Thursday, April 25, 2024

मेहनतचोरों की चोचलेबाज़ी है योग

मार्च-अप्रैल 2017 में राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर लगातार 40 दिन धरना देने वाले तमिलनाडु के किसानों के निकले हुये पेट को दलाल कार्पोरेट मीडिया ने स्क्रीन पर दिखाते हुये पूछा था- “क्या किसान ऐसे होते हैं?” यही बात लगातार मोदी सरकार भी उस समय कह रही थी –“क्या किसानों के तोंद निकला होता है क्या?” जाहिर है सरकार और दलाल मीडिया के माइंडसेट में ये बात गहरे बैठी थी कि किसान पूरी तरह फिट-फाट होते हैं।

फिर आज 21 जून को कोरोना महामारी के बीच अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का तुक क्या है। आज सोशल मीडिया पर तोंदधारी सत्ताधारी लोगों ने जिस बेशर्मी से हाथ पैर तानकर महंगे योगा मैट पर खुद को फेंका है उस पर ये सवाल उठना लाजमी है।

पिछले सात सालों में मोदी सरकार के राजनीतिक प्रोपेगैंडा को बॉलीवुड सेलीब्रेट करता आ रहा है। पिछले साल कोविड-19 की शुरुआत के प्रधानमंत्री की अपील पर ताली थाली बजाकर सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें और वीडियो शेयर करने वाले बेशर्म बॉलीवुडिये एक बार फिर से योग की तस्वीरें और वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर करके महामारी में योग को सेलीब्रेट करते दिखे। बेशर्मों की सूची में अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर से लेकर हेमा मालिनी, माधुरी दीक्षित, करीना कपूर आलिया भट्ट, यामी गौतम जैसे कई नाम शामिल हैं।

लेकिन मजदूर किसान वर्ग को योग बैठे ठाले का चोचला लगता है। दलित बहुजन वर्ग को निठल्लों का कार्य व्यापार कहता है। जो हराम की रोटी तोड़ता है। जो रोटी के बदले श्रम नहीं करता है। उसे योग की ज़रूरत होती है। हम दिन रात पत्थर तोड़ने वाले लोग, नाव खेने वाले लोग, खेती किसानी करने वाले लोग, घर गृहस्थी का काम करने वाली गृहणियों को योग की ज़रूरत नहीं है। ये कहना है मेहनतकश वर्ग का।

फावड़ा, गैंता चलाने का काम करने वाले गयादीन कहते हैं कि जब काम नहीं मिलता, जब कोई काम नहीं करता हूँ तब शरीर दुखता है। लगता है जैसे शरीर को रोगों ने धर लिया हो। लेकिन जब काम मिल जाता है, फावड़ा गैंता लेकर काम में जुट जाता हूँ शरीर की सारी बीमारी पसीने के साथ बह जाती है। गयादीन कहते हैं शरीर की सारी बीमारी की जड़ शरीर में जमा विषाक्ता है। लेकिन जब मेहनत करते हैं। पसीना बहाते हैं तो पसीने के साथ शरीर की सारी विषाक्तता बह जाती है और शरीर निरोगी हो जाता है।   

योग के बारे में पूछने पर गयादीन कहते हैं कि ये मेहनतचोरों की पैंतरेबाजी है। जो लोग हाथ पैर नहीं चलाते हर चीज के लिये मशीनों या नौकरों चाकरों, मजदूरों पर निर्भर हैं। जो बाहर खेत खलिहान, घर गृहस्थी सड़क, बाज़ार के काम नहीं करते वो योग करते हैं ताकि कुर्सी सोफा तोड़ते-तोड़ते जो देह में दुख होता है वो न हो। ताकि नर्म बिस्तरों और एसी कमरों में जो नींद नहीं आती है वो आये।  

चकरी पर उड़द की दाल दरेरती बाची देवी योग के बाबत पूछने पर प्रतिप्रश्न करती हैं –“ई का होवत है बचवा।” मैं उन्हें अपने मोबाइल में शिल्पा शेट्टी के योग वीडियो दिखाता हूँ तो वो लजाकर मुंह घुमा लेती हैं। मैं उन्हें बताता हूँ कि योग शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने के काम आता है। बाची बताती हैं भैय्या हम सब चकरी जांता, मूसल चलाइत हई। रोपाई, निराई, कटाई करित हई। मेड़-डांड़ छीलत हई। गाय भैंस दुही थी, इनारा (कुँआ) से पानी भरी थी। सबेरे से संझा ले बर्धा लेखे घरे गृहस्थी में नधी रही थी, बचवा।”

