Friday, April 19, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: संघी ‘ताना-बाना’ में सिसक रही बनारसी बुनकरों की ज़िंदगी

(बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। यहां की बनारसी साड़ियां विश्व विख्यात हैं। बनारसी साड़ियों के कुटीर उद्योग से लाखों लोगों का परिवार चलता है। आज यही उद्योग बर्बादी की कगार पर है। बुनकर समुदाय आंदोलन की राह पर है। 15 अक्तूबर से 1 नवंबर तक मूर्री बंद कर पूर्व की तरह फ्लैट रेट पर बिजली मुहैया कराने की मांग कर चुका है। अधिकारियों के आश्वासन पर उसने दीपावली तक अपनी हड़ताल स्थगित की थी।

दीपावली बीत चुकी है। बिजली विभाग की तरफ से उन्हें अभी तक कोई खास राहत नहीं मिली है। आंदोलन के लिए वे फिर मुखर होने लगे हैं। जल्द ही वे मूर्री बंद कर हड़ताल पर जा सकते हैं। 17 नवंबर को शास्त्री घाट पर साझा बुनकर मंच की तरफ से अपनी मांगों को लेकर एक विशाल विरोध-प्रदर्शन की घोषणा की गई है। पढ़िए बनारसी बुनकरों के हालात पर स्वतंत्र पत्रकार शिव दास प्रजापति की यह ग्राउंट रिपोर्टः संपादक) 

“हम पॉवरलूम नहीं लगाना चाहते हैं। बिजली अब यूनिट पर हो गई है। लोगों को अपनी मशीनें कबाड़ में बेचनी पड़ेंगी। अब बिजली का बिल भी देना मुश्किल हो गया है।” 

यह कहना है बनारस के जलालीपुरा निवासी हथकरघा (हैंडलूम) बुनकर शकील अहमद का। तीस वर्षीय शकील हैंडलूम पर डिजाइनर बनारसी साड़ियों की बुनाई करते हैं। उन्हें एक साड़ी की बुनाई के लिए गृहस्त से दो हजार रुपये मिलते हैं। गृहस्त वह है जो बुनकरों को साड़ियों की बुनाई के लिए रेशम और अन्य जरूरी सामानों के साथ मजदूरी देता है। साड़ी तैयार होने पर वह उसे लेकर बाजार में या ग्राहक को बाजार दर पर बेंच देता है। 

शकील बताते हैं, “हर दिन करीब 12 घंटे काम करने पर आठ दिनों में हैंडलूम पर एक साड़ी तैयार हो जाती है। इसे देने पर गृहस्त से मुझे दो हजार रुपये मिलते हैं। औसतन हर दिन ढाई सौ रुपये। इतने में इस समय खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। अगर बीमार हो गए तो समस्या और बढ़ जाती है। ईलाज के लिए लोगों से उधार लेना पड़ता है जिसे समय से चुकाना संभव नहीं हो पाता है।”

जलालीपुरा निवासी बुनकर शकील अहमद हैंडलूम पर बनारसी साड़ी की बुनाई करते हुए। 

शकील क्षय रोग (टीबी) से पीड़ित हैं। चौकाघाट इलाका निवासी एक निजी चिकित्सक से अपना ईलाज करा रहे हैं। उनके ईलाज पर हर सप्ताह करीब 1500 रुपये का खर्च आ रहा है। उनके परिवार में उनकी पत्नी शबनम बीवी के अलावा चार बच्चे भी हैं। उनके तीन बच्चे मोहम्मद शाहीद (10 साल), आफरीन (8 साल) और आरिफ (6 साल) पास के मदरसा में पढ़ते हैं। उनका सबसे छोटा बेटा अभी तीन साल का है जो पढ़ने नहीं जाता है। सभी के खर्च की जिम्मेदारी शकील पर ही है।

इसलिए वह टीबी जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद काम करने को मजबूर हैं। जब उनसे टीबी रोगियों के ईलाज के लिए सरकार द्वारा संचालित डॉट्स (डायरेक्टली ऑब्जर्व्ड थिरैपी शॉर्ट कोर्स) सेंटर से ईलाज नहीं कराने के बारे में पूछा गया तो वह खामोश रहे। उन्होंने इसके बारे में जानकारी नहीं होने की बात कही। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएसओ) के सहयोग से भारत सरकार एवं राज्य सरकारें देश में टीबी रोगियों के ईलाज के लिए डॉट्स सेंटर संचालित करती हैं। बलगम जांच में टीबी की पुष्टि होने पर डॉट्स सेंटर से दवाएं मुफ्त मिलती हैं जिन्हें प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी की देखरेख में मरीज को खाना पड़ता है। 

