लूणकरणसर, राजस्थान। इस माह के शुरू में राष्ट्रीय स्तर के एक समाचारपत्र ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए बताया है कि अब तक देश के 82.5 फीसदी परिवारों के पास शौचालय उपलब्ध है जबकि 2004-05 तक यह आंकड़ा मात्र 45 फीसदी था।
इसका अर्थ है कि अब देश भर में ‘खुले में शौच’ के मामले में भारी कमी आई है। इसकी वजह से बीमारियों का खतरा भी कम हुआ है। नवजात शिशुओं की मौत के मामले भी कम हुए हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में इसे उल्लेखनीय प्रगति माना जाना चाहिए।
लेकिन अभी भी हमारे देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां पूरी तरह हर घर में पक्के शौचालय निर्मित नहीं हुए हैं। इसके पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण भी हैं। सरकार की ओर से शौचालय निर्माण के लिए मिलने वाली राशि कम पड़ रही है।
जिसके कारण कई परिवार शौचालय का निर्माण करने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे हैं। तो वहीं पानी की समस्या भी इसके निर्माण में बाधा बन रही है। राजस्थान के लूणकरणसर स्थित राजपुरा हुडान गांव इसका उदाहरण है।
इस गांव के कई घरों में शौचालय की पक्की व्यवस्था न होने के कारण लोग परेशान हैं। इस संबंध में गांव की 35 वर्षीय सुनीता बताती है कि उनके घर में अभी भी अस्थाई शौचालय ही बना हुआ है क्योंकि पक्का शौचालय बनाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं।
वह कहती हैं कि इसके लिए पंचायत में आवेदन भी दिया हुआ है लेकिन अभी तक राशि प्राप्त नहीं हुई है। वहीं 45 वर्षीय तीजा देवी बताती हैं कि घर में शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से बारह हज़ार रूपए दिए जाते हैं।
जबकि एक पक्के शौचालय के निर्माण में न्यूनतम 30 हज़ार रूपए खर्च होते हैं। जिसमें सेप्टिक टैंक और पानी की टंकी सहित दरवाजा और अन्य आवश्यक चीजें शामिल हैं।
लेकिन सरकार की ओर से इसके लिए मात्र बारह हजार रुपए ही आर्थिक सहायता मिलती है। ऐसे में बहुत से परिवार पैसे मिलने के बावजूद शौचालय निर्माण कराने में असमर्थ हैं। वह कहती हैं कि यदि सरकार की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता को बढ़ा दिया जाए तो बहुत से गरीब परिवारों के घर में शौचालय का निर्माण संभव हो सकता है।
वहीं 30 वर्षीय भंवरी देवी कहती हैं कि फॉर्म भरने के बावजूद जब उन्हें शौचालय निर्माण के पैसे नहीं मिले तो उन्होंने घर में अपने पैसों से किसी प्रकार से एक अस्थाई शौचालय का निर्माण कराया है। जिसमें न तो पानी की सुविधा है और न ही उसकी दीवार पक्की है। ऐसे में तेज बारिश में हमेशा उसके गिरने का खतरा बना रहता है।
वह कहती हैं कि राजपुरा हुडान के अधिकतर घरों में कच्चे शौचालय बने हुए हैं क्योंकि लोगों के पास इसे पक्का बनाने के लिए पैसे नहीं होते हैं। इसके कारण अक्सर पुरुष और युवा खुले में शौच करते हैं। एक अन्य महिला 70 वर्षीय लिछमा देवी कहती हैं कि घर में अस्थाई शौचालय के निर्माण से भी वह काफी खुश हैं, क्योंकि अब उन्हें इसके लिए खुले में नहीं जाना होता है।
पहले घर की महिलाओं को भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता था जो बहुत कष्टदायी होता था। महिलाओं और किशोरियों को सुबह सूरज निकलने से पहले अथवा रात अंधेरा होने के बाद ही शौच जा सकती थी। इसकी वजह से वह काफी कम खाना खाती थी। जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता था।
सबसे अधिक कठिनाई माहवारी के दौरान किशोरियों को होती थी। लेकिन अब घर में ही शौचालय बन जाने से ऐसी असुविधाएं ख़त्म हो गई हैं। वह कहती हैं कि यदि सरकार की ओर से शौचालय निर्माण के पूरे पैसे मिल जाए तो गांव के हर घर में पक्के शौचालय बन जायेंगे।
क्योंकि सभी घर में शौचालय की महत्ता समझते हैं। लेकिन पैसे की कमी इसमें रुकावट बन रही है। कई परिवार इसे बनाने में क़र्ज़ लेने को मजबूर हैं। उन्हें भी घर में अस्थाई शौचालय बनाने में करीब दस हज़ार रूपए खर्च हो गए हैं। इसमें पानी की टंकी की सुविधा नहीं है।
