भिलाई। पावर हाऊस स्टेशन गोलीकांड में मारे गए छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के श्रमिकों को रविवार को श्रद्धांजलि दी गई। श्रद्धांजलि देने विभिन्न मजदूर संगठनों के लोग बड़ी संख्या में पहुंचे थे।
भिलाई पावर हाऊस स्टेशन में गोलीकांड में मारे गए छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के श्रमिकों को श्रद्धांजलि में श्रमिकों के परिजन के अलावा मुक्ति मोर्चा के पदाधिकारी, कार्यकर्ता और विभिन्न मजदूर संगठनों के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। सभी ने दोपहर को पावर हाऊस रेलवे स्टेशन पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इनमें पुरुषों के अलावा बड़ी तादाद में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस दौरान पावर हाऊस प्लेटफार्म में श्रमिकों की भारी भीड़ हो गई थी।
आप को बता दें कि सुंदरलाल पटवा की बीजेपी सरकार ने 1 जुलाई 1992 को जीने लायक वेतन की मांग पर 17 मजदूरों को गोलियों से भून दिया था। ये वो 4200 मजदूर थे जिन्हें आज भी काम पर वापस नहीं लिया गया। भिलाई के मजदूरों का आंदोलन लगातार जारी है। इससे पूर्व 28 सितम्बर 1991 को शंकर गुहा नियोगी को निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण के नीतियों के तहत भिलाई में उद्योगपतियों के गुर्गों ने सबेरे सोते हुए मौत के घाट उतार दिया था। आज 26 साल बाद मजदूरों की हालत और ज्यादा खराब है अब उन्हें यूनियन बनाने का अधिकार नहीं है। एक के बाद एक सारे उद्योग बंद होने के कगार पर हैं। मशीनीकरण कर लोगों के हाथ से रोजगार छीना जा रहा है। स्थाई मजदूरों को काम से हटा कर ठेकेदारी प्रथा पर सारे काम चलाए जा रहे हैं। मजदूरों के बिगड़ते हालातों के साथ किसान मजदूर आत्महत्या के लिए मजबूर हैं। इस बर्बर हत्याकांड के खिलाफ हर साल छत्तीसगढ़ के भिलाई में शहीद दिवस मनाया जाता है। जिसमें मजदूर यूनियन अथवा विभिन्न जन संघठन रैली और जन सभा करते हैं।
हम बनाबो नवा पहिचान राज करहि मजदूर किसान के नारों के साथ मजदूर संगठनों ने कहा कि आज केंद्र और छत्तीसगढ़ राज्य की भाजपा सरकारें तमाम मेहनतकशों को जीते जी मारने के षड्यंत्र में जुटे हुए हैं। मजदूर संगठनों ने सभा में लड़ने का शपथ लेते हुए, जज लोया प्रकरण का जिक्र करते हुए कहा कि देश में संविधान तथा न्यायपालिका खतरे में है। संगठन के नेताओं ने कहा कि मेहनतकश दलित युवाओं को फर्जी मुकदमें में गिरफ्तार किया गया, और अब दलित आंदोलन पर एक फर्जी नक्सल आरोप लगाकर डराने की कोशिश की जा रही है।
सरकार की तमाम जनविरोधी नीतियों के साथ मजदूर रविवार को शहादत दिवस की बरसी पर भिलाई में एकजुट हुए। उन्होंने तमाम तबकों को इस शहादत दिवस में शामिल होकर आगे संघर्ष के लिए अपील की थी। ज्यों-ज्यों मजदूर किसानों की इस लोकतांत्रिक आंदोलन को कुचला गया उसी अनुपात में आदिवासी क्षेत्रों में हथियारबंद युद्ध तेजी के साथ सरकार को चुनौती दे रही है।
(तामेश्वर सिन्हा अपनी जमीनी रिपोर्टों के लिए जाने जाते हैं। और आजकल बस्तर में रहते हैं।)
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