पठानी टोला।

शकील के दो भाई भी हैं जो हैंडलूम पर ही बनारसी साड़ियों की बुनाई करते हैं। पैतृक मकान के एक बड़े कमरे (कारखाना) में तीनों भाइयों का एक-एक हैंडलूम है। बुनकर कार्ड के बाबत शकील बताते हैं कि उनका और उनके भाइयों का बुनकर कार्ड नहीं बना है। वे कहते हैं, “मेरा और मेरे भाइयों में से किसी का भी कोई बुनकर कार्ड नहीं है। शायद अब्बा (पिता) का बना हो। उसके बारे में भी हमें जानकारी नहीं है।” उनके अब्बा रियासुद्दीन घर पर नहीं थे। इस वजह से उनके बुनकर कार्ड के बारे में जानकारी नहीं हो सकी।

हालांकि तीनों भाई अपने अब्बा के पुस्तैनी कार्य बुनकरी को आज भी जिंदा रखे हुए हैं जो बनारस के शहरी इलाकों में इक्का-दुक्का ही मौजूद हैं। बनारसी बुनकरों के इलाकों में अब हैंडलूम की जगह पॉवरलूम ने ले ली है। हालांकि पॉवरलूम पर बुनाई करने के बाद भी बुनकरों की मजदूरी में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। आज भी वह मुश्किल से 250-300 रुपये की दिहाड़ी ही कमाने के लिए मजबूर हैं। 

दोषीपुरा क्षेत्र के काजी सादुल्लापुरा स्थित एक कारखाने में पॉवरलूम पर बनारसी साड़ी की बुनाई करने वाले पच्चीस वर्षीय हसन बताते हैं, “डिजाइनर बनारसी साड़ी की बुनाई करने पर मुझे 10 रुपये प्रति मीटर की दर से मजदूरी मिलती है। मैं हर दिन 12 घंटे मशीन चलाता हूं तो एक पॉवरलूम मशीन से एक दिन में एक थान (करीब 20 मीटर) बनारसी साड़ी तैयार हो जाती है। इस तरह मैं एक दिन में औसतन 200 रुपये ही कमा पाता हूं। वहीं प्लेन बनारसी साड़ी की बुनाई पर पांच रुपये प्रति मीटर की दर से ही मजदूरी मिलती है।”

हसन ने यह भी बताया, “जब प्लेन बनारसी साड़ी की बुनाई करते हैं तो हम एक दिन में एक पॉवरलूम मशीन पर 12 घंटे काम करने के बाद औसतन 25 मीटर ही साड़ी तैयार कर पाते हैं। कुल मिलाकर एक मशीन से एक दिन में कुल 125 रुपये की कमाई ही हो पाती है। इसलिए हम लोग एक साथ दो से तीन मशीनों पर काम करते हैं। फिर भी महीने में औसतन आठ हजार से 10 हजार रुपये ही कमा पाते हैं।” जब हसन से बुनकर कार्ड के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनका किसी प्रकार का बुनकर कार्ड नहीं बना है। वह यहां मजदूरी करते हैं। 

हसन, बुनकर

काजी सादुल्लापुरा स्थित एक अन्य कारखाने में दुपट्टा की बुनाई करने वाले सैंतीस वर्षीय अबुल कासिम बताते हैं, “मुझे पॉवरलूम मालिक से 12 रुपये प्रति मीटर की दर से मजदूरी मिलती है। एक दुपट्टा 2.30 मीटर का होता है। एक मशीन से एक दिन में औसतन 10 दुपट्टा तैयार हो जाता है। मैं दो मशीन चलाता हूं। इस तरह हर दिन करीब 12 घंटा काम करने पर 200-250 रुपये की कमाई कर लेता हूं।” अबुल कासिम के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा तीन बच्चे भी हैं। सभी के खर्च की जिम्मेदारी उन पर ही है। उनका सबसे बड़ा लड़का शाहिद अब्बास चौथी कक्षा में पढ़ता है। छोटा लड़का नाजिम अब्बास दूसरी कक्षा में हैं। दो साल की बेटी रिदा फातिमा भी है। पांच सदस्यों के परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे अबुल कासिम का भी बुनकर कार्ड नहीं बना है और ना ही बुनकरों के लिए संचालित सरकार की किसी भी योजना का लाभ उन्हें या उनके परिवार को मिल रहा है।

काजी सादुल्लापुरा में बुनकरों की बैठक।

कुछ ऐसा ही हाल शेरवानी के कपड़े की बुनाई करने वाले तीस वर्षीय असगर अली का है। हालांकि उनकी आमदनी बनारसी साड़ियों और अन्य कपड़ों की बुनाई करने वाले मजदूरों से कुछ अच्छी है। वह बताते हैं, “मुझे 10 रुपये प्रति मीटर की दर से मजदूरी मिलती है। एक घंटे में दो मीटर शेरवानी का कपड़ा तैयार हो जाता है। मैं हर दिन औसतन 15 घंटे काम करता हूं। औसतन हर दिन 300 रुपये का काम कर लेता हूं।”  

