की गई। जांच के बाद कागजी कार्यवाही को पूरा किया गया, उसके बाद मेरे लिए जेल के दरवाजे खुले। जैसे ही जेल में प्रवेश किया ठीक सामने गांधी जी की प्रतिमा थी, मैं उन्हें नमन कर आगे बढ़ा।

जेल का वातावरण मोहक था। रास्ते के किनारे किनारे रंग-बिरंगे फूलों और औषधियों के पौधे क्यारियां में लगे थे। बड़े-बड़े नीम, आम, कटहल, आदि के पेड़ लगे थे। सीमेंट से बने चबूतरे पर कैदी बैठकर गप्पे हांक रहे थे। शाम का समय था, कुछ कैदी वॉलीवॉल खेल रहे थे तो कुछ कैदी टहल रहे थे, कोई फूलों की क्यारियों में काम रहा था तो कोई गुलेल से बंदर भगा रहा था। सभी कैदी अपने-अपने कामों में व्यस्त थे।

मैं गुमटी (जेल पुलिस बल अड्डा) पर गया। नाम, पता पूछा गया उसके बाद जेल आने का कारण पूछा। अपना नाम पता बताने के बाद जेल आने का कारण सड़क जाम बताया तो एक सिपाही कहता है ओ तो आप नेता जी हैं। दूसरा सिपाही कहता है नेता जी पहली बार जेल आये हैं। मैंने कहा हां। फिर उसने कहा की आप सौभाग्यशाली हैं, जेल की धरती पर कदम रखने का नसीब सबको नहीं मिलता। आपका जेल में स्वागत है। यहां कोई दिक्कत नहीं होगा, मजे से रहिये और यहां से किये जाने वाले अनाउंसमेंट पर ध्यान देते रहिए।

नये कैदी को शरुआत में कुछ दिनों के लिए आमद वार्ड में रखा जाता है। आमद वार्ड की संख्या 4 थी। मैं वार्ड की ओर बढ़ ही रहा था कि मेरी नजर रंजीत पर पड़ी। मैंने रंजीत को आवाज दिया। रंजीत हमको जेल में देखकर दंग रह गया। रंजीत को अपनी आंखों-कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने रंजीत को गले लगाया और उसके बेल हो जाने की सूचना दी। बेल होने की रंजीत को उतनी खुशी नहीं मिली, जितनी तकलीक मेरे जेल आने से उसको हुई।

रंजीत ने कहा कि यह गलत है। रंजीत ने आमद वार्ड के इंचार्ज सुधीर जी से मिलाया। रंजीत ने वार्ड इंचार्ज से कहा कि भैया गौतम मेरा अपना आदमी है वार्ड में इसे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। मेरे जेल आने की सूचना परबत्ती के कई लोगों को मिली सभी भागे-भागे मेरे पास आये। कैदी बंदी का समय हो रहा था सभी ने सोने के लिए मेरा बेड लगाया और मच्छरदानी बांध दिया। अपने-अपने हिस्से से रोटी और सब्जी एक पन्नी में बांध कर लेते आए और कहा भैया रात में इसे खा लीजियेगा।

मच्छरदानी बड़ा था तो अकबरनगर का अमित और जगदीशपुर का बबलू मेरे साथ हो गए। रात में सब अपनी-अपनी परेशानी बता रहे थे। इसी बीच एक 18-20 साल का युवक जोर-जोर से रोने लगा। सभी ने मिलकर उसे चुप कराया। मैंने पूछा कि यह लड़का किस केस में जेल आया है। एक ने कहा कि ताड़ी बेचने के आरोप में जेल हुआ है, अभी कुछ दिन पहले ही इसकी शादी हुई है। कुछ कैदी ने उस लड़के से मजाकिया अंदाज में पूछा “कनियान याद ऐलो की रैय” वार्ड के सभी कैदी ठहाके लगाने लगे।

सुबह 6 बजे वार्ड का ताला खुला, सभी अपना-अपना जूठा बर्तन साफ करने के लिए साथ लेकर बाहर आए। मैं भी उनकी देखा-देखी अपनी थाली-ग्लास लेकर बाहर निकला, तभी हमारे मोहल्ले का एक बच्चा आया, भैया आप छोड़ दीजिए हम साफ कर देते हैं। रंजीत के साथ थोड़ी देर सुबह-सुबह टहला, उसके बाद नहा-धोकर फ्रेस हुआ। सुबह चाय की आदत थी, रंजीत अपने वार्ड में हमको ले गया, वहां इलेक्ट्रॉनिक थर्मस में चाय बनाया। चाय पीने के बाद एक ग्लास सत्तू पिलाया।

