ख़ास रपट: नियमों की होती अनदेखी और मौत के बढ़ते आंकड़े! जवाबदेही आख़िर किसकी

“अगर सुपरवाइजर नहीं भागता और दूसरे लोगों को मदद के लिए बुला लेता तो आज मेरा भाई करन और पूरन मामा जिंदा होते उन्हें समय पर सीवर टैंक ईलाज मिल गया होता लेकिन उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया….. ये हादसा नहीं हत्या है।” करन की दीदी रिंकी ने जब यह बात कही तो उसकी आंखों से बरबस आंसू निकल पड़े। कभी माँ को संभालती कभी खुद को संभालती रिंकी कहती है करन को हमसे दूर गए दस दिन होने को आये लेकिन अभी भी विश्वास नहीं होता कि अब वह कभी लौट कर नहीं आएगा, ऐसा लगता है मानो अभी काम से लौटेगा और दीदी खाना दो, कहकर आवाज़ लगाएगा। माँ की तरफ बेबस आंखों से देखती रिंकी कहती है पिताजी ने तो जैसे तैसे खुद को संभाल लिया लेकिन माँ पूरी तरह से टूट गई है।
कौन है यह करन और पूरन यह जानने के लिए हमें कुछ दिन पहले लखनऊ में घटी उस घटना की ओर देखना होगा जब सीवर टैंक की सफाई के लिए उतरे दो सफाई कर्मियों को जहरीली गैस के कारण अपनी जान गवांनी पड़ी ।

सफाईकर्मियों की बस्ती

बीते 29 मार्च को लखनऊ के सआदत गंज के गुलाब नगर बस्ती से खबर आती है कि सीवर लाइन की सफाई के लिए मैनहोल में उतरे दो सफाई कर्मियों की ज़हरीली गैस के चपेट में आने से मौत हो गई और एक सफाई कर्मी बुरी तरह घायल हो गया। ये तीनों शूएज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के संविदा कर्मचारी थे। जानकारी के मुताबिक क्षेत्र में सीवर लाइन चोक होने की शिकायत जलकल विभाग को मिली थी और उसे साफ करने का जिम्मा शूएज कंपनी को मिला था। कंपनी पिछले तीन सालों से सीवर सफाई का काम कर रही है।

जैसा कि हमेशा होता आया है, उस दिन भी वही हुआ बिना सुरक्षा उपकरण के इन सफाई कर्मियों को मैनहोल में उतार दिया गया जिसका खामियजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। अभी तक इन मृतकों के परिवार को प्रशासन और कंपनी की ओर से कितना मुआवजा मिल पाया, दोषियों के खिलाफ़ क्या कार्रवाई हुई, परिवार क्या चाहता है, और सबसे अहम बात, अब जबकि इन परिवारों के कमाने वाले नहीं रहे तो इनके जीवनयापन का संकट कैसे हल होगा, आदि इन सवालों के साथ यह रिपोर्टर इनके परिवारों से मिलने इनकी बस्ती पहुँची। मृतकों के परिवार के अलावा जब अन्य परिवारों से इस भयावह घटना के बारे में बातचीत हुई तो सब आक्रोशित तो थे लेकिन इस सच को भी खुलकर स्वीकार किया कि उनका जीवन जिस जोखिम पर टिका है, भूख और मुफ़लिसी के आगे उस जोखिम के कोई मायने नहीं रह जाते यानी रोजगार के अभाव में अगर कभी सीवर टैंक में उतरने का काम मिला तो उसमें उतरना उनकी मजबूरी है।

पूरी तरह टूट चुका है परिवार

लखनऊ के राजाजीपुरम के ई ब्लॉक स्थित सब्जी मंडी के डबल पुलिया के पास बसी झोपड़ पट्टी जिसे हैदर कनाल नाले के नाम से भी जाना जाता है, के रहने वाले थे करन और पूरन। चार बहन-भाइयों में दूसरे नंबर का था करन। करन से बड़ी एक बहन है और दो छोटे भाई। करन के पिताजी भी सफाई कर्मी हैं। करन की बहन रिंकी ने बताया कि सातवीं तक की पढ़ाई करने के बाद करन घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते जल्दी ही काम धंधे में लग गया। वह और पढ़ता लेकिन घर की जिम्मेवारी के आगे पढ़ाई बंद करनी पड़ी। उसके मुताबिक उनके भाई करन की सफाई कर्मी के तौर पर शूएज कंपनी में पहली नौकरी थी और उस दिन वह पहली बार सीवर टैंक में उतरा था। वह कहती है, ऐसी घटना भी हो सकती है अगर परिवार को जरा भी अंदेशा होता तो अपने करन को जाने ही नहीं देते। “

