रामनगर। अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उत्तराखंड हमेशा आपदाओं के मुहाने पर बैठा रहता है। भारी बरसात अगर नदियों में तबाही का सबब बनती है तो भूस्खलन की घटनाएं मौतों के आंकड़ों में इजाफे की वजह बनती हैं। सरकारें अक्सर इसे प्राकृतिक आपदाएं कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। लोग भी सरकार की इस हां में हां मिलाते हुए इसे भगवान की होनी समझकर कुछ समय बाद अपने आंसू पोंछते हुए अपनी जिंदगी को संवारने की जद्दोजहद में जुट जाते हैं।
लेकिन उत्तराखंड में आने वाली हर आपदा प्राकृतिक आपदा नहीं होती। अधिकांश आपदाएं सरकार की शह पर इंसानों द्वारा खुद आमंत्रित की गई होती हैं। नाजुक पहाड़ों को डाईनामाइट से उड़ाकर हो रहा भव्य निर्माण कार्य हो या नदियों का बेलगाम अवैध खनन, ऐसी ही कुछ कवायद हैं जो प्राकृतिक आपदाओं के समय भस्मासुर बन जाती हैं।
उत्तराखंड नदियों का प्रदेश है। पूरे प्रदेश में हिमानी और बरसाती नदियों का जाल बिछा है। लोगों के लिए यह नदियां अनादि काल से ही जीवनदायिनी रही हैं। कुछ नदियों का तो इतना धार्मिक महत्त्व समझा जाता है कि उन्हें मां की न केवल संज्ञा दी गई है बल्कि मां के संबोधन से ही उन्हें पुकारा भी जाता है। लेकिन यह केवल लोक की बात है। सरकारें इन नदियों को अपने राजस्व वसूली से कुछ अधिक नहीं समझती। जिसके चलते यह नदियां बड़ी बिजली परियोजनाओं सहित उपखनिज खनन का बोझ झेलने को अभिशप्त हैं।
प्रदेश की नदियों में होने वाला खनन दो स्तर का होता है। एक वैध खनन और दूसरा अवैध खनन। अवैध खनन वैध खनन की तुलना में अधिक होता है। हर बरसात में ऊंचे पहाड़ों से बहकर आने वाली खनिज सामग्री मैदानी क्षेत्र में आते आते ऐसी चांदी में बदल जाती है, जिसकी खनक पर प्रशासन से लेकर राजनैतिक हस्तियां तक नृत्य करते हैं।
अवैध खनन की महिमा का ही प्रताप है कि अब तो पहाड़ से मैदान की तरफ बहकर आने वाली इन नदियों के खनिज को निकालने के लिए रिवर ट्रीटमेंट और कृषि भूमि को बचाए रखने के नाम पर पहाड़ों में ही खनन के पट्टे जारी करके नदियों का दोहन शुरू हो गया है।
खनन के लिहाज से राज्य के कुमाउं मंडल में रामनगर की कोसी दाबका, हल्द्वानी की गौला नंधौर और चम्पावत की शारदा प्रमुख नदियां हैं। इन्हीं नदियों में होने वाला वैध-अवैध खनन का यह कारोबार कुमाउं भर की राजनीति को भी प्रभावित करता है। इन नदियों से हर साल लाखों घनमीटर वैध उपखनिज निकाला जाता है। जिसका लक्ष्य केंद्रीय स्तर के कई विभागों की रिपोर्ट के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
लेकिन अवैध खनन की कोई सीमा नहीं है। दिन के उजाले से लेकर रात के घटाकोप में चलने वाले अवैध खनन का कोई हिसाब नहीं होता। रामनगर की कोसी नदी में भी इन दिनों रामनगर से लेकर बाजपुर तक व्यापक पैमाने पर हो रहे अवैध खनन का भी कोई हिसाब नहीं है।
नदियों में होने वाले इस खनन कार्य के कई नियमों में एक सूर्यास्त के बाद खनन नहीं करने का है। तो दूसरा खनन कार्य में मशीनों का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित है। लेकिन मौजूदा वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि इन दोनों ही नियमों की किस प्रकार धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कोसी नदी में न केवल रात का खनन जारी है बल्कि पोकलैंड और जेसीबी मशीनों की भी मदद ली जा रही है।
कल्पना करना ही मुश्किल है कि मशीनों से रात के अंधेरे में नदियों का सीना छलनी करने के इस गोरखधंधे का प्रशासन को पता ही न हो। बताया यह जा रहा है कि इस महीने के आखिर में कोसी नदी से उपखनिज निकासी का समय खत्म होने के कारण इस अवैध खनन की ओर से आंखे मूंदने के अघोषित निर्देश हैं। जिस वजह से रामनगर से लेकर बाजपुर तक करीब दो हजार डम्पर अंधाधुंध अवैध खनन में जुटे हुए हैं। जो बेरहमी से कोसी नदी को रौंदने में लगे हैं।
पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत का कहना है कि राज्य के इतिहास में पहली बार कोसी नदी में इतने व्यापक पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है कि दो हजार डंपर दिन-रात कोसी से बेलगाम अवैध निकासी में जुटे हैं, लेकिन वन विभाग इक्का दुक्का डंपर पकड़कर दिखावे के लिए अवैध खनन रोकने के दावे कर रहा है।
नियमावली के तहत सामान्य परिस्थिति में किसी भी सूरत में मशीनों से खनन कार्य नहीं हो सकता। खनन कार्य में मशीनों का उपयोग केवल आपदा के समय अधिसूचना जारी करने के बाद किया जा सकता है। लेकिन खनन प्रेमी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कोसी नदी में खनन की समय सीमा समाप्त होने से तीन सप्ताह पूर्व ही माफियाओं को अवैध खनन की खुली छूट देकर ऐतिहासिक और अभूतपूर्व अवैध खनन शुरू करवा दिया है।
रावत ने बताया कि इससे पूर्व भी खनन कारोबारियों के दुस्साहस के चलते अवैध खनन होता चला आया है, लेकिन यह दस-बीस या सौ-पचास डंपर तक ही सीमित रहता था। लेकिन मुख्यमंत्री धामी की शह के चलते राज्य के इतिहास में पहली बार करीब दो हजार डंपर दिन-रात कोसी नदी का सीना छलनी कर रहे हैं।
सरकार अब खुद ही जनता के संसाधनों की खुलेआम लूट मचवा रही है। जिससे न तो राज्य का राजस्व बढ़ रहा है, और न ही जनता को इस खनन का लाभ मिल रहा है। बल्कि अवैध खनन का यह सारा पैसा काला धन बनकर घूम फिरकर राजनैतिक चंदे के रूप में राजनेताओं की जेब में जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि यह अवैध खनन अभी ही शुरू हुआ है। राज्य निर्माण के बाद से ही इसे राजस्व प्राप्ति का प्रमुख माध्यम बना लेने के बाद नदियों में बहने वाले यह कंकड़-पत्थर सफेद चांदी की उपमा धारण कर चुके थे। सत्ता कोई भी रही हो, अवैध खनन का कारोबार बदस्तूर जारी रहा।
यहां तक की हरिद्वार के मातृ सदन के संत तक ने अवैध खनन का विरोध किया। लेकिन उस आंदोलन में उनके प्राण चले गए लेकिन अवैध खनन नहीं रुका। नदियों में हो रहा यह अवैध खनन नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ तो खिलवाड़ है ही, भविष्य की आपदाओं को मूक निमंत्रण भी।
(उत्तराखंड से सलीम मलिक की रिपोर्ट)
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