Saturday, April 20, 2024

फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट:दंतेवाड़ा के फुलपाड में माओवादियों ने की आदिवासियों की बेरहमी से पिटाई

विशद कुमार/ तामेश्वर

समाज सेवी सोनी सोरी, लिंगाराम कोडोपी, बेला भाटिया, ज्यां द्रेज़ की एक फैक्ट-फाइंडिंग जांच टीम ने 17 सितम्बर को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि ”कुछ दिनों पहले एक खबर आई थी कि फुलपाड गांव में माओवादियों ने गांव वालों की पिटाई की है। हम लोग इस खबर का सत्यापन करने के लिए 15 सितम्बर को फुलपाड गए।”

फैक्ट-फाइंडिंग जांच टीम के अनुसार टीम के सदस्यों के आग्रह पर गांव की अनके महिलाएं एवं पुरुष एक स्कूल के पास जमा हुए और घटना के बारे में जानकारी दी। इकट्ठे हुए लोगों में सभी साधारण किसान परिवार के थे। उनके बयान के अनुसार 5 सितम्बर की रात तीन बजे के करीब कई माओवादी कार्यकर्ता (जिनमें से एक-दो को छोड़कर अधिकतर सादा ड्रेस वाले थे) फुलपाड के कोयलानपारा और मारकापारा पहुंचे। उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को उठाया और कहा कि, “सब को जमा होना है”। गांव के सभी महिला परुष और बच्चे इकट्ठे हुए ।

उसी बीच कुछ पुरुषों को अलग ले जाया गया। उनमें से कुछ के हाथों को पीठ के पीछे बांध दिया गया था। कच्चे बांस के डंडे से उनकी पिटाई की गई। इस क्रम में जब एक युवक की मां ने उनको कहा कि “मेरे बेटे को जो कुछ भी करना है जनता के सामने करो” तो उसकी व उसके पति की भी पिटाई की गई। इस तरह कुल 9 लोगों की पिटाई की गई, जिनमें से 8 कोयलानपारा के थे।

टीम के सदस्य ज्यां द्रेज।

विज्ञप्ति के अनुसार जांच टीम को कुछ पीड़ितों ने पिटाई के निशान दिखाए, जो दस दिनों के बाद भी उनकी पीठ और टागों पर साफ़ दिख रहे थे। एक पुरुष जिसकी सब से ज्यादा पिटाई की गई थी, वह दंतेवाड़ा हॉस्पिटल में भर्ती है। उससे जांच टीम शाम को मिली तब उसने बताया कि “मुझे ज़मीन पर लिटाया गया, एक भारी व्यक्ति मेरे पीठ पर बैठ गया। फिर कच्ची लकड़ी से पैरों के तलवों पर पीटा गया।”

वह बहुत डरा हुआ था, क्योंकि पीटने के बाद माओवादियों ने उसे हॉस्पिटल जाने से मना किया था। लेकिन घटना के बाद पुलिस को जब जानकारी मिली तो वह गांव में आई थी और घायल लोगों को ढूंढ रही थी। बाकी लोग पुलिस पहुंचने के पहले भाग गये थे। लेकिन यह आदमी गंभीर रूप से जख्मी होने के कारण नहीं भाग पाया था। अब उसको डर लग रहा है की माओवादी लोग उसको पुन: मारेंगे।

माओवादियों द्वारा ऐसी घटना को अंजाम देने के कारणों पर विज्ञप्ति में बताया गया है कि मारने के कारण को समझना आसान नहीं है, लेकिन लोगों के बयान से यह लग रहा है कि माओवादी उनसे इसलिए नाराज़ थे क्योंकि गांव वाले सरकार से संपर्क करने लगे थे। उदाहरण के लिए कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री आवास योजना के पैसे से घर बनाया है। कुछ लोग गांव का संपर्क मार्ग बनवाने में शामिल हैं। कुछ लोग क्रिकेट सम्बंधित गतिविधियों में शामिल हुए हैं, जो किसी स्थानीय सरकारी कर्मचारी ने आयोजित की थी (यह कर्मचारी भाजपा का नेता भी है)।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य लोगों से मिलते हुए।

शायद माओवादियों की एक शिकायत यह भी थी कि सीआरपीएफ जवान कभी कभी गांव आते हैं (फुलपाड से करीब 4 किलोमीटर दूर एक सीआरपीएफ कैंप है)। इससे उनका शक बढ़ रहा है कि गांव वाले किनके साथ हैं? – हमारे साथ या सरकार के साथ? इस घटना से गांव वाले कफी चिंतित हैं, क्योंकि माओवादियों ने उनको गांव छोड़ कर शहर में रहने को कहा है। फसल काटने को भी मना किया है। गांव वालों ने जांच टीम को बताया कि उन्होंने उसी दिन जवाब दे दिया था कि ”हम लोग गांव नहीं छोड़ेंगे।” जांच टीम के सामने भी लोगों ने यही दोहराया कि वे लोग गांव में ही रहेंगे।

फैक्ट-फाइंडिंग जांच टीम के सदस्यों ने अपने प्रेस बयान में बताया है कि ”यह घटना साधारण लोगों पर उत्पीड़न और अत्याचार का मामला है। दुख की बात है कि बस्तर में इस तरह की घटना अनोखी नहीं है। इस तरह के पीड़ित लोगों की सब से बड़ी दिक्कत यह है की वे कहां जाएं और किनके के सामने शिकायत करें? उनको संवेदनशीलता से मदद करने के बदले सरकार ने कई बार इस तरह की स्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश की हैं जिसके कारण लोगों के खतरा बढ़ जाता है। हमारी आशा है कि सरकार इस बार ऐसा नहीं करेगी और माओवादियों से हमारी मांग है कि वे इस तरह की घटना को नहीं दोहराएंगे और फुलपाड के लोगों को अपनी इच्छा अनसुार जीने की आज़ादी देंगे”।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य लोगों से मिलते हुए।

जाहिर है उक्त घटना की विश्वसनीयता पर फैक्ट-फाइंडिंग जांच टीम की रिपोर्ट के बाद संदेह की कोई गुंजाइश नहीं बचती है, मगर घटना के तरीकों पर कई सवाल खड़े होते हैं। एक महिला द्वारा उसके बेटे की पिटाई के क्रम में कहा जाता है कि “मेरे बेटे को जो कुछ भी करना है जनता के सामने करो” तो उसकी व उसके पति की भी पिटाई की गई। जबकि माओवादी इस तरह दंड जन अदालत लगाकर करते हैं, जिसे वह महिला जानती थी और इसी जानकारी के आधार पर शायद उसने अपने बेटे की पिटाई का विरोध किया होगा। तब सवाल उठता है कि क्या माओवादी अपने तरीके बदल रहे हैं या उनके नाम पर कोई दूसरे तत्व ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इस सवाल का जवाब तो माओवादी ही दे सकते हैं। अगर उन्होंने इसे अंजाम दिया है तो ऐसा करने के कारणों को सामने रखते हुए इसे स्वीकार करें।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।