जौनपुर,उत्तर प्रदेश। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से होते हुए यदि आप रीवा (मध्य प्रदेश) की यात्रा कर रहे हों, तो वाराणसी-रीवा वाया मिर्ज़ापुर-रीवा नेशनल हाईवे के किनारे छुट्टा गोवंशों का झुंड देख हैरान न हों, हैरान होने की कोई बात भी नहीं है। आपको वाराणसी, मिर्ज़ापुर से होते हुए मध्य प्रदेश की सीमा तक हाइवे के किनारे और बीच में यह नजारा कुछ-कुछ दूरी पर जरुर दिखलाई दे जाएंगे।
यह नजारा सिर्फ वाराणसी, मिर्जापुर-रीवा हाइवे या किसी एक सड़क मार्ग का नहीं है, बल्कि वाराणसी-शक्तिनगर हाइवे, वाराणसी-लखनऊ, वाराणसी-प्रयागराज, वाराणसी-गोरखपुर हाईवे पर भी देखने को मिलेगे। जहां गौवंशों का झुंड सड़क पर डेरा डाले हुए पड़े नज़र आएंगे।
इनमें कई बीमार होंगे जिनके शरीर के हड्डियों पसलियों को देख उनके सेहत का अंदाजा लगाया जा सकता है। बीते महीने राज्य में सड़कों पर छुट्टा घूम रहे गौवंशों को जोर-शोर से पकड़ने का अभियान चलाया गया था। बावजूद इसके विभिन्न गांवों-कस्बों, सड़कों-हाईवे, गलियों-मुहल्लों में घूमंतू गौवंशों को देखा जा सकता है।
यह अभियान बीतने के बाद भी गौवंशों को सुरक्षित ठौर ठिकाना मिलना तो दूर उन्हें अभी भी चारा पानी के लिए सड़कों कूड़े-कचरे के ढ़ेर में मुंह मारना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि अभियान के बाद भी सड़कों पर कहां से झुंड के झुंड गौवंश आ जा रहे हैं?
इस मसले पर अपनी बात रखते हुए ग्रामीण प्रवीण कुमार मौर्य “जनचौक” को बताते हैं कि,”बेशक अस्थाई गौशाला खोलकर सरकार ने एक बेहतर कार्य तो जरूर किया है, लेकिन इसका ठीक ढंग से क्रियान्वयन न होने से यह योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।” वह सवाल करते हैं कि आखिरकार क्या वज़ह है कि सड़कों पर घूमने वाले गौवंश हृस्ट-पुस्ट नजर आते हैं, लेकिन वहीं गौवंश गौशालाओं में जाने के बाद जिंदा लाश बनकर रह जातें हैं? बेशक प्रवीण कुमार के सवाल गंभीर हैं जिसे नकार पाना मुश्किल होता है।
इसी हकीकत को जानने के लिए जब पड़ताल किया गया तो जो सच्चाई उभरकर सामने आई है वह बेहद ही चौंकाने वाला रहा है। दरअसल, सड़कों गलियों मुहल्लों में घूम-घूमकर पेट पालते गौवंश निर्द्वंद रहते हैं। वहीं गौशाला में पहुंचते ही यह बंधकर रह जातें हैं। चारा-पानी के नाम पर भरपेट आहार न मिलने से यह कुपित और कुपोषित भी होने लगते हैं। गौशालाओं में भी चारा-पानी के नाम पर जंगली घास-फूस के भरोसे उन्हें छोड़ दिया जाता है।
अलबत्ता निरीक्षण इत्यादि की भनक लगते ही चुनी-चोकर से लेकर चारा पानी की व्यवस्था मुक्कमल कर दी जाती है। गौवंशों के नाद (जिसमें खाने के लिए चारा रखा जाता है) वह भी चमचमाने लगते हैं। इस प्रकार गौशालाओं की हकीकत छुपी की छुपी रह जाती है। कभी किसी स्थानीय ग्रामीण की नज़र पड़ गई या किसी अधिकारी ने बिना किसी सूचना के निरीक्षण कर लिया तो सत्यता सामने आ जाती है, वरना गौशालाओं की तरफ किसी को फटकने तक नहीं दिया जाता है।
