फादर स्टेन स्वामी के अविलम्ब रिहाई और विशेषज्ञ इलाज की माँग

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जिस एलगार परिषद मामले में 16 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों को गिरफ़्तार किया गया है, उसी मामले में गत 8 अक्टूबर 2020 को आदिवासी अधिकारों के पक्षधर और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता फादर स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया गया था। बता दें कि हिरासत में लिए गए स्टेन स्वामी पार्किंसंस बीमारी के शिकार हैं। स्टेन स्वामी पिछले साल अक्टूबर महीने से ही जेल में हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद गत 30 मई 2021 को उन्हें अस्पताल भर्ती कराया गया था, जहां वह कोरोना संक्रमित पाए गए थे। बता दें जेल से मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में शिफ्ट कराने की याचिका के साथ एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद ही ऐसा संभव हो पाया था। अब वे वेंटिलेटर पर हैं और उनकी स्थिति लगभग कोमा की है।

ऐसे में झारखंड जनाधिकार महासभा ने एक प्रेस बयान जारी कर बताया है कि उनका स्वास्थ्य अब इतना ख़राब हो चुका है कि होली फ़ैमिली अस्पताल ने उन्हें वेंटिलेटर पर डाल दिया है। भारत सरकार और जाँच संस्था NIA इनकी पीड़ाओं के लिए और उनको इस दयनीय स्थिति तक पहुँचाने के लिए पूरी तरह ज़िम्मेवार है। सम्बंधित NIA अदालत ने भी इनके मेडिकल और नियमित बेल याचनाओं पर कार्यवाही न कर इस यातना में अपनी भागीदारी बनायी है। महाराष्ट्र सरकार के मदद का आश्वासन भी आश्वासन ही रहा, कोई ठोस मदद नहीं मिली।

बता दें कि मई महीने की शुरुआत से ही तलोजा जेल में स्टेन का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। इन्हें खांसी, बुख़ार, कमजोरी, और ख़राब पेट की शिकायत होती रही। कोविड के लक्षण होने के बावजूद इनका जाँच नहीं हुआ। काफ़ी शोर मचाने के बाद इन्हें कोविड का टीका लगा, जो इन्हें दूसरे वेव के शुरुआत में न देकर जब वे गम्भीर रूप से बीमार हो गए तब दिया गया। इस दौरान वे कोविड पॉजिटिव भी पाए गए। उच्च न्यायालय ने 28 मई को इलाज के लिए इन्हें होली फ़ैमिली अस्पताल जाने की अनुमति दी।  उसके बाद भी दो दिनों तक मामले को टाल कर रखा गया।

स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगाँव मामले में 8 अक्तूबर 2020 को गिरफ़्तार किया गया था। आदिवासी संगठन, बहुत सारे ग्राम सभा, सिविल सोसाइटी, राजनीतिक नेता और यहाँ तक कि झारखंड के मुख्यमंत्री तक ने उनकी गिरफ़्तारी की भर्त्सना की थी और उनके प्रति समर्थन जताया। NIA द्वारा पेश किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के बारे में आर्सेनल रिपोर्ट में खुलासे के बाद साफ़ हो गया है कि भीमा कोरेगाँव में फँसाए गए अभियुक्तों के कम्प्यूटर में जाली दस्तावेज डाले गए हैं। स्टेन भी बार बार कहते आए हैं कि जो दस्तावेज उनके कम्प्यूटर से बताए जा रहे हैं वे नक़ली हैं और उनका उससे कोई सम्बंध नहीं है।

प्रेस बयान में कहा गया है कि बिना किसी सबूत के स्टेन पिछले दस महीनों से जेल में बंद हैं और अब जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 84 साल के एक बुज़ुर्ग को जो कई गम्भीर बीमारियों से पीड़ित हैं और जो चल फिर भी नहीं सकते, जिनका किसी भी प्रकार के हिंसक गतिविधि में शामिल होने का कोई इतिहास नहीं है, उन्हें इस प्रकार की यातना देना एक लोकतांत्रिक राज्य में अकल्पनीय है, जो पूर्णतः अवैधानिक है।

अगर जांच एजेंसी और न्यायालय द्वारा एक मानवीय दृष्टिकोण लिया जाता, तो आज स्टेन को इन यातनाओं को गुजरना नहीं पड़ता। वे अपने जीवन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और अभी भी केंद्र सरकार ने मुंह फेर के रखा है।

केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से झारखंड जनाधिकार महासभा माँग करती है कि स्टेन स्वामी को समुचित स्वास्थ्य सुविधा व विशेषज्ञ इलाज मुहैया करायी जाय और उनकी तत्काल रिहाई कर झारखंड वापिस लाने की व्यवस्था की जाय। हम यह भी मांग करते हैं कि उच्च न्यायालय उन्हें तुरंत बेल दे।

(विशद कुमार सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और रांची में रहते हैं।)

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