गौमांस के नाम पर लिंचिंग की घटनाएं चुनावी राज्यों में कौन करा रहा है?

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नई दिल्ली। शनिवार, 31 अगस्त 2024 के दिन देश के दो राज्यों की घटनाएं तेजी से सोशल मीडिया में वायरल होने लगी थीं। एक महाराष्ट्र की घटना थी और दूसरी हरियाणा की। इन दोनों ही मामलों में मुस्लिम समुदाय के दो लोगों के साथ भीड़ की हिंसा के दृश्य बेहद विचलित करने वाले थे।

महाराष्ट्र की घटना में बुजुर्ग मुस्लिम व्यक्ति की जान बच गई है, जबकि हरियाणा के चरखी-दादरी में गोमांस खाने के शक में हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है, जबकि दूसरा घायल है।

पिछले कुछ समय से इस प्रकार की घटनाएं कम सुनने में आ रही थीं, और ऐसा माना जा रहा था कि शायद देश में मजबूत विपक्ष बन जाने के कारण अब इस प्रकार की घटनाओं पर लगाम लग सकती है। लेकिन इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि सांप्रदायिक नफरत को फैलाने के लिए तो बस इरादा चाहिए।

किसी न किसी बहाने से इस तरह की घटनाओं को हवा दी जा सकती है। इन दोनों घटनाओं का वीडियो भी बनाया गया, और उसे वायरल भी किया गया। हिंसा और नफरती वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल क्यों किया जाता है, जबकि इससे तो अपराधियों की पहचान हो सकती है और उन्हें सजा भी मिल सकती है?

लेकिन 2014 से लेकर हाल तक की घटनाओं को खंगालें तो हम पाते हैं कि माब लिंचिंग के वीडियो को सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल कराने के पीछे का अपना एक अलग ही खेल है। देश में रोजाना सैकड़ों हत्याएं होती हैं, लेकिन हिंदू-मुस्लिम नफरती वीडियो को अपलोड करने और वायरल करने के पीछे एक खास तरह की राजनीति काम करती है।

इससे एक शिकार से करोड़ों लोगों को इसका शिकार बनाया जाता है। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को संभव बनाया जा सकता है। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले हिंदू बहुसंख्यकवाद के ठेकेदारों की निगाह में हीरो बना दिए जाते हैं। कई मामलों में तो इन्हें धर्म का रक्षक और जेल जाने पर जमानत एवं आर्थिक मदद के लिए भी समाज के रसूखदार लोग आगे आते देखे गये हैं।

पिछले दस वर्षों में यह इतनी बार दुहराया जा चुका है कि अब इसके पीछे की राजनीति को भी आम लोग धीरे-धीरे समझने लगे हैं। आज सोशल मीडिया में कई लोगों को कहते सुना जा सकता है कि ये दोनों घटनाएं उन राज्यों में हुई हैं, जहां विधानसभा चुनाव होने हैं।

हरियाणा में तो चुनावों की घोषणा हो चुकी है, महाराष्ट्र में भी दिसंबर से पहले विधानसभा चुनाव हर हाल में चुनाव आयोग को संपन्न कराना होगा। तो क्या वास्तव में ये घटनाएं किसी खास मकसद को हासिल करने के लिए अंजाम दिए गये हैं? इस प्रश्न को दस-बीस हजार लोगों को नहीं बल्कि पूरे देश को सोचना चाहिए। क्योंकि, यदि पूरे देश ने ही ध्रुवीकरण में फंसने के बजाय, इस दिशा में सोचना शुरू कर दिया तो बहुत संभव है कि इस प्रकार की घटनाएं ही न हों।

महाराष्ट्र में युवाओं ने पूछताछ के बहाने की बदतमीजी

जी हां, यही हुआ है। बता दें कि पीड़ित अशरफ अली (72 वर्ष) महाराष्ट्र में जलगांव के रहने वाले हैं। ट्रेन से अपनी बेटी के घर कल्याण जा रहे थे। इस दौरान इगतपुरी स्टेशन के पास ट्रेन में मौजूद युवाओं की भीड़ में से किसी ने उनके सामान में प्लास्टिक का एक बड़ा सा कंटेनर था, जिसमें भीड़ ने मांस को देख लिया था।

भीड़ को शक हुआ कि हो न ह यह गोमांस है। बता दें कि इस भीड़ में कई युवा महाराष्ट्र में पुलिस भर्ती की परीक्षा देकर वापस लौट रहे थे। भीड़ में कुछ युवाओं ने बुजुर्ग अशरफ़ अली को घेरकर उनके साथ पूछताछ के बहाने बदतमीजी की। गाली-गलौज किया और मारपीट की। यह सबकुछ वीडियो में कैद है, लेकिन बाद में पीड़ित बुजुर्ग ने बताया कि, “उन लोगों ने मेरे साथ लूटपाट भी की, मेरा मोबाइल और जेब में रखे 2800 भी छीन लिए।”