बता दूँ कि 70 की उम्र बाची देवी को कोई बीमारी नहीं है। गँठिया जैसे उम्र की बीमारियां भी उन्हें नहीं छू पायी है।

पैडल रिक्शा खींचने वाले अधेड़वय मक़दूम मियां कहते हैं रोटी कमाने से बड़ा कोई योग नहीं है। कड़कड़ाती ठंड में जब सिर का पसीना पांव तक पहुंचता है तब रोटी नसीब होती है। मक़दूम मियां बताते हैं कि योग तो बाबू साहेब लोगों का शौक़ है साहेब। हम गरीब लोगों को तो दाल रोटी कमाने में ही इतनी वर्जिश हो जाती है कि शरीर को किसी योग वोग की दरकार ही नहीं बचती। किसी की ग्राहक के इंतज़ार में प्रतीक्षासन करना ज़िंदग़ी की सबसे मुश्किल आसन है। वो बताते हैं कि बैटरी रिक्शा आने के बाद बहुत कम ग्राहक पैडल रिक्शा पर बैठना पसंद करते हैं। लेकिन अब बैटरी रिक्शा चलाना सीखने की न उम्र है, न ख़रीदने का पैसा।

योग क्या होता है, यह शंकरगढ़ की पहाड़ियों में पत्थर तोड़ने वाली उन्नीस देवी नहीं जानती। वो ये भी नहीं जानती कि योग भारतीय संस्कृति के लिये कितनी गर्व की बात है। मैं उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वो तस्वीर दिखाता हूँ जिसमें वो पत्थर पर लेटे हैं, हाथ एक मर्तबा आकाश की ओर किये और एक मर्तबा सिर के पीछे किये हुये। उन्नीस देवी कहती हैं अइसन योगा तौ हम लोग तब करती हैं जब पसेरी भर के घन से पत्थर तोड़ते तोड़ते थककर चूर हो जाती हैं। थकान उतारने के लिये दो चार पल को किसी पथरे से टेक लइ लेती हैं।   

भीतर घुसे हुये पेट के फिटनेस के बाबत पूछने पर पत्थर तोड़कर पेट पालने वाली उन्नीस देवी अपने हाथ का छाला दिखाते हुये कहती हैं – कई बार दिन भर पत्थर तोड़ने से ठीक-ठाक पैसे मिल जाते हैं। उन पैसों से मर मसाला तेल नून ख़रीदकर कुछ अच्छा खाना भी बना लिये तो हाथ के छाले के मारे ढंग से खा ही नहीं पाते। कई बार काम नहीं होता, कम काम मिलता है। अब क्रशर मशीनों से पत्थर तुड़ाई का काम होने लगा है इस वजह से भी कम काम मिलता है तो कई दिन भूखे रहना पड़ जाता है। जो पेट कभी ढंग से भरा ही नहीं वो क्या खाक हुमसेगा।

सुग्गी देवी की छरहरा बदन देखकर जीरो साइज मॉडल भी रस्क़ करें। इससे पहले की आप कोई गलतफहमी पालें बता दूँ ठंडी, गर्मी, बारिश हर मौसम सारा दिन खेतों में खटने वाली सुग्गी देवी किसान हैं, और सिर्फ़ अपने बूते बटाई पर खेती करती हैं। सुग्गी देवी के पति सत्यनारायण पटेल क़तर देश में मालवाहक जहाज पर पल्लेदारी करते हैं। आठवीं तक शिक्षित सुग्गी देवी कहती हैं योग और जिम की ज़रूरत उन्हें पड़ती है भैय्या जो दूसरों का हिस्सा भी खा जाते हैं और अढ़वा (काम) एक भी नहीं डोलाते। हम मजदूर किसान सारा दिन खेतों में इतना खट लेते हैं कि देह पर कभी चर्बी ही नहीं चढ़ी।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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