Wednesday, April 24, 2024

तुर्की के राष्ट्रपति का फैसला अब 28 मई को होगा

तुर्की में रविवार को हुए चुनावों की मतगणना पूरी हो चुकी है। खबर है कि मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप तैय्यब एर्दोगन बहुमत के करीब पहुंचकर भी चूक गये हैं। ताजा खबरों के मुताबिक दूसरे दौर का मतदान अब 28 मई को एर्दोगन और केमेल किलिक्दारोग्लू के बीच में होगा।

एकेपी पार्टी के एर्दोगन को जहां 49.35% वोट हासिल हुए, वहीं 6 पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार किलिक्दारोग्लू (सीएचपी) के हिस्से में 45% वोट आये हैं। राष्ट्रपति पद की रेस में शामिल अन्य दलों में एटीए के उम्मीदवार सिनान ओगन को 5.22% मत हासिल हुए हैं, जबकि होमलैंड पार्टी के उम्मीदवार को मात्र 0.43% मतों से संतुष्ट होना पड़ा है।

चूंकि इस बार का चुनाव शुरू से ही एर्दोगन और संयुक्त विपक्षी दल के बीच तय माना जा रहा था, ऐसे में अन्य उम्मीदवारों के पक्ष में न्यूनतम मत मिलने की उम्मीद थी, लेकिन दक्षिणपंथी एटीए गठबंधन के सिनान ऑगन के पक्ष में उम्मीद से अधिक वोटों ने दूसरे राउंड में जाने के लिए अवसर प्रदान कर दिया है।

सरकार संचालित न्यूज़ एजेंसी अनादोलू द्वारा जारी चुनावी अपडेट को लेकर देर रात विपक्षी पार्टियों की ओर से सवाल उठाये गये। मुख्य विपक्षी पार्टी के नेताओं की ओर से दावा किया गया कि उनके उम्मीदवार केमेल किलिक्दारोग्लू को रेसेप तय्येप एर्दोगन से पीछे दिखाने के लिए मतगणना की रफ्तार को धीमा किया जा रहा है। अल ज़जीरा की रिपोर्ट के मुताबिक रात 11 बजे से पहले एर्दोगन को 50.13% वोट के साथ स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ते हुए दिखाया जा रहा था, जबकि छह पार्टियों के गठबंधन के उम्मीदवार किलिक्दारोग्लू को 44.09% के साथ दूसरे नंबर पर बताया जा रहा था।

वहीं दूसरी तरफ अंका न्यूज़ एजेंसी के आंकड़े कुछ और कहानी बयां कर रहे थे। इसमें एर्दोगन के पक्ष में 48.87% और विपक्षी दल के उम्मीदवार को 45.38% मत हासिल हो रहे थे। बाद में जाकर अनादोलू ने अपने आंकड़ों को अपडेट करते हुए एर्दोगन के पक्ष में 49.94% वोट जारी किये। इस्तांबुल के मेयर एकरेम इमामोग्लू और अंकारा के मेयर मंसूर यावास ने इस बीच चुनावों में अनादोलू की भूमिका पर तीखा प्रहार किया है।

इमामोग्लू ने अपने बयान में कहा, कि “हम एक बार फिर से अनादोलू एजेंसी की संदेहास्पद भूमिका का सामना कर रहे हैं। इसकी प्रतिष्ठा जीरो भी नहीं है। इस पर हम जरा भी भरोसा नहीं कर सकते। अनादोलू के आंकड़े झूठे और फर्जी हैं।” वहीं अंकारा मेयर ने कहा है, कि “वे अपने पक्ष वाले बैलट बॉक्स की गिनती दिखाकर देश को गुमराह कर रहे हैं। इन्हें शर्म भी नहीं आती। इनकी कोई विश्वसनीयता नहीं बची। हमारे पास जो आंकडें हैं, उसके अनुसार हमारे राष्ट्रपति कमाल किलिक्दारोग्लू आगे चल रहे हैं।”

वहीं एर्दोगन की एके पार्टी के प्रवक्ता ओमर सेलिक ने दोनों शहरों के मेयर पर आरोप लगाते हुए कहा कि “उनकी ओर से बेहद आपत्तिजनक बयान दिए गये हैं। उन्होंने अनादोलू एजेंसी पर हमला किया है और चुनाव परिणाम की स्वंय घोषणा कर दी है। यह एक तानाशाही प्रवृति है। यह राष्ट्रीय आकांक्षाओं की हत्या करने का प्रयास है।”

वहीं किलिक्दारोग्लू ने सिर्फ एक शब्द के साथ ट्वीट किया कि “हम बढ़त बनाये हुए हैं।”

