नई दिल्ली। सत्ता और उसमें बैठे लोग किस हद तक बेशर्म हो गए हैं उसको लॉक डाउन से बेहाल प्रवासी मज़दूरों के साथ उसके व्यवहार में देखा जा सकता है। रास्ते में कहीं उसे पुलिस की लाठियाँ मिल रही हैं। तो कहीं बारिश के तौर पर कुदरत का क़हर। और हद तो तब हो गयी जब यूपी के मुख्यमंत्री ने पहले समय और व्यवस्था के मारे इन सभी पीड़ितों के लिए बसें मुहैया कराने का वादा किया और जब कुछ बसें आ गयीं तो परिवहन विभाग ने उनसे किराए वसूलने शुरू कर दिए। एक ऐसे समय में जबकि उनके पास खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं। तीन-तीन दिन के भूखे इन प्रवासियों से किराये की वसूली करना क्या किसी अपराध से कम है।
पीएम मोदी ने बग़ैर किसी तैयारी के पहले लॉक डाउन किया। उन्होंने एक अरब 30 करोड़ आबादी को चार घंटे के भीतर 21 दिन के लिए कमरे में क़ैद हो जाने का फ़रमान सुना दिया। रात उठे बजे लिया गया यह फैसला उसी रात 12 बजे लागू कर दिया गया। यह सब कुछ करने से पहले उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि जनता खायेगी क्या और रहेगी कहां और कैसे? अमीरों का एकबारगी चल जाएगा उन ग़रीबों का क्या होगा जो सुबह कमाते हैं और शाम को खाते हैं। कोई तनखैया भी हो तो महीने का आख़िरी होने के चलते उसकी जेब ख़ाली हो चुकी होगी। लिहाज़ा 21 दिनों तक उसका जीवन कैसे चलेगा? इस बात पर उन्होंने एक पल भी विचार नहीं किया। और एक फ़रमान जारी कर दिया। लॉक डाउन। यानी कर्फ़्यू। जिसमें घरों से निकलने वालों का पुलिस की लाठियों से स्वागत होगा। और यही हुआ। पूरा देश पुलिस स्टेट में तब्दील हो गया। और इसके ज़्यादातर शिकार गरीब-गुरबे हुए।
लेकिन पेट तो पेट है उसे भोजन चाहिए। और भूख जब लगती है तो वह न लाठी देखती है और न ही वर्दी। तीन दिन बीतते-बीतते ग़रीबों और मज़दूरों के सब्र का बांध टूट गया। इस बीच बताया जा रहा है कि एक सूचना आयी जो बाद में अफ़वाह साबित हुई, कि ग़ाज़ियाबाद पहुँच जाने पर आगे के लिए बस समेत तमाम दूसरे साधन मिल जाएंगे।फिर क्या था एच-24 समेत दिल्ली से यूपी और बिहार को जाने वाली सड़के प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों से भर गयीं। 26 की रात में इन सड़कों पर सिर थे और उनके ऊपर गठरियां या फिर बच्चे। और लोग सरपट यूपी की तरफ़ दौड़े चले जा रहे थे। बस या फिर कोई साधन न मिलने पर ये सभी 800-1000 किमी की दूरी पैदल नापने के लिए तैयार थे।
इनके लिए कोरोना से बड़ी भूख थी और उससे बचने की जिजीविषा उनके कदमों में देखी जा सकती थी। और इन दोनों ही स्थितियों में वे अपनी जान गाँव में देना चाहते थे। इनके शुरुआती दृश्य आने के बाद तो सत्ता से लेकर सोशल मीडिया तक हाहाकार मच गया। विभाजन को भी मात देने वाली पलायन की इन तस्वीरों ने हर किसी को परेशान कर दिया। कोरोना की विपत्ति में पलायन की इस त्रासदी को देखकर लोग हैरान थे। सत्ता को भी मामले की गंभीरता समझ में आयी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आनन-फ़ानन में ऐसे सभी प्रवासियों को साधन मुहैया कराने की घोषणा की। और उससे संबंधित न केवल प्रेस विज्ञप्ति जारी हुई बल्कि बाक़ायदा ट्विटर पर उन्होंने 1000 बसों को मुहैया कराने की घोषणा की।
आदित्यनाथ की इस घोषणा को सुनकर पूर्वांचल से जुड़े दिल्ली के तमाम ऐसे लोग भी जो अभी तक जाने का मन नहीं बनाए थे उन्होंने भी साधन की उपलब्धता देखकर अपने घरों की ओर लौटने का फ़ैसला कर लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि आनंद विहार बस अड्डे पर लाखों की संख्या में लोग इकट्ठा हो गए। लेकिन न तो वहां पर्याप्त संख्या में बसें थीं न ही उनकी कोई व्यवस्था। कुछ चंद बसें ज़रूर दिल्ली और यूपी सरकारों द्वारा मुहैया करायी गयीं थीं लेकिन भीड़ के उस रेलें के सामने बिल्कुल नाकाफ़ी दिखीं। आख़िर में पुलिस ने फिर से डंडों के बल पर उन्हें अपने घरों की ओर वापस खदेड़ दिया।
उसके बाद विपत्ति के मारे इन प्रवासियों के साथ व्यवहार की जो नई तस्वीर सामने आयी है वह किसी भी सत्ता को शर्मिंदा करने वाली है। योगी के परिवहन विभाग ने इन प्रवासियों से बाक़ायदा वसूली की। और 500 से लेकर 1000 रुपये तक के टिकट काटे। एक ऐसे समय में जबकि पूरी दुनिया की सरकारें हज़ारों हज़ार करोड़ रुपये की सहायता कर रही हैं तब यूपी की योगी सरकार ने अपने सूबे के सबसे गरीब नागरिकों से पैसे की वसूली की। कोई पूछ सकता है कि राहत के नाम पर घोषित किए गए सरकार के पैकेज का क्या होगा? लोग जो करोड़ों-करोड़ रुपये दान दे रहे हैं उसको मोदी और योगी किस मद में खर्च करेंगे?
