अडानी की पैरोकार बनी छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार, कोल खनन परियोजना के खिलाफ 52 दिनों से जारी है आंदोलन

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छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के ग्रामीण पिछले 52 दिनों से अनिश्चित कालीन धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी यह लड़ाई महत्वपूर्ण वन क्षेत्र को बचाने, अपनी आजीविका, संस्कृति और प्राकृतिक धरोहर को बचाने, संविधान में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के प्रावधानों का पालन कराने की है।

आदिवासियों के हितों की अपेक्षा राज्य सरकार अडानी कंपनी के हितों को साधने में लगी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आदिवासियों के हितेषी होने का दावा करते हैं, लेकिन अडानी जैसी कंपनियों के दबाव में उनके द्वारा की जा रही गैर कानूनी कार्रवाइयों पर मौन धारण किए हुए हैं। हसदेव अरण्य के आदिवासी पिछले एक दशक से अपने जंगल-जमीन बचाने को आन्दोलनरत हैं। उन्हें उम्मीद थी कि प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने पर उनके जंगल और जमीन की रक्षा की जाएगी, परन्तु इस मामले में मानो केंद्र और राज्य सरकार एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।     

बता दें कि सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिले की सीमाओं में स्थित हसदेव अरण्य समृद्ध वन, जैव विविधता से परिपूर्ण, मिनीमाता हसदेव बांगो बांध केचमेंट क्षेत्र हैं। वर्ष 2009 में केंद्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा इस सम्पूर्ण 1700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में आवंटित खनन परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी।

वर्ष 2011 में MOEFCC ने इस क्षेत्र में तीन कोल ब्लॉक परसा ईस्ट केते बासन और तारा को यह कहते हुए स्वीकृति दी थी कि अन्य किसी भी कोल खनन परियोजना को हसदेव में स्वीकृति नहीं दी जाएगी। वर्तमान मोदी सरकार ने अडानी जैसे कार्पोरेट को मुनाफा पहुंचाने और संपूर्ण कोल खनिज सौंपने के लिए इस क्षेत्र को खोल दिया है। स्वयं मोदी सरकार द्वारा लाई गई वायलेट इनवायलेट को अधिसूचित नहीं किया गया। इसके अनुसार देश के 793 में से 35 कोल ब्लॉक इनवायलेट उसमें भी सबसे ज्यादा सात हसदेव अरण्य के हैं।

ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद मोदी सरकार ने कोल ब्लॉकों का आवंटन कर दिया। कोलगेट पर सुप्रीम कोर्ट से आदेश से हसदेव अरण्य क्षेत्र के सभी कोल ब्लॉक निरस्त हो गए थे। मोदी सरकार द्वारा लाए गए विशेष कोल अध्यादेश 2015 से कोल ब्लॉक के पुनः आवंटन और नीलामी शुरू हुई।

इसके खिलाफ हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने आवंटन के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर केंद्रीय मंत्रालयों से मांग की थी कि हसदेव अरण्य में किसी भी कोल ब्लॉक का आवंटन नहीं किया जाए, क्यूंकि यह क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल है और यहां खनन से उनकी जंगल, जमीन, आजीविका और संस्कृति का विनाश होगा। इसकी रक्षा का अधिकार उनकी ग्राम सभाओं को है।

ग्राम सभाओं के इस विरोध को समर्थन देने और हसदेव अरण्य में खनन परियोजनाओं के खिलाफ वर्ष 2015 में ही राहुल गांधी ग्राम मदनपुर पहुंचकर ग्रामीणों के आंदोलन को अपना समर्थन देकर आए थे।

सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हसदेव अरण्य को बचाने के बजाए स्वयं केंद्र सरकार से कोल ब्लॉक आवंटन की मांग कर रहे हैं। यहां तक कि छत्तीसगढ़ पावर जनरेशन कंपनी आवंटित पतुरिया गिदमुड़ी कोल ब्लॉक का एमडीओ (माइंस डेवलपर कम आपरेटर) अडानी कंपनी को दे दिया। 

कोल ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण सहित विभिन्न स्वीकृत प्रक्रियाओं में छत्तीसगढ़ सरकार कानूनों का उल्लंघन कर रही है।

• सरगुजा जिले के परसा कोल ब्लॉक के लिए चार गांव फतेहपुर, घाटबर्रा, साल्ही और हरिहरपुर में भूमि अधिग्रहण कोल बेयरिंग एक्ट 1957 से ग्राम सभा स्वीकृति लिए बिना ही किया जा रहा है। यह पेसा कानून 1996 और भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनार्व्यवास्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 41 की उपधारा (3) का खुला उल्लंघन है। 

• अडानी कंपनी द्वारा पर्यावरणीय स्वीकृति पाने के लिए केन्द्रीय पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन समिति की शर्तों को पूरा करने के लिए प्रशासन से मिलकर उपरोक्त इन्ही गांव की ग्राम सभाओं के फर्जी प्रस्ताव तैयार कर दिल्ली भेजे गए। इसकी शिकायत कलेक्टर सरगुजा से की गई, लेकिन आज तक उन मामलों की जांच और कार्रवाई नहीं की गई। 

• वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत ग्राम साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर  और घाट्बर्रा गांव में अभी भी व्यक्तिगत एवं सामुदायिक वन संसाधन के अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया लंबित है और ग्राम सभाओं ने भी विधिवत सहमति भी प्रदान नहीं की हैं।

ग्राम साल्ही ने ग्राम सभा में चार बार डायवर्जन का विरोध किया। इसके बावजूद परियोजना को स्टेज एक वन स्वीकृति प्रदान की गई, जो राज्य सरकार की अनुशंसा के बगैर संभव नहीं है। 

(रायपुर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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