अब परिवार की सरकार और कंपनी से क्या माँग है इस सवाल पर पहले तो वह चुप हो जाती हैं, फिर खुद को संभालते हुए वह कहती हैं सरकार और कंपनी की तरफ से दस दस लाख का मुआवजा मिला है और घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात भी सरकार ने कही है, हालांकि नौकरी कब तक मिलेगी यह अभी कुछ निश्चित नहीं, लेकिन उनको तब तक सुकून नहीं मिलेगा जब तक दोषी को कड़ी सजा नहीं मिल जाये। कंपनी के सुपरवाइजर पर मुकदमा दर्ज करने की बात पर वह कहती हैं जब करन और पूरन मैनहोल में जहरीली गैस की चपेट में आने पर तड़प रहे थे तो ड्यूटी पर तैनात सुपरवाइजर वहाँ से भाग गया।
करन के मामा राजेन्द्र बताते हैं कि जब करन और पूरन को निकालने के लिए कोई आगे नहीं आया और सुपरवाइजर भी भाग तो वहाँ मौजूद तीसरा सफाई कर्मी अपनी जान की बाजी लगाकर मैनहोल में उतर गया उसकी जिंदगी भी बड़ी मुश्किल से बचाई गई। राजेन्द्र कहते हैं भागकर सुपरवाइजर सीधे हॉस्पिटल में तबीयत खराब का बहाना बना भर्ती हो गया और यहाँ हमारे लोग तड़पते हुए अपनी जान से हाथ धो बैठे। अपने गुस्से को ज़ाहिर करते हुए राजेन्द्र कहते हैं कि सफाई कर्मचारियों की हालत बिगड़ने पर तीनों को निकालने या किसी को मदद के लिए बुलाने का प्रयास ही नहीं किया गया।

पूरन की पत्नी और बेटियां

अब बारी थी पूरन के घर जाने की। फ़िलहाल मृतक पूरन की पत्नी संजना की भी अभी मानसिक हालत ठीक नहीं। संजना के तीन बच्चे हैं बड़ी बेटी पूर्वा 9 साल की है, बेटा विवेक 7 और छोटी बेटी आलिया केवल 3 साल की है। संजना इनके भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है। संजना के बच्चे स्कूल नहीं जाते, इस पर वह कहती है हमारे आस-पास कोई सरकारी स्कूल नहीं। हमारे क्षेत्र से बहुत दूर है, इतनी दूर छोटे छोटे बच्चों को कैसे भेज दें। इसलिए बस्ती के अधिकांश बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। लेकिन अब संजना पढ़ाने को तैयार है। वह कहती है पढ़ लिख जाएंगे तो कोई दूसरा काम धंधा कर लेंगे कम से कम इतना जोखिमभरा काम तो नहीं करना पड़ेगा। वह कहती हैं अगर नगर निगम से पति की छंटनी नहीं होती तो आज वह जिंदा होता। पूरन करीब पाँच सालों से नगर निगम में ठेके पर सफाई कर्मी थे। संजना बताती है पहले उसके पति केवल झाड़ू लगाने का काम करते थे लेकिन काम से हटाए जाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चली थी कि भूखों मरने की नौबत आ गई थी।

आंसू पोछते हुए वह कहती है पेट की आग बहुत खराब होती है मैडम जी। हम दोनों एक टाइम खा कर गुजारा कर लेते लेकिन छोटे-छोटे बच्चों को कैसे भूखा रखते। इसलिए उनके पति ने उस काम के लिए हाँ बोल दी जिसमें जिंदगी का खतरा था। पूरन पहली बार सीवर टैंक में उतरने का काम कर रहे थे। अपनी छोटी बेटी की तरफ देखकर कहती है इसे तो पता भी नहीं कि इसके पापा अब नहीं रहे, बेटी सोचती है पापा काम पर गए हैं और जल्दी ही वापस आ जाएंगे। आलिया हमें बड़ी अचरज भरी नजरों से देख रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि हमसे बात करते-करते आखिर उसकी माँ क्यों रोने लगती है। संजना कहती है सरकार ने सरकारी नौकरी देने की बात कही है, अगर मिल जाती है तो अपने बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए वह नौकरी करेगी। वह कहती है कि वह बिल्कुल नहीं चाहती कि उनका बेटा भी ऐसा काम करे।

राहुल और अनिल मैनहोल का कवर निकालते हुए

इस बस्ती से लगभग दौ सौ मीटर की दूरी पर उन तीसरे सफाई कर्मी कैलाश का घर है जिन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कैलाश के भी घर जाना हुआ। घर जाने पर पता चला कि कंपनी के लोग आये थे जो कैलाश को अपने साथ ले गए। कैलाश के छोटे भाई राजन से मुलाकात हुई। राजन ने बताया कि उनके भाई अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए। अभी भी ज्यादा चल फिर नहीं पाते। राजन के मुताबिक एक लाख का मुआवजा देने की बात कंपनी ने कही थी लेकिन अभी पचास हजार ही मिला है। क्या अब उनके भाई यह काम फिर करना चाहेंगे, तो इस पर राजन कहते हैं बेरोजगारी की वजह से भाई करना भी चाहेंगे तो माँ करने नहीं देंगी। वह कहते हैं इस घटना के बाद से माँ बुरी तरह डर गई है और अब उन्होंने इस काम को न करने की बात कही है।

