Saturday, April 20, 2024

तीन साल हेल्थ इंश्योरेंस के पैसे भरे, बीमारी में एचडीएफसी अर्गो ने दिखा दिया ठेंगा

दो साल पहले जौनपुर निवासी शैल कुमारी ने भाई को राखी बांधी तो भाई ने राखी बंधाई में बहन को ‘अपोलो म्युनिच’ का हेल्थ इंश्योरेंस दे दिया। तब से भाई ने दो बार उस हेल्थ इंश्योरेंस का रिन्यूअल भी करवाया। वहीं इस साल अपोलो म्युनिच को एचडीएफसी अर्गो ने खरीद लिया। इस तरह शैल कुमारी अपोलो म्युनिच से एचडीएफसी अर्गो की कस्टमर बन गईं। पिछले तीन साल में शैल कुमारी कभी बीमार नहीं पड़ीं तो उन्हें उस हेल्थ इंश्योरेंस की ज़रूरत ही न पड़ी, लेकिन इस साल कोरोना-काल में जब वो बीमार पड़ गईं तो उन्होंने कर्ज लेकर अपना इलाज करवाया। ये सोचकर कि भाई की वो राखी बंधाई हेल्थ इंश्योरेंस उनके मुसीबत में काम आएगी, लेकिन जब उन्होंने अपने हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी की ओर सहायता के लिए देखा तो कंपनी ने उन्हें ठेंगा दिखा दिया।

शैल कुमारी रोते हुए बताती हैं कि कंपनी वालों ने उन्हें बर्बाद कर दिया। उन्होंने कहा, “हर साल साढ़े सात हजार रुपये मेरा भाई कंपनी की जेब में भरता है और कंपनी ने गाढ़े वक्त में हमें ठेंगा दिया।”

शैल कुमारी तमाम अस्पतालों के पर्चे दिखाते हुए बताती हैं कि पेट के ऊपर एक छोटी सी फुंसी हो गई और उसी फुंसी की वजह से पूरे पेट में अचानक असहनीय दर्द हुआ तो 11 जुलाई को वो बेलवार स्थित सामुदायिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र दवा लेने गईं। दो खुराक दवा देने के साथ ही उनसे कहा गया कि आराम न मिले तो किसी प्राइवेट अस्पताल में दिखा लो। अगले दिन यानी 12 जुलाई को शैल कुमारी सुजानगंज स्थित ‘सुशीला हॉस्पिटल’ में डॉ. शुचिता गुप्ता को दिखाकर दवा ले आईं। डॉ. शुचिता गुप्ता ने अल्ट्रासाउंड करवाया और दवाई दी।

शैल कुमारी आगे बताती हैं, “दो दिन दवाई खाई, लेकिन आराम मिलने के बजाय तबिअत और बिगड़ती चली गई। 15 जुलाई की रात तबिअत ज़्यादा खराब हो गई तो पति आनंद, देवरानी और देवर मुझे अचेतावस्था में निजी वाहन से लेकर इलाहाबाद आए। राते के 10-11 बजे कई निजी अस्पताल के दरवाजे पर गए, लेकिन सबने कोरोना टेस्ट का सर्टिफिकेट मांगकर लौटा दिया। कोरोना काल में रात में कोई लेने को तैयार नहीं था। तब इलाहाबाद के धोबीघाट स्थित अमन अस्पताल गई। वहां मुझे रात में एक बजे भर्ती किया गया। तमाम जांच हुई। डॉक्टर एमआई ख़ान ने मेरे भाई और पति को बताया कि ऑपरेशन करना पड़ेगा। पेट में इंफेक्शन हो गया है। पस भर गया है। अतः ऑपरेशन करके पस बाहर निकालना पड़ेगा।”

शैल कुमारी के पति आनंद कुमार बताते हैं, “16 जुलाई को लगभग पांच घंटे का ऑपरेशन हुआ। डॉक्टर ने मुझसे कहा कि दिन में दो बार एंटी प्वाइजन इंजेक्शन देना पड़ेगा। इंजेक्शन महंगा है। अफोर्ड कर लोगे कि नहीं?”