मिर्ज़ापुर के लालगंज तहसील क्षेत्र के एक गौशाला का हकीकत जानने की गरज से जब मौके पर पहुंच संबंधित कर्मचारी से गौशाला में रहने वाले गौवंशों के रख-रखाव खान-पान से जुड़ी हुई जानकारी चाही गई तो, पहले से हाथ जोड़ खड़े हुए कर्मचारी ने “साहब हमें काहे लपेट रहें हैं, हमें जितना कहा जाएगा हम उतना ही करेंगे। बाकी प्रधान जी और साहब लोगन जानें…”कहते हुए प्रधान जी का फरमान सुना देता है कि साहब आप लोगन मीडिया वाले हैं, प्रधान जी से मिल लेवें, आप लोगन के अंदर आवे के मनाही है।”
प्रधान जी को गौशाला में मीडिया के लोगों के जाने से क्या परेशानी हो सकती है, यह तो प्रधान जी ही बता सकते हैं, लेकिन इसके पीछे का सच यह है कि गौशालाओं की हकीकत कहीं मीडिया के जरिए सभी के सामने उजागर न हो जाए। यही वजह है कि मीडिया के लोगों को गौशालाओं से दूर रखा जाता है। इसके और भी कई पहलू बताए जातें हैं जिससे संबंधित बातों के बाहर आने से वे घबराते हैं। ऐसे में मीडिया के लोगों को इनकी ओर फटकने तक की मनाही होती है।
शाम के तकरीबन 06 बजने वाले थे गौशाला की देखरेख में लगा कर्मी जंगल की ओर से चर कर आ रहे गोवंश को हांकते (गौशाला के अंदर लें जाते समय) हुए पहले तो एक सरसरी निगाह से इधर-उधर देखता है, फ़िर धीरे से बोल पड़ता है, “बाबू जी हम ठहरे चरवाहा जितना हमें कहा जाएगा हम उतना ही करेंगे।” इतना कहकर वह खामोश हो जाता है। थोड़ी देर बाद वह पुनः बोल पड़ते हैं ” बाबू जी अब यही देख लीजिए जंगल से सभी गोवंशों को चरा कर लौटा हूं, इन्हें अब पानी पिलाकर इनके बाड़े में छोड़ दिया जाएगा। सुबह होने पर फिर से इन्हें जंगल की ओर हांक दिया जाएगा।”
इन्हें चूनी-चोकर कब दिया जाता है? के सवाल पर वह हाथ जोड़े बोल पड़ता है “साहब लोगन जाने, हमको तो जितना कहा जाएगा हम तो उतना ही करेंगे न साहेब” इतना बोलकर गौशाला कर्मी गौशाला के अंदर चला तो जरूर जाता है लेकिन वह बराबर टकटकी लगाए रहता है, जब तक कि हम उसकी नजरों से ओझल नहीं हो जाते हैं।
दरअसल, यह स्थिति किसी एक अस्थाई गौशाला की नहीं बल्कि कमोवेश सभी की एक जैसी है व्यवस्थाओं के अभाव तले जूझते अस्थाई गौशालाओं में रहने वाले गौवंश को जाड़ा, गर्मी, बरसात के थपेड़ों को सहना पड़ रहा है। टिन शेड के नीचे इनकी जिंदगी ऐसे तैसे बीत रहीं है। गर्मी में तपिश, जाड़े में ठंड और शीतलहर के थपेड़ों को सहना पड़ता है तो बरसात में कीचड़ तलें इन्हें रहना पड़ता है।
सहूलियतों के नाम पर समस्याओं का अंबार
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राज्य में निराश्रित, बेसहारा गोवंशों को संरक्षित करने के लिये साल 2019 के जनवरी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने नगरीय तथा ग्रामीण शासी निकायों के अंतर्गत अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों की स्थापना और उनके संचालन की योजना को मंजूरी दी थी।