पेट की आग सब कराती है

इसी बस्ती के रहने वाले अन्य सफाई कर्मी करन कुमार, रिंकी और गुड़िया से मुलाकात हुई ये सभी नगर निगम में ठेके पर सफाई कर्मचारी हैं। गुड़िया के पति भी सफाई कर्मी हैं। वह कहती है हम रोज कमाने वाले रोज खाने वाले लोग हैं, नौकरी जाने का खतरा हमेशा बना रहता है और अगर नौकरी चली गई तो उनके जैसा अनपढ़ गरीब इंसान आखिर क्या करेगा। तन ढंकने और पेट भरने के लिए गंदे नाले से लेकर गैस चैंबर में भी उतरना पड़े तो उतरेंगे। वहीं बेहद कम उम्र के करन कुमार कहते हैं यदि कभी ठेकेदार द्वारा हमें मैनहोल में उतरने का काम सौंप दिया गया तो हम न कह ही नहीं सकते या तो हमें नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा या सीवर टैंक में उतरना पड़ेगा। इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं। हाँ लेकिन करन कहता है अपने लिए सुरक्षा उपकरण की माँग तो जरूर करेंगे।
बेअसर होता एक्ट, मौतों का बढ़ता आंकड़ा

बस्ती से गुजरता हैदर कैनाल नाला

मैनुअल स्‍कैवेंजिंग एक्‍ट 2013 के तहत देश में सीवर-सफाई के लिए किसी भी व्‍यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है। यूपी में भी यह एक्ट लागू है पर अफ़सोस की बात यह है कि आज भी इसका पालन नहीं होता। आदेश फाइलों तक ही सीमित है। बीते तीन सालों में 54 सफाईकर्मियों ने यूपी के मैनहोल में दम तोड़ा है। यह पूरे देश में सबसे अधिक है। इसके बावजूद सरकारी हो या प्राइवेट सीवर की सफाई, कर्मियों को धड़ल्ले से मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। देश में बीते 10 सालों में 635 सफाईकर्मियों की सीवर सफाई के दौरान मौत हो चुकी है।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिकता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़ों की बात करें, तो वर्ष-2019 में सीवर की सफाई के दौरान 110 लोगों की मौत हुई। वहीं, वर्ष-2018 में 68 और 2017 में 193 मौतें हुईं। प्रदेश स्तर पर सफाईकर्मियों की काम के दौरान हुई मौत के आंकड़े की बात करें तो पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा 54 मौतें यूपी में हुई हैं। इसमें सबसे ज्यादा मामले 2019 में दर्ज हुए।

एक्ट के तहत सफाई कर्मियों से सीवेज सफाई पूरी तरह गैरकानूनी है। अगर व्‍यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए, तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है। मसलन, जो व्‍यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सीजन सिलेंडर, स्‍पेशल सूट, मास्‍क, सेफ्टी उपकरण इत्‍यादि देना जरूरी है। इन नियमों की पूरी तरह अनदेखी की जाती है।
यूपी में सीवर सफाई के दौरान बड़े हादसे

हैदर कैनाल नाला

गाजियाबाद में 5 कर्मचारियों की मौत: 22 अगस्त, 2019 को गाजियाबाद में सीवर की सफाई करने उतरे पांच कर्मचारियों की मौत हो गई थी। नंदग्राम इलाके में सफाई कर्मचारी सीवर की सफाई कर रहे थे, इसी दौरान जहरीली गैस के कारण दम घुटने से सभी की मौत हो गई थी।

वाराणसी में 2 की दम घुटने से मौत: 1 मार्च, 2019 को वाराणसी के पांडेपुर इलाके में संविदा सफाई कर्मचारी चंदन और राकेश को गहरी सीवर लाइन में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उतारा गया। दोनों की दम घुटने से मौत हो गई थी।

कानपुर में 2 सफाई कर्मियों की मौत: 19 जून, 2019 को कानपुर के बाबूपुरवा थाना क्षेत्र में सीवर की सफाई के दौरान दो सफाईकर्मियों की मौत हो गई। जहरीली गैस से दोनों कर्मी बेहोश हो गये थे इसके बाद तेज बहाव में दोनों डूब गए। कई किलोमीटर दूर उनकी लाशें मैनहोल के अंदर मिली।

कानपुर में 3 सफाई कर्मियों का दम घुटा 1 की मौत: 6 अगस्त, 2017 को कानपुर के ही बर्रा विश्वबैंक में सीवर चैंबर की सफाई के दौरान तीन सफाई कर्मी जहरीली गैस की चपेट में आ गए थे। वक्त रहते बचाव कार्य के चलते दो कर्मचारियों को बचा लिया गया था, लेकिन एक की मौत हो गई थी।

(लखनऊ से सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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