बिहार में जब यह कांड हुआ था तो इसकी गूंज पूरे भारत तक पहुंची थी। जिसके बाद बिहार पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए कई आरोपियों को गिरफ्तार भी किया था। उच्च अधिकारियों की निगरानी में, इस मामले की तहकीकात हुई थी और मामले में संलिप्त लोगों पर मुकदमे दर्ज किए गए थे।
हालांकि उसके बरी होने की खबर से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है कि आखिर ऐसे आरोपी बाहर कैसे निकल सकते हैं? यह आवाज बिहार के हर वर्ग के लोगों की है।
गौरतलब है कि बिहार के चर्चित मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे ब्रजेश ठाकुर को स्वाधार गृह कांड में बरी कर दिया है, लेकिन बालिका गृह कांड में उम्रकैद की सजा काट रहा है।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के चर्चित बालिका गृह कांड के आरोपियों के खिलाफ स्वाधार गृह को लेकर भी जांच चल रही थी। फिर जनवरी 2025 में स्वाधार गृह में महिलाओं और बच्चों के गायब होने के मामले में गवाहों के बयान पलटने के कारण कोर्ट ने गुरुवार को उसे बरी कर दिया। ब्रजेश पर आरोप था कि वह लड़कियों को बड़े अधिकारियों और नेताओं को सप्लाई करता था।
स्वाधार गृह योजना महिलाओं को मुश्किल समय में मदद करती है। यह योजना भीख मांग कर गुजारा करने वाली महिलाओं को रहने की जगह, खाना, कपड़े, स्वास्थ्य सेवाएं और आर्थिक मदद देती है।
ब्रजेश ठाकुर पर इस योजना का दुरुपयोग करके 11 महिलाओं और उनके 4 बच्चों को गायब करने का आरोप था। इस मामले में एससी-एसटी कोर्ट ने ब्रजेश ठाकुर और शाइस्ता परवीन उर्फ मधु को मामले में बरी कर दिया।
इस फैसले ने पूरे मामले की जांच को लेकर कई सवाल भी खड़े किए हैं। इस पूरे मामले पर विशेष अनुसूचित जाति-जनजाति कोर्ट के लोक अभियोजक मंगल प्रसाद का कहना है कि “पुलिस के द्वारा सही से जांच नहीं किए जाने के कारण आज आरोपियों को न्यायालय ने बरी कर दिया है।
अधिवक्ता ने पुलिस की जांच पर सवाल खड़े किए हैं। ध्यान रहे कि बालिका गृह कांड का आरोपी रसूखदार है। उसका बाइज्जत बरी होना पुलिस की जांच पर सवाल खड़े करता है।”
मुजफ्फरपुर के रहने वाले मुरारी कहते हैं कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, और अब मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर सहित अन्य को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया! यह बिहार सरकार और प्रशासन की नाकामी का चरम है। क्या चुनावी लाभ के लिए अपराधियों को खुलेआम संरक्षण दिया जाएगा?
मुजफ्फरपुर के स्वधार गृह चर्चित कांड के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर और अन्य का साक्ष्य के अभाव में बरी दर्शाता है कि पुलिस तंत्र अपने कर्तव्य का निष्पादन ठीक-ठाक नहीं कर सका। भ्रष्टाचार की बू आ रही है। यह घटना बता रही है कि गरीब असहाय महिलाओं की अस्मिता और जीवन की कोई कीमत नहीं।
गृह बलात्कार कांड का सरगना ब्रजेश ठाकुर और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच में संबंध
मुजफ्फरपुर बालिका गृह बलात्कार कांड का सरगना ब्रजेश ठाकुर और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच में संबंध को लेकर आरोप लगते रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने फेसबुक पर लिखा था कि “मुजफ्फरपुर बालिका गृह बलात्कार कांड का सरगना ब्रजेश ठाकुर बिहार का बहुचर्चित पत्रकार और संपादक भी है। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके अखबार को करोड़ों रुपए के सरकारी विज्ञापन दिए।”
उन्होंने अखबार की कुछ पृष्ठ को पोस्ट करते हुए लिखा कि देखिए किस तरह नीतीश कुमार की तारीफ की जाती थी, उनके अखबार में।
राजद नेता एवं पूर्व बिहार सरकार में मंत्री शिवानंद तिवारी ने लिखा था कि नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर कल जमकर बोले, लेकिन खुलकर नहीं बहुत कुछ छुपा कर बोले। जैसे उन्होंने यह नहीं बताया कि ब्रजेश ठाकुर से उनका क्या और कैसा संबंध है।
यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि नीतीश जी मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्रजेश ठाकुर के पुत्र के जन्मदिन का केक काटने पटना से चलकर मुजफ्फरपुर गये थे। नीतीश जी से बिहार की जनता यह भी जानना चाहेगी कि ब्रजेश ठाकुर के यहां जाकर उनको कृतार्थ करने के बाद उनके यानी ठाकुर के अख़बारों को मिलने वाले विज्ञापनों में कितना इजाफा हुआ। वगैरह वगैरह..”