योगी सरकार की मंशा रही कि गौवंशों को उपयुक्त संरक्षण मिले और खुले में सड़कों पर इनके घूमने से होने वाले दुर्घटनाओं पर भी रोक लगाई जा सके। दूसरे किसानों का अपना अलग ही दर्द रहा कि छुट्टा गौवंशों से उनकी खेती को काफी नुकसान होता आया है। नीलगायों से कहीं ज्यादा गौवंशों का झुंड उनकी फसलों को चट कर जा रहा है। इसी उद्देश्य से अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों को खोले जाने की स्वीकृति प्रदान करते हुए निराश्रित गोवंशों को संरक्षण देने के साथ उनके चारा पानी के मुक्कमल इंतजाम के भी निर्देश दिए गए थे। यह व्यवस्था नगरीय और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में की गई थी।
एक आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 5146 गौ आश्रय स्थल बनाये गये हैं। इनमें 04 हजार 452 अस्थाई गौवंश स्थल,148 कान्हा गोशाला, 402 कांजी हाउस और 144 वृहद गो-संरक्षण केन्द्र हैं। बावजूद इसके सड़क से लेकर गलियों में छुट्टा गौवंशों को भटकते हुए देखा जा सकता है।
मुख्यमंत्री योगी की मंशा के अनुरूप, प्रदेश में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2023-24 में अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों में प्रति गोवंश रोजाना 50 रुपए के दर से अनुदान दिया जा रहा है। पहले यह राशि 30 रूपए निर्धारित की गई थी जिसे बाद में बढ़ाकर 50 रूपए किया गया है। इससे गौ आश्रय स्थलों में गोवंश के रख-रखाव, उनके इलाज, पोषण युक्त आहार, उचित शेड समेत तमाम सहूलियतों को पूर्ण करने में मदद मिलेगी। जो अभी भी अपर्याप्त होना बताया जाता है।
वाराणसी जिले के एक ग्राम पंचायत प्रतिनिधि नाम न छापे जाने की शर्त पर अपना दुखड़ा सुनाते हुए बताते हैं कि “ग्राम प्रधान क्या-क्या देखें, ज़रा सा भी ऊंच-नीच कुछ हो जाए तो प्रधान को बली का बकरा बना दिया जाएगा। गांव में कोई चौपाल लगे या कोई सरकारी मुलाजिम आ जाएं, आवभगत से लेकर सारी तैयारियों का खर्च प्रधान जी को सहना होगा, तो भला प्रधान जी क्या-क्या और कैसे करें?” इन्हीं शब्दों के साथ वह अपनी पीड़ा को कह सुनाते हैं। वह 30 रूपए के बाद 50 रूपए को भी नाकाफी बताते हैं। कहते हैं “भूसा, चारा से लेकर चूनी-चोकर में मंहगाई की मार पड़ी है। जिससे एक पशु का पेट पाल पाना मुश्किल होता है। जंगलों का सहारा न हो तो गौशाला में एक भी गौवंश टिक न पाए।”
सड़कों पर घूमने वाले मवेशियों में दूसरे नंबर पर है उत्तर प्रदेश
सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी सड़कों पर से घूमंतू मवेशियों से छुटकारा मिल पाना कठिन दिखलाई दे रहा है। छुट्टा पशुओं की समस्या कितनी विकराल है और उसके क्या निहितार्थ निकलते हैं? यह एक गंभीर मुद्दा भी बना हुआ है। इससे किसान से लेकर आम इंसान और सड़कों पर चलने वाले वाहन चालक भी कहीं न कहीं से प्रभावित होते हुए आए हैं।
