ग्राउंड रिपोर्ट: आदिवासियों के खपरैल घर को तहस-नहस करते बंदर, पक्के घर का सपना अधूरा

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नौगढ़। चंदौली जिले के नौगढ़ तहसील के कई गांवों में ग्रामीण आदिवासी पक्के छत की बाट दशकों से जोह रहे हैं। तब से लेकर अब तक कई बार आवेदन भी कर चुके हैं, लेकिन उनके पक्के घर का सपना अब भी अधूरा है। इनका मकान कच्चा और घास-फूस से बना है। पिछले कई महीनों से बंदरों ने इन मकानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है।

बंदरों द्वारा छतों के उजाड़ने और नागरिकों को जख्मी करने की यह समस्या हाल की नहीं, वर्षों पुरानी है। आदिवासी ग्रामीणों के मुताबिक कई बार वन विभाग के वाचर, कर्मचारी और अधिकारियों को सूचना देने के बाद भी बंदरों की अबतक धर-पकड़ नहीं की जा सकी है।

सुबह से लेकर शाम तक बंदर आदिवासियों के मिट्टी के कच्चे मकान के ऊपर लगे खपरैल, नरिया-पटरी, घास-फूस के छप्पर, प्लास्टिक व बोरी की तिरपाल को उखाड़ कर तहस-नहस कर दे रहे हैं।

खपरैल के उखड़ जाने से बारिश का पानी घर में घुसने, दीवार क्षतिग्रस्त होना और मजदूरी कर इकठ्ठा किये गए रुपए से प्लास्टिक की पन्नी या तिरपाल के फाड़-नोंच देने से ग्रामीण कई मुसीबतों में घिर गए हैं।

बंदरों को भगाने पर वे काटने को दौड़ते हैं। कई लोगों को काटकर जख्मी भी कर चुके हैं।

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में स्थित नक्सली हमला झेल चुका नौगढ़ क्षेत्र का जमसोती, लौवारी, नोनवट और पंडी गांव के सैकड़ों लोग आवास के इंतजार में हैं। ऐसे में इन दिनों जमसोती गांव बंदरों के आतंक से सहमा हुआ है।

मिट्टी के कच्चे मकान समूचे गांव का पुराना मर्ज है। इस पीड़ा को बंदरों ने कुरेद कर नासूर सा बना दिया है। पेश है नौगढ़ से लौटकर पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट:

“हम यहां पिछली कई पीढ़ियों से रह रहें है, हमारी बस्ती में पानी, जल निकासी की समस्या है। पिछले कई सालों से आवास योजना के लिए आवेदन पर आवेदन किये जा रहा हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हमलोगों का घर और समूचे जीवन की गतिविधियां जंगल और पहाड़ों से घिरी है”।

“हमारा जीवन मैदानों की अपेक्षा काफी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन अब तक पक्के मकान का सपना अधूरा ही है। कच्चे मकान में पन्नी-तिरपाल के सहारे परिवार के साथ दुःख-सुख काट ही रहे थे कि हाल के वर्षों में बंदरों ने जीना मुहाल कर रखा है। बारिश से बचने के लिए जैसे-तैसे पन्नी-तिरपाल लगाए”।

“अभी बारिश का सीजन पूरी तरह से गुजरा भी नहीं कि, बन्दर गांव में कच्चे मकान की छतों पर लगे खपरैल, पन्नी-तिरपाल को उखाड़ और फाड़ डाले हैं। यहां कई परेशानियां है और हम लोग मुसीबतों से घिरे हैं, लेकिन अपने हाल पर जी रहे हैं। यहां कोई हमलोगों की परेशानी सुनने-लिखने नहीं आता है।”

पक्के छत की बाट जोहते और बंदरों से परेशान बाबूलाल कोल

यह पीड़ा नौगढ़ क्षेत्र का जमसोती रहवासी बाबूलाल कोल की है। कई दशकों से जमसोती समेत अन्य गांवों का यही हाल है। खपरैल को छत पर होने चाहिए, उन्हें बंदरों के झुंड ने उखाड़ कर गांव की गलियों में फेंक दिया है।

