Thursday, March 28, 2024

लोग सड़कों पर पैदल चल रहे हैं तो उसमें हम क्या कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली/ इलाहाबाद। उच्चतम न्यायालय में आज सरकार के मुंह से सही बात निकल गयी कि लॉकडाउन से लोग गुस्से में हैं और पैदल निकल रहे हैं, वो इंतजार नहीं कर रहे हैं। डॉ. लोहिया ने बहुत पहले यह बात कही थी कि ज़िंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करतीं। यक्ष प्रश्न यह है कि यदि यह गुस्सा बड़े जनान्दोलन में बदल गया या वोट में बदल गया तब क्या होगा?

लॉकडाउन के बीच देश के तमाम शहरों से पैदल ही मजदूरों के पलायन और औरंगाबाद ट्रेन हादसे से जुड़ी एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई। औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर 16 मजदूरों की मौत के मामले में संज्ञान लेने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है। याचिकाकर्ता ने इसी तरह की दूसरी घटनाओं का भी हवाला दिया था। लेकिन कोर्ट ने कहा कि जो लोग सड़क पर निकल आए हैं उन्हें हम वापस नहीं भेज सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर लोग रेल की पटरी पर सो जाएंगे तो उन्हें भला कोई कैसे बचा सकता है?

मामले में याचिका दाखिल करने वाले वकील आलोक श्रीवास्तव ने पहले भी मजदूरों के पलायन पर याचिका दाखिल की थी। तब लॉकडाउन का शुरुआती दौर था और उनकी याचिका के बाद सरकार ने तेज कदम उठाते हुए पलायन रोक दिया था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि अब सड़क पर कोई मजदूर नहीं है। उनके रहने और भोजन का उचित इंतजाम कर दिया गया है। इस जानकारी के बाद कोर्ट ने सुनवाई बंद कर दी थी।

आज याचिकाकर्ता ने जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजय किशन कौल और बीआर गवई की पीठ को बताया कि एक बार फिर पहले जैसी स्थिति बन गई है सड़क पर निकले मजदूर दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। इसलिए कोर्ट हर जिले के डीएम को अपने यहां से गुजर रहे मजदूरों की देखभाल करने का निर्देश दे। सरकार को उन्हें सुरक्षित घर पहुंचाने को कहे।

याचिकाकर्ता ने दलीलों की शुरुआत करते हुए औरंगाबाद की घटना का हवाला दिया। कहा कि 16 मजदूर मालगाड़ी से कट कर मर गए। इस पर पीठ के सदस्य जस्टिस कौल ने कहा कि अगर लोग रेल की पटरी पर सो जाएंगे तो उन्हें कोई कैसे बचा सकता है?” याचिकाकर्ता ने इसके बाद मध्य प्रदेश के गुना में हुए सड़क हादसे का जिक्र किया, जिसमें ट्रक से अपने गांव लौट रहे 8 मजदूरों की मौत हो गई। पीठ ने कहा, “जो लोग सड़क पर आ गए हैं, उन्हें कोर्ट वापस नहीं भेज सकता”।

सुनवाई के दौरान मौजूद केंद्र सरकार के वकील सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर सभी मजदूरों को उनके गांव वापस भेजने के इंतजाम में लगी हैं। लेकिन बहुत सारे लोग अपनी बारी आने की प्रतीक्षा नहीं कर पा रहे हैं। वह बेचैन होकर सड़क पर चलने लगे हैं। हम उनके ऊपर किसी तरह का बल प्रयोग भी नहीं कर सकते। ऐसा करना और ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है।

याचिकाकर्ता एक बार फिर कोर्ट से मामले में आदेश जारी करने की गुहार की। लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह साफ दिख रहा है कि आप ने अखबार में छपी खबरों को उठाकर एक याचिका दाखिल कर दी है। इस पर कोर्ट कैसे आदेश दे सकता है? इस तरह की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। लेकिन कौन सड़क पर चल रहा है और कौन नहीं, इसकी निगरानी कर पाना कोर्ट के लिए संभव नहीं है। सरकार ने कई निर्देश जारी किये हैं। अगर हम आपको विशेष पास जारी कर दें तो क्या आप सुनिश्चित कर पाएंगे कि सरकार के सभी निर्देशों का पालन हो पा रहा है या नहीं?

उच्चतम न्यायालय ने जब सवाल किया कि क्या पैदल चलकर जा रहे मजदूरों को किसी तरह से रोका जा सकता है तो केंद्र सरकार ने जवाब दिया कि राज्य सरकारें ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कर रही हैं। पर लोग कई बार गुस्से में आ रहे हैं और पैदल निकल रहे हैं वो इंतजार नहीं कर रहे हैं। सरकार ऐसे लोगों से सिर्फ ये आग्रह कर सकती है कि वह पैदल न चलें बल्कि ट्रांसपोर्ट ले लें लेकिन अगर कोई मान नहीं रहा तो क्या किया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर मजदूरों की मौत का मामला उठाया गया और सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल में केंद्र सरकार के बयान का हवाला दिया गया, जिसमें केंद्र ने कहा था कि जो भी मजदूर हैं वह पैदल नहीं जा रहे हैं बल्कि प्रवासी मजदूरों के लिए सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। औरंगाबाद की घटना का हवाला देकर एडवोकेट अलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि मामला महत्वपूर्ण है। ऐसे में केंद्र सरकार से पूछा जाना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय  के आदेश के बावजूद क्यों ठोस कदम नहीं उठाए गए जिस कारण ये दर्दनाक हादसा हुआ है।

पीठ ने कहा कि इस मामले में सरकारों को काम करने दिया जाए और एक्शन लेने दिया जाए। लोग सड़क पर जा रहे हैं। पैदल चल रहे हैं। नहीं रुक रहे तो हम क्या सहयोग कर सकते हैं? उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोर्ट के लिए ये असंभव है कि वह इस बात की निगरानी करे कि कौन चल रहा है और कौन नहीं। क्या हम सरकार के निर्देशों का पालन कराने के लिए जाएं। औरंगाबाद में ट्रेन की पटरी पर सो रहे लोगों की मालगाड़ी से कटने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए ये भी कहा कि कोई इसे कैसे रोक सकता है। उच्चतम न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

प्रवासी मजदूरों को महाराष्ट्र से सुरक्षित यूपी भेजने से जुड़ी एक और याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र, महाराष्ट्र और यूपी सरकार से जवाब मांग लिया। मुंबई के रहने वाले एक वकील सगीर अहमद खान की याचिका में कहा गया था कि मूल रूप से वह यूपी के संत कबीर नगर से हैं। अपने जिले के प्रवासी मज़दूरों को घर भेजने के लिए 25 लाख रुपये देना चाहते हैं। कई और लोग भी इसी तरह का सहयोग करना चाहते हैं। सरकारी इंतज़ाम मज़दूरों तक नहीं पहुंच रहे। मज़दूर ई-मेल पर सरकार को आवेदन नहीं भेज सकते। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से इस अर्ज़ी पर एक हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ क़ानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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