20 वीं पशुधन गणना रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में फिलवक्त 50.21 लाख आवारा मवेशी सड़कों पर घूम रहे हैं। इनमें सर्वाधिक संख्या राजस्थान में 12.72 लाख है। तो दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश में 11.84 लाख आंकी गई है, जो सड़कों पर घूम रहे हैं। अगर इसे उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में विभाजित किया जाय तो प्रत्येक जिले में 15786 आवारा पशु सड़कों पर घूम रहे हैं। जिनका कोई पुरसाहाल नहीं है।
यह पशु ऐसे हैं जिन्हें कोई भी चारा नहीं देता, बल्कि ये यहां-वहां घूम कर कूड़े के ढेर से भोजन अथवा सब्जी मंडियों में फेंकी गई हरी सड़ी गली हुई सब्जियां खाकर गुजारा करते हैं। इनमें सर्वाधिक बुरी गत उन पशुओं की होती हैं जो कूड़े-कचरे के ढेर में भोजन तलाशते हैं जिनके मुख में भोजन से कहीं ज्यादा कचरा और प्लास्टिक चला जाता है। इनसे जुड़ी हुई ऐसी कई लोमहर्षक रिपोर्टें छपती रहती हैं जिनमें गायों के पेट में ढेर सारा प्लास्टिक पाये जाने की बात सामने आई है।
सड़कों पर घूमते ये पशु न सिर्फ सड़कों पर गंदगी फैलाते हैं, बल्कि दुर्घटनाओं के कारण भी बनते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में घूमते इन आवारा मवेशियों के छुट्टा होने का कारण क्या है? एक दशक पहले तक यह समस्या इतनी भयावह नहीं रही है, लेकिन पिछले कुछ सालों में शहरी और ग्रामीण जनजीवन के लिए यह एक सिरदर्द बन गए हैं।
गौशाला में सफाई का अभाव, बरसात ने बढ़ाई मुश्किलें
अस्थाई गौ आश्रय स्थल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा है। भले ही सरकार और अधिकारी लाख दावे करें, गौ-शालाओं में अव्यवस्था और भ्रष्ट्राचार चरम पर है, यहां रह रहे गौ-वंशों की हालत दयनीय है। अस्थाई गौ आश्रय स्थल महुगढ़ी में साफ-सफाई व्यवस्था के नाम पर पूरे गौशाला परिसर में फैले गोबर साफ-सफाई व्यवस्था की पोल खोलते हैं। आलम यह है कि जहां नजर घुमाएं गोबर ही गोबर नजर आ रहा है।
गोबर के बीच इधर-उधर बेदम गौवंशों की तड़प देखते बनती है। दूसरे दुर्व्यवस्थाओं से घिरे गौ आश्रय स्थलों में व्याप्त खामियों से गौवंशों की देखभाल और गौ आश्रय स्थल के रखरखाव के कार्य में लगे कर्मचारियों अपना अलग ही रोना है। उनको कई महीने से वेतन की दरकार है। अस्थाई गौ आश्रय स्थल के कर्मचारियों को समय से पारिश्रमिक मिलने का इंतजार रहता है। जो मिलता नहीं है, इसके अभाव में कर्मचारियों को न केवल घर गृहस्थी चला पाना मुश्किल हो जाता है, बल्कि उन्हें कई प्रकार की आर्थिक समस्याओं से भी जूझना पड़ जा रहा है।
गौशाला की सेवा में जुटे कर्मचारियों का दर्द है कि “मवेशियों को खिलाने के लिए नमक, गुड़ सहित चूनी-चोकर जैसे पशु आहार जो आते थे वो भी बराबर नहीं आते हैं। दूसरी ओर जो कर्मचारी 24 घंटे सेवा देते हैं उन्हें भी समय से वेतन तो दूर मौके पर लोगों का सामना उन्हें ही करना पड़ जाता है।” कर्मचारियों का दर्द है कि अक्सर निरीक्षण के दौरान अधिकारियों का सामना होने पर उनकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं और जिम्मेदार कन्नी काटकर चलते बनते हैं।”