सत्तू पीने के बाद अपने वार्ड में वापस आ गया। कुछ देर बाद स्लेट के साथ फोटोग्राफी हुई, उसके बाद मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में ब्लड सेंपल लिया गया और ब्लड प्रेशर की जांच हुई। डॉक्टर ने पूछा कि पहले से कोई बीमारी है! जिसकी आप दवा लेते हो! मैंने कहा ब्लड प्रेशर की गोली खाता हूं। डॉक्टर ने कहा ब्लड शुगर भी आपको है! इसकी दवा लिख दिया है।

डॉक्टर ने साथ में एक पर्ची दिया जिसमें लिखा था कि इस बंदी को दोनों समय खाने में रोटी दिया जाए। उस पर्ची को जेल के पाकशाला में देना था। मैंने साथियों की मदद से पाकशाला में पर्ची दिया। रंजीत ने जेल में कहां क्या है बताया? पुस्तकालय, जिम, पाठशाला, कैंटीन, सैलून, जूता-चप्पल सीने वाले की दुकान, सिलाई घर, प्रिंटिंग प्रेस, नया कपड़ा बनाने वाला वार्ड आदि आदि।

जेल का पहला दिन जेल को जानने समझने और जेल की प्रक्रिया को पूरा करने में बीत गया। शाम को रंजीत बेल पर रिहा होने वाला था। मन में रंजीत से बिछड़ने की उदासी और जेल से बाहर जाने की ख़ुशी दोनों थी। शिविरों का अनुभव जेल में बहुत काम आया। समूहों के साथ रहना-खाना, अपना काम अपने से करना आदि। सुबह-शाम टहलना, पुस्तकालय में बैठकर अखबार पढ़ना, दोपहर में किसी गाछ के नीचे बैठकर किताब पढ़ना।

जेल में छोटा सा मैदान था, जहां सुबह क्रिकेट और शाम में वॉलीवॉल कैदियों के साथ जेल के सिपाही खेलते थे। शाम को विद्यालय में कैदी अपने से बजाते और गाना गाते थे (आर्केस्ट्रा), खाने में जेल का दाल-सब्जी बगल के कैदी को दे देता था। रंजीत ने मेरे लिए दिनों टाइम दूध और सब्जी की व्यवस्था कर दिया था। वैसे जेल का मीनू अच्छा था। जेल में मुसलमान भाइयों के लिए मस्जिद और हिंदू भाइयों के लिए हर जगह छोटे-छोटे मंदिर बने हुए थे। शाम को वार्ड में बंद होने के बाद कैदी रोज संध्या आरती करते।

जेल में मुसलमान कैदियों के लिए अलग से इफ्तार का भोजन बनाने की छूट दी गई थी। मेरे वार्ड में एक मुसलमान कैदी थे जो शाम को इफ्तार के लिए बना खाना हम लोगों को दिया करते थे। मैंने अकबर नगर के एक अमित नाम के लड़के का पूर्व में जिक्र किया था, वह जाति से भूमिहार था। शराब का नया-नया धंधा शुरू किया था और पकड़ा गया। उसे अपने गलती का अहसास हुआ और उसने हमसे कहा कि अब कभी शराब का धंधा नहीं करूंगा।

जगदीशपुर का एक तांती समाज का व्यक्ति था उसने बताया कि 2020 कोरोना काल के पहले मेहनत मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। कोरोना में दैनिक मजदूरी ठप हो जाने से परिवार सड़क पर आया गया, किसी ने कोई मदद नहीं की। कुछ लोगों ने कहा शराब का धंधा करो। पहले शराब का धंधा करने से डरा, लेकिन दूसरा कोई और धंधा नहीं मिला। उसने कहा कि मैंने उसकी बात मानी, आज मेरे पास जमीन है, उसी पैसे से बेटी की शादी की और एक बेटा है जिसको दिल्ली में पढ़ा रहा हूं।

नाथनगर के एक शराब कारोबारी ने कहा शराब बेचना मेरा पुश्तैनी काम है। परबत्ती की महिलाओं की वजह से बिहार में शराबबंदी हुई है। अब शराबबंदी मेरे लिए वरदान साबित हो गई है। शराबबंदी से पहले शराब बेचकर जितना रुपये कमाते थे आज उससे 10 गुना ज्यादा कमाते हैं। हजारों-लाखों रुपये देकर थाना पुलिस को मुट्ठी में रखते हैं।

मैंने उनसे कहा कि थाना पुलिस को मुट्ठी में रखते हैं तो जेल कैसे आ गए? इस पर उसने जवाब दिया कि कभी-कभी जेल आना होता है। जब कोई पियक्कड़ नहीं पकड़ता है। मैंने कहा वो कैसे ? उसने कहा नेता जी पुलिस पियक्कड़ को पकड़कर यह साबित कर देती है कि फला आदमी को शराब बेचते हमने पकड़ा, एकाध बोतल दर्शा देती है। इससे थाना और हम जैसे शराब कारोबारी दोनों बच जाते हैं।

