नई शिक्षा नीति के उलट और आंगनबाड़ियों की कीमत पर यूपी सरकार कर रही एजुकेटरों की भर्ती 

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उत्तर प्रदेश में इस समय आंगनबाड़ियां आंदोलन की राह पर हैं। मुरादाबाद, प्रतापगढ़, सोनभद्र, लखनऊ, गोंडा,  प्रयागराज, मऊ, जौनपुर, फतेहपुर समेत प्रदेश के विभिन्न जिलों में आंगनबाड़ियों ने धरना प्रदर्शन किया और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही एजुकेटरों की भर्ती का विरोध किया है।

उनकी मांग है कि सरकार इस एजुकेटर की भर्ती की जगह, यह काम आंगनबाड़ी से कराए और उनका मानदेय बढ़ाया जाए। 

दरअसल 24 अगस्त 2024 को महानिदेशक स्कूल शिक्षा, उत्तर प्रदेश कंचन वर्मा ने प्रदेश के सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिया है कि वह अपने-अपने जिलों में चयन समिति के माध्यम से परिषदीय विद्यालयों में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों पर इसीसीई एजुकेटरों की भर्ती करें।

प्रदेश में 10684 पदों पर संविदा पर एजुकेटरों की भर्ती निकाली गई है। यह 11 माह के लिए नियुक्त होंगे और इसके लिए 10313 रुपए प्रति माह की दर से मानदेय का भुगतान किया जाएगा, जिसमें ईपीएफ और ईएसआई शामिल रहेगा। इस भर्ती के लिए 50 प्रतिशत अंक के साथ गृह विज्ञान में स्नातक अथवा नर्सरी अध्यापक का 2 वर्ष का डिप्लोमा या इसके समकक्ष योग्यता जो राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त को तय किया गया है।

उनके कामों में 3 से 6 वर्ष के बच्चों को औपचारिक शिक्षा हेतु तैयार करना, उनके भौतिक, मानसिक, सामाजिक संवेगात्मक एवं अकादमिक विकास हेतु वातावरण सृजित करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सहयोग देना आदि शामिल है।

रिसोर्स एजेंसी के चयन के लिए डीएम की अध्यक्षता में जिला स्तर पर कमेटी का गठन किया गया है। जिसमें डायट के प्राचार्य, आईसीडीएस के डीपीओ, जिला सेवा योजना अधिकारी, वित्त एवं लेखा अधिकारी, बेसिक शिक्षा शामिल हैं और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी इसके सचिव हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही एजुकेटरों की यह भर्ती नई शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों के स्पष्ट तौर पर विरूद्ध है। नई शिक्षा नीति में 3 से 6 वर्ष के बच्चों की देखभाल और शिक्षा पर जोर दिया गया है और 2025 तक देश के सभी बच्चों को इसे देना अनिवार्य किया गया है।

इसके प्रोग्राम में यह कहा गया है कि 5 साल से पूर्व के बच्चों के लिए प्री-प्राइमरी क्लासेज या बाल वाटिका के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों को मजबूत किया जाएगा। इस नीति में बच्चों की देखभाल और शिक्षा के संबंध में इंटरमीडिएट पास आंगनबाड़ियों को 6 माह का सर्टिफिकेट प्रोग्राम कराया जायेगा।

जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ती इससे कम शैक्षणिक योग्यता रखती हों, उन्हें एक साल का डिप्लोमा कोर्स करा कर इसमें नियोजित करने की बात कही गई है। आंगनबाड़ी बाल सेवा एवं पुष्टाहार विभाग के अंतर्गत आता है और उनके केंद्र इसी विभाग द्वारा संचालित किए जाते हैं। 

वास्तव में उत्तर प्रदेश सरकार नई शिक्षा नीति के अनुरूप आंगनबाड़ियों को तैयार करती जो पहले से ही 3 साल से लेकर 6 साल के बच्चों की शैक्षणिक गतिविधि व उनकी देखभाल करती रहीं है। आंगनबाड़ी के कामों में यह एक महत्वपूर्ण काम है। ऐसे में साफ है कि स्कूल शिक्षा या बेसिक शिक्षा निदेशालय द्वारा उनके कार्य में हस्तक्षेप कर एजुकेटरों की भर्ती का आदेश अनावश्यक और नियम विरुद्ध है।