आनंद कुमार बताते हैं कि मेरे पास उस समय कोई और चारा नहीं था। मेरे पास कोई ज़मीन जायदाद या प्रॉपर्टी नहीं है। मैं गरीब आदमी हूं। बीबी के गहने गिरवी रखे, ब्याज पर पैसे लिए, दोस्तों से उधार लिया, कुछ ससुराल पक्ष से मदद मिली। कुल मिलाकर अस्पताल में एक सप्ताह के इलाज का बिल आया 1 लाख 19 हजार रुपये।

कैशलेस पेमेंट के सवाल पर शैल कुमारी के भाई प्रवीण कुमार बताते हैं, “हमने अस्पताल मैनेजमेंट से बात की थी इस बाबत। पता चला कि अमन हॉस्पिटल का एचडीएफसी अर्गो के साथ कोई कांटैक्ट नहीं है। तो मैंने सोचा कि कैशलेस नहीं हो रहा न सही, बाद में रिइंबर्समेंट क्लेम से इलाज में खर्च हो रहे रुपये इंश्योरेंस कंपनी से मिल जाएंगे तो जिनसे उधार या ब्याज पर पैसा लिया जा रहा है, उन्हें चुका दिया जाएगा।”

प्रवीण कुमार बताते हैं कि हम अस्पताल से रिलीज होते ही रिइंबर्समेंट क्लेम के लिए सिविल लाइंस स्थित कंपनी के ब्रांच गए तो वहां कहा गया कि सब कुछ ऑनलाइन होगा। डॉक्युमेंट ऑनलाइन भेजिए। सभी डॉक्युमेंट, जिसमें अस्पताल का डिस्चार्ज कार्ड, मेडिकल बिल, इलाज करने वाले डॉक्टर का लेटर हेड पर इलाज का सर्टिफिकेशन, अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट, मेडिकेशन/ ट्रीटमेंट चार्ट, वाइटल साइन चार्ट, डॉक्टर्स प्रोग्रेस नोट्स सब अटैच करके भेज दिया। कंपनी की ओर से क्लेम नंबर- RR-HS20-1199643 जेनरेट कर दिया गया।

इंश्योरेंस कंपनी के लोग 3 सितंबर को वेरीफिकेशन के लिए घर आए। मरीज से बात की, सारे मेडिकल डॉक्युमेंट्स देखे। तस्वीरें खींचकर ले गए। जाते-जाते वेरीफिकेशन करने वाले लोगों ने कहा भी कि आपका केस जेनुइन है, बहुत जल्द ही आपके क्लेम को मंजूरी मिल जाएगी। फिर उनके कुछ लोग अस्पताल भी गए, लेकिन पहले कोरोना के नाम पर लंबे समय तक प्रॉसेसिंग का झांसा देकर कंपनी ने टरकाया फिर 2 अक्तूबर को कंपनी का ईमेल आया कि आपका क्लेम रिजेक्ट कर दिया है, कारण में बताया गया ‘मिसरिप्रेजेंटेशन ऑफ मटेरियल फैक्ट’।

हमने बहुत जानने की कोशिश की कि क्या फैक्ट गलत या झूठा था, लेकिन उन्होंने हमें कुछ भी डिटेल नहीं दी। हम कस्टमर केयर से लेकर इलाहाबाद सिविल लाइंस स्थित ऑफिस तक गए पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। न कोई डिटेल दिया गया कि क्यों हमारा बिल रद्द कर दिया गया। जबकि हमने उनके द्वारा मांगे गए हर एक कागज को जमा किया था।

