Wednesday, April 24, 2024

तिहाड़ में तन्हाई में रखे गए हैं उमर खालिद!

दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की गुरुवार, 22 अक्तूबर को अदालत में पेशी हुई, जहां उमर ने जज को बताया कि उन्हें जेल में सेल से बाहर नहीं आने दिया जाता और ना ही किसी से बात करने दी जाती है। और इस एकाकी की वजह से वह अवसाद व अन्य बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। अदालत ने उमर खालिद की शिकायत पर जेल प्रशासन को शुक्रवार, 23 अक्तूबर को जवाब देने का आदेश दिया है।

उमर खालिद को न्यायिक हिरासत अवधि समाप्त होने पर वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिये कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत के समक्ष पेश किया गया। उमर खालिद ने अदालत से कहा कि उन्हें बगैर दोष साबित हुए ही अलग तरह की सजा दी जा रही है। वह ना अपनी सेल से बाहर कदम रख सकते हैं और ना ही किसी से बात कर सकते हैं। उन्हें सेल में एकांतवास में डाल दिया गया है।

उमर ने अदालत से कहा कि उन्हें सुरक्षा चाहिए, किन्तु ऐसी सुरक्षा नहीं जो उन्हें अकेले में कैद कर दे। उमर ने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि जब उन्होंने अपनी तन्हाई के बारे में जेल अधीक्षक को बताया तो उन्हें सिर्फ दस मिनट के लिए सेल से बाहर निकाला गया और फिर वहीं कैद कर दिया गया। 

खालिद ने अदालत से कहा है कि सुरक्षा का मतलब यह नहीं है कि उसे बंधक बना दिया जाए। वह शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से पीड़ा में है।

अदालत ने कहा कि आरोपी को उसकी गिरफ़्तारी के कारणों की जानकारी मिलनी चाहिए। 21 अक्तूबर को कड़कड़डूमा कोर्ट ने उमर खालिद को केस की एफआईआर की कॉपी देने के निर्देश दिए। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी को तब तक हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए, जब तक उसे उसका कारण न बता दें।

मुख्य महानगर दंडाधिकारी पुरुषोत्तम पाठक ने पुलिस को निर्देश दिया कि पुलिस उमर को एफआईआर की कॉपी उपलब्ध करवाए। हिरासत से बचाव के लिए मौलिक अधिकार, संवैधानिक प्रावधानों और अपराध कानून के तहत दर्ज एफआईआर की कॉपी मांगना आरोपी का अधिकार है।

अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 22 (1) ने यह निर्धारित किया है कि कोई भी पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आधार को बताए बिना गिरफ्तार नहीं कर सकता है और संविधान के अनुच्छेद 22 ने गिरफ्तारी और नजरबंदी के खिलाफ सुरक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी दी है।

दरअसल, उमर खालिद के वकील ने एफआईआर, रिमांड ऑर्डर और मेडिकल रिपोर्ट व पुलिस हिरासत के लिए आवेदन की प्रतियां देने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था। उमर के वकील ने कोर्ट से कहा था कि यह जानना जरूरी है कि आखिर उनके मुवक्किल को कौन से आरोपों में हिरासत में लिया हुआ है। साथ ही इस मामले के जांच अधिकारी द्वारा दाखिल किए गए जवाब की भी प्रति भी मांगी थी। 

पुलिस की ओर से इन मांगों का विरोध किया गया था 

बता दें कि उमर खालिद को 24 सितंबर को अदालत ने 22 अक्तूबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेजा था। खालिद को आज 22 अक्तूबर को न्यायिक हिरासत समाप्त होने पर अदालत में पेश किया गया था। 

दिल्ली पुलिस की तरफ से खालिद की न्यायिक हिरासत की अवधि एक सप्ताह और बढ़ाने की मांग की गई है। इस मांग पर अदालत कल अपना फैसला सुनाएगी।

इस साल के शुरुआत में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए थे। इन दंगों में 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, जबकि 200 के करीब लोग घायल हो गए थे। 

बता दें कि दिल्ली दंगों की जांच को लेकर दिल्ली पुलिस शुरू से ही आलोचना के घेरे में है। कई नागरिक और सामाजिक संगठन दिल्ली पुलिस की जांच प्रक्रिया से खुश नहीं हैं। इसी कारण बीते दिनों कांस्टीट्यूशनल कन्डक्ट ग्रुप ने एक स्वतंत्र जांच कमेटी का गठन किया है। इस जांच कमेटी में उच्चतम न्यायालय के चार पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस ए पी शाह, जस्टिस आर एस सोढ़ी, जस्टिस अंजना प्रकाश के साथ सेवामुक्त हो चुके आईएएस अधिकारी जे के पिल्लई और मीरा चड्ढा बोरवांकर शामिल हैं।

दिल्ली पुलिस द्वारा दंगे की जांच पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। गौरतलब है कि तमाम साक्ष्य, वीडियो और गवाह उपलब्ध होने के बाद भी दिल्ली पुलिस पर मनमाने ढंग से बेकसूरों को आरोपित करने और उनके खिलाफ़ केस दर्ज़ करने का आरोप लगा है। इन दंगों के लिए दिल्ली पुलिस ने कई बुद्धिजीवियों और छात्र नेता सहित अन्य सामाजिक और नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वालों पर मुकदमा किया है।

दिल्ली दंगों की जांच के नाम पर दिल्ली पुलिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से पूछताछ के बाद पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को गिरफ्तार किया था। फिर मामले में दिल्ली पुलिस ने स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव और डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर राहुल रॉय के नाम सह-षडयंत्रकर्ताओं के रूप में दर्ज किए।

(पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)   

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