Friday, March 29, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

वाइब्रेंट गुजरात और राजनीति के गुजरात मॉडल की उपज है ‘शीर्ष सत्ता’ का दुलारा शेरपुरिया

नई दिल्ली। संजय राय ‘शेरपुरिया’ यूपी एसटीएफ की गिरफ्त में है। शेरपुरिया के कारनामों की चर्चा अब देश भर में हो रही है। यूपी एसटीएफ रोज उसके संपर्कों-संबंधों की कुंडली खंगाल रही है। इस कड़ी में जो सच सामने आ रहे हैं वो हैरान करने वाले हैं। शेरपुरिया को संरक्षण देने वालों में आईएएस, आईपीएस, सेना के अधिकारी और उद्योगपति तक शामिल हैं।‘चाय बेचने’से जीवन का सफर शुरू करने वाले पीएम मोदी प्रधानमंत्री बन गए, तो चंद वर्षों पहले तक सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाला ठग संजय राय ‘शेरपुरिया’पीएमओ का‘करीबी’ बन गया।

दरअसल, शेरपुरिया देश में जारी मौजूदा गुजरात मॉडल का चमचमाता और सफलतम प्रतीक है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक उसके द्वारा संचालित ट्रस्ट ‘यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन’ के सलाहकार बोर्ड में सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस और सशस्त्र बलों के अधिकारी शामिल रहे। यह अलग बात है कि अब वो लोग उससे अपने रिश्तों की बात से इंकार कर रहे हैं। अचरज की बात यह भी है कि शेरपुरिया के ट्रस्ट के सलाहकार बोर्ड में शामिल कुछ पूर्व नौकरशाह पीएमओ का फर्जी अधिकारी बताने पर गिरफ्तार किरण पटेल से भी जुड़े हैं। ऐसे में एक सवाल यह भी है कि क्या शेरपुरिया और किरण पटेल एक ही गैंग के सदस्य हैं, जिसे गुजरात कैडर के वरिष्ठ नौकरशाहों का भी संरक्षण हासिल था?

मार्च के महीने में जम्मू-कश्मीर में गुजरात का एक शख्स किरण पटेल अपने को पीएमओ का अधिकारी बता अधिकारियों और सेना के अधिकारियों से स्पेशल ट्रीटमेंट लेता रहा। उसे न केवल जेड प्लस सुरक्षा मिली थी बल्कि वह जम्मू-कश्मीर में जी-20 के आयोजन का खुद को अगुआ बता रहा था। शक होने पर सेना के अधिकारियों ने उसे श्रीनगर से गिरफ्तार कर लिया था। तब यह मुद्दा बहुत चर्चित हुआ था। कोई उसे पीएमओ का तो कोई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का ‘खास’ आदमी बता रहा था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाली इस घटना पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और पीएमओ का कोई खंडन तक नहीं आया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शेरपुरिया के ट्रस्ट के सलाहकार बोर्ड में शामिल एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी किरण पटेल के साथ जुड़ा हुआ है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, YREF को 30 अक्टूबर, 2019 को शामिल किया गया था, और इसका पंजीकृत कार्यालय वाराणसी में है, यह गाजीपुर से संचालित होता है।

YREF के सलाहकार बोर्ड में छह सदस्य हैं, और छह अतिरिक्त निदेशक हैं। इसके अतिरिक्त निदेशकों में से एक, प्रदीप कुमार राय हैं जो दिल्ली एनसीआर की एक कंपनी, निवेश वेंचर्स में “नामित भागीदार” हैं। इस कंपनी में दूसरे पार्टनर कुशाग्र शर्मा हैं, जो गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एके शर्मा के बेटे हैं। रिकॉर्ड दिखाते हैं कि निवेश वेंचर्स 16 नवंबर, 2017 को दिल्ली राइडिंग क्लब नंबर 1, सफदरजंग रोड, नई दिल्ली में पंजीकृत था। यह संजय राय का पता है, जैसा कि यूपी पुलिस द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों में उल्लेख किया गया है।