इस बाबत जब हमने शैल कुमारी का इलाज करने वाले सर्जन डॉक्टर एमआई ख़ान से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने जौनपुर निवासी शैल कुमारी का ट्रीटमेंट किया था। जब वो अमन अस्पताल लाई गई थीं तो उसकी तबिअत बहुत ज़्यादा खराब थी। थोड़ा और लेट हो जाता तो जान बचानी मुश्किल हो जाती। डॉ. खान बताते हैं कि शैल कुमारी के पेट में बाईं तरफ नेकरिटाइजिंग फसाईटिस (Necrotising fasciitis) हो गया था।

डॉ. खान इंश्योरेंस कंपनी के वेरिफिकेशन के बाबत बताते हैं, “एचडीएफसी अर्गो से कुछ लोग आए थे। वो लोग, जिस कमरे में शैल कुमारी एडमिट थी उसकी तस्वीर तक खींचकर ले गए। पेमेंट से लेकर ट्रीटमेंट का सारा डॉक्युमेंट लिया। मुझसे मेरा मेडिकल सर्टिफिकेट मांगा, मेरी सर्टिफिकेट तक की फोटो मोबाइल में क्लिक करके ले गए।”

डॉ. खान से बात करने के बाद जब हमने गूगल पर Necrotising fasciitis सर्च किया तो पाया ये रेयर बैक्टीरियल इंफेक्शन की बीमारी है, जो शरीर में बहुत तेजी से फैलती है और मौत का कारण बनती है। इस बीमारी में मृत्यु दर 32.2 प्रतिशत है। ये बीमारी पेट के ऊतकों पर हमला करती है। ‘सेंटर फॉर जिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ की साइट पर साफ लिखा है कि इस बीमारी के इलाज के लिए एक्युरेट डायग्नोसिस, रैपिड एंटीबॉयोटिक ट्रीटमेंट और तत्काल सर्जरी बहुत ज़रूरी है। इन्फेक्शन को फैलने से रोकने के लिए।

वहीं जब हम एचडीएफसी अर्गो के सिविल लाइंस स्थित ऑफिस गए तो वहां हमें बताया गया कि वहां पर सिर्फ़ पॉलिसी से जुड़े मुद्दे देखे जाते हैं। क्लेम का काम दिल्ली ऑफिस से हैंडिल किया जाता है। जब हमने शैल कुमारी के क्लेम की डिटेल जाननी चाही तो हमसे कहा गया कि इसकी जानकारी उन लोगों के पास नहीं होती है।

वहीं कंपनी के सिविल लाइंस ब्रांच में बैठे कुछ उपभोक्ताओं ने बताया कि एक लाख के ऊपर जिनका भी बिल होता है, उनका पेमेंट करने में कंपनी ऐसे ही आनाकानी करती है, और फिर कोई न कोई बहाना बनाकर चलता कर देती है। रिइंबर्समेंट का केस लेकर आए एक एजेंट को वहां के ऑफिसर ने हमारे सामने ही कहा कि क्या कर रहे हो। कोरोना में पॉलिसी एक भी नहीं ला रहे, बस क्लेम लेकर चले आ रहे हो ऐसे कैसे काम चलेगा।       

जौनपुर निवासी आनंद शुक्ला मुंबई में सिरोया ज्वैलर्स में काम करते थे। 15 हजार रुपये मासिक के वेतन पर, लेकिन कोरोना महामारी में उन्हें भी व्यवस्था ने मार भगाया। तब से 10 महीने हो गए हैं वो सुजानगंज बेल्वार स्थित अपने घर पर बेरोजगारी के दिन काट रहे हैं। उन्होंने जिन-जिन लोगों से पैसा उधार लिया था वो सब अब तकाजा कर रहे हैं। शैल कुमारी आनंद शुक्ला के दो बच्चे हैं, बूढ़े मां-बाप हैं। आमदनी को कोई जरिया नहीं है और बीबी की बीमारी ने डेढ़ लाख का कर्ज़दार बना दिया है। ब्याज जोड़कर कर्ज़ दो लाख के करीब हो गया है।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं।)

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