Thursday, March 28, 2024

23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का सोनिया गांधी को खत, कहा- पार्टी में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत

नई दिल्ली। पिछले छह सालों से लगातार कांग्रेस की कमजोर हो रही स्थित और चुनावों में लग रहे धक्के पर धक्कों ने देश की सबसे पुरानी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अंदर से परेशान कर दिया है। लिहाजा एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने पार्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक आमूल-चूल परिवर्तन करने की मांग की है।

पत्र लिखने वाले नेताओं में पांच पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति के ढेर सारे सदस्य, मौजूदा सांसद और ढेर सारे पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।

पत्र में बीजेपी की बढ़त को स्वीकार किया गया है साथ ही यह भी कहा गया है कि देश के युवाओं ने निर्णायक तरीके से नरेंद्र मोदी को वोट दिया है। इसके साथ ही अपनी पार्टी के आधार के कमजोर होने और युवाओं के उससे दूर जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी है।

बताया जा रहा है कि यह पत्र एक पखवाड़ा पहले भेजा गया है। इसमें सुधार का पूरा विवरण दिया गया है।

सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका।

पत्र में एक पूर्णकालिक और प्रभावशाली नेतृत्व की बात की गयी है जो दिखने के साथ ही जमीन पर सक्रिय भी हो। इसके साथ ही सीडब्ल्यूसी के चुनाव की बात की गयी है। पत्र में सामूहिक रूप से पार्टी के पुनर्जीवन को गाइड करने के लिए एक ‘संस्थागत नेतृत्व की प्रणाली’ को स्थापित करने की मांग की गयी है।

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पार्टी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, सांसद विवेक तनखा शामिल हैं।

इसके अलावा एआईसीसी के पदाधिकारी, सीडब्ल्यूसी के सदस्य मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों भूपिंदर सिंह हुडा, राजेंदर कौर भट्टल, एम वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चाह्वाण, पीजे कुरियन, अजय सिंह, रेनुका चौधरी और मिलिंद देवड़ा शामिल हैं। इसके अलावा यूपी के पूर्व अध्यक्ष राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली (दिल्ली), कौल सिंह ठाकुर (हिमाचल प्रदेश), बिहार अभियान के मौजूदा चीफ अखिलेश प्रसाद सिंह, हरियाणा के पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा, दिल्ली विधानसभा के पूर्व स्पीकर योगानंद शास्त्री और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित शामिल हैं।

पत्र में इस बात का तर्क दिया गया है कि कांग्रेस का पुनर्जीवन एक राष्ट्रीय जरूरत है और अब यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए बुनियादी शर्त बन गयी है। सूत्रों का कहना है कि पत्र में इस बात को चिन्हित किया गया है कि जब देश आजादी के बाद सबसे कठिन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है तो पार्टी कैसे लगातार गिरावट की ओर अग्रसर है।

पत्र में बीजेपी और संघ परिवार का सांप्रदायिक और बंटवारे का एजेंडा, आर्थिक मंदी, राकेट की गति से बढ़ती बेरोजगारी, महामारी से पैदा कठिन चुनौतियां, सीमा पर तनाव, जिसमें चीन के साथ गतिरोध शामिल है, और विदेश नीति में गैप आदि चीजों ने नागरिकों के बीच डर और असुरक्षा की भावना को पैदा किया है।

उनके पत्र ने सुधारों की एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त पेश की है। इसमें शक्ति के विकेंद्रीकरण, राज्य इकाइयों को शक्तिशाली बनाना, ब्लॉक से लेकर सीडब्ल्यूसी तक सभी स्तरों पर कांग्रेस संगठन में चुनाव और तत्काल केंद्रीय संसदीय बोर्ड गठित करने की मांग की गयी है।

सूत्रों के मुताबिक नेताओं ने इस बात को चिन्हित किया है कि नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता और पार्टी में गैप ने कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित किया है और पार्टी को कमजोर किया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने कहा है कि सीडब्ल्यूसी कारगर तरीके से पार्टी को गाइड करते हुए बीजेपी सरकार के खिलाफ जनमत को गोलबंद नहीं कर पा रही है।

