छत्तीसगढ़ सरकार समर्पण कर चुके माओवादियों का कर रही इस्तेमाल

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नेपाल के माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड नेपाल की माओवादी पार्टी के सर्वोच्च नेता थे। बाद में वह प्रधानमंत्री भी बने।

नेपाल के माओवादियों ने भूमिगत स्थिति से खुलेआम आकर राजनीति करते समय मांग करी थी कि हमारी पार्टी की बटालियन में प्रशिक्षित सैनिक हैं जिन्हें नेपाल की राष्ट्रीय सेना में भर्ती किया जाय।

लेकिन नेपाल की तत्कालीन सरकार और संसद ने यह मांग नहीं मानी। बाद में नेपाल के माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड वहां के दो बार प्रधान मंत्री भी बने। लेकिन फिर भी वह माओवादियों को सेना में शामिल नहीं करवा पाए।

लेकिन भारत में पुराने माओवादियों को सरकार हथियार दे रही है। यह वे लोग हैं जिन्हें माओवादियों ने या तो अपनी पार्टी से निकाल दिया है अथवा यह लोग खुद पार्टी छोड़ कर सरकार के पास आ गये हैं। 

2005 में इन पूर्व माओवादियों को छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने पुराने माडल की बंदूकें ‘थ्री- नॉट-थ्री’ बांटीं और ज़मीनें खाली कराने के अपने बदनाम अभियान सलवा जुडूम में शामिल किया। सरकार ने तब इन्हें विशेष पुलिस अधिकारी का नाम दिया था।

इन विशेष पुलिस अधिकारियों ने आदिवासियों के घर जलाए आदिवासी बच्चों बुजुर्गों महिलाओं की हत्याएं कीं बड़े पैमाने पर बलात्कार किये।

2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में सलवा जुडूम को संविधान विरोधी बताया और इन विशेष पुलिस अधिकारियों को बंदूकें देने का विरोध किया तथा इनसे तुरंत बंदूकें वापिस लेने का आदेश दिया।

लेकिन छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को नहीं माना। सरकार ने कोर्ट की आँखों में धूल झोंकने के लिए इनका नाम बदल कर डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड संक्षेप में डीआरजी रख दिया।

इसी के साथ सरकार ने इन्हें पुराने माडल की बन्दूकों की बजाय नए माडल की इंसास व एके-47 जैसी ज़्यादा खतरनाक बंदूकें बांट डालीं।

अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक़ सरकार नागरिकों को हथियार देकर उन्हें दूसरे नागरिकों के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं कर सकती। लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का भी पालन नहीं किया।

अभी इसी सप्ताह में आदिवासियों के एक गाँव बुर्जी में रहकर लौटा हूं। वहां मुझसे मिलने बहुत बड़ी संख्या में अलग-अलग गावों से आदिवासी आये। उन्होंने मुझे इन डीआरजी के सिपाहियों द्वारा किये गए भयानक अत्याचारों की अपनी आपबीती सुनाई।

डीआरजी के सिपाहियों द्वारा आदिवासियों को जिन्दा जलाने, छोटे बच्चों की गला काट कर हत्या करने, बूढ़ी महिलाओं को पीटने, जवान महिलाओं और नाबालिक बच्चियों से बलात्कार करने, निर्दोष आदिवासियों को फ़र्जी मामले बना कर जेलों में डालने की बड़ी संख्या में घटनाओं की जानकारी पीड़ित आदिवासियों ने मुझे बताई हैं।

पिछले साल जुलाई में सर्वोच्च न्यायलय ने मुझ पर पांच लाख का जुर्माना लगाया था क्योंकि जज के मुताबिक़ मैं सोलह आदिवासियों की पुलिस द्वारा की गई हत्या का अपना आरोप कोर्ट में साबित नहीं कर पाया था। जबकि सच्चाई यह थी कि इस मामले में अगर जज निष्पक्ष जांच का आदेश देते तो हत्या का आरोप साबित हो जाता।

लेकिन कोई भी कोर्ट यही तर्क सरकार और पुलिस के खिलाफ कभी क्यों नहीं इस्तेमाल करती है?  छत्तीसगढ़ में डीआरजी और पुलिस वाले जितने आदिवासियों के ऊपर नक्सली केस बना कर जेल में डालते हैं उनमें से 98 प्रतिशत आदिवासी अदालत द्वारा बरी कर दिए जाते हैं।

लेकिन आज तक किसी भी अदालत ने इस तरह निर्दोष आदिवासियों के विरुद्ध आरोप साबित ना कर सकने वाले पुलिस अधिकारीयों या कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की है। इसका परिणाम यह है कि यह डीआरजी के सिपाही और पुलिस वाले मिलकर तरक्की और नगद इनाम के लालच में निर्दोष आदिवासियों को जेलों में ठूंस रहे हैं। 

और भी ज़्यादा भयानक बात यह है कि नक्सली के नाम पर किसी को मारने पर सरकार पुलिस वालों को नगद इनाम देती है। इसलिए यह डीआरजी वाले नगद इनाम के लालच में निर्दोष आदिवासियों की हत्या कर रहे हैं।

ऐसा अमानवीय काम अमेरिका और आस्ट्रेलिया में वहाँ के आदिवासियों के साथ बाहर से आये गोरों ने किया था।

उस समय एक आदिवासी की लाश लाने पर गोरों को सरकार इनाम देती थी। गोरों ने इनाम के लालच में तब घोड़ों पर बैठ कर बांस में फरसे बाँध कर आदिवासियों को भगा-भगा कर उनका शिकार किया था।

भारत में इस तरह आदिवासियों की हत्या करने पर सिपाहियों को नगद इनाम देने के खिलाफ मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हुई है जिस पर कोर्ट ने अभी तक कोई आदेश नहीं दिया है।

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों ने दुनिया में बदनाम सूडान, नामीबिया, अफगानिस्तान जैसे देशों में हुए भयानक अत्याचारों को भी पीछे छोड़ दिया है।

यदि कोई अन्तर्राष्ट्रीय संस्था छत्तीसगढ़ के इस आदिवासी इलाके में चल रहे इन भयानक अत्याचारों की जांच करवाए तो पूरी दुनिया में भारत का सिर शर्म से झुक जाएगा।

चिंता की बात यह है कि भारत के अन्य समुदाय के लोगों और मीडिया ने भी इस मामले में नज़रें फेर रखी हैं।

(हिमांशु कुमार गांधीवादी कार्यकर्ता हैं।)

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