देखते ही देखते यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगा। इसके बाद एक अन्य वीडियो में बुजुर्ग अशरफ़ अली ने बताया कि, “मैं जिंदा हूं। मैं मेरे लिए फ़िक्रमंद लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं और लोगों से संयम बनाए रखने की अपील करता हूं।” यह वीडियो इस बात को ध्यान में रखकर डाला गया था ताकि मुस्लिम बुजुर्ग के साथ मारपीट की खबर के बाद कहीं महाराष्ट्र में कोई अप्रिय घटना न हो जाये।

महाराष्ट्र में आरोपी जमानत पर रिहा

महाराष्ट्र में इगतपुरी ट्रेन में बुज़ुर्ग अशरफ़ हुसैन के साथ हुई मारपीट व बदसलूकी के मामले में गिरफ्तार 1 आरोपी को ठाणे कोर्ट से 15000 रुपये के बांड पर जमानत मिल गई है, क्योंकि पुलिस ने उनके विरुद्ध ना तो हेट क्राइम का मामला दर्ज किया और ना ही कोई संगीन धारा ही लगाई थी।

आरोपी को जमानत मिलने की ख़बर जैसे ही एनसीपी के मुंब्रा-कलवा के 3 बार के विधायक और विधानसभा में विपक्ष के उप-नेता डॉ जितेंद्र आव्हाड ने फ़ौरन पुलिस स्टेशन गये पहुंचकर थाना इंचार्ज से सवाल-जवाब किया और पूछा है कि कैसे इतनी घिनौनी हरक़त और नफ़रत फ़ैलाने वालों और बुज़ुर्ग व्यक्ति के साथ मारपीट करने के मामलें में उन्हें जमानत मिल गई? क्यों पुलिस ने हेट क्राइम समेत अन्य संगीन धाराओं में केस दर्ज नहीं किया है? विधायक ने पुलिस के आला अधिकारियों और अशरफ़ साहब के परिजनों से बात कर उनके बयान को दोबारा रिकॉर्ड करवाने के लिए कहा है।

डॉ जितेंद्र आव्हाड की इस पहल को मुंब्रा-कलवा की स्थानीय जनता के द्वारा काफी सराहा जा रहा है। मुंबई बम विस्फोट और दंगों के बाद शहर की मुस्लिम आबादी में से कमजोर तबकों का बड़ा हिस्सा ठाणे के इसी इलाके में पनाह पाया हुआ है। शायद इसी वजह से इस मुद्दे पर एनसीपी विधायक की मुखर टिप्पणी और पहल देखने को मिली है।

हरियाणा (चरखी-दादरी) में बीफ खाने के नाम पर हत्या

दूसरी घटना हरियाणा के चरखी-दादरी जिले की है, जहां पर बीफ के शक में एक मुस्लिम व्यक्ति को मार डाला गया। इस घटना को अंजाम देने वाले लोग गौ रक्षा दल के बताये जा रहे हैं। इस घटना का भी वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें कुछ युवाओं को दो कबाड़ बीनने वाले मुस्लिमों को मोटे डंडों से पीटते देखा जा सकता है।

हालांकि वीडियो देखने पर लगता है कि जिस गांव में इस घटना को अंजाम दिया जा रहा था, वहां पर गांव के बुजुर्ग और महिलाएं भी मौजूद थीं, जिन्होंने बीचबचाव करने की कोशिश की।

इस मॉब लिंचिंग में पश्चिम बंगाल से आए साबिर अली नामक मुस्लिम प्रवासी को गोमांस खाने के संदेह में गौ रक्षा दल के लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला। आरोपियों की पहचान अभिषेक, रविंदर, मोहित, कमलजीत और साहिल के रूप में हुई है। प्रवासी मृतक मजदूर का नाम शाबिर मलिक था, जबकि दूसरे मजदूर की जान बच गई है और वह घायल बताया जा रहा है। ये दोनों व्यक्ति पश्चिम बंगाल के साउथ 24 परगना के निवासी थे, और यहां पर कबाड़ बेचने का काम करते थे। खबर के मुताबिक, गौरक्षा समूह के 5 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

यह दूसरी बात है कि बीफ एक्सपोर्ट के मामले में भारत का स्थान दुनिया के अव्वल देशों में है। भाजपा के सांसद और संसदीय मामलों के मंत्री, किरेन रिजिजू सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि वे बीफ खाते हैं, और खायेंगे। इसी प्रकार एक पूर्व केंद्रीय मंत्री की बेटी का गोवा में मशहूर रेस्तरां है, जहां बड़ी शान से बीफ से बने व्यंजन परोसे जाते हैं।