उनका मानना है कि सीडब्ल्यूसी की बैठक केवल एपिसोड की तरह होती है और राजनीतिक प्रगति पर प्रतिक्रिया देने के लिए बुलायी जाती है। और कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी की बैठक सीपीपी चेयरपर्सन सोनिया गांधी के कस्टमरी और श्रद्धांजलि संबोधनों के लिए होती है।

उन्होंने कहा है कि सीपीपी में कभी कोई बहस-मुबाहिसा नहीं होता। राष्ट्रीय एजेंडा स्थापित करने और नीतिगत पहलकदमी के लिए सीडब्ल्यूसी के निर्देशन में चीजें संपन्न होनी चाहिए।

पत्र में नेताओं ने कहा है कि यहां तक कि लोकसभा चुनाव में हार के एक साल बाद भी पार्टी ने हार के पीछे के कारणों को जाने के लिए अपने भीतर झांकने की कोई ईमानदार कोशिश नहीं की है।

बताया जा रहा है कि नेताओं ने पत्र में ढेर सारे सुझाव दिए हैं। जिसमें एक पूर्णकालिक कारगर नेतृत्व की नियुक्ति जो जमीन पर दिखने के साथ ही सक्रिय रहे।  साथ ही वह एआईसीसी और राज्यों के हेडक्वार्टर पर उपलब्ध रहे। सामूहिक विचार-विमर्श के लिए कांग्रेस संसदीय बोर्ड का गठन, सांगठनिक मामलों, नीतियों और कार्यक्रमों के मसले पर निर्णय लेने की क्षमता हो, सभी स्तरों पर पारदर्शी तरीके से चुनाव और सीडब्ल्यूसी का भी चुनाव के जरिये गठन आदि सुझाव शामिल हैं।

उन्होंने पत्र में कहा है कि यह समय एक संस्थागत नेतृत्व प्रणाली को स्थापित करने का है जो पार्टी के पुनर्जीवन के लिए सामूहिक तौर पर गाइड करने का काम करेगा। हालांकि सामूहिक नेतृत्व की बात करते हुए पत्र दिलचस्प तौर पर कहता है कि नेहरू-गांधी परिवार हमेशा उसका अभिन्न हिस्सा बना रहेगा।

पत्र विपक्षी दलों के साथ एकता की भी बात करता है। इनमें उन दलों और नेताओं पर जोर दिया गया है जिन्होंने पहले किन्ही न किन्ही कारणों से कांग्रेस को छोड़ दिया था।

इसके साथ ही जिन हिस्सों पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है उनको भी इस पत्र में चिन्हित किया गया है। राज्य कांग्रेस अध्यक्षों और पदाधिकारियों की नियुक्तियों में बेवजह देरी हो रही है। ऐसा कहा गया है। और ऐसे नेता जिनका सम्मान है या फिर उनकी स्वीकार्यता है उन्हें तवज्जो नहीं दिया जाता है। इसके अलावा राज्य कांग्रेस अध्यक्षों को सांगठनिक फैसलों को लेने की स्वतंत्रता नहीं होती।

बताया जा रहा है कि पत्र में राहुल गांधी का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन इस बात को जरूर चिन्हित किया गया है कि युवक कांग्रेस और एनएसयूआई में चुनाव की शुरुआत ने युवा और छात्र इकाइयों में विवाद और विभाजन को जन्म दिया है। बहुत सारे नेताओं ने इस बात की शिकायत की है कि राज्य स्तर पर पैसे और राजनीतिक संरक्षण के बल पर युवा और छात्र इकाइयों पर कब्जा कर लिया गया है।

पत्र में सोनिया गांधी द्वारा दिए गए नेतृत्व की प्रशंसा की गयी है और कांग्रेस अध्यक्ष रहते राहुल गांधी के सराहनीय प्रयासों को भी चिन्हित किया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि नेहरू-गांधी परिवार पार्टी के ‘सामूहिक नेतृत्व’ का अभिन्न हिस्सा बना रहेगा।  

(इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित।)  

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