Friday, March 29, 2024

सीमा का जमीनी सच: पूरा गलवान और पैंगांग त्सो के एक हिस्से को हड़प गया चीन बातचीत में अपना रहा है कड़ा रुख!

नई दिल्ली। भारत और चीन के मिलिट्री कमांडरों के लद्दाख के चुशुल में मिलने के तीन दिन बाद भारत के उच्च सैन्य अफसरों से मामले को इस तरह से पेश करने के लिए कहा गया जिससे यह अवधारणा बने कि चीजें सुधार की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। दोनों देशों के बीच यह वार्ता चीनी सैनिकों द्वारा परंपरागत रूप से भारत और चीनी सैनिकों के पेट्रोलिंग वाले इलाके के कुछ हिस्सों को कब्जे में लेने के बाद पैदा हुए संकट को हल करने के लिए हो रही है।

इस बात का दावा करते हुए कि शनिवार 6 जून की बैठक के बाद पीएलए और भारतीय सेना दोनों ने अपने कदमों को कुछ पीछे खींचा है, सेना के सूत्रों का कहना है कि आने वाले बुधवार को दोनों देशों के जूनियर स्तर के अफसरों की एक और बैठक होगी।    

हालांकि जमीनी सूत्र एलएसी पर चीनी सेना की स्थिति में बदलाव के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं। उसके सैनिक अभी भी वहां पूरी दृढ़ता से मौजूद हैं। उनका कहना कि बातचीत के दौरान चीनी वार्ताकारों ने मई में कब्जा किए गए इलाके से पीछे हटने के भारतीय प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। लिहाजा वह अप्रैल के दौर की यथास्थिति में जाने के लिए तैयार नहीं है।

वास्तव में शनिवार को हुई सैनिकों के बीच की इस वार्ता में चीन गलवान घाटी में की गयी अपनी घुसपैठ पर बातचीत तक के लिए तैयार नहीं था। वह पूरे इलाके पर अपना मालिकाना दावा ठोक रहा था।

भारत और चीन के इन दोनों बिल्कुल विपरीत रुखों को देखते हुए बातचीत के बाद कोई साझा बयान भी जारी नहीं किया गया। वार्ता में भारत की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह जो लेह में कार्प्स के कमांडर हैं, तथा चीन का प्रतिनिधित्व पीएलए के मेजर जनरल लियू लीन ने किया। वह दक्षिण जिंगजियांग मिलिट्री रीजन के हेड हैं।

न ही दिल्ली ने सैन्य वार्ता से संबंधित कोई विज्ञप्ति जारी की। लेकिन जब राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं द्वारा आलोचना शुरू हुई तब मंगलवार को उच्च सैन्य सूत्रों के हवाले से सेना का पक्ष मीडिया के सामने ले आया गया।

उसके मुताबिक प्रतिनिधिमंडल के स्तर की बातचीत शुरू होने से पहले भारतीय और चीनी कमांडरों के बीच अकेले में तीन घंटे तक की बातचीत हुई। पीएलए और भारतीय सेना के बीच दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाद के पांच स्थानों को चिन्हित किया। इनमें पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 (पीपी 14), पीपी 15, पीपी 17, पैंगांग त्सो झील का उत्तरी किनारा और चुशुल शामिल हैं। 

सच्चाई यह है कि इन विवादित क्षेत्रों में गलवान नदी घाटी का कोई जिक्र नहीं होता है। जिससे इस तर्क को बल मिल जाता है कि यह सेक्टर बातचीत के एजेंडे में ही नहीं आया।

गलवान नदी घाटी

बातचीत में पीएलए ने इस बात का संकेत दिया कि वे गलवान नदी घाटी को अपने नियंत्रण में ले रहे हैं जो परंपरागत रूप से एक शांति वाला सेक्टर था जहां के बारे में कहा जाता था कि चीन दावे वाली लाइन का पालन करता था।

लेकिन अब पीएलए के वार्ताकार यह कहते हुए कि जब से उन्हें याद है तभी से गलवान नदी से जुड़े पहाड़ी रास्ते पर चीन का नियंत्रण है, पूरी गलवान घाटी पर अपना मालिकाना हक होने का दावा कर रहे हैं।

पीएलए का आरोप है कि गलवान नदी से सटे पूर्व की ओर जाने वाले श्योक-गवान नदी के जोड़ पर भारत ने एक किमी लंबा जो ट्रैक बनाया था वह चीनी क्षेत्र में घुसपैठ है। उसका आरोप है कि भारत इस ट्रैक को मेटल रोड में विकसित कर रहा था।

भारतीय सेना के प्रतिनिधि इसका यह कहकर जवाब दिए कि चीनियों ने उस जगह पर एक मेटल रोड का निर्माण किया है जहां मई तक एलएसी स्थित थी -यह उस स्थान से पांच किमी दूर है जहां गलवान नदी श्योक नदी में मिलती है- और यह रोड बहुत जल्द एलएसी को पार कर जाएगी। इस पर चीनियों का कहना था कि गलवान घाटी उनका क्षेत्र है और उस पर रोड बनाना किसी तरह से अवैध नहीं है।