लेकिन हरियाणा, राजस्थान, झारखंड सहित देश के कई भाजपा शासित राज्यों में हम देख चुके हैं कि एक खास संप्रदाय के लोगों के द्वारा मांस का टुकड़ा ले जाने की तो बात ही छोड़ दीजिये, यदि वे अपने घर में दूध की खपत या दूध बेचने के लिए भी गाय को ले जा रहे हैं, तो बहुत संभव है कि उन्हें लिंचिंग का शिकार होना पड़ सकता है। हरियाणा के नूह में हुई हिंसा के पीछे भी असल में मोनू मानेसर नाम गौ रक्षक से उपजा विवाद ही मुख्य वजह था।

हालांकि, इस बार इन दोनों घटनाओं पर विपक्ष की ओर से पहली बार मुखर विरोध सुनने को मिला है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा है, “नफ़रत को राजनीतिक हथियार बनाकर सत्ता की सीढ़ी चढ़ने वाले देश भर में लगातार भय का राज स्थापित कर रहे हैं। भीड़ की शक्ल में छिपे हुए नफरती तत्व कानून के राज को चुनौती देते हुए खुलेआम हिंसा फैला रहे हैं। भाजपा सरकार से इन उपद्रवियों को खुली छूट मिली हुई है, इसीलिए उनमें ऐसा कर पाने का साहस पैदा हो गया है।

अल्पसंख्यकों, खास कर मुसलमानों पर लगातार हमले जारी हैं और सरकारी तंत्र मूक दर्शक बना देख रहा है। ऐसे अराजक तत्वों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई कर कानून का इकबाल क़ायम किया जाना चाहिए। भारत की सांप्रदायिक एकता और भारतवासियों के अधिकारों पर किसी भी तरह का हमला संविधान पर हमला है जो हम बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे।

भाजपा कितनी भी कोशिश कर ले – नफरत के खिलाफ भारत जोड़ने की इस ऐतिहासिक लड़ाई को हम हर हाल में जीतेंगे।”

भीम आर्मी के चीफ और लोकसभा सांसद, चंद्रशेखर आज़ाद ने भी कहा है कि, “भाजपा शासित महाराष्ट्र और हरियाणा में बीते 24 घंटे में मॉब लिंचिंग की दो वारदात हुई हैं। महाराष्ट्र में ट्रेन में सफर कर रहे हाजी अशरफ पर गौमांस ले जाने का आरोप लगाकर जानवरों की तरह पीटा गया, शुक्र है उनकी जान बच गई। हरियाणा के चरखी दादरी में बंगाल के मजदूर साबिर मलिक को सिर्फ संदेह में तथाकथित गौरक्षकों ने पीट-पीट कर मार डाला। दोनों ही घटनाएं असहनीय और अस्वीकार्य है।”

उन्होंने आगे कहा है, “मॉब लिंचिंग की इन वारदातों के ख़िलाफ सरकारें सख्त नहीं हो रही हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि आखिर कब तक हमारे लोगों को “मॉब लिंचिंग” के नाम पर यूं ही बेरहमी से कत्ल किया जाता रहेगा?”

उन्होंने मॉब लिंचिंग की घटना को अंजाम देने वालों को मृत्यु दंड दिये जाने की मांग की करते हुए कहा है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो मॉब लिंचिंग की ये घटनाएं होती रहेंगी। उन्होंने संबंधित राज्य सरकारों से मांग की है कि, “मॉब लिंचिंग में जान गंवाने वाले मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपया बतौर मुआवज़ा दिया जाए और मुआवज़े की ये रक़म मॉब लिंचिंग करने वालों से वसूली जाए। ताकि पता चले कि हमारे लोगों की जान, उनका लहू इतना सस्ता नहीं है कि उसे यूं ही बहा दिया जाए। सरकार या तो इन घटनाओं पर पूर्ण विराम लगा ले, वरना मैं पूरे देश में आंदोलन करूंगा।”

आज जरूरत इस बात की है कि तमाम विपक्षी दलों को आगे आकर माब लिंचिंग की राजनीति के बारे में खुलकर बताना होगा। उन्हें स्पष्ट करना होगा कि इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देकर कैसे देश में बेरोजगारी, महंगाई और बढ़ती अमीरी-गरीबी की खाई से मुंह चुराने के लिए निरपराध लोगों की हत्या का सहारा लेकर सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के साथ ही अपराध नहीं किया जा रहा, बल्कि बहुसंख्यक समाज को भी नफरत और भय की राजनीति के माध्यम से हमेशा-हमेशा के लिए गरीब और शोषित बनाये रखने की कुचेष्टा की जा रही है। यह बात जैसे ही कथित बहुसंख्यक समाज को भी समझ आने लगेगी, हिंदू-मुस्लिम नफरत पर चलने वाली राजनीति का अस्तित्व भी अपने आप खत्म हो जायेगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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