Friday, March 29, 2024

योर ऑनर ! भूखे-प्यासे घर से दूर कैसे जिंदा रहें प्रवासी मजदूर

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉक डाउन को तीन मई तक बढ़ाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषणा करने के कुछ ही घंटे बाद मुंबई और सूरत की सड़कों पर बड़ी संख्या में भूखे प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतर आए। खाने-पीने की मुश्किल और भूख से पीड़ित सभी ने मांग की कि वह अपने गृह राज्य वापस जाना चाहते हैं।

उनके लिए परिवहन की व्यवस्था कराई जाए। ये सभी प्रवासी मजदूर दिहाड़ी मजदूर हैं। बांद्रा स्टेशन पर जुटे मजदूरों ने पुलिस से कहा कि हमें अपने गांव जाने दो; महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि इनके खाने का इंतजाम हम करेंगे। सूरत के वराछा इलाके में मजदूरों का प्रदर्शन, कहा कि हमें खाना नहीं मिल पा रहा, सरकार हमें अपने गांवों तक पहुंचाने के इंतजाम करे।

इसके पहले प्रवासी श्रमिकों को मजदूरी के भुगतान के लिए सरकार से दिशा-निर्देश मांगने वाली जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने इस संबंध में कोई भी निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि नीतिगत निर्णय “सरकार का विशेषाधिकार” हैं। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने यहाँ तक कहा था कि हम अपनी  बुद्धिमत्ता से सरकार की बुद्धिमत्ता को दबाने की योजना नहीं बनाते। अब पता नहीं उच्चतम न्यायालय के माननीयों ने टीवी पर बड़ी संख्या में भूखे प्रवासी मजदूरों के  सड़कों पर उतरने के लाईव दृश्य देखा या नहीं?

इस बीच समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंगलवार को मुंबई में हजारों लोगों के सड़क पर उतरने और घर लौटने की मांग की घटना पर ट्वीट करके कहा है कि जब अमीरों को जहाज से विदेशों से ला सकते हैं तो गरीबों को ट्रेनों से क्यों नहीं भेजा जा सकता? उन्होंने यूपी सरकार से केंद्र सरकार के साथ मिलकर दूसरे राज्यों में फंसे यूपी के लोगों को निकालने की मांग की है।

बांद्रा की घटना के बाद गृह मंत्री अनिल देशमुख ने बताया कि मंगलवार शाम करीब 4 बजे हजारों लोग बांद्रा स्टेशन के बाहर जमा हो गए थे। ये सभी मजदूर थे और लॉक डाउन के चलते अपने घरों में मौजूद थे। उन्हें भरोसा था कि लॉक डाउन खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ इसलिए वह अधीर होकर घरों से बाहर निकल आए। हम उनके खाने-पीने का इंतजाम कर रहे हैं। बांद्रा की घटना पर महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा कि लॉक डाउन का मतलब लॉकअप नहीं, प्रवासी मजदूरों को महाराष्ट्र में डरने की जरूरत नहीं, सरकार उनका पूरा ध्यान रखेगी।

सूरत में भी मंगलवार को सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। ये लोग यहां के वाराछा इलाके में स्थित कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूर थे। इनका कहना था कि लॉक डाउन में खाना-पीना नहीं मिल रहा है, और ऐसे में इन्हें इनके गांव जाने दिया जाए। सरकार इसकी व्यवस्था करे।

दिहाड़ी मजदूरों के सड़क पर उतरने के साथ ही कुछ राज्य सरकारों की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों में बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर शेल्टर होम में रुके हुए हैं या अपने-अपने कमरों में फंसे हुए हैं। इन मजदूरों के पास न राशन है और न पैसा। राज्य सरकारें उनके खाने-पीने का इंतजाम कर रही हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं। इसी तरह 24 मार्च को 21 दिन के लॉक डाउन का एलान होने के बाद दिल्ली-नोएडा सहित महानगरों से बड़ी संख्या में मजदूर अपने गांवों की ओर निकल पड़े थे।

इनमें से कई लोग गांव पहुंच गए लेकिन बड़ी संख्या में लोग रास्ते में ही फंस गये।काम-धंधा चौपट होने की वजह से दिहाड़ी मजदूरों के पास कोई काम ही नहीं है। फिर अगर खाना कहीं मिल भी रहा है तो उससे मजदूरों का पूरा पेट भी नहीं भर रहा है, क्योंकि शारीरिक कार्य करने से सामान्य व्यक्ति की तुलना में  उनकी खुराक ज्यादा होती है।

इसके पहले शुक्रवार की रात लॉक डाउन की वजह से सूरत में फंसे अनेक प्रवासी मजदूरों ने तोड़फोड़ की और वाहनों को आग लगा दी थी। ये लोग अपने घर लौटने के लिए इंतजाम करने की मांग कर रहे थे और अपना देय भुगतान भी जल्द दिए जाने की मांग कर रहे थे। मजदूर लॉक डाउन बढ़ाए जाने की खबर के बाद डर गए थे और सड़कों पर उतर आए। इससे पहले ऐसी ही स्थिति दिल्ली में बनीं थी जब लॉक डाउन की घोषणा हुई थी तो भारी संख्या में मजदूर घर जाने के लिए निकले थे। देशव्यापी लॉक डाउन को तोड़ते हुए आनंद विहार बस अड्डे पर जनसैलाब उमड़ पड़ा था। बाद में गृहमंत्रालय के सख्त होने पर स्थिति काबू में आई थी। प्रदर्शन करने वालों में अधिकतर मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा से हैं।

गौरतलब है कि सरकार की तरफ से भोजन और आय की उपलब्धता सुनिश्चित किए बिना लॉक डाउन किए जाने का सीधा सा मतलब है कि जैसे-तैसे करके ज़िंदा रहने भर की कमाई करने वाले अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों, छोटे उत्पादकों और ग़रीबों को उनकी हालत पर छोड़ दिया गया है। लॉक डाउन के दौरान लोगों की संचित क्रय शक्ति उनके ज़िंदा रहने की शर्त बन गई है। मनुष्य की ज़िंदगी की कीमत उसकी संचित क्रय शक्ति से लगाई जा रही है। सरकार द्वारा परित्यक्त कमेरा वर्ग भुखमरी की कगार पर आ खड़ा हुआ है।

बांद्रा में इकट्ठा होने की घटना के संबंध में 800-1000 अज्ञात लोगों के खिलाफ महामारी अधिनियम धारा 3 के साथ बांद्रा पुलिस स्टेशन में धारा 143, 147, 149, 186, 188 के तहत मामला दर्ज़ किया गया है। इससे पहले महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा था कि अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई की जाएगी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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