एक बूढ़ा लाठी के सहारे चलते हुए वार्ड में आया। कैदियों ने पूछा बाबा इस उम्र में किस केस में आये हैं। बूढ़े ने जवाब दिया कि 10 लाख के डिमांड केस में जेल में आया हूं। रात में बाथरूम जाने के दौरान बेचारा गिर पड़ा। सभी ने उन्हें उठाकर बेड पर लाया। जेल पुलिस कह रही थी कि बिना जांच किये किसी को पुलिस जेल भेज देती है। लड़की के अपहरण और बलात्कार मामले में जेल गए कैदी को जेल में भी इज्ज़त नहीं मिलती। ऐसे कैदी को 76/छियत्रा के नाम से पुकारा जाता है।

वार्ड की साफ-सफाई से लेकर बर्तन धोने का काम इन लोगों द्वारा किया जाता है। भागलपुर के अकबरनगर और बलुवाचक, जगदीशपुर के कुछ लोग सड़क जाम के मामले में गिफ्तार किए गये थे। बलुवाचक में हत्या के विरोध में हत्यारों की गिफ्तारी की मांग को लेकर जाम किया गया था और अकबरनगर में सड़क हादसे में बच्चों की मौत को लेकर सड़क जाम किया गया था।

दोनों कांडों में पुलिस को जिन्हें गिफ्तार कर जेल भेजना था, उसके बजाय उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा जो आरोपी की गिफ्तारी की मांग कर रहे थे। लोकतंत्र में सड़क जाम करना अपराध नहीं बल्कि विरोध दर्ज करने का एक तरीका है। जैसा कि पहले ही मैंने जिक्र किया कि जेल में आने-जाने वालों की इतनी सघन जांच-पड़ताल होती है कि सुई तक अंदर नहीं जा सकती, बावजूद इसके जेल में खैनी, गांजा और नशे वाली मेडिकेटेड दवा मिलती है। जिस खैनी की कीमत 5 रुपये है, जेल में 800 से 1200 तक में मिलती है। दो चुटकी खैनी 100 रुपये में मिलती है। आखिर ये सारा नशा जेल में उपलब्ध कराने वाले कौन हैं?

जेल में हर काम की एक कीमत तय है पुलिस से लेकर सजायाफ्ता कैदी तक इसे लेते हैं। जेल के सभी काम को सजायाफ्ता कैदी ही करते हैं। सरकार कैदी को 92 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से देती है। 11वें दिन मुझे तारीख के लिए जेल से कोर्ट लाया गया। जेल के सभी कैदी हर 14 दिनों में कोर्ट में पेश होते हैं। लेकिन कोर्ट में छुट्टी की वजह से मुझे 11 दिनों में ही कोर्ट में पेश होना पड़ा। साथियों ने दोपहर में खाने के लिए नाश्ता और एक बोतल पानी झोला में डाल दिया और कहा भूख-प्यास लगे तो इसे खा लीजिएगा। क्योंकि आप शाम 5-6 बजे के पहले नहीं आइयेगा।

कोर्ट का हाजत किसी नरक से कम नहीं था। हाजत की दीवारें पुड़िया की पीक से रंगी हुई थीं, शौचालय इतना दुर्गंध देता था कि नाक नहीं दिया जाता। ऊपर से गांजा और सिगरेट का धुआं। कोर्ट हाजत में कैदी को कोर्ट पुलिस, वकील, पानी बेचने वाले और घर-परिवार के लोग, दोस्त-यार गांजा, सिगरेट और गुटखा उपलब्ध कराते हैं।

हाजत की स्थिति देखकर मुझसे कुछ भी खाया-पीया नहीं गया। हाजत का एक कोना पकड़े पूरा दिन खड़ा रहा। जेल ले जाने वाली पहली गाड़ी पर ही जल्दी-जल्दी बैठकर जेल चला गया। जेल में साथी मेरा इंतजार कर रहे थे। 5:30 बजे कैदी बंदी की घोषणा हो गयी थी। मैं जेल पहुंचा और जल्दी से चाय और नाश्ता किया। साथी कैदियों ने कहा आपका खाना लेकर वार्ड में रख दिया है।