मिर्ज़ापुर जिले में संचालित अस्थाई गौ आश्रय स्थलों की कुल संख्या 44 बताई जाती है जहां तकरीबन ग्यारह हजार से ज्यादा बेसहारा गौ वंशों को रखा गया है। यहां बीते दो माह में 83 गोवंशों की मौतें होने की बताई जा रही है। जिनमें मई महीने में 61 व जून में 22 गोवंशों की मौत हुई है। हालांकि इसमें सभी की मौत को अधिक उम्र अथवा प्राकृतिक कारणों से होना बताकर साफतौर पर पल्ला झाड़ लिया जाता है।
जबकि पूर्व में हुई मौतों पर गौर करें तो यह संख्या सैकड़ों में पाई जाएगी। अकेले मिर्ज़ापुर नगर पालिका के अधीन वाले गौ आश्रय स्थल टांडा फाल में ही 2019 में 40 गौ के दम तोड़ देने पर इसकी गूंज राजधानी लखनऊ तक पहुंच गई थी। तत्कालीन समय में कार्रवाई की गाज भी जिम्मेदार पर न गिर किसी और को बली का बकरा बना दिया गया था।
खैर कुछ आमूल चूल परिवर्तन को छोड़ दें तो जो दशा पहले थी वहीं दशा आज भी देखने को मिलती है।
सर्वाधिक बुरी गत सुदूर ग्रामीण इलाकों में स्थित उन गौशालाओं की हालत है जहां जल्दी कोई झांकने नहीं जाता है। मिर्ज़ापुर जिले के लालगंज विकासखंड क्षेत्र में गोवंशों के लिए बने आश्रय स्थल अनदेखी के चलते कब्रगाह बनते जा रहे हैं। भूख प्यास से व्याकुल गोवंश घुट-घुटकर दम तोड़ते रहे हैं। लालगंज के सोनबरसा गांव में बने गौशाला के पास पथरीली जमीन में पड़े गोवंश के शव को कुत्ते नोचते हुए दिखाई दिए हैं।
क्रूरता की हद देखिए, जिम्मेदार मुलाजिम और कर्मचारी गोवंश की मौत छिपाने के लिए बिना पोस्टमार्टम कराए ही उनके शवों को गौशाला से कुछ दूरी पर फेंक चलते बने थे। हद तो यह है कि सवाल पूछने पर उन्हें बेसहारा गोवंश का शव बता कर साफ तौर से पल्ला झाड़ लिया जाता है। पूर्व में गौशालाओं में इन गौवंशों की स्थिति जानने के लिए लालगंज विकासखंड के सोनबरसा गांव की गौशाला सहित कई अन्य गौशालाओं की पड़ताल की गई तो क्रूरता की हदें पार होती नजर आई थीं।
गौशाला के पास गोवंश का शव पड़ा हुआ था जिस कुत्ते नोच रहे थे। पूछे जाने पर बताया गया यहां पर पंजीकृत 287 गोवंश है। जबकि कई ऐसे थे, जो टैग के बिना गौशाला के आसपास घूम रहे हैं। यहां के स्टोर में कुछ मात्रा में भूसा पड़ा हुआ मिला जो मौजूदा गोवंशों की संख्या के सापेक्ष कम ही था। ग्राम प्रधान व अफसर की इसी लचर कार्यशैली और गोशाला के प्रति उदासीन रवैये की वजह से आए दिन मौसम की मार और भूख प्यास से तड़प कर दम तोड़ते रहे हैं।
आलम यह रहा है कि गोवंशों की मौत को छुपाने के लिए उनके कान से टैग नोच कर उनके शव बिना पोस्टमार्टम के कुछ दूरी पर फेंक दिए गए। जिन्हें कुत्ते नोचते नजर आए थे। ग्रामीणों की दबी जुबान शिकायत रही कि “गोवंशों को पेट भर चारा नहीं मिल पा रहा है। गौशाला में बनाए गए चरनी कम हैं जिसकी वजह से गोवंश चारा खाने के लिए आपस में लड़कर घायल हो जाते हैं।
