लोकसभा चुनाव के नतीजों और तब से बीते तीन महीनों के सरकार के कार्य कलाप से देश-दुनिया में यह संदेश चला गया है कि मोदी का करिश्मा अब उतार पर हैं और उनकी सरकार का आकर्षण और इकबाल दोनों खत्म हो चुका है।
मोदी शाह स्थिति को संभालने की जुगत में लगे हैं। संघ भाजपा इस समय दोहरी रणनीति पर काम कर रहे हैं। एक ओर बैसाखियों पर टिकी सरकार अपने सहयोगियों तथा संसद में आक्रामक विपक्ष से तालमेल बिठाते हुए काम करने को मजबूर है। जरूरत पड़ने पर वह यू टर्न लेने में भी नहीं हिचक रही है। दूसरी ओर संसद के बाहर हिंदुत्ववादी संगठन और संघ भाजपा के नेता हर संभव तरीके से माहौल को विषाक्त बनाने में लगे हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद मॉब लिंचिंग उकसावेबाजी, सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं की बाढ़ आ गई है। इनका पैटर्न भी सुनियोजित लगता है। अधिकांश घटनाएं उन राज्यों में या उनके इर्द गिर्द हो रही हैं जहां चुनाव आसन्न हैं ताकि ध्रुवीकरण के माध्यम से चुनावों को प्रभावित किया जा सके। इसी चक्कर में गोरक्षकों ने हरियाणा में बारहवीं के छात्र आर्यन मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी।
गोमांस और लव जेहाद से आगे बढ़ कर अब धार्मिक आधार पर आबादी के विभाजन तक बात पहुंच गई है। मुजफ्फरनगर में हाल ही में एक मामला सामने आया है जहां एक ऐसी कालोनी में जिसमें अधिकांशतः हिंदू परिवार थे, एक मुस्लिम परिवार ने जब बैंक की खुली नीलामी में एक मकान खरीदा तो उसे लेकर हिंदुत्ववादी ताकतों ने हंगामा शुरू कर दिया। उन्होंने झूठा आरोप लगाया कि वहां खुले में नमाज पढ़ी जा रही है और मदरसा खोलने की तैयारी है।
खबर है कि मुस्लिम परिवार घर बेचकर जाने की तैयारी में है क्योंकि पुलिस प्रशासन उन्हें संरक्षण देने में असमर्थ है। क्या यह शासन सत्ता की मौन सहमति के बिना संभव है ? यह उसी गुजरात मॉडल की पुनरावृत्ति लगती हैं जहां अहमदाबाद में हिंदू और मुस्लिम इलाके बिलकुल अलग-अलग mutually exclusive दुश्मन जोन जैसे बना दिए गए हैं।
ऐसे दलों की बैसाखियों पर, जिनके लिए मुस्लिम वोट मायने रखता है, टिकी सरकार अब संभवतः संसदीय रास्ते से मोदी जी के सपनों का कथित सेकुलर सिविल कोड तो लागू न कर सके, लेकिन एक खानपान, एक वेशभूषा, एक जीवन शैली थोपने में और मुसलमानों के भयादोहन में सत्ता संरक्षित हिंदुत्ववादी संगठन कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
पिछले दिनों पश्चिमी उप्र के स्कूल में एक बच्चे को नॉन वेज लंच बॉक्स के नाम पर परेशान करने का मामला सामने आया। गोवंश की रक्षा के नाम पर स्वघोषित vigilante गिरोहों द्वारा मॉब लिंचिग की तो बाढ़ ही आ गई है। लोग भूले नहीं हैं कि दादरी में कथित गौरक्षक, एखलाक की फ्रीज तक पहुंच गए थे और बीफ का झूठा आरोप लगाकर उनकी हत्या कर दी थी। कपड़ों से पहचानने की बात तो मोदी स्वयं कर चुके हैं। कर्नाटक का हिजाब प्रकरण आज भी लोगो के जेहन में है जहां हिजाब के कारण मुस्लिम लड़कियों के शिक्षा से वंचित होने की नौबत आ गई थी। हाल ही में महाराष्ट्र में एक बुजुर्ग को ट्रेन में अपमानित करने का वीडियो वायरल हुआ।
पूर्व कांग्रेसी असम के मुख्यमंत्री सरमा तो ध्रुवीकरण के इस खेल में धुरंधर भाजपाइयों के भी कान काट रहे हैं। जनसंख्या नियंत्रण और बाल विवाह रोकने के नाम पर हाल ही में उन्होंने आदेश जारी कर दिया कि सभी मुसलमानों के लिए शादी को रजिस्टर करना अनिवार्य होगा, फिर उन्होंने फरमाया कि बिना एनपीआर में नाम हुए अब किसी का आधार कार्ड नहीं बन सकता, जाहिर है आधार कार्ड के बिना व्यक्ति सारी नागरिक सुविधाओं से वंचित हो जाएगा।
