क्या दिल्ली में होगा त्रिकोणीय मुकाबला ?

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नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने आज तारीखों का ऐलान कर दिया है। 70 विधानसभा सीटों पर एक चरण में 5 फरवरी को मतदान होगा और चुनाव परिणाम 8 फरवरी को घोषित होगा। इस बार भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा।

चुनाव आयोग के मुताबिक दिल्ली में इस बार कुल 1 करोड़ 55 लाख 24 हजार 858 वोटर हैं। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 83,49,645 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 71,73,952 है। वहीं, थर्ड जेंडर की संख्या 1,261 है।

तारीखों के ऐलान के बाद पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा, “चुनाव की तारीख़ का ऐलान हो चुका है। सभी कार्यकर्ता पूरी ताकत और जोश के साथ मैदान में उतरने के लिए तैयार हो जाएं। आपके जुनून के आगे इनके बड़े-बड़े तंत्र फेल हो जाते हैं।

आप ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त हैं। ये चुनाव काम की राजनीति और गाली-गलौज की राजनीति के बीच होगा। दिल्ली की जनता का विश्वास हमारी काम की राजनीति के साथ ही होगा। हम जरूर जीतेंगे।”

मोदी सरकार और मीडिया इस बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी को कमजोर बता रही है। कहा जा रहा है कि इस दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला है। लेकिन 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था।

1993 के पहले राजधानी दिल्ली में एक महानगरीय परिषद थी, जिसके पास कोई विधायी शक्तियां नहीं थीं। 1993 में दिल्ली के राज्य बनने के बाद से भाजपा यहां एक ही बार सरकार में रही है। कांग्रेस ने 1998 से 2013 तक लगातार तीन बार दिल्ली पर शासन किया।

2013 में पहली बार आप (AAP) कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में आयी, लेकिन यह सरकार अल्पकालिक रही। लेकिन अब उसने अपना लगातार दूसरा कार्यकाल (2015 से 2025) पूरा कर लिया है।

मोदी सरकार, भाजपा, कांग्रेस, मीडिया इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला बता रहे हैं। यह सब राज्य में मुख्य तौर पर तीन दलों के चुनाव में भाग लेने के बिना पर कहा जा रहा है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरने जा रही है, तब क्या राज्य में चतुष्कोणीय मुकाबला होगा?

दरअसल, राज्य की सियासत में कई फैक्टर काम करते हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस आम आदमी पार्टी की रणनीति के समक्ष बौने साबित हुए हैं।

आज भी दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा आप के सामने राजनीतिक रूप से कमजोर ही नजर आ रहे हैं। कांग्रेस की बात की जाए तो 2013 में सत्ता से बाहर होने के बाद से उसका प्रभाव काफी कम हो गया है।

इस बार कहा जा रहा था कि आप और कांग्रेस में गठबंधन होगा। लेकिन गठबंधन नहीं होने से दोनों का नुकसान होना तय है।

1993 से 2008 के बीच लगातार चार एकतरफा चुनावों के बाद, 2013 के चुनावों में दिल्ली की पहली त्रिशंकु विधानसभा सामने आई। भाजपा 32 सीटों और 33.07% वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन AAP ने अपने पहले चुनाव में 28 सीटें और 29.49% वोट शेयर जीतकर मजबूत प्रदर्शन किया था।

24.55% वोट शेयर हासिल करने के बावजूद कांग्रेस सिर्फ आठ सीटों पर सिमट गई। 70 सदस्यीय सदन में किसी भी पार्टी द्वारा 36 सीटों के बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर पाने के कारण, आप ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया।

अपने भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडे पर सत्ता में आने के बाद, AAP ने भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी बनाने के लिए जन लोकपाल विधेयक पारित करने की योजना बनाई।

लेकिन अपने कार्यकाल के दो महीने से भी कम समय में, आप के राष्ट्रीय संयोजक और पहली बार मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल ने लोकपाल विधेयक पारित करने में विफल रहने के बाद इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2015 में नए चुनाव होने तक दिल्ली को राष्ट्रपति शासन के अधीन रखा गया।

2015 में, दिल्ली में एकतरफा चुनाव परिणाम आए, जिसमें AAP भारी जीत के साथ सत्ता में लौटी, विधानसभा में 67 सीटें और 54.34% वोट शेयर हासिल किया। एक साल पहले ही बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, पार्टी सिर्फ तीन विधानसभा सीटों पर सिमट गई, हालांकि उसका वोट शेयर, 32.19%, 2013 से काफी हद तक स्थिर रहा।

हालांकि, कांग्रेस का 2015 में और नुकसान हुआ। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली और उसका मत प्रतिशत 9.65% पर पहुंच गया।

2020 के विधानसभा चुनाव में आप महिलाओं के लिए मुफ्त पानी, बिजली और सार्वजनिक परिवहन सहित कई लोकप्रिय कल्याणकारी योजनाओं के दम पर एक और शानदार जीत के साथ सत्ता में लौट आई। इसने 62 सीटें हासिल कीं, जो 2015 से थोड़ी कम थी और 53.57% वोट शेयर हासिल किया।

भाजपा केवल आठ सीटों पर मामूली सुधार कर पाई, जबकि उसका वोट शेयर बढ़कर 38.51% हो गया। कांग्रेस एक बार फिर कोई भी सीट जीतने में विफल रही और उसका वोट शेयर घटकर 4.26% रह गया।

हालांकि, लोकसभा चुनावों ने लगातार दिल्ली में विधानसभा चुनावों के बिल्कुल विपरीत परिणाम दिए हैं। 1952 के बाद से हुए 10 चुनावों में से एक ही पार्टी ने दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है, पिछले चार चुनावों में से प्रत्येक में चार ऐसी जीतें हुई हैं।

उल्लेखनीय रूप से, भाजपा ने 2014 के बाद से लगातार चुनावों में दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटें जीती हैं। 2009 में, कांग्रेस ने सभी सात सीटें जीती थीं। हालांकि, विधानसभा स्तर पर अपने प्रभुत्व के बावजूद, AAP अभी तक दिल्ली में एक भी संसदीय सीट नहीं जीत पाई है।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट)

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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