Thursday, March 28, 2024

जेपीएससी में बड़ा आरक्षण घोटाला

आल इंडिया एम्प्लॉइज कोऑर्डिनेशन कॉउन्सिल संथाल परगना के अध्यक्ष डॉ राजेश कुमार दास ने झारखंड लोक सेवा आयोग में 7 से 10 तक के हुए व्यापक आरक्षण घोटाले को लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला को आवेदन दिया है और उनसे इस दौरान हुई सम्पूर्ण नियुक्ति प्रिक्रिया को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने  अध्यक्ष से कहा है कि जेपीएससी 7- 10 सिविल सेवा नियुक्ति परीक्षा, 2021 के लिए जारी प्रारम्भिक परीक्षा परिणाम में भारतीय संविधान के अनुछेद -16(4) के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन किया गया है। जिसके अनुसार सरकारी सेवा में कमजोर, आरक्षित वर्गों को दिये गए आरक्षण का बड़े स्तर पर घोटाला हुआ है।

बता दें कि झारखंड जैसे अनुसूचित जनजातीय व अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्र में यह आरक्षण घोटाला कोई नया नहीं है, इसके पूर्व में भी आदिवासी महापुरुषों के नाम से स्थापित सिद्धू-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका (झारखंड) में विगत दो वर्ष पूर्व संविदा आधारित सहायक व्याख्याता नियुक्ति में आरक्षण की धज्जियां उड़ी हैं, जिसकी वाद संख्या file no -Jharkhand/02/2020 दिनांक – 20/01/2020 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, नई दिल्ली में लंबित है। इस घोटाले की गुत्थी अभी सुलझी भी नहीं थी, कि इससे भी बड़ा महाआरक्षण घोटाला जेपीएससी प्रारम्भिक परीक्षा परिणाम में सामने आया है, जिसको देखकर ऐसा महसूस होता है कि उच्च पदों पर बैठे हुए जिम्मेदार लोगों को संविधान और न्यायपालिका का कोई भय नहीं है। 

जेपीएससी के वर्तमान परीक्षा परिणाम का विश्लेषण करने और उसमें हुए आरक्षण घोटाले का मूल्यांकन आगे दिए गए आंकड़ों से किया जा सकता है। इन आंकड़ों के माध्यम से साबित हो जाता है कि किस तरह आरक्षण के प्रावधानों से छेड़छाड़ किया गया है, जो झारखंड में कार्मिक, प्रशानिक एवं राजभाषा विभाग द्वारा जारी ‘द झारखंड कम्बाइंड सिविल सर्विसेज इक्जामिनेशन रूल’ Rules-2021 के प्रावधानों के विरुद्ध है, कंडिका 17 (ii) में प्रारम्भिक परीक्षा में 15 गुना अभ्यार्थियों को मुख्य परीक्षा में लेने का प्रावधान है।  लेकिन इस नियमावली के विरुद्ध जाकर UNR – में 16.74 गुना, ST में 16.52 गुना, SC में 17.68 गुना, BC-2 मे 18.77 गुना और BC-1 में 20.05 गुना अभ्यर्थियों का परीक्षा परिणाम जारी हुआ है। 252 सीट के लिए विज्ञापन निकाला गया था, जिसके अनुसार 3780 अभ्यर्थियों को प्रारम्भिक परीक्षा में चुना जाना था। लेकिन नियमावली को न मानते हुए 4297 अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा में शामिल होने के लिए चुना गया। 

संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार ST (आरक्षण प्रतिशत -26%) को 1116 सीट मिलनी चाहिए थी, जबकि उनको 1057 सीट ही दी गयी, जिससे ST अभ्यर्थियों को 69 सीट का नुकसान हुआ, SC (आरक्षण प्रतिशत – 10%) को 429 सीट मिलनी चाहिए थी। लेकिन उनको 389 सीट ही दी गयी, जिससे उनको 40 सीट का नुकसान हुआ। उसी तरह EWS (आरक्षण प्रतिशत – 10%) को 429 सीट मिलनी चाहिए थी। लेकिन उनको 305 सीट मिली। जिससे इस वर्ग को 124 सीट का नुकसान हुआ। BC (आरक्षण प्रतिशत-14%) इनको 601सीट मिलना चाहिए थी। लेकिन इनको 44 सीट अधिक जोड़कर 645 सीट दी गयी, UNR में भी नियमपूर्वक 1710 सीट दी जानी चाहिए थी। लेकिन यहां उनको 1897 सीट इस परीक्षा परिणाम में दिए गए। जबकि नियुक्ति विज्ञापन में दिये गए दिव्यांग (PH) अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित सीट के लिए 90 अभ्यर्थियों का परीक्षा परिणाम जारी करना था। लेकिन परीक्षाफल में इस वर्ग के लिए  ‘0’ (शून्य) परीक्षा परिणाम जारी किया गया। ये परीक्षा परिणाम साबित करता है कि सामान्य श्रेणी और ओबीसी अभ्यर्थियों के लिए पूरा परीक्षा परिणाम ही गड़बड़झाला बना दिया गया। सबसे दुखद स्थिति यह है कि जिस राज्य के मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति वर्ग जैसे वंचित समाज संथाल से आते हैं, उनके ही विधानसभा क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय सिद्धू-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में आरक्षण घोटाला हो रहा है। 

उन्होंने कहा कि परीक्षा परिणाम न केवल संविधान का अपमान है बल्कि संविधान द्वारा वंचित वर्गों को उठाने के लिए किए गए प्रावधानों का स्पष्ट भ्रूण हत्या है। इस परीक्षा परिणाम से न केवल जातिवाद और सामाजिक गहराइयां बढ़ेंगी, बल्कि वर्षों से अच्छी सरकारी नौकरी की उम्मीद लगाए वंचित वर्गों, दलित, आदिवासी, हरिजन के बच्चों के मनोबल को तोड़ने वाला साबित होगा।

यहां यह बताना जरूरी होगा कि आरक्षण में घोटाले का यह सिलसिला राज्य बनने के साथ ही जारी है तथा अब तक इस पर कोई ठोस कानूनी कार्रवाई नहीं होने के कारण इसमें लिप्त लोगों का मनोबल काफी बढ़ा हुआ है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि परीक्षा परिणाम में व्यापक गड़बड़ी के बाद भी जेपीएससी इसी परिणाम को बनाए हुए है और इसी आधार पर मुख्य परीक्षा के लिए वह आवेदन आमंत्रित कर रहा है।

इस मामले पर डॉ. राजेश कुमार दास की मांग है कि उपरोक्त मामले का जब तक समाधान नहीं कर लिया जाता तब तक 7वीं -10वीं सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षा (mains) को स्थगित रखा जाए, ताकि  मुख्य परीक्षा आयोजित करने में वृहद रूप में सरकारी रुपये का दुरूपयोग न हो सके। 

उन्होंने मांग की कि जेपीएससी में इस तरह की घटना का दोहराव होने का मुख्य कारण जेपीएससी की सदस्य संरचना में सभी कोटि/समुदाय के लोगों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं होना है, साथ ही विगत नियुक्ति घोटाले में आरोपियों पर कोई ठोस कानूनी कार्यवाही नहीं होने पर ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। साथ ही परिणाम में हुए आरक्षण घोटाले को रद्द कर नए सिरे से परिणाम जारी करने की व्यवस्था की जाए। 

इसकी प्रतिलिपि उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपाध्यक्ष अरुण हलधर अनुसूचित जाति आयोग नई दिल्ली, अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग आयोग नई दिल्ली, अध्यक्ष दिव्यांग आयोग नई दिल्ली, लोकसभा सदस्य विजय कुमार हंसदा, राज्यपाल झारखंड, नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी, विधायक दीपिका पांडेय, बृज किशोर पासवान अध्यक्ष अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा वर्ग झारखंड सहित अन्य सभी को इसकी सूचना देते हुए दोषी पदाधिकारियों पर कार्रवाई करने और नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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