मिर्ज़ापुर के लालगंज विकासखंड में कुल चार गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं। जिसमें सोनबरसा में 287, उसरी खमरिया में 250, बामी में 431 एवं बरकछ में 100 गोवंश पंजीकृत रखे गए हैं। जिनके स्वास्थ्य के निरंतर निरीक्षण का दावा किया जाता है। पशुधन प्रसार अधिकारी ने बताया कि सभी गौशालाओं में प्रतिदिन गोवंशों के स्वास्थ्य की देखभाल की जाती है। लालगंज तहसील क्षेत्र के गोवंश आश्रय स्थल टीन सेड के बने हुए हैं और उसके नीचे रह रहे गोवंश धूप और गर्मी में हांफ रहे होते हैं। वह भी तब जब गोवंश पर प्रतिदिन 20 हजार से 18 हजार तक का खर्च किया जा रहा है।
संख्या के आधार पर गोवंश आश्रय स्थल का खर्च अलग-अलग निश्चित है। लालगंज व हलिया विकास खंड क्षेत्रों में अलग-अलग गोवंश आश्रय स्थल बनाया गया है। जिसमें लालगंज में 4 और हलिया में 9 गौ आश्रय स्थल बनाए गए हैं। किसी भी गौ आश्रय स्थल में संख्या का अभाव नहीं है जिसके कारण प्रत्येक गोवंश आश्रय स्थल पर प्रतिदिन संख्या के अनुपात पर भारी भरकम राशि खर्च किया जा रहा है।
इसमें एक दिन का खर्च बामी गांव स्थित गौशाला में 23 हजार 5 सौ, उसरी खम्हरिया में 13 हजार 3 सौ, बरकत में 18 हजार 8 सौ, सोनवर्षा 20 हजार हो रहा है। यदि माह भर का जोड़ दिया जाए तो लाखों रुपए खर्च होने के बाद भी बदइंतजामी के दौर से गोवंश गुजर रहे हैं। संख्या के दृष्टिकोण से बामी में 470 गोवंश, उसरी खमरिया में 266 गोवंश सोनबरसा में 397 गोवंश बरकछ में 376 गोवंश लालगंज विकासखंड में मौजूद है। इसी प्रकार हलिया में नौ गोवंश आश्रय स्थल हैं। जिसमें गौरवा में 344 , बरया में 346, उमरिया में 383, गोर्की में 277, हथेड़ा में 177, हलिया में 339, सुबांव कला में 225, गलरा में 330 महोगढ़ी में 331 गोवंश मौजूद है।
कहीं कम तो कहीं क्षमता से ज्यादा गौवंश
गौशाला कर्मचारियों का कहना है कि कहीं कहीं क्षमता से ज्यादा गौवंश होना भी मुश्किलें खड़ा किए जा रहे हैं। बीते महीने लालगंज खंड विकास अधिकारी हरिओम गुप्ता ने क्षेत्र के ग्राम बामी में स्थित गोशाला का सुबह-सुबह औचक निरीक्षण किया था। उन्होंने मवेशियों की संख्या, भूसा, स्टॉक सहित चारे-पानी की व्यवस्थाओं को परखा। गोशाला में सरंक्षित मवेशियों के लिए हरा चारा का प्रबंध करने का भी निर्देश दिया।
बामी गोशाला की निगरानी के लिए मौजूद चौकीदारों व चरवाहों से बात की। उन्हें जरूरी निर्देश दिए। उन्होंने प्रधान व सचिव से कहा कि “गोशाला का नियमित निरीक्षण करें। ऐसा न करने पर कार्रवाई की जाएगी। मवेशियों के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण के लिए पशु चिकित्साधिकारी को निर्देश दिए।” निरीक्षण के दौरान बताया गया कि बामी गोशाला में कुल 470 गोवंश संरक्षित है। ढाई सौ गोवंश की क्षमता वाले इस गौशाला में लगभग पांच सौ गोवंश रखे गए हैं। जिससे कमजोर हो चुके मवेशियों के लिए काफी ध्यान रखना पड़ रहा है।
उन्होंने बताया की सुबह के समय गौशाला के मवेशियों को चराए जाने के लिए गौशाला से बाहर निकाला जाता है। जिन्हें पुनः गौशाला में लाया जाता है।
आजमगढ़ में संरक्षित गोवंशों की मौत पर डीएम की जांच में उजागर हुई थी लापरवाही