लेकिन यह सिर्फ अकेले बाबूलाल की कहानी नहीं है, 100 से भी ज्यादा परिवार इस समस्या से जूझते हुए अपना जीवन बिता रहें हैं।

हकीकत और दावों में फर्क

गौरतलब है कि साल 2015 में जब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत की थी, तो लक्ष्य रखा था कि 2022 तक देश के हर गरीब परिवार के पास एक पक्का घर होगा।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य था- कच्चे, जर्जर घरों और झुग्गी-झोपड़ी से देश को मुक्त बनाना। योगी सरकार मानती है कि इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने और गरीबों को घर देने में उनका उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।

लेकिन राज्य सरकार दावे कुछ भी कहें, लेकिन तस्वीर यह है कि अभी भी बहुतेरे गरीब परिवारों को एक पक्की छत का इंतजार है।

भीग जाता है गृहस्थी का सारा सामान

शिवकुमारी कोल अपने पति सजीवन के साथ कच्चे मरम्मत में जुटी हैं। सजीवन मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण करते हैं। घर की मरम्मत के लिए वह आज दिहाड़ी पर नहीं जा सके हैं।

पति के साथ घर के मरम्मत में जुटीं शिवकुमारी

शिवकुमारी “जनचौक” को बताती हैं “बारिश में गिरने-ढहने के बाद अब लगता है कि बंदर हमलोगों के टूटे-फूटे कच्चे घर को नहीं छोड़ेंगे। साफ पानी की समस्या, जंगली जानवरों का डर, गर्मी के दिनों में चुआड़ के पानी से गुजारा करना पड़ता है”।

“अब बन्दर छत की खपरैल को उखाड़ कर फेंक दे रहे हैं। इससे घर में बारिश का पानी गिरता है और गृहस्थी का सारा सामान भीग जाता है। कपड़े, अनाज तो भीगकर ख़राब होता ही है। साथ ही मिटटी की जर्जर छत और दीवार के ढहने का खतरा भी बना रहा है।

गांव में कई बार बारिश में अचानक भरभरा कर दीवार और मकान के गिरने से मवेशी और लोग घायल हो चुके हैं। वन विभाग से बंदरों के पकड़ने और जिलाधिकारी साहब से आवास योजना का लाभ दिलाने की मेरी अपील है।”

पन्‍नी से टपकता है पानी

पिंटू कहते हैं कि “तेज हवा और बारिश होने पर पन्नी-तिरपाल भी काम नहीं करती है। इससे टपकने वाली पानी की बूंदे काफी परेशान करती हैं। कई वर्ष से आवास की आस मैं जिम्मेदारों की चौखट चूम चुका हूं, लेकिन मुझे अबतक प्रधानमंत्री आवास आवंटित नहीं किया जा सका है।”

गरीबों की यह पीड़ा तो मात्र बानगी भर है। नौगढ़ तहसील क्षेत्र के हर गांव में पात्र गरीबों की भरमार है, लेकिन उन तक सरकार की जनकल्याणकारी योजना पात्र आवेदकों के अनुपात में नहीं पहुंच पा रही हैं।

ग्रामीणों के कच्चे मकान की छत से बंदरों द्वारा उखाड़ कर फेंकी गई खपरैल

आदिवासी परिवार की बढ़ रही चुनौतियां

कई ग्रामीणों का कहना है कि उनके बाप-दादा को आवास योजना में 30-35 हजार रुपए मिले थे, कई दशक पहले। इस राशि से कुछ ने आधे-अधूरे आवास बनाये, लेकिन कइयों के रुपए रिश्वत और कमीशन देने में उठ गए।

लिहाजा, जो थोड़े-बहुत रुपए बचे उससे मकान नहीं बन सका। बहरहाल, कडा़के की धूप व बारिश का कहर बढ़ने के साथ ही ये ऐसे परिवार के बच्चे व बुजुर्गों के लिए परेशानी बढ़ रही है।

परलोक सिधार गए कई बुजुर्ग

समय के साथ विधायक तथा सांसद भी बदलते रहे और सरकार भी बदली। नहीं बदली तो परिवार की किस्मत। देश के पिछड़े जनपद में शामिल चंदौली जिले के कई पात्र आवास के इंतजार में अपने आधे से अधिक उम्र में ही कितने बुजुर्ग भी परलोक सिधार गए।

