चिन्मयानंद ने हार मान ली है? मामले की जांच कर रहे एसआईटी का दावा तो यही है कि चिन्मयानंद ने सारे आरोप मान लिए हैं और साथ ही ये भी माना है कि पीड़ित लड़की को मसाज के लिए बुलाया था। पूछताछ में चिन्म्यानंद ने कहा है कि मुझे अपने कृत्य पर शर्म आती है। मसाज वीडिओ वायरल होने और 43 अन्य वीडिओ एसआईटी को सौंपने के बाद चिन्मयानंद के पास आरोपों को स्वीकार करने के आलावा कोई विकल्प नहीं था। भाजपा सरकार में गृह राज्यमंत्री होने और विश्व हिन्दू परिषद के कद्दावर नेता होने के कारण चिन्मयानंद यह भली-भांति जानते हैं कि आरएसएस नेता संजय जोशी का सेक्स सीडी सामने आने के बाद उनका क्या हस्र हुआ। इस मामले में तो सेक्स सीडी ही नहीं पीड़िता भी सामने है जो यौन उत्पीड़न का आरोप उच्चतम न्यायालय के समक्ष लगा चुकी है।
वर्ष 2005 में आरएसएस और भाजपा नेता संजय जोशी को एक सेक्स सीडी के सामने आने के बाद अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इस सीडी में वे एक महिला के साथ कथित तौर पर आपत्तिजनक हालत में थे। विपक्ष ने इस सीडी पर खूब हो हल्ला मचाया। सीडी के खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी। लेकिन कुछ भी हो सीडी के चलते संजय जोशी की राजनीतिक हत्या हो गयी और कई साल गुमनामी में काटने पड़े। अभी तक संजय जोशी का राजनीतिक पुनर्वास नहीं हो सका है।
दरअसल प्रत्यक्ष रूप से यौन उत्पीड़न में चिन्मयानंद जेल गए, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि वह अप्रत्यक्ष रूप से शाहजहांपुर के भाजपा नेताओं के आंतरिक सत्ता संघर्ष का शिकार बन गए। चिन्मयानंद की कमजोर नस पकड़ कर पार्टी के नेताओं ने चिन्मयानंद को निपटा दिया। अब चिन्मयानंद को कौन समझाए कि जब आप शीर्ष की राजनीति करते हो और किंगमेकर की भूमिका निभाते हो तो अपनी कमजोरियों को त्यागना पड़ेगा। चिन्मयानंद के जेल जाने के बाद यूपी में भाजपा के सत्ता समीकरण में फर्क पड़ना तय माना जा रहा है। विहिप का मंदिर आंदोलन भी प्रभावित होगा। चिन्मयानंद के इस दुर्दशा के तार दिल्ली से लखनऊ तक जुड़े हुए हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि चिन्मयानंद को उन्ही की पार्टी के एक कद्दावर नेता ने उनकी कमजोरियों को एक कठपुतली से उजागर करवाकर निपटा दिया। इसी तरह संजय जोशी को भी सेक्स सीडी वायरल करके निपटाया गया था।
चिन्मयानंद को फाइनली गिरफ्तार कर लिया गया है, और उनके साथ ब्लैकमेलिंग के आरोप में पीड़िता के दो चचेरे भाई और एक अन्य को भी गिरफ्तार किया गया है। लेकिन चिन्मयानंद को सरकार द्वारा इलाज के बहाने बचाने की हर सम्भव कोशिश की गयी। लेकिन यौन उत्पीड़न कानून के कारण और समय समय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी रुलिंग्स हैं उसमें किसी भी स्त्री के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद प्रथमदृष्ट्या आरोपी के जेल जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं हैं।
दरअसल यह कहानी उत्तरप्रदेश में राजनीतिक वर्चस्व कायम करने से जुडी हुई है। वर्ष 2013 में जब भाजपा के मातृ संगठन ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान की जमींदारी सौंपी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया तब भाजपा में कई कद्दावर नेताओं को यह नागवार गुजरा। बताते है की संघ के इस निर्णय में चिन्मयानंद की भी सकरी भागीदारी थी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे नेताओं को किनारे लगा दिया गया। इस बीच सुषमा स्वराज और अरुण जेटली सरीखे नेता अपनी अपनी बिमारियों के कारण दिवंगत हो गए। अब नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह दो ऐसे कद्दावर नेता बचे हैं जिनसे सत्ता संघर्ष में चुनौती मिल सकती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने में संघ का हाथ ही रहा, जिसमें चिन्मयानंद की सक्रिय भागीदारी रही। योगी आदित्यनाथ ने भी खुलकर चिन्मयानंद के साथ पक्षधरता दिखाई।
केंद्र की राजनीति में कई क्षत्रप हैं जिनके कई समर्थक न केवल योगी सरकार में मंत्री हैं बल्कि कई जिलों में फैले हुए हैं। इस तरह से चिन्मयानंद के निपटने को योगी के लिए भी चुनौती माना जा रहा है। चिन्मयानंद के निकटवर्ती लोगों का कहना है की स्वामी को निपटने के लिए पहले शाहजहांपुर में असंतुष्ट नेता खोजे गए फिर उन्हें स्वामी के घर में सेंध लगाने का दायित्व सौंपा गया। और पीड़िता उनके जाल में अपने परिवार के साथ ट्रैप हो गयी।
अब क्या कारण रहा होगा की कई वर्षों तक चिन्मयानंद के साथ अंतरंग रही युवती अचानक उस समय विद्रोह कर बैठी जब पिछली ही मई में चिन्मयानंद की कृपा से उसकी मां को आश्रम के एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी पर रखा गया था। इसके बाद जिस तरह लड़की लापता हुई, उच्चतम न्यायालय की महिला वकीलों ने मोर्चा संभाला, बाद के घटनाक्रम हुए और वीडिओ वायरल हुए यह खोजी पत्रकारिता के लिए एक अच्छा विषय हो सकता है।
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