आजमगढ़ जिलाधिकारी विशाल भारद्वाज ने जुलाई महीने में जिले के विकास खण्ड मेंहनगर की ग्राम पंचायत कम्हरिया में संचालित अस्थायी गोआश्रय स्थल कम्हरिया में संरक्षित गोवंशों में से 05 गोवंश की मौत होने पर मामला संज्ञान में आने पर उपायुक्त श्रम रोजगार राम उदरेज यादव एवं प्रभारी मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. अनिल कुमार को तत्काल मौके पर जाकर संयुक्त रूप से जांच कर आख्या उपलब्ध कराये जाने हेतु निर्देशित किया था।
अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से मौके पर पहुंचकर की गयी जांच कार्यवाही के पश्चात क्षेत्रीय पशु चिकित्साधिकारी से लिये गये बयान के अनुसार दो दिनों के अंतराल में 3 गोवंश तथा 2 गोवंश मौत होने की जानकारी दी गई थी। जिनके मृत्यु का कारण गौशाला में समुचित रख रखाव का अभाव एवं अधिक उम्र होने के साथ-साथ कमजोर स्थिति में रहने के कारण गोवंशों की मृत्यु होने की प्रथमदृष्टया पुष्टि की गयी थी।
जांच के दौरान यह तथ्य भी प्रकाश में आया कि मृतक गोवंशों के शव निस्तारण में अत्यधिक विलम्ब किया गया है। जांच प्रक्रिया के अन्तर्गत यह तथ्य विशेष रूप प्रकाश में आया कि ग्राम पंचायत कम्हरिया में कार्यरत सचिव, ग्राम विकास अधिकारी विशाल चन्द्रा द्वारा अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल में संरक्षित गोवंशों की देख-रेख में घोर लापरवाही बरती गयी है, एवं प्रधान ग्राम पंचायत श्रीमती सोनिया, ग्राम पंचायत कम्हरिया द्वारा भी अपने पदीय दायित्वों के अधीन मृत गोवंशों के ससमय शवों के निस्तारण की कार्यवाही न कराये जाने तथा उनके सुचारू उपचार एवं स्वास्थ्य परीक्षण में लापरवाही बरते जाने की प्रथमदृष्टया पुष्टि की गयी।
इसके अतिरिक्त मामले में क्षेत्रीय उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ अनिल कुमार राय एवं अजीत कुमार यादव पशुधन प्रसार अधिकारी जिनके द्वारा नियमित रूप से अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल कम्हरिया में संरक्षित गोवंशों के स्वास्थ्य परीक्षण आदि की कार्यवाही में भी निश्चित रूप से घोर लापरवाही बरते जाने का तथ्य जांच अधिकारीद्वय द्वारा प्रकाश में लाया गया है। प्रकरण में खण्ड विकास अधिकारी मेंहनगर श्वेतांक सिंह, जिनके पास विकास खण्ड मेंहनगर के साथ-साथ तरवां का भी प्रभार है, के शिथिल पर्यवेक्षण के लिये उत्तरदायित्व का निर्धारण किये जाने की संस्तुति की गयी है।
प्रकरण में जांच अधिकारीद्वय द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त आख्या के आधार पर प्रथमदृष्ट्या दोषी पाये गये। इस प्रकार से देखा जाए तो आजमगढ़ जिले के जैसी स्थिति अन्य जिलों की भी कमोबेश बनी हुई है, लेकिन सच पर पर्दा डालने की गरज से सच्चाई से मुंह छुपा गुमराह करने की युक्ति को आगे बढ़ाया जाता है।
नाकामियों पर डालते आए झूठ-दर-झूठ का पर्दा