जेल में हूं इसका अहसास सुबह 5 बजे से वार्ड खुलने तक होता था। इस दौरान सबसे ज्यादा अफसोस 9 अप्रैल को हुआ, क्योंकि उस दिन पटना में गंगा मुक्ति आंदोलन और जल श्रमिक संघ का सम्मेलन था। अगले दिन 10 तारीख को सम्मेलन की खबर के लिए सभी अखबारों को उलट पलट कर देखा। अखबार के क्षेत्रीय हो जाने के कारण पन्ना पलटने से पटना की खबर नहीं मिली। फिर दूसरा तकलीफदेह दिन 15 अप्रैल का रहा, इस दिन मेरा जन्मदिन था। 13 अप्रैल को ही बेल मिल गयी थी लेकिन 14 अप्रैल को कोर्ट बंद होने के चलते 15 अप्रैल को मैं जेल से बाहर अपने परिवार के साथ जन्मदिन मनाने की सोच रहा था।

दिन के 2:30 बज रहे थे, अचानक फिर एक कागज आया। मुझे लगा मेरी रिहाई का कागज है। कागज देखा तो बॉन्ड पेपर पर दस्तखत के लिए आया था। मन उदास हो गया। वार्ड के साथियों ने कहा कि शाम तक आप रिहा हो जायेंगे धैर्य रखिए। किंतु कैदी के बंदी का समय हो गया, लाउडस्पीकर पर बंदी की घोषणा हो गई। मैं वार्ड की तरफ जा ही रहा था कि तभी सभी साथी दौड़ते हुए आए और कहा की भइया आपकी रिहाई का कागज आ गया है, जल्दी से सारा सामान झोला में कीजिए। उस समय मेरे खुशी का ठिकाना नहीं था। जल्दी से गुमटी पर पर गया, वहां नाम कटवाया और जेलर के पास गया। कागजी प्रक्रिया करते करते 7 बज गए। 7 बजकर कुछ मिनट पर जेल से बाहर निकला।

जेल के बाहर रंजीत, जयशंकर जी, पिताजी, रामरूप जी (पिता जी मामा) और मेरे छोटे बहनोई रौशन मेरा इंतजार कर रहे थे। पिता जी मुझे देखकर फिर रोने लगे। मैने उन्हें समझाया कि अब तो बाहर आ गया हूं, अब क्या रोना! मेरे बहनोई रौशन ने कैम्प जेल के बाहर हम सभी का ग्रुप फ़ोटो लिया। उसके बाद हम सभी जेल से घर की ओर रवाना हुए। पहले गांधी शांति प्रतिष्ठान में संजय भाई, उसके बाद अर्जुन भाई से मिलते हुए घर पहुंचा। सभी मेरे इंतजार में खड़े थे। बड़े को प्रणाम किया और बच्चों को गले लगाया।

स्नान कर फ्रेश हुआ। कइयों के फोन आने शुरू हो गये तो कई साथियों को मैंने खुद फोन किया। मैंने वरिष्ठ साथी डॉ. मनोज मीता से फोन पर बात की। उन्होंने बताया की आपकी गिरफ्तारी को लेकर भागलपुर के गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र में बैठक हुई। रेलवे स्टेशन पर गिफ्तारी के विरोध में सभा भी की गयी थी। बिहार के अन्य जिलों में भी सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने बैनर तले विरोध किया था। सैकड़ों लोगों ने सोशल मीडिया पर आपके समर्थन में लिखा। आपके मोहल्ला के सभी जात और धर्म के लोग आपकी गिरफ्तारी से आहत थे।

मैं आज भी सोचता हूं कि आखिर मेरे जैसे लोगों का कसूर क्या था जो जेल की हवा खानी पड़ी। अपराध करने वालों को जेल में डालने के बजाय अपराध का विरोध करने वालों को ही जेल में डालना कहां का इंसाफ है। यह सवाल बार-बार जेहन में आता है और देश की आजादी के उन नायकों की याद ताजा हो जाती है जिन्होंने अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी। लेकिन आजाद भारत में भी अपराधी माफियाओं की चांदी है और इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों का ही दमन जारी है।

पटना-दिल्ली की आती-जाती सरकारों से तो ज्यादा उम्मीद नहीं है लेकिन लोकतंत्र पसंद- न्याय पसंद जनता को इस स्थिति पर गंभीरतापूर्वक अवश्य विचार करना होगा और तमाम किस्म के अन्याय और अपराध का बड़ी एकता बनाते हुए लोकतांत्रिक तरीके से विरोध के लिए आगे आना होगा। अन्यथा सत्ता, उसकी पुलिस और माफिया गठजोड़ देश के बचे-खुचे लोकतंत्र को भी नेस्तनाबूद कर देगा।

(लेखक गौतम कुमार, भागलपुर, बिहार के युवा समाजकर्मी हैं और गंगा मुक्ति आंदोलन सहित गांधी- लोहिया- जयप्रकाश की धारा के विभिन्न संगठनों में सक्रिय तौर पर जुड़े हैं।)

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