पीएम मोदी ने मन की बात में आज लोगों से माफ़ी माँगी है। लेकिन यह कितनी खोखली और नक़ली थी उसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उसमें आगे सुधार के लिए कोई योजना नहीं बनायी। जबकि समस्या जस की तस खड़ी है। ऐसी माफ़ी का क्या मतलब जो सुधार का कोई रास्ता न खोले। कोई मोदी जी से पूछ ही सकता है कि वो लोग जिन्हें लाठियों के बल पर अपने घरों को लौटा दिया गया है उनके भोजन और दूसरी ज़रूरतों की क्या व्यवस्था है?
इस मामले में भी बीजेपी के आईटी सेल ने अच्छा रास्ता निकाला। उसने पलायन की सारी ज़िम्मेदारी दिल्ली के मुख्यमंत्री के सिर पर मढ़ दी। और कहा कि यह सब कुछ दिल्ली की सरकार को करना था। बीजेपी आईटी सेल के मुखिया मालवीय ने इस लाइन पर एक ट्वीट क्या किया भक्तों को मानो अपने भगवान के रक्षा का कवच मिल गया। फिर क्या था केजरीवाल पर हमले की जैसे बाढ़ आ गयी। ट्विटर से लेकर फ़ेसबुक तक पूरा सोशल मीडिया केजरीवाल के ख़िलाफ़ पोस्टों से भर गया। लेकिन किसी ने दो मिनट के लिए भी नहीं सोचा कि देश के मुख्यमंत्रियों से राय मशविरा की बात तो दूर उन्हें सूचना दिए बग़ैर पीएम मोदी ने लॉक डाउन कर दिया।
ऐसे में क्या मुख्यमंत्री के पास जादू की छड़ी थी जो वो लोगों के घरों तक राशन और दूसरे ज़रूरी सामान पहुँचा देते। और वैसे भी भारतीय शासन व्यवस्था में राज्य सरकारों की सीमाएँ हैं। आर्थिक तौर पर भी वह इतनी मज़बूत नहीं हैं कि कोई बड़ा फ़ैसला ले सकें। इस लिहाज़ से केंद्र की यह पहली और सर्वप्रमुख ज़िम्मेदारी बनती थी कि इन गरीब और अक्षम तबकों के लिए वह सबसे पहले वैकल्पिक व्यवस्था करता उसके बाद लॉक डाउन की घोषणा करता। लेकिन यहाँ तो तुगलकी फ़रमान जीन में है। नोट बंदी हो या फिर देश बंदी मोदी जी फ़ितरत नहीं बदलते।
बहरहाल जिस मक़सद से पीएम मोदी ने इस लॉक डाउन की घोषणा की थी वह पूरी तरह से नाकाम हो गया है। घरों में रहने वालों से ज़्यादा इस समय सड़कों पर लोग घूम रहे हैं। और देहात के जो लोग अभी तक अमीरों द्वारा लायी गई इस बीमारी से अछूते थे अब वो सीधे इसकी चपेट में आ जाएंगे। इसके साथ ही इसे कुछ समय के भीतर नियंत्रित कर लेने की योजना पर भी अब पानी फिर गया है। यह सिलसिला अगर आगे बढ़ा तो शहर से लेकर देहात तक इसका क़हर बरप सकता है। और पीएम ख़ुद अपने वक्तव्य में इस बात का इशारा कर चुके हैं कि पश्चिमी देशों के मुक़ाबले में हमारे पास संसाधन बेहद कम हैं। ऐसे में केंद्रीय सत्ता की एक नासमझी पूरे देश पर कितनी भारी पड़ने जा रही है वह अब हर कोई देख और महसूस कर सकता है।