दक्षिणपंथी रिपब्लिकन उम्मीदवार और मौजूदा राष्ट्रपति की संभावित हार से संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्ता परिवर्तन लगभग सुनिश्चित हो गया है। इसके साथ ही डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन का राष्ट्रपति और कमला हैरिस का उपराष्ट्रपति बनना भी सुनिश्चित हो गया है। ऐसे में भारतीय मीडिया में संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संबंधों पर भी चर्चा शुरू हो गई है।
भारत का उदारवादी तबका कुछ ज़्यादा की उम्मीद पाले हुए है जैसे डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन और कमला हैरिस के चुनाव जीत जाने से बहुत कुछ बदल जाएगा। और उनकी इस खुशफहमी की वजह पिछले कुछ वर्षों में भारत के तमाम राजनीतिक संदर्भों में आई जो बाइडेन और कमला हैरिस की प्रतिक्रियाएं हैं। पहले एक नज़र उन प्रतिक्रियाओं पर डाल लेते हैं।
पिछले साल के आखिर और इस साल के शुरुआती महीनों में भारत में नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन के मुद्दे पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन चल रहा था। CAA-NRC देशभर में विरोध-प्रदर्शन के बीच जो बाइडेन ने टिप्पणी करते हुए कहा था, “भारत का मूल लोकतांत्रिक और सेक्युलेरिज्म का रहा है, ऐसे में ताजा कानून इनसे मेल नहीं खाता है।”
जबकि कमला हैरिस ने भी CAA-NRC के विरोध में कड़ी प्रतिक्रिया दिया था। कमला हैरिस उन अमेरिकी सीनेटर्स में थीं जिन्होंने भारत सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ़ मजबूती से आवाज़ उठाई थी। साथ ही उन्होंने दिसंबर, 2019 में इसके खिलाफ़ एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने अमेरिकी दौरे के दौरान सीनेटर प्रमिला जयपाल से मिलने से इनकार कर दिया था। तब कमला हैरिस ने जयपाल के समर्थन में ट्वीट करके भारत के विदेश मंत्री की इस हरकत की कड़ी आलोचना की थी।
वहीं सीएए-एनआरसी और जम्मू-कश्मीर के मसले पर जो बाइडेन की कैंपेन टीम ने उनकी ओर से कहा था, “भारत सरकार को कश्मीर के लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए सभी जरूरी उपाय करने चाहिए। असहमति पर प्रतिबंध जैसे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को रोकना या इंटरनेट को बंद या धीमा कर देना लोकतंत्र को कमजोर करता है। जो बाइडेन भारत सरकार के असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NCR) और बाद में नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित करने के तरीकों से निराश हैं।”
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को डायल्यूट करने, तमाम कश्मीरी नेताओं को उनके ही घरों में कैद करके रखने और पूरे राज्य में कर्फ्यू लगाकर जीवन की मूलभूत सुविधाओं से कश्मीरी अवाम को मरहूम रखने के मुद्दे पर डेमोक्रेट्स उम्मीदवार जो बाइडेन ने अपना विरोध जताया था। इसके बारे में उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में भी कई बार जिक्र किया था। वहीं उपराष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस ने भी जम्मू-कश्मीर में लंबे वक्त तक नज़रबंदी के मसले पर मुखर होकर कहा था कि “हम उनके साथ खड़े हैं, मानवाधिकार के नियमों का उल्लंघन पूरी तरह गलत है।”
सितंबर, 2020 में प्रचार के दौरान कमला हैरिस से कश्मीर को लेकर पत्रकारों के किए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, “मैं उन लोगों से कहना चाहती हूं कि वे अकेले नहीं हैं। हम देख रहे हैं। अगर अमेरिका किसी तरह से कश्मीर में होने वाली घटनाओं पर असर डाल सकता है कि उसके लिए उनका एक प्रतिनिधि वहां होना चाहिए। हमारे आदर्शों का हिस्सा है कि हम मानवाधिकार के उल्लंघन का विरोध करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर दखल भी देंगे। और बतौर कमांडर इन चीफ वह इसी हिसाब से चलेंगी।”
भारत एक बाज़ार है जिनके लिए जो बाइडेन उस पूंजीवादी यूएसए के राष्ट्रपति होंगे
उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भारत और अमेरिका के बीच हुई न्यूक्लियर डील में अहम भूमिका निभाने वाले जो बाइडेन ने चुनावी कैंपेन में भारत और अमेरिका के संबंधों को मजबूत करने की बात कहा है। उन्होंने चुनावी प्रचार के दौरान कहा है कि राष्ट्रपति बनने के बाद वो भारत के साथ जारी ट्रेड समेत अन्य कुछ समस्याओं को दूर करेंगे और भारत से दोस्ती और मजबूत करेंगे।
जाहिर है किसी देश की नीतियां सिर्फ़ वैचारिक समानता से नहीं तय होती हैं। ये तय होती हैं दो देशों के के बीच होने वाले नफ़ा-नुकसान के आकलन से। वैश्वीकरण के जरिए अमेरिकी पूँजी के निवेश के लिए बाज़ार खोजने निकले यूएसए के लिए भारत एक बड़ा बाज़ार है, एक बड़ा अवसर। साथ ही भारत अमेरिका के लड़ाकू हथियारों के बड़े खरीदार के रूप में उभरा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी और कोविड-19 महामारी के झटकों से उबारने के लिए भारत के साथ मौजूदा संबंध को बेहतर करके चलने में ही अमेरिका का हित है। साथ ही चीनी उत्पादों के कब्जे तथा 100 करोड़ उपभोक्ता वाले विशाल भारतीय बाज़ार पर कब्जा करके यूएसए चीन की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था को कंट्रोल कर सकता है।
अब तक पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल करके एशिया में पैर जमाने में नाकामयाब रहे अमेरिका के लिए भारत के जरिए एशिया में अपनी सामरिक स्थिति को और मजबूत करने के अवसर को जो बाइडेन सिर्फ वैचारिकता के लिए तो बलि चढ़ाने से रहे।
जो बाइडेन के उपराष्ट्रपति रहते ही हटा था नरेंद्र मोदी से यूएसए में न घुसने का प्रतिबंध
मई 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद तत्कालीन डेमोक्रेट सरकार के मुखिया यानि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नरेंद्र मोदी को बधाई देते हुए उन्हें अमेरिका यात्रा का न्योता दिया था। तब जो बाइडेन संयुक्त राज्य अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे। बता दें कि साल 2002 में मुख्यमंत्री रहते गुजरात में जनसंहार कराने के बाद तत्कालीन अमेरिकी सरकार ने नरेंद्र मोदी के अमेरिका प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। बता दें कि उस समय यूएसए में रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश राष्ट्रपति थे।
(जनचौक डेस्क की रिपोर्ट।)