2018 में तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच सीबीआई के भीतर युद्ध चरम पर था, अस्थाना ने तत्कालीन कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि प्रदीप कुमार राय सरकार द्वारा बनाए गए “अवांछित संपर्क पुरुषों की सूची”में हैं। एके शर्मा तब सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर थे। प्रदीप राय के वकील ने तब इन आरोपों का खंडन किया था। शर्मा अब YREF के सलाहकार बोर्ड में हैं।

इसके अलावा, वाईआरईएफ के सलाहकार बोर्ड में गुजरात कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी (सेवानिवृत्त) एसके नंदा हैं। नंदा ने किरण पटेल के भी मददगार रहे हैं। उन्होंने ठग किरण पटेल की गुजरात में जी-20 से संबंधित सम्मेलन आयोजित करने में मदद की थी।

सलाहकार बोर्ड के अन्य लोगों में वाइस एडमिरल सुनील आनंद, एवीएसएम, एनएम (सेवानिवृत्त), एयर कमोडोर मृगिंदर सिंह, वीएसएम (सेवानिवृत्त), 1982 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने जब पूर्व आईएएस एसके नंदा से बात की तो उन्होंने कहा कि वह राय से “दो बार मिले थे क्योंकि वह कच्छ के एक निर्माता थे …और शायद वाइब्रेंट गुजरात के दौरान” और “बस इतना ही”।

वह कहते हैं “मुझे नहीं पता कि उसने मुझे सलाहकार बोर्ड में कैसे सूचीबद्ध किया है। मैंने कभी किसी मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया। शायद वह युवाओं के लिए मेरी गतिविधियों से प्रभावित थे।”

एयर कमोडोर मृगिंदर सिंह ने कहा, ‘मैं उन्हें तब से जानता हूं जब मैं सेवा में था। मैं पिछले चार सालों में उनसे नहीं मिला हूं, लेकिन हम संपर्क में हैं। वह एक अच्छे व्यक्ति के रूप में सामने आए जो सत्ता से बहुत अच्छी तरह से जुड़े हुए थे। हो सकता है कि उन्होंने उस समय एडवाइजरी बोर्ड के लिए मेरी सहमति ली हो, मुझे याद नहीं है। लेकिन मेरा एनजीओ से कोई सक्रिय जुड़ाव नहीं है।’

एक्सप्रेस ने वाइस एडमिरल सुनील आनंद से भी बात की। उन्होंने भी वाईआरईएफ के साथ सहयोग से इनकार किया। उन्होंने कहा कि मैं संजय राय को जानता हूं और उनसे मिला हूं। लेकिन मुझे याद नहीं है कि उसने मुझे एनजीओ के सलाहकार बोर्ड का हिस्सा बनाने के लिए कहा हो। मेरा इस एनजीओ से कोई लेना-देना नहीं है।

पूर्वांचल के गाजीपुर जिले के एक गांव का बहुत कम पढ़ा-लिखा नौजवान अपने भविष्य को संवारने के लिए गुजरात के कच्छ जाता है। जीवन चलाने के लिए वह सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता है। लेकिन कुछ वर्षों में ही वह एक सफल उद्योगपति बन जाता है। और नरेंद्र मोदी के बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ने और प्रधानमंत्री बनने के बाद, अपने गृह जनपद में समाजसेवी के रूप में ‘अवतार’ लेता है, जो दिल्ली से जाकर गाजीपुर और बनारस में रोजगार मेला लगवाता है और केंद्रीय सत्ता का बेहद करीबी होने का अहसास दिलाता है।

सही अर्थों में संजय प्रकाश राय ‘शेरपुरिया’ वाइब्रेंट गुजरात की उपज है। और राजनीति के गुजरात मॉडल के मंत्र को अपनाते हुए वह शासन-सत्ता के प्रभावशाली लोगों तक पहुंचा। गुजरात मॉडल का मंत्र जपते हुए वह ‘शीर्ष सत्ता’ का दुलारा बन गया।

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