बस्तर। अधिवक्ता और मानव अधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने शासन-प्रशासन का ध्यान एक अहम मामले की तरफ दिलाया है। उन्होंने मीडिया को जारी बयान में कहा कि दंतेवाड़ा जिला किरंदुल थाने का गुमियापाल गांव में माओवादी-पुलिस सम्बंधित घटनाओं को ले कर सुर्ख़ियों में रहा है। हाल ही में 7 नवंबर की रात माओवादियों ने एक युवक को अगवा कर 18 नवंबर को छोड़ दिया। पर अभी भी उस पर कई तरह के प्रतिबंध हैं और उसका भविष्य अनिश्चित है।
युवक मासा पोडीयामी ने कहा कि उसको क्यों उठाया गया, वह नहीं जानता। उसको कोई कारण नहीं बताया गया। उसने कहा की उसके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ उसके एक संबंधी ने बताया कि उसके पैर सूजे हुए थे। यह 11 दिन उसके परिवार के लिए परेशानी भरे दिन थे। वह उसकी खोज में जंगल-जंगल ढूंढते रहे पर उसका कोई पता नहीं चल पाया था।
मासा एक गरीब किसान परिवार का है। उसका बड़ा भाई कमलेश (जो मेरा क्लाइंट है) 2018 से 7 ‘नक्सली’ प्रकरणों में जगदलपुर केंद्रीय जेल में बंद है। यह सभी केसों में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के आलावा उस पर UAPA के तहत भी आरोप लगाए गए हैं। कमलेश भी उन हजारों निर्दोष आदिवासियों में है, जिनको झूठे प्रकरणों में फंसाया गया है।
मासा और कमलेश के आलावा उनके मां-पिता का और कोई पुत्र नहीं है। इस परिवार का एक बेटा पुलिस से परेशान और दूसरा बेटा माओवादियों से परेशान है। मासा ने NMDC में कॉन्ट्रैक्ट मजदूर के लिए फॉर्म भरा था। इस काम के लिए, शहर में मजदूरी पाने के लिए, अपने भाई की पेशी के लिए, बाज़ार के काम के लिए मासा को अपने गांव से बहार आना-जाना पड़ता था।
बेला भाटिया ने कहा कि वह मासा को पिछले दो सालों से जानती हैं। आज मासा को अपने गांव से बहार निकलने की आज़ादी नहीं है। उसका फ़ोन भी जप्त कर लिया गया है। मासा को माओवादियों ने कहा है कि उसके बारे में निर्णय अभी लंबित है। उन्होंने CPI (Maoist) से अपील करते हुए कहा है कि मासा पर किसी प्रकार का दबाव न डाला जाए। वह सुरक्षित रहे और उसकी आज़ादी पर कोई आंच न आए।
(जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)
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