योगी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट अस्थाई गौशालाओं की हकीकत को झुठलाकर खुद सरकारी मुलाजिम ही सरकार को गुमराह करते हुए अंधेरे में रखते हुए आए हैं। जबकि यदि पूर्व की कमियों पर गंभीरता से विचार करते हुए उसे दूर करने का कार्य किया जाता तो इनके संरक्षण के साथ ही साथ नाकामियों पर भी काफी हद तक नियंत्रण लगाया जा सकता था। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में डीएम की जांच में गौशाला की लापरवाही उजागर होने के साथ संरक्षित गौवंश की मौत का मामला सामने आने के बाद यहां तो कार्रवाई हो गई।
जबकि सुल्तानपुर, जौनपुर, मिर्ज़ापुर, अमेठी, प्रतापगढ़ इत्यादि सहित कई अन्य जिलों में सच्चाई उजागर करने वालों पर ही कार्रवाई कर दी गई है। यह इसलिए ताकि कोई गौशालाओं की हकीकत को पर्दे से बाहर न लाने पाए।
मिर्ज़ापुर के समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष देवी प्रसाद चौधरी तंज कसते हुए कहते हैं “इस सरकार ने गौशालाओं के नाम पर भी भ्रष्टाचार किया जा रहा है। गौशालाओं में भूख से बेदम गौवंशों के हाड़ (हड्डियां) उनकी दशा बताते हैं कि वे कितने गौशालाओं में खुशहाल हैं।”
गौशाला में सफाई का अभाव, चारों तरफ गोबर ही गोबर
अस्थाई गौ आश्रय स्थल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा है। लेकिन सरकार और अधिकारी चाहे लाख दावे करें, गौ-शालाओं में अव्यवस्था और भ्रष्ट्राचार चरम पर है, यहां रह रहे गौ-वंशों की हालत दयनीय है। यह किसी एक गौशाला की दास्तान नहीं है बल्कि उन सभी गौशालाओं की है, जो या तो ज़िला मुख्यालय से दूर हैं या जहां अधिकारी जाना नहीं चाहते हैं।
जौनपुर के केराकत तहसील क्षेत्र अंतर्गत हुरहुरी गांव में सड़क किनारे जौनपुर-गाजीपुर मार्ग पर गौशाला की स्थिति सड़क से ही छलक पड़ती है। दूर से ही गोबर और गंदगी का आलम नजर आता है। यहां संरक्षित गौ भी मरणासन्न अवस्था में दिखाई दे जाते हैं। साफ सफाई व्यवस्था के नाम पर पूरे गौशाला परिसर में फैले गोबर साफ-सफाई व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं।
आलम यह है कि जहां नजर घुमाएं गोबर ही गोबर नजर आ रहा है। गोबर के बीच इधर-उधर बेदम मरणासन्न गौवंश तड़प रहे हैं। गौ संरक्षण में लंबे समय से लगे गौ सेवक राज माहेश्वरी बड़े ही बेबाकी से कहते हैं “गौ संरक्षण अभियान योगी सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्य है, लेकिन इस अभियान को पलीता उन्हीं के ही अपने लोग और उनके सरकारी मुलाजिम लगाने का काम कर रहे हैं।”
राज माहेश्वरी हाल के दिनों में और पूर्व के वर्षों में वाराणसी, मिर्ज़ापुर, जौनपुर, सुल्तानपुर, भदोही, प्रयागराज सहित पूर्वांचल के जनपदों में दम तोड़ने वाले गौवंशो और गौशालाओं की उजागर हुई हकीकत पर चर्चा करते हुए कहते हैं आखिरकार सच्चाई से मुंह फेर क्यों इसे झुठलाया जाता है?
वह बरसात के दौरान गौ आश्रय स्थलों की हुई दुर्गति और बेदम पड़े गौवंशों की हकीकत से रूबरू कराते हुए साफ शब्दों में कहते हैं कि यदि गौशाला में गौवंश को भरपूर संरक्षण मिल रहा है तो सड़कों पर इनकी संख्या कैसे बढ़ रही है? जाहिर सी बात है कि कहीं न कहीं इसमें झोल है।
(वाराणसी से संतोष देव गिरि की ग्राउंड रिपोर्ट)