पाकुड़। मोदी सरकार द्वारा मनरेगा में लायी गयी नई तकनीक ABPS के कारण मज़दूर अपने काम व मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं। इस नई तकनीक की वजह से अगर मस्टर रोल में कुल मज़दूरों में से केवल एक का भी ABPS लिंक्ड नहीं है, तो सभी मज़दूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है। जबकि राज्य के लगभग 1 करोड़ मज़दूरों में केवल आधे ही ABPS लिंक्ड हैं। ऐसे में मनरेगा पर आधारित मजदूरों की क्या स्थिति होगी स्वतः समझा जा सकता है।
दरअसल, 23 फ़रवरी, 2023 से 2 मई, 2023 के बीच राज्य में 2.23 लाख जॉबकार्ड डिलीट किए गए हैं और केवल 51,783 नए कार्ड बने हैं, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि मजदूरों का जॉब कार्ड फिर से आधार से न जुड़े, यह वजह दिखाकर ABPS न हुए कार्ड को डिलीट किया जा रहा है। 237 ऐसे परिवारों के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि उनमें से 77 प्रतिशत परिवारों को तो पता ही नहीं है कि उनका जॉब कार्ड रद्द किया गया है। जबकि ‘महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ यानी मनरेगा का उद्देश्य लोगों को कम-से-कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना है।
अब हम बात करते हैं झारखंड के पाकुड़ जिले की, जहां यह योजना पूरी तरह से फेल साबित हो रही है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में यहां मनरेगा के तहत मात्र 1,584 परिवार को ही 100 दिन का रोजगार उपलब्ध हो पाया है। कोरोना के बाद से मजदूर अपने क्षेत्र में ही काम की तलाश कर रहे हैं। वहीं जिले में बेरोजगारी का दौर चरम पर है। मजदूर वर्ग के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। जबकि मनरेगा योजना के माध्यम से केंद्र व राज्य की सरकार मजदूरों को 100 दिन रोजगार देने का वादा करती रही है।
रिपोर्ट के अनुसार पाकुड़ जिले के छह प्रखंडों में मनरेगा योजना के तहत काम दिलाने के लिए 1 लाख 95 हजार 749 परिवारों का पंजीकरण किया गया। जिसमें वित्तीय वर्ष 2022-23 में 68,656 परिवारों ने काम की मांग की। वहीं 68,631 परिवारों को काम की पेशकश की गयी। जिनमें से 58,876 परिवारों ने मनरेगा में काम भी किया। लेकिन सब मिलाकर साल भर में मात्र 1,584 परिवारों को ही 100 दिन का रोजगार मिल पाया।
जिले के प्रखंडों की अगर हम बात करें, तो अमड़ापाड़ा प्रखंड के मजदूरों को वित्तीय वर्ष 2022-23 में मात्र 16 परिवारों को ही 100 दिन का काम उपलब्ध हो सका। जबकि प्रखंड में 12,380 परिवारों को जॉब कार्ड उपलब्ध कराया गया। जिसमें 3,928 परिवारों ने काम की मांग की। जिसके एवज में 3,927 परिवार को काम की पेशकश की गयी। इनमें से 2,652 परिवारों ने काम भी किया, लेकिन मात्र 16 परिवार को ही 100 दिन का काम मिल पाया।
एक नजर उन प्रखंडों पर जिनमें काम स्थिति क्या रही-अमड़ापाड़ा रजिस्टर्ड परिवार 12380, काम की मांग 3,928, काम की पेशकश 3,927, काम उपलब्ध 2,652 और 100 दिन का काम मिल पाया 16 परिवार को।
हिरणपुर, रजिस्टर्ड परिवार 18610, काम की मांग 7879, काम की पेशकश 7880, काम उपलब्ध 6808 और 100 दिन का काम मिल पाया 70 परिवार को।
लिट्टीपाड़ा, रजिस्टर्ड परिवार 30,998, काम की मांग 14,503, काम की पेशकश 14,488, काम उपलब्ध 12,474 और 100 दिन का काम मिल पाया 287 परिवार को।
महेशपुर, रजिस्टर्ड परिवार 52,429, काम की मांग 18,586, काम की पेशकश 18,579, काम उपलब्ध 16,288 और 100 दिन का काम मिल पाया 479 परिवार को।
पाकुड़, रजिस्टर्ड परिवार 51,903, काम की मांग 12,118, काम की पेशकश 12,115, काम उपलब्ध 10,159 और 100 दिन का काम मिल पाया 205 परिवार को।
पाकुड़िया, रजिस्टर्ड परिवार 29,429, काम की मांग 11,642, काम की पेशकश 11,642, काम उपलब्ध 10,495 और 100 दिन का काम मिल पाया 527 परिवार को।
इस बावत डीडीसी मो. शाहिद अख्तर ने कहा कि मनरेगा के तहत सभी डिमांड करने वाले मजदूरों को काम उपलब्ध कराया गया है। माइनिंग क्षेत्र होने के कारण कई मजदूर मनरेगा में पूर्ण तरीके से काम नहीं करते हैं। बावजूद परिवारों को 100 दिन का काम उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)
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