चुनावी राज्यों हरियाणा और जम्मू कश्मीर के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक मस्जिद को अवैध बताकर उसे जमीदोज करने के लिए माहौल गरमाया जा रहा है जबकि वक्फ बोर्ड के अनुसार अविभाजित पंजाब के समय से वह उसकी संपत्ति है।
सामाजिक ध्रुवीकरण का दायरा धर्म के साथ साथ जातियों तक विस्तीर्ण हो गया है। सुल्तानपुर में जेवेलरी की दुकान में डकैती के मामले में वैसे तो उच्चस्तरीय जांच के बाद ही स्थिति पूरी तरह साफ होगी, लेकिन जिस तरह मंगेश यादव की कथित इनकाउंटर हत्या पर उसके परिजनों ने आरोप लगाया है, उससे पूरा मामला संदिग्ध तो हो ही गया है।बताया जा रहा है कि उसी कथित इनकाउंटर में अन्य समुदाय के सह आरोपियों को पैर में गोली लगी है। पूरे मामले पर तमाम दलों ने, साथ ही राहुल और अखिलेश ने भी सवाल उठाया है। लोगों में चर्चा है कि एक जाति विशेष के नौजवान को टारगेट करके अन्य जातियों के ध्रुवीकरण की रणनीति का यह हिस्सा है।
देखना है कि अब जबकि यह माना जा रहा है कि ब्रांड हिंदुत्व का चुनावी दोहन भी अपने चरम पर पहुंच कर अब उतार पर है, ध्रुवीकरण के इस खेल का भाजपा को हरियाणा और जम्मू कश्मीर में कितना लाभ मिल पाता है।
हरियाणा में भाजपा गौरक्षकों द्वारा मॉब लिंचिंग से हुए ध्रुवीकरण से लाभ उठाने की फिराक में थी, लेकिन आर्यन मिश्रा की हत्या से पांसा पलट चुका है। अब उसकी सारी उम्मीदें जेजेपी, चंद्रशेखर तथा इनेलो बसपा गठबंधन पर टिकी हुई हैं। उधर आप पार्टी भी सभी सीटों पर चुनाव में उतर गई है और केजरीवाल भी अपने गृह राज्य में प्रचार के लिए जेल से बाहर आ गए हैं।
बहरहाल जाट और दलित मतदाताओं में कांग्रेस की अच्छी पकड़ मानी जा रही है और भाजपा से आमने सामने की लड़ाई में एंटी इंकम्बेंसी का उसे सीधा फायदा मिल रहा है। अगर उक्त पार्टियां तीसरा कोण बनाकर कांग्रेस के वोटों में कोई बड़ी सेंधमारी कर पाती हैं तभी वहां भाजपा के लिए कुछ संभावना बन सकती है।लेकिन इसके आसार कम ही नजर आते हैं।
कश्मीर में भाजपा जम्मू क्षेत्र में ध्रुवीकरण पर निर्भर है, वहीं कश्मीर घाटी में लगता है छोटी पार्टियों को प्रॉक्सी के बतौर इस्तेमाल करने की फिराक में है। इंजीनियर रशीद (शेख अब्दुल रशीद) को बेल मिली है और वे चुनाव अभियान में उतर गए हैं। ज्ञातव्य है कि हाल के लोकसभा चुनाव में जेल में रहते हुए ही निर्दल उम्मीदवार के बतौर उन्होंने बारामुला से उमर फारूख और सज्जाद लोन को हराते हुए जीत दर्ज की है।
वे दो बार विधायक भी रह चुके हैं। अब उन्होंने अवामी इत्तेहाद पार्टी ( AIP) बनाकर चुनाव मैदान में लगभग तीन दर्जन उम्मीदवार उतारे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि उन्हें संसाधन कहां से मिल रहे हैं? महबूबा मुफ्ती और उमर फारूख दोनों ने आरोप लगाया है कि वे भाजपा के लिए प्रॉक्सी के बतौर काम कर रहे हैं। इसी तरह गुलाम नबी आजाद की पार्टी और कुछ अन्य छोटे दल हैं जिनकी मदद भाजपा को मिलना तय है।
इधर जाति जनगणना पर लगता है कि यू टर्न लेने की तैयारी हो चुकी है। उधर मोदी जी ने सीजेआई के घर उनके पारिवारिक धार्मिक कार्यक्रम में जाकर नई ही बहस खड़ी कर दी है।
भविष्य बताएगा कि मोदी शाह की नई रणनीति का अंजाम क्या होता है, वे हालात को संभाल पाते हैं या विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा और तेज ढलान की ओर बढ़ती है।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)