ओम कमलेश्वर क्षेत्र के पठानी टोला स्थित एक कारखाने में पॉवरलूम मशीन चलाकर सूती कपड़ा तैयार करने वाले चालीस वर्षीय बुनकर पवन कुमार असगर अली की तरह खुशकिस्मत नहीं हैं। उनकी मानें तो वह हर सप्ताह औसतन 1500 रुपये का ही काम कर पाते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनका चार साल का बेटा भी है। वह बताते हैं, “महंगाई के इस दौर में दो सौ रुपये की कमाई से घर चलाना मुश्किल हो रहा है। 12-12 घंटे काम करने के बाद भी आमदनी में इजाफा नहीं हो पा रहा है। अब बिजली का बिल यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ेगा तो मालिक हम लोगों की मजदूरी भी कम कर सकते हैं। सरकार को पहले की तरह ही मजदूरों से फ्लैट रेट पर बिजली का बिल लेना चाहिए।”

पवन कुमार, बुनकर

पॉवरलूम मशीन पर तानी लगाने वाले 42 वर्षीय कमरुद्दीन अंसारी का दर्द इन लोगों से और भी गहरा है। वह बताते हैं, “मुझे पॉवरलूम मालिक से एक मशीन की तानी लगाने पर 250 रुपये मिलते हैं। मुझे हर दिन तानी लगाने का काम नहीं मिल पाता है। सप्ताह में तीन से चार तानी लगाने का काम ही मुश्किल से मिल पा रहा है। ऐसे में कोई परिवार का खर्च कैसे चलाएगा? लॉक-डाउन में मूर्री बंद थी। काम नहीं मिल रहा था। आज भी पूरी मशीने नहीं चल रही हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि हम क्या करें?”

कमरुद्दीन अंसारी, बुनकर

पठानी टोला में ही सूती कपड़े का थान तैयार करने वाले एक कारखाने में सरैया निवासी पैंतीस वर्षीय बुनकर वसीम मिले। वह बताते हैं, “मैं हर दिन आठ से 10 घंटे तीन मशीनें चलाता हूं। एक मशीन से एक सप्ताह में एक थान (100 मीटर) कपड़ा उतरता है। एक थान पर मुझे 700 रुपये की दर से 2100 रुपये मिल जाते हैं। औसतन हर दिन 300 रुपये की कमाई हो जाती है।” वसीम बताते हैं कि उनका भी बुनकर कार्ड नहीं बना है और ना ही सरकार की ओर से बुनकरों के लिए संचालित किसी भी प्रकार की योजना का लाभ उन्हें या उनके परिवार को मिलता है। वसीम के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा तीन बच्चे हैं। उनका सबसे बड़ा लड़का दस साल का है जबकि सबसे छोटी लड़की दो साल की है। सभी के खर्च की जिम्मेदारी उन पर ही है। इस कारखाने में 20 साल के शैफ, 17 साल के रहमद और 20 साल के दानिश से भी हुई। तीनों यहां तीन-तीन पॉवरलूम मशीन चलाकर थान का कपड़ा बना रहे थे। सभी का कहना था कि वे हर दिन औसतन 250-300 रुपये की ही कमाई कर पाते हैं। 

वसीम, बुनकर

थान का सूती कपड़ा तैयार करने वाले इस कारखाने में कुल 20 पॉवरलूम मशीनें लगी हैं। इन मशीनों पर चार भाइयों का मालिकाना हक है। कारखाना मालिकों में से एक मोहम्मद यासीन अंसारी ने बताया कि वे गृहस्त से बानी (कपड़ा तैयार करने का सामान) लाते हैं और कपड़ा तैयार कर उन्हें दे देते हैं। वह बताते हैं, “हमें गृहस्त से 10 रुपये प्रति मीटर की दर से मजदूरी मिलती है। इसी में से हम अपने यहां काम करने वाले लोगों (बुनकरों) को मजदूरी देते हैं। अब सरकार बिजली का बिल फ्लैट रेट की जगह यूनिट के आधार पर भेज रही है। हम लोग हर महीने हजारों रुपये का बिल कहां से जमा कर पाएंगे।”  साठ वर्षीय कारखाना मालिक यासीन आगे कहते हैं, “एक पॉवरलूम मशीन लगाने पर करीब एक लाख रुपये का खर्च आता है। लाखों रुपये कर्ज लेकर हमने मशीनें बैठाई हैं। लॉकडाउन में मशीनें बंद रहीं। पहले से ही बुनकरी उद्योग समस्याओं को झेल रहा है। अब अचानक हम लोग हजारों रुपये का बिल कहां से दे पाएंगे?” पॉवरलूम बुनकर कार्ड के बाबत पूछने पर वह बताते हैं कि उनका और उनके भाइयों का कार्ड बना है लेकिन उनके बेटों का नहीं बना है। उनका हथकरघा बुनकर का कार्ड पहले बना था, वही अभी भी है। 