भारतीय वार्ताकारों ने भारत के गोगरा पोस्ट के आस-पास भारी मात्रा में चीनी सैनिकों की तैनाती पर कड़ा एतराज जाहिर किया। सूत्रों का कहना है कि पीएलए ने इसका कोई भरोसा पैदा करने वाला जवाब नहीं दिया।

न ही पीएलए ने भारतीयों के उन आरोपों का कोई ठोस जवाब दिया जिसमें उन्होंने भारत के एलएसी साइड में हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा के बीच रोड के निर्माण की बात कही थी।

पैंगांग त्सो इलाका

पैंगांग त्सो के उत्तरी किनारे में चीनी घुसपैठ के भारतीय आरोपों का जवाब देते हुए पीएलए के वार्ताकारों ने दावा किया कि उन लोगों ने फिंगर 4 पर मेटल रोड बना कर बिल्कुल सही काम किया है क्योंकि विवादित इलाके में अपनी सुरक्षा तैयारी के लिहाज से यह जरूरी था।

मई से पहले तक भारतीय सेना फिंगर 4 से 8 किमी पूर्व स्थित अपने अनुमानित एलएसी फिंगर 8 तक नियमित रूप से पेट्रोलिंग करती थी। लेकिन 5 मई को जब हजारों की संख्या में पीएलए सैनिकों ने उसे ब्लाक कर दिया और बेहद बुरी तरीके से पिटाई कर भारतीय सैनिकों को वहां से बाहर भगा दिया तब से भारतीय पेट्रोल्स फिंगर 4 से आगे जाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। और इस तरह से चीन फिंगर 4 के नया एलएसी होने का दावा कर रहा है।

चीनी सेना के अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि पीएलए के सैनिकों ने मई के मध्य में जिस आक्रामकता के साथ पैंगांग त्सो में भारतीय सैनिकों पर हमला किया है वह तरीका गलत था। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह भारतीय पेट्रोल्स द्वारा पीएलए के वर्जन वाले एलएसी को पार करने की प्रतिक्रिया थी।

भारतीय सेना ने पीएलए द्वारा फारवर्ड मोर्चे पर लगाए गए पीएलए सैनिकों, बख्तरबंद गाड़ियों और तोपों की संख्या को कम करने की जरूरत पर बल दिया।

लाभ और होने वाली हानियां

सेना के सूत्रों का कहना है कि पीएलए ने रणनीतिक रूप से गलवान घाटी में बढ़त हासिल कर ली है, जहां अब वे काराकोरम दर्रे के बेस पर डेप्सांग के लिए रणनीतिक दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) सड़क की अनदेखी कर उसके आस-पास की पोजिशन पर कब्जा कर लिया है।

चीनियों ने डेप्सांग इलाके को अलग-थलग कर एक और रणनीतिक बढ़त हासिल की है जिसका नतीजा यह होगा कि डीएसडीपीओ रोड पर उसका वर्चस्व स्थापित हो जाएगा। मौजूदा समय में डेप्सांग के बिल्कुल सामने चीन ने भारी संख्या में सैन्य तैनाती कर दी है जो इस बात की आशंका पैदा करती है कि पीएलए उस सेक्टर में किसी भी समय अचानक घुसपैठ कर सकता है।

हालांकि पैंगांग त्सो में चीनी बढ़त को टैक्टिकल माना जा रहा है फिर भी पीएलए द्वारा किया गया हिंसा का प्रदर्शन चिंता पैदा करने वाला है।

नाकु ला (सिक्किम) और हर्सिल तथा लिपुल लेख (उत्तराखंड) में पीएलए की गतिविधियों को भारतीय सैनिकों को दबाव में लेने की कोशिश का हिस्सा बताया जा रहा है। और इनके पीछे किसी तरह के बड़े सामरिक उद्देश्य नहीं हैं।

सेना अरुणाचल और तिब्बत के बीच मैकमोहन लाइन के नाम से बुलाई जाने वाली लंबी सीमा पर भी पैनी नजर बनाए हुए है। यह इलाका अभी तक पूरी तरीके से शांत है। यहां किसी भी तरह की कोई चीनी गतिविधि नहीं दिखी है।

मंगलवार को पीएलए की ओर से जारी इन घुसपैठों पर भारतीय सेना के सूत्रों ने एक सैन्य-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य मुहैया कराया। जिसमें उसका कहना है कि “कोर मुद्दा अनसुलझा एलएसी है। जब तक वह हल नहीं होता है ये प्रकरण और घटनाएं लगातार होती रहेंगी।”

इसके साथ ही पूरे मामले की जिम्मेदारी इलाके में पीएलए के सैन्यीकरण के मत्थे मढ़ दी गयी। उनका कहना है कि “चीन ने फाइटर बंबर्स, राकेट फोर्सेस, एयर डिफेंस रडार, जैमर आदि वहां तैनात कर रखे हैं। भारत ने भी फ्रंटलाइन से कुछ किमी पहले एलएसी से जुड़े इन इलाकों में अपने साजो-सामान तैनात किए हैं। और चीन जब तक अपने इस जमावड़े को वापस नहीं लेता भारत की तैनाती वहां बनी रहेगी।”

(द वायर में प्रकाशित रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला का यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में था जिसका यहां हिंदी अनुवाद कर साभार दिया जा रहा है।)

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