सारंगढ। छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर केराचक्का गांव आज भी कई प्रकार की मूलभूत सुविधाओं से वंचित नज़र आता है। गारडीह ग्राम पंचायत से महज़ दो किमी दूर स्थित इस गांव में 95 प्रतिशत आदिवासी समुदाय निवास करता है।
जिसमें खैरवार और बरिहा समुदायों की बहुलता है। यहां लगभग 80 परिवार रहते हैं। गांव तक पहुंचने के लिए एक टूटीृृ-फूटी कच्ची सड़क से होकर गुज़रना पड़ता है। बारिश के दिनों में कीचड़ से लबालब होने के कारण इस सड़क से होकर गुजरना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
इस दौरान न केवल गांव में आवागमन ठप्प हो जाता है बल्कि बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित होती है। ख़राब सड़क के कारण वर्षा के दिनों में बच्चों का स्कूल जाना आना रुक जाता है।

इस संबंध में गांव में संचालित शासकीय प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक सुनित लाल चौहान बताते हैं कि इस स्कूल में 23 बच्चों का नामांकन है। लेकिन वर्षा के दिनों में इक्का-दुक्का बच्चे ही पढ़ने आते हैं। गांव का रास्ता इतना खराब है कि बच्चों को स्कूल आने-जाने में बहुत परेशानी होती है।
वह कहते हैं कि वर्षा के दिनों में जब यहां की सड़क आम आदमी के चलने लायक नहीं होती है, तो बच्चों से इससे गुजर कर स्कूल आने की आशा कैसे की जा सकती है? उनके अनुसार इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव किशोरियों की शिक्षा पर पड़ता है। अधिकतर अभिभावक वर्षा के दिनों में उन्हें स्कूल नहीं भेजते हैं।
वह बताते हैं कि इस गांव से लोग रोजगार की तलाश में परिवार सहित छत्तीसगढ़ के अन्य ज़िलों और दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। इसलिए बच्चे स्कूल में नामांकित तो रहते है, लेकिन नियमित रूप से स्कूल नहीं आ पाते हैं।
स्कूल के बगल में रहने वाले 35 वर्षीय गोकुल बताते हैं कि इस स्कूल में एक ही शिक्षक की नियुक्ति है। जिनके पास पढ़ाने से अधिक ऑफिस के कागज़ी काम को पूरा करने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी भी होती है। जिसके कारण वह पूरा समय बच्चों को दे नहीं पाते हैं।
वहीं रोज़गार की तलाश में परिवार सहित पलायन, बच्चों को शिक्षा से दूर कर देता है। आर्थिक समस्या के कारण परिवार भी शिक्षा के महत्व से दूर हो जाता है।

केराचक्का गांव में ही ग्राम पंचायत गारडीह भवन स्थापित है। स्थानीय निवासी बद्री प्रसाद कहते हैं कि पंचायत चुनाव में यह गांव महिला आरक्षित सीट रही। जिस पर गारडीह गांव की श्यामबाई चौहान को निर्विरोध चुना गया था। गांव में समस्याओं पर बात करते हुए वह कहते हैं कि लोगों के पास रोज़गार की कमी होने से उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर है।
ग्राम पंचायत में भी महीने में एक बार राशन डीलर आता है उस दिन गांव वालों को राशन मिलता है। ग्राम पंचायत की बैठक भी काफी कम होती है। जिसके कारण गांव की कई समस्याओं का समाधान समय पर पूरा नहीं हो पाता है।
अधिकतर समय ग्राम पंचायत बंद होने के कारण लोगों के बहुत से काम समय पर पूरे नहीं हो पाते हैं। जिससे गांव वालों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
बद्री प्रसाद कहते हैं कि जिला मुख्यालय से दूर दराज़ होने के कारण यह गांव विकास के दौड़ में बहुत पीछे छूट गया है। विकास की सबसे प्रमुख कड़ी सड़क होती है, जिसका केराचक्का गांव में अभाव नज़र आता है।
वह कहते हैं कि केवल केराचक्का गांव ही नहीं बल्कि राज्य के महासमुंद, सारगंढ़-बिलाईगढ़ और बलोदा बाजार के कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी पक्की सड़कें नहीं होने के कारण ये गांव विकास में बहुत पीछे रह गए हैं।
स्थानीय समाजसेवी रामेश्वर प्रसाद कुर्रे कहते हैं कि पथरीली भूमि होने के कारण यहां खेती का विकल्प बहुत सीमित है। लोगों के पास ज़मीन के छोटे टुकड़े हैं। जिस पर इतनी फसल नहीं उगती कि उससे होने वाले अनाज से वर्ष भर उनके परिवार का भरण पोषण हो सके।
इसलिए जब खेती का समय नहीं होता है तो यहां का अधिकतर परिवार रोज़गार के अन्य विकल्प तलाश करने के लिए पलायन कर जाता है। इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है।
कुर्रे बताते हैं कि इस गांव का ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां महिलाएं या किशोरियां कुपोषण की शिकार न हों। घर की कमज़ोर आर्थिक स्थिति से सबसे पहले महिलाएं और किशोरियां प्रभावित होती हैं।
उन्हें उचित पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है। हालांकि आंगनबाड़ी केंद्र से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार के रूप में अनाज तो मिल जाता है। लेकिन अन्य महिलाओं को यह उपलब्ध नहीं हो पाता है।

इस संबंध में केराचक्का गांव की सरपंच श्यामबाई चौहान से बात करने का प्रयास किया गया, तो पता चला कि पंचायत संबंधी सारे काम उनके पति चन्दराम चौहान करते हैं।
चन्दराम चौहान बताते है कि पंचायत में विकास के लिए पैसा ही नहीं आता है। जिसके कारण केराचक्का का विकास बहुत कम हुआ है। ग्राम पंचायत गारडीह में स्थानीय रोजगार और आदिवासी समुदाय के लोगों के पास खेती भी बहुत कम होने के कारण यहां से हर साल अलग-अलग जगह पर लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा परिवार मज़दूरी के लिए प्रवास कर जाता है।
इस गांव से ज्यादातर परिवार ईंट-भट्टों पर काम करने के लिए अलग-अलग राज्यों में जाते हैं। मनरेगा के संबंध में चन्दराम कहते हैं कि अभी यहां पर दो महीनों से ज्यादा समय से मनरेगा का काम बंद है, जबकि इन्हीं माह मज़दूर वापस गांव लौटते हैं।
पंचायत की ओर से मनरेगा का काम शुरू करवाने के प्रयास करवाये जा रहे हैं, ताकि यहां के ज़रूरतमंद परिवारों को रोज़गार उपलब्ध हो सके।
पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2024-25 से 2028-29 तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत, गांव में सड़कों के विकास के लिए करीब 70 हजार करोड़ रुपए को मंजूरी दी है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी 2024-25 के अपने बजट में गांव में सड़कों के सुधार के लिए 17529 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।
यह पिछले वित्त वर्ष से सात हजार करोड़ रुपए अधिक है। इससे राज्य के सभी गांवों की सड़कों की हालत को सुधारने पर जोर दिया जाएगा। गांव में सड़कों की हालत सुधरने से इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है।
जिससे रोजगार के अवसर खुलने और पलायन को रोकने में मदद मिल सकती है। इससे न केवल केराचक्का बल्कि इसके जैसे अन्य गांवों के विकास को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
(छत्तीसगढ़ के सारगंढ-बिलाईगढ़ से छोटू सिंह रावत की ग्राउंड रिपोर्ट)
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