मोहम्मद यासीन अंसारी, पॉवरलूम कारखाना मालिक

उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने वर्ष 2006 से बुनकरों को फ्लैट रेट पर मिलने वाली विद्युत आपूर्ति योजना में बदलाव कर दिया है। गत 3 दिसंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में बुनकरों से प्रति यूनिट की दर से बिजली बिल वसूलने का निर्णय लिया गया था। इसमें तय हुआ था कि प्रत्येक छोटे पॉवरलूम (0.5 अश्वशक्ति तक) को प्रतिमाह 120 यूनिट तथा बड़े पॉवरलूम (एक अश्वशक्ति तक) को प्रतिमाह 240 यूनिट तक 3.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से सब्सिडी दी जाएगी। इसके पीछे तर्क दिया गया था कि पॉवरलूम बुनकर कार्ड योजना के तहत बुनकरों को मिलने वाले फ्लैट रेट का लाभ अन्य उपभोक्ता उठा रहे हैं जिससे सरकार को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। पॉवर कॉर्पोरेशन ने भी सरकार के निर्देशानुसार फरवरी से प्रति यूनिट की दर से बिजली का भुगतान पॉवरलूम मालिकों से वसूलना शुरू कर दिया। इसे लेकर बनारसी बुनकरों में काफी गुस्सा है। वे पूर्ववर्ती फ्लैट रेट पर बिजली का बिल लेने की मांग सरकार से कर रहे हैं। 

योगी मंत्रीमंडल के निर्णय की जारी प्रेस विज्ञप्ति का अंश

बता दें कि वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों की तरह प्रदेश के पॉवरलूम बुनकरों को फ्लैट रेट पर विद्युत आपूर्ति करने का शासनादेश लागू किया था। शहरी क्षेत्र में 0.5 अश्वशक्ति तक विद्युत खर्च वाली पॉवरलूम मशीनों के मालिकों से 65 रुपये प्रतिमाह और एक अश्वशक्ति तक विद्युत खर्च वाली पॉवरलूम मशीनों के मालिकों से 130 रुपये प्रतिमाह बिजली बिल लेने का निर्देश दिया था। ग्रामीण क्षेत्र में इनकी दर क्रमशः 37.50 रुपये और 75 रुपये प्रतिमाह थी। इसी दर को जारी रखने के लिए बनारस के बुनकर सरकार से मांग कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने पिछले दिनों 15 अक्तूबर से 1 नवंबर तक मूर्री बंद कर हड़ताल भी की थी। अधिकारियों के आश्वासन के बाद उन्होंने हड़ताल दीपावली तक वापस ले ली थी। दीपावली बीत चुकी है। अब वे एक बार फिर हड़ताल पर जाने की तैयारी कर रहे हैं।  

समाजवादी पार्टी की सरकार का शासनादेश

बुनकरों के हड़ताल के बाबत बुनकरों के सरदार और साझा बुनकर मंच के संयोजक सदस्य मकबूल हसन का कहना है कि आगामी 17 नवंबर को लखनऊ में बुनकर महासभा के पदाधिकारियों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच बैठक होने वाली है। उसमें मैं भी शामिल हो रहा हूं। उस दिन की वार्ता के बाद हम लोग अपने आंदोलन की रणनीति तय करेंगे।

बुनकरों के साथ नुक्कड़ सभा करते भाकपा (माले) नेता मनीश शर्मा

बुनकर साझा मंच के संयोजक सदस्य और भाकपा (माले) केंद्रीय कमेटी के सदस्य मनीष शर्मा का कहना है कि 17 नवंबर को लखनऊ में सरकार और बुनकर महासभा के प्रतिनिधियों के बीच होने वाली बैठक का उस समय तक कोई मतलब नहीं है, जब तक वे पूर्व के फ्लैट रेट की दर को लागू करने का निर्णय नहीं लेते हैं। उन्होंने कहा कि बुनकर साझा मंच 17 नवंबर को पूरे प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर पूर्ववर्ती फ्लैट रेट की दर पर विद्युत आपूर्ति लागू करने की मांग को लेकर प्रदर्शन करेगा। 

(लेखक शिवदास प्रजापति स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल बनारस में रहते हैं।)

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