Thursday, March 28, 2024

आखिर राज्य सभा में कल क्या हुआ? पढ़िए सिलसिलेवार पूरी दास्तान

नई दिल्ली। राज्य सभा में कल के पूरे घटनाक्रम की सत्ता पक्ष द्वारा एक ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है जैसे जो हुआ उसके लिए पूरी तरह से विपक्ष जिम्मेदार है। इस तरह से सारी जिम्मेदारी उसके सिर मढ़कर उसे ही अपराधी घोषित कर दिया गया है। लेकिन अगर घटनाक्रम पर नजर डालें तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाएगी।

9.30 बजे सुबह कृषि विधेयकों पर चर्चा शुरू हुई। इस विधेयक पर चर्चा के लिए साढ़े तीन घंटे का समय तय किया गया था और इस बहस को दोपहर 1 बजे तक चलनी थी। चर्चा के दौरान और बाद में विपक्ष के कई सदस्यों ने बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव दिया। यह एक संसदीय परंपरा है। और विधेयक सेलेक्ट कमेटियों के पास भेजे जाते रहे हैं। इस तरह से जब एक बजे बिल पास कराने की बारी आयी तो विपक्षी सदस्यों ने उसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव पेश किया। उसके बाद उपसभापति ने पहले एस या नो कहकर जुबानी सभी की राय मांगी।

इसमें जैसा कि होना ही था सत्ता पक्ष सेलेक्ट कमेटी के पास भेजे जाने के खिलाफ था। लेकिन उसके बाद विपक्षी बेंच से चार सदस्यों ने उस पर वोटिंग या कहिए मत विभाजन की मांग कर दी। ऐसे मौके पर जबकि सदन का एक भी सदस्य अगर मत विभाजन की मांग करता है तो चेयर पर बैठे सभापति या फिर उपसभापति की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वह उसकी मांग को पूरा करें। यही सदन का रूल बुक कहता है। और इसका हमेशा से पालन होता रहा है। लेकिन कल उपसभापति ने विपक्ष को यह अधिकार नहीं दिया। और सेलेक्ट कमेटी के पास बिल को भेजा जाए या न भेजा जाए इस पर वोटिंग नहीं करायी। यह संसदीय नियमों और परंपराओं का गंभीर और खुला उल्लंघन था।

टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रेयन का कहना है कि यह संसदीय लोकतंत्र की पीठ पर छूरा भोंकने जैसा था। और उसके तुरंत बाद विधेयकों को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। इस पर डेरेक ओ ब्रेयन का कहना है कि “इस तरह के मौके पर आप विपक्ष से बैठकर लॉलीपॉप चूसने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं”। लिहाजा उसने विरोध शुरू कर दिया।   

दरअसल इस पूरे प्रकरण में एक अभूतपूर्व घटना घटी। बीजू जनता दल, टीआरएस और एआईएडीएमके जो आम तौर पर अभी तक तमाम मसलों पर सत्ता पक्ष के साथ हुआ करते थे। वो इस विधेयक के विरोध में थे और सभी इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेज देना चाहते थे। टीआरएस के पास 7 सदस्य हैं। एआईएडीएमके और बीजू जनता दल के 9-9 सांसद हैं। इसके साथ ही शिरोमणि अकाली दल के भी सदन में तीन सांसद हैं। जो खुले तौर पर इस विधेयक के विरोध में है। ऐसे में इन सबके विरोध के चलते सत्ता पक्ष समझ गया था कि वोटिंग में उसकी हार होनी तय है।

विपक्ष से अकेले वाईएसआर कांग्रेस इस विधेयक के पक्ष में था। उसके सदन में 6 सदस्य हैं। एनडीए के पास पहले ही राज्यसभा में बहुमत नहीं है उसमें इन दलों के खिलाफ जाने से वोटिंग में उसकी हार बिल्कुल तय थी। इसीलिए सभापति ने न ही सेलेक्ट कमेटी के मसले पर और न ही आखिर में विधेयक के पारित होते समय मत विभाजन की अनुमति दी और विधेयक को ध्वनिमत से पारित कराने का रास्ता चुना। जबकि सीपीएम के केके राजेश, डीएमके के तिरुची शिवा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल तथा टीएमसी के डेरेक ओ ब्रेयन लगातार वोटिंग की मांग कर रहे थे।

डेरेक ओ ब्रेयन का कहना है कि इस मसले पर सुबह उन लोगों की राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू से मुलाकात हो चुकी थी। और उन्होंने विपक्ष के सदस्यों से पूछा था कि क्या किए जाए। इस पर ब्रेयन का कहना था कि उन लोगों ने कहा कि बहस के बाद वोट करा लिया जाए और उसका जो भी नतीजा आएगा वो सभी के लिए मान्य होगा। 