उत्तर प्रदेश में यदि हम देखें तो आंगनबाड़ियों की स्थिति बेहद खराब है। प्रदेश में 182741 आंगनबाड़ी कार्यकर्ती और 112756 सहायिकाएं कार्य करती हैं। उत्तर प्रदेश देश का वह राज्य है, जहां सबसे कम मानदेय इन आंगनवाड़ी कार्यकर्ती और सहायिकाओं को मिलता है।

मात्र 6000 रूपए के मानदेय में आंगनबाड़ियां काम करती हैं जो मनरेगा में प्राप्त मजदूरों की मजदूरी दर से भी बेहद कम है। आंगनबाड़ी केंद्र के संचालन के लिए जो भवन किराया दिया जाता है, वह केंद्र सरकार द्वारा तय मानक से बेहद कम है।

केंद्र सरकार के शासनादेश के अनुसार शहरी क्षेत्र में उन्हें 3000 रूपए भवन किराए मिलना चाहिए था जो 750 रुपए ही मिल रहा है। इनको राज्य कर्मचारी का दर्जा करने की बात कौन करे, उत्तर प्रदेश सरकार मानदेय बढ़ाने को भी तैयार नहीं है।

योगी सरकार ने 62 वर्ष की उम्र में आंगनबाड़ियों को रिटायर करने का फैसला किया और उन्हें पेंशन, ग्रेच्युटी, सवैतनिक अवकाश जैसी किसी भी सुविधा को प्रदान करने से इनकार कर दिया।

इस संबंध में आंगनबाड़ी यूनियनें और कई आंगनबाड़ियां हाईकोर्ट गई और इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आंगनबाड़ियों को रिटायरमेंट के समय ग्रेच्युटी देने का आदेश भी किया। जिसे सरकार ने मानने से साफ इनकार कर दिया और इस आदेश को रुकवाने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।

यही नहीं यह सरकार बच्चों की शिक्षा के प्रति कितनी गम्भीर है, इसे इस उदाहरण से देख सकते हैं। इस सरकार ने 30 से कम बच्चों की संख्या वाले 24 हजार परिषदीय विद्यालयों को बंद कर दिया और अब 50 से कम बच्चों की संख्या वाले 27 हजार परिषदीय विद्यालयों को बंद करने की प्रक्रिया चल रही है।

संसद सत्र में केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्री द्वारा बताया गया कि उत्तर प्रदेश में 1.26 लाख हेड मास्टरों के पदों को और 2021 से 2023 की अवधि में 1.39 लाख टीचरों के पदों को इस सरकार ने खत्म कर दिया। परिषदीय विद्यालयों में आज भी 126490 पद खाली हैं।

हालत इतनी बुरी है कि हाईकोर्ट को बार-बार शिक्षक भर्ती का आदेश देना पड़ता है। हाल ही में पुन: हाईकोर्ट ने सरकार से 68000 शिक्षक भर्ती में सालों से खाली पड़े 27000 शिक्षकों के पदों को भरने का निर्देश दिया है।

कई बार संसद में और प्रदेश की विधानसभा में केंद्र व राज्य सरकार ने आंगनबाड़ियों के मानदेय बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। पूरे देश में 1348135 आंगनबाड़ियों और 1023068 सहायिकाओं को श्रम-सम्मेलन की संस्तुति के बाद भी न्यूनतम वेतन देने के सवाल पर केंद्र सरकार इंकार करती रहती है।

उसका तर्क है कि इनको न्यूनतम वेतन देने के संसाधन उसके पास नहीं है। जबकि यह सच नहीं है। देश के बजट का बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट घरानों को दिया जाता है और सामाजिक सुरक्षा के मद में लगातार सरकार बजट को कम कर रही है। आईसीडीएस के भी बजट शेयर में लगातार कटौती हो रही है।

यदि सरकार देश के कॉर्पोरेट घरानों और बड़े धनिकों की संपत्ति पर समुचित कर लगाए तो आंगनबाड़ियों के नियमितीकरण से लेकर सम्मानजनक मानदेय के सवाल को हल किया जा सकता है। 

(दिनकर कपूर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश के प्रदेश महासचिव हैं।)

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