Thursday, April 25, 2024

मौतों के पीछे लीची नहीं, असल वजह है कुपोषण

बिहार लीची की खेती के लिए मशहूर है। मुजफ्फरपुर की लीची देश विदेश में लोकप्रिय है। गर्मियों में वहां लीची के साथ बच्चों की अकाल मृत्यु भी आती है। किंवदंती है कि लीची की कुछ नस्लें जहरीली हैं जिनको खाकर बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। हकीकत में बच्चों की अकाल मृत्यु के लिए लीची नहीं कुपोषण जिम्मेदार है। क्षेत्र में दिमागी बीमारी का प्रकोप अप्रैल, मई व जून में घातकता के साथ फैलता है। विगत वर्ष मरीजों की संख्या के अनुपात में सरकारी चिकित्सालयों में बेड न मिलने से सरकार की किरकिरी हुई थी। बीमार बच्चे वार्ड के बाहर गलियारों तक में जमीन पर लेटे हुए थे। डॉक्टर समुचित संख्या में नहीं थे। उच्च मृत्यु दर एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कारण थी जो मेनिनजाइटिस, एनसिफेलाइटिस एन्सेफैलोपैथी बीमारियों का ग्रुप है।

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार लंबे समय तक खाली पेट रहने से खून में शर्करा की मात्रा की कमी बन जाती है तथा ऐसे बच्चों में इस बीमारी का अपेक्षाकृत घातक प्रभाव रहता है।

विश्व के अन्य राष्ट्रों की तुलना में भारत कुपोषण सूचकांक में नीचे से 13वीं पायदान पर है। विगत दो वर्षों से 117 देशों की सूची में 103-104वीं रैंक पर है, जिससे स्पष्ट है कि सरकार सही दिशा में कार्य नहीं कर रही है। भारत की 14 फीसद आबादी अल्पपोषित है। विश्व में भारत को महाशक्ति बनाने का दावा करने वालों से यह अवश्य पूछा जाएगा कि स्वास्थ्य पर सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये को देखते हुए कुपोषण को समाप्त करने की कोई राह क्यों नहीं दिख रही है? भुखमरी का सूचकांक सन् 2020 में 107 देशों की सूची में भारत को 94वें स्थान पर दिखा रहा है। सरकार इस बात से प्रसन्न हो सकती है कि मुद्दों को सम्बोधित किए बिना भी वह धन व सरकारी बल पर राज्यों में सरकार बना रही है अथवा जनादेश प्राप्त सरकारों को जबरन गिरा कर अपनी कठपुतली सरकार बना रही है। वर्तमान केन्द्र सरकार की प्राथमिकता में सत्ता प्राप्ति तथा उसके बाद आधिपत्य स्थापित करना ही है।

अप्रैल दूर नहीं है, बिहार सरकार को जाग जाना चाहिए। पोषक खाद्य पदार्थों के वितरण के लिए खजाने को खोलना होगा। इलाज की व्यवस्था भी सुधारनी होगी वरना अबोध बच्चों की अकाल मौत से सरकार के साथ देश पर भी कलंक लगेगा।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।