अब जबकि पहले राउंड के नतीजे सामने आ गये हैं और 28 मई को दूसरे दौर के चुनाव में तुर्की के भाग्य का फैसला होना है, दोनों दलों की ओर से 5% से अधिक वोट पाने वाले तीसरे दल के नेता को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयास तेजी से शुरू हो गये हैं। बता दें कि सर्वेक्षण के दौरान संयुक्त विपक्षी दल को स्पष्ट बहुमत दिखाया गया था, लेकिन चुनाव से ऐन एक दिन पहले राष्ट्रपति एर्दोगन की सभा में लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ और बाद में एक धार्मिक सभा में उनकी उपस्थिति ने माहौल को बदलने में भूमिका निभाई है।

यहां पर यह जानना दिलचस्प होगा कि 20 वर्षों से राष्ट्रपति एर्दोगन ने कभी हार का मुंह नहीं देखा है। 2002 में इस्तांबुल के मेयर पद जीतने के बाद उन्होंने लगातार तुर्की के पीएम और बाद में संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति के बतौर तुर्की की कमान अपने हाथ में बनाए रखी है। आज वे देश के सबसे लंबे अर्से से सत्ता संभालने वाले प्रमुख हैं, और इस बीच उनके द्वारा तुर्की की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारी उलटफेर करते हुए शक्तियों को अपने हाथ में ले लिया है।

तुर्की की विशिष्ट भौगौलिक स्थिति और नाटो सहित जी-20 की सदस्यता के साथ-साथ यूरोप और एशिया जैसे दोनों महाद्वीप के भीतर आने की वजह से इसकी महत्ता काफी बढ़ जाती है। देश में एर्दोगन ने तुर्की राष्ट्रवाद को हवा देकर अपने पक्ष में एक मजबूत आधार तैयार कर रखा है, जो उन्हें तुर्की के रक्षक के बतौर देखती है। पाशा कमाल अतातुर्क को आधुनिक तुर्की का जनक माना जाता रहा है। उन्होंने तुर्की को एक आधुनिक लोकतांत्रिक देश बनाकर दुनिया में अरब मुल्कों से अलग एक ऊंचे मुकाम पर पहुंचाया। लेकिन एर्दोगन ने अपने राजनीतिक कार्यकाल में जहां एक तरफ राष्ट्रवादी भावनाओं को मजबूत करने का काम किया वहीं तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं, प्रेस की स्वतंत्रता, महिलाओं के लिए स्कार्फ और कुर्द अल्पसंख्यक समुदाय को निशाने पर लेकर अनुदारवादी भावनाओं को हवा देकर अपने लिए मजबूत समर्थन आधार बना रखा है।

तुर्की का प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, नारीवादी, एलजीबीटी समर्थक और शहरी हिस्सा जहां एर्दोगन के विरोध में खड़ा है, वहीं पश्चिमी देश भी एर्दोगन की हार की कामना कर रहे हैं। तुर्की की विशिष्ट भौगौलिक परिस्थिति के कारण एर्दोगन इसका भरपूर लाभ उठाते रहे हैं। एक तरफ तुर्की नाटो सदस्य देश है तो वहीं पुतिन के साथ उनकी नजदीकी पश्चिमी देशों के लिए लगातार संशय की स्थिति बनाये रखती है।

तुर्की हाल के कुछ वर्षों में भयानक मुद्रा स्फीति के दौर से गुजर रहा है। कीमतें आसमान छू रही हैं, और आम लोगों के लिए जीवन बेहद कठिन हो चुका है। पिछले साल देश के विभिन्न हिस्सों में भयानक आग और जंगलों के नष्ट हो जाने के साथ-साथ बड़े भूकंप ने भयानक तबाही ला दी थी। हजारों की संख्या में लोगों की मौत और कई शहर मलबे के ढेर में तब्दील हो चुके थे। बड़ी संख्या में लोग आज भी तंबुओं में जीवन गुजारने के लिए मजबूर हैं। तुर्की को नए सिरे से खड़ा करने की चुनौती है, लेकिन कथित राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व और धार्मिक जकड़न इस बुनियादी मुद्दे और लोकतंत्र की बहाली में अभी भी एक बड़ी बाधा है।

फ़िलहाल तीसरे उम्मीदवार सिनाम ऑगन (एटीए अलायन्स) का समर्थन हासिल करने के लिए एर्दोगन और किलिक्दारोग्लू दोनों में होड़ लग गई है। लेकिन कयास लगाये जा रहे हैं कि दक्षिणपंथी पार्टी ऑगन के अनुदारवादी एर्दोगन के पक्ष में जाने की अधिक उम्मीद है। बहरहाल इन दो सप्ताह में तुर्की के नागरिकों के पास एक बार फिर से अपने स्वविवेक के आधार पर देश का भाग्य तय करने का समय है। इस मूड को अपने पक्ष में रिझाने के लिए इन दोनों नेताओं और वैश्विक वैचारिक दबाव की क्या भूमिका होने जा रही है, यह तो अंतिम रूप से 28 मई के चुनाव के बाद ही तय हो पायेगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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