लिछमा की पड़ोसी गुड़िया कहती हैं कि सरकार द्वारा घर-घर में शौचालय के निर्माण की योजना सराहनीय है। यह सबसे अधिक महिलाओं और किशोरियों के हित में है। जिसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर भी देखने को मिला है।
राजपुरा हुडान बीकानेर जिला से 90 किमी और लूणकरणसर ब्लॉक से करीब 18 किमी दूर है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की आबादी लगभग 1863 है। अनुसूचित जाति बहुल इस गांव के अधिकतर पुरुष कृषि या दैनिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं।
सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े इस गांव में कई प्रकार की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यहां सबसे बड़ी समस्या पानी की भी है। रेगिस्तान होने के कारण यहां पानी बहुत कीमती है। इसलिए शौचालय निर्माण के बाद भी पानी की अनुपलब्धता लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या है।
इस संबंध में गांव की एक किशोरी 16 वर्षीय सुमन कहती है कि स्कूल में शौचालय तो बना हुआ है लेकिन पानी की कमी के कारण साफ़ नहीं रहता है। जिसके कारण वह अब प्रयोग के लायक नहीं रह गया है। जिसके कारण किशोरियां इसका प्रयोग नहीं करती हैं।
वह कहती है कि इसकी वजह से सबसे अधिक माहवारी के दौरान समस्या आती है। किशोरियां इस दौरान स्कूल आना छोड़ देती हैं। 12वीं में पढ़ने वाली 18 वर्षीय सुनीता कहती है कि उसके स्कूल में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था है।
इसे बहुत अच्छे से तैयार किया गया है। लेकिन पानी नहीं होने के कारण अब स्कूल का शौचालय प्रयोग के लायक नहीं रह गया है। लड़के खुले में चले जाते हैं लेकिन लड़कियां ऐसा नहीं कर पाती हैं। इसकी वजह से कई लड़कियों ने स्कूल आना छोड़ दिया है।
01 अगस्त को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से जारी सूचना के अनुसार 2014 से 2020 तक देश भर में करीब 10 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालय का निर्माण किया जा चुका है।
वहीं 3 अप्रैल 2018 को ही राजस्थान की तत्कालीन सरकार ने सभी 43 हज़ार 344 गांवों, के साथ-साथ 295 पंचायत समितियों और 9894 ग्राम पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था।
इसका अर्थ है कि गांवों के सभी घरों में शौचालय का निर्माण किया जा चुका है। लेकिन यह शत-प्रतिशत अभी पूरा नहीं हुआ है। दरअसल देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
ऐसे में स्वच्छता केवल स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सम्मान, सुरक्षा और पर्यावरण से भी जुड़ा हुआ है। विशेषकर महिलाओं, किशोरियों और बच्चों के लिए सुरक्षित शौचालय का अभाव एक बड़ा स्वास्थ्य और सुरक्षा का मुद्दा है।
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। इसके तहत शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से अनुदान भी दिया जाता है। ग्राम पंचायतों में स्वच्छता समितियां भी गठित की गईं हैं और सार्वजनिक जागरूकता अभियानों का आयोजन भी किया जाता रहा है।
लेकिन कम पैसे और पानी की समस्या राजपुरा हुडान जैसे गांव में शौचालय के शत-प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत बड़ी बाधा बनते जा रहे हैं। यानि केवल निर्माण से खुले में शौच से मुक्ति संभव नहीं है। बल्कि इसकी उपयोगिता और रखरखाव भी आवश्यक है।
ऐसे में सरकार के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर समन्वय से ही हर घर में पक्के शौचालय का सपना साकार हो सकता है। इस दिशा में स्थानीय स्तर पर काम कर रहे एनजीओ भी एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।
दरअसल स्वच्छ गांव के निर्माण के लिए हमें सभी को साथ लेकर चलना होगा, ताकि स्वच्छता की यह लड़ाई हमें एक स्वस्थ और स्वच्छ भारत की ओर ले जा सके।
(राजस्थान से सुहानी की लूणकरणसर से ग्राउंड रिपोर्ट।)
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