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक मुज़फ़्फरपुर में ठाकुर को वृद्धाश्रम, अल्पावास, खुला आश्रय और स्वाधार गृह के लिए भी टेंडर मिले हुए थे, खुला आश्रय के लिए हर साल 16 लाख, वृद्धाश्रम के लिए 15 लाख और अल्पावास के लिए 19 लाख रुपए मिलते थे।
सोशल एक्टिविस्ट एवं याचिकाकर्ता का क्या कहना है..
सोशल एक्टिविस्ट संतोष कुमार ने इस मामले में याचिका दायर की थी, वो लिखते हैं कि “मामला सिर्फ गबन का नहीं है बल्कि 11 महिलाएं सहित 4 बच्चे के गायब होने का है जिसमें एससी/एसटी भी हैं। बिहार के मुख्यमंत्री 5 जनवरी को मुजफ्फरपुर के अपने प्रगति यात्रा पर सरकारी आश्रय गृह का उद्घाटन से दो दिन पूर्व ही स्वधार गृह कांड में ब्रजेश ठाकुर पूरे कुनबे सहित बाइज्जत बरी हुए हैं।
यह फैसला निश्चित तौर पर माननीय मुजफ्फरपुर जिला न्यायलय का है। माननीय न्यायलय को ‘साक्ष्य के अभाव’ में ब्रजेश ठाकुर सहित पूरे कुनबे को बरी करना पड़ा। क्योंकि हमारे सुशासन पुलिस ने न्यायलय के सामने कोई साक्ष्य नहीं रखा अब अंदेशा तो यह भी है कि कहीं सारे साक्ष्य को सुशासन के अंतर्गत नष्ट तो नहीं किया।
क्या यह महज संयोग है या सुशासन का प्रयोग है। बताने की जरुरत नहीं की पुलिस गृह विभाग के अधीन और गृह विभाग छबीला सुशासन कुमार जी के अधीन।
आगे वह लिखते हैं कि “मुझे इसलिए भी आश्चर्य नहीं हो रहा क्योंकि मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की सीबीआई जांच के लिए जब माननीय पटना हाई कोर्ट में लड़ रहा था तो बिहार सरकार के तत्कालीन महाअधिवक्ता श्री ललित किशोर ने मुझे “Ugly face of the society ” कहते हुए सीबीआई जांच को नाकारा था।
बाद में जो हुआ वह दुनिया के सामने है। उस केस में तो ब्रजेश ठाकुर को ताउम्र की सजा भुगतना ही होगा और उसी केस में अभी भी 24 से अधिक आईएएस पर कार्यवाही बिहार के मुखिया के पास लंबित है।
बाहुबली फिल्म में कटप्पा के लिए एक डायलॉग बोला गया “वफ़ादारी का भी एक चेहरा होता है”। बिहार के सियासत की तरफ देखता हूं तो लगता है “बेहयाई और निर्लज्जता का भी एक चेहरा होता है।”
(बिहार से राहुल की रिपोर्ट)
+ There are no comments
Add yours