हिजाब पर प्रतिबंध और बेटी पढ़ाओ का नारा

पिछले कुछ सालों से मुसलमानों से सम्बंधित अनेक मामलों पर न्यायपालिका, कार्यपालिका और प्रशासनिक व्यवस्था का रुख नकारात्मक रहा है, कुछ मामलों में तो तीनों की जुगलबंदी दिखी है। हिजाब बैन के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय का हालिया फैसला भी इसी जुगलबंदी का नमूना लगता है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय में जब हिजाब पर बैन लगाने के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की गईं थीं, तो न्यायालय (न्यायाधीश) ने यह कहा था कि इस याचिका पर फैसला तर्कों और कानून के अनुसार होगा। जबकि फैसला कुरआन की ग़लत व्याख्या के आधार पर दिया गया है। यदि तर्क को ही आधार माना जाए और अदालत के फैसले को तोला जाए, कि हिजाब का कुरान में कोई आदेश/ज़िक्र नहीं है, तो यह बात पूरी तरह गलत निकलती है। कुरान में हिजाब का स्पष्ट आदेश है कि,

“ऐ नबी! तुम अपनी बीवियों, अपनी बेटियों और मुसलमानों की औरतों से कह दो कि वो अपने ऊपर अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें…”

कुरान,  सुरह अल-अहज़ाब 33:59

इसके अलावा भी कुरान और हदीस में पर्दे पर के हुक्म हैं।

इस नजरिए से लगता है कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के  समर्थन में कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला एक माइंड सेट से दिया गया फैसला है, जो माइंड सेट मुसलमानों के बारे में आजकल चल रहा है। इसलिए पूरी तरह गलत है। और देश की बहुधर्मी और बहु संस्कृति और अलग अलग रहन सहन के तौर तरीकों पर भी सीधा हमला है।

हिजाब बैन का यह फैसला सरकारी स्कूलों के लिए है, जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम लड़कियां पढ़ रही हैं, जहां उनका इंरौलमेंट अधिक है। सरकारी स्कूलों में इंरौलमेंट अधिक क्यों है? क्योंकि देश में इस समय मुसलमान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में हैं। ऐसा क्यों है ? यह लम्बी बहस है, लेकिन यह सच है।

यहां यह कहना भी जरूरी है कि देश में अलग अलग धर्मों संस्कृतियों की अलग अलग मान्यताएं और विश्वास हैं, और उन्हें अपनी मान्यताओं के साथ रहने सहने और जीने का हक़ है, और भारतीय संविधान ने इसकी गारंटी दी हुई है। लेकिन मुस्लिम विरोधी माइंडसेट से हुए इस फैसले का सीधा असर मुस्लिम छात्राओं की शिक्षा को सीधा प्रभावित करेगा।

वैसे भी सर में पहनने वाला हिजाब स्कूल की वेशभूषा या ड्रेस से अलग या अतिरिक्त है, पिछले दशक में हिजाब पहनकर मुस्लिम लड़कियां हर शिक्षा और नौकरी के हर क्षेत्र में आगे बढ़ी हैं। इसके पहनने से किसी ड्रेस का उल्लंघन नहीं होता है, हां इसे पहनने वाली छात्रा को एक कम्फर्ट महसूस होता है। अगर एक छात्रा हिजाब पहन कर कम्फर्ट में अपनी शिक्षा पूरी कर रही है तो उसे इस बात की आजादी मिलनी चाहिए। वैसे भी देश मे महिला सुरक्षा का स्तर बहुत ख़तरनाक है, छात्राओं की सुरक्षा को लेकर हर अभिभावक संशय में रहता  है? अगर ऐसे में मुस्लिम महिलाएं हिजाब में सुरक्षित महसूस  करती हैं या  होती हैं तो इसकी स्वीकार्यता होनी चाहिए।

आज तक सरकार/व्यवस्था की ओर से महिलाओं/छात्राओं के साथ साथ छेड़छाड़ या सार्वजनिक स्थानों में उत्पीड़न न होने की गारंटी नहीं हो सकी है। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि एक खास तरह की रीति रिवाजों को मानने वाला समुदाय अपनी बेटियों को हिजाब सहित बाहर भेजने में राजी है तो यह सकारात्मक बात मानी जानी चाहिए, और इसका स्वागत करना चाहिए।

इस मामलों में एक बहुसंख्यक समाज की एक और नकारात्मक सोच भी सामने आई है। सरकारी स्कूलों में सस्ती शिक्षा की सुविधा से मुस्लिम समाज की छात्राएं बड़ी संख्या में आगे आईं, जो कि कुछ लोगों के आंखों में चुभने लगी थी। मुस्लिम छात्राओं  का प्रदर्शन बढ़ रहा था और ड्रापआउट रेट भी कम था। जो कि स्वस्थ समाज के लिए सकारात्मक मानी जानी चाहिए थी, लेकिन राजनीतिक चालों ने एक स्वीकार्य व स्वाभाविक प्रक्रिया को साम्प्रदायिक रंग देकर रोक दिया है। इस घटना का क्या अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव पड़ेगा नफ़रत की राजनीति करने वालों को भविष्य में पता चल जाएगा।

आज मुस्लिम छात्राओं पर यह प्रतिबंध लगाया गया है, इसको आधार लेकर भविष्य में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक में फैले अलग अलग धर्मों के पहनावे पर रोक लगेगी, दक्षिण भारत में छात्राएं स्कूल घाघरा पहनकर और फूलों की वेणी सर में लगाकर स्कूल जाती हैं। कहीं छात्र लुंगी तो कहीं धोती पहनते हैं। आदिवासियों का अलग पहनावा है तो पूर्वोत्तर में महिलाएं व छात्राएं किमोनो की तरह पहनावे में रहती हैं।

छात्राओं का सर ढंकना अनेक संस्कृति का हिस्सा है। सिखों को पगड़ी या पटका पहने और कृपाण रखने की स्वतंत्रता है । तो दूसरी ओर पिछले वर्ष सिक्किम में छात्र छात्राओं को परम्परागत पहनावा पहनकर आने का सरकारी आदेश होता है। ऐसे में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पर प्रतिबंध से उनकी शिक्षा पर बहुत घातक प्रभाव पड़ेगा और हजारों लाखों मुस्लिम छात्राओं का भविष्य अंधकारमय होगा। तब मुस्लिम समाज के लिए बेटी बढ़ाओ, बेटी पढ़ाओ के मोदी सरकार के नारे का औचित्य क्या यह जाएगा?

(इस्लाम हुसैन लेखक और टिप्पणीकार हैं और आजकल काठगोदाम में रहते हैं।)

Janchowk
Published by
Janchowk