कहीं आग न लग जाए

खारा देवी के सिर पर के ऊपर छत पर तिरपाल और घास-फूस का छप्पर है। झुग्गी में रहनी की पीड़ा “जनचौक” साथ साझा करते हुए वह बताती हैं कि “ऐसा भी कोई घर होता है। बारिश और तूफ़ान में उड़ने-ढहने का डर तो वहीं गर्मी के दिनों में अगलगी की आशंका सदैव बनी रहती है”।

“घर में पर्व-त्योहार शुरू होते ही उनके बच्चों का भी मन करता है कि वो अपना घर सजाएं, साफ़-सफाई करें, दिया जलाएं। लेकिन मिट्टी व झुग्गी-झोपड़ी के ऊपर कैसे दीपक-लाइट जलाएं। परिवार को बस यही डर लगा रहता है कि कहीं आग न लग जाए, अन्यथा, यह भी आशियाना तहस-नहस हो जाएगा”।

अपनी झुग्गी के पास खारा देवी और बच्चा

आवास योजना के आंकड़े

जानकारी के अनुसार चंदौली जिले में वर्ष 2016 से अगस्त 2024 तक तकरीबन 30 हजार लोगों को योजना का लाभ मिल चुका है। इसमें मोटर चालित तीन\चार पहिया वाहन, यंत्रीकृत तीन\चार पहिया कृषि उपकरण, 50 हजार या इससे अधिक की क्रेडिट सीमा वाला किसान शामिल नहीं है।

कर्मचारी ही कर रहे सर्वेक्षण

मसलन, विभागीय कर्मचारियों का कहना है कि, सर्वेक्षण के दौरान यदि कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो जनपद स्तर पर विकास भवन में बनाए गए कंट्रोल रूम में फोन नंबर 05412-260001 पर शिकायत कर सकते हैं।

ग्राम पंचायत सचिव व बीडीओ को जो भी प्रार्थना पत्र प्राप्त होंगे, उसकी अलग पत्रावली बनाकर रखी जाएगी। सर्वेक्षण का कार्य केवल सरकारी कर्मचारी ही कर रहे हैं।

आवास योजना के इंतजार में एक गरीब आदमी

चंदौली मुख्य विकास अधिकारी एसएन श्रीवास्तव के अनुसार “प्रधानमंत्री आवास के लिए सर्वे कराया जा रहा है, ताकि पात्र लाभार्थियों का चयन किया जा सके। ग्राम पंचायत स्तर पर अधिकारी सर्वे कर रहे हैं।”

विभाग कर रहा सर्वेक्षण

जनपद चंदौली में विकासखंड स्तर पर बैठकों का आयोजन कर ग्राम प्रधान व क्षेत्र पंचायत सदस्यों को जानकारी दी जा रही है, ताकि कोई भी गरीब व्यक्ति आवास से वंचित न रहने पाए।

वहीं, सर्वे के लिए कर्मचारियों की की टीमें लगाई गई हैं। अब 15 हजार रुपये हर महीने कमाने वाले भी इस योजना के तहत आवास के हकदार होंगे। लाभार्थियों के चयन के लिए गांवों पंचायत सचिवों की ओर से बैठक कर ग्रामीणों को पात्रता जानकारी दी जाएगी।

आदिवासी होकर भी आदिवासी नहीं

चंदौली जनपद और सोनभद्र के जंगलों में कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा ट्राइब्स का निवास है।

साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना। इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइया, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया। नौगढ़ इलाके को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध किया गया है, इस वजह से इलाके का विकास, जीवन और भी पिछड़ गया।

जबकि समीप के सोनभद्र व बिहार राज्य में खरवार आदि जनजातियां, जन-जाति के रूप में सूचीबद्ध हैं। चंदौली के आदिवासी, आदिवासी होकर भी आदिवासी नहीं हैं। अनुसूचित जाति में गिने जाने की वजह से इनको वन अधिकार कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

(पवन कुमार मौर्य चंदौली\वाराणसी के पत्रकार हैं )

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