फिर मत विभाजन नहीं करने और विधेयक को ध्वनिमत से पारित होने के बाद विपक्ष का गुस्सा सदन में फूट पड़ा। नतीजतन कई सदस्यों ने सदन के कुएं का रुख किया। यहां तक कि दो तीन सदस्यों ने माइक्रोफोन भी तोड़ दिया। इस पर डेरेक का कहना है कि इस तरह की किसी अकल्पनीय स्थिति में अकल्पनीय प्रतिक्रिया के लिए भी लोगों को तैयार रहना चाहिए। सामने जब लोकतंत्र की हत्या हो रही है तो उस समय विपक्ष क्या करता? क्या वह हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता?

ब्रेयन का कहना है कि वैसे तथ्य यह है कि उन्होंने रूल बुक नहीं फाड़ा था। लेकिन अगर फाड़ा भी गया तो उसके लिए उनको कोई दुख नहीं है। उनका कहना है कि जब कोई रूल ही नहीं है तो फिर रूल बुक का क्या मतलब? लेकिन एक बार फिर उन्होंने दोहराया कि उन्होंने रूल बुक नहीं फाड़ा है।

इस पूरे मामले में दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी कैसे पूरे मामले को ट्विस्ट दे रही है। और मीडिया मैनेजमेंट से लेकर हर तरीके से सारी गलती विपक्ष के मत्थे मढ़ने की कोशिश में लग गयी है।

ब्रेयन के मुताबिक जब वह उपसभापति को रूल बुक दिखा रहे थे और अभी वह फटी भी नहीं थी तभी बाहर यह संदेश भेज दिया गया कि एक सांसद ने रूल बुक फाड़ दिया है। और उसके साथ ही राज्य सभा टीवी को भी सेंसर कर दिया गया। और विपक्ष की चीजें दिखाने की जगह वह हर चीज दिखायी और बतायी जाने लगी जो सत्ता पक्ष को सूट करती हो। ब्रेयन का कहना है कि चूंकि वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े रहे हैं लिहाजा उन्होंने देखा कि सदन में लगे चार टीवी स्क्रीन के राज्य सभा चैनल पर लोकसभा की कार्यवाही दिखायी जा रही है और इनसेट में उपसभापति की केवल चेहरे की तस्वीर दिख रही है।

ब्रेयन का कहना है कि यह देखकर उन्हें पूरा खेल समझ में आ गया और उन्होंने तत्काल अपने तीन-चार सदस्यों को मोबाइल से शूट करने के लिए कहा। इस तरह से वह सब कुछ उनके रिकार्ड में है जिसे राज्यसभा टीवी ने नहीं दिखाया या फिर जिसे बाहर सत्ता पक्ष द्वारा गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके लिए भले ही उन्हें निलंबित होना पड़े वह उसके लिए तैयार हैं। लेकिन अपने रिकार्ड के लिए वह बेहद जरूरी था। और उनके पास सारे वीडियो मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि आप लोकतंत्र का नया नियम लिखेंगे और संवैधानिक परंपराओं की ऐसी की तैसी करेंगे और अपेक्षा करेंगे कि विपक्ष बैठ कर लॉलीपाप चूसे तो ऐसा कभी नहीं होने जा रहा है।

इस बीच, डेरेक ओ ब्रेयन समेत राज्यसभा के 8 सदस्यों को एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया है। निलंबन के पीछे सदन में कल उनके व्यवहार को प्रमुख वजह बताया गया है।

चेयरमैन एम वेंकैया नायडू ने अपने डिप्टी हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। अविश्वास प्रस्ताव इस आधार पर पेश किया गया था कि कल के पारित विधेयक में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।

रविवार की घटना की निंदा करते हुए नायडू ने कहा कि “कल जो हुआ उसको लेकर मुझे बेहद पीड़ा हुई है। सभी सोशल डिस्टेंस और कोविड प्रोटोकॉल को तोड़ दिया गया। जो भी हुआ वह किसी भी तर्क से परे है। यह राज्य सभा के लिए बुरा दिन था। डिप्टी चेयरमैन को शारीरिक तौर पर धमकी दी गयी। मैं उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतिंत हूं।

निलंबित होने वाले सदस्यों में डेरेक ओ ब्रेयन, संजय सिंह, राजू सातव, केके राजेश, रिपुन बोरा, डोला सेन, सैयद नाजिर हुसैन और इलामारन करीम शामिल हैं।

डेरेक ओ ब्रेयन द्वारा लगातार विरोध करने पर नायडू ने कहा कि “मैं डेरेक ओ ब्रेयन को सदन छोड़ने का आदेश देता हूं”।

(जनचौक डेस्क की रिपोर्ट।)

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