साम्प्रदायिक राजनीति के विरोध में मानवाधिकार संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन

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रांची। सम्भल में स्थानीय अदालत ने न केवल 900 साल पुरानी शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताने वाले हिंदूवादी संगठनों के लोगों की याचिका को स्वीकार किया, बल्कि बगैर मुसलमानों के पक्ष को सुनवाई और अपील का मौका दिए, याचिका दर्ज होने के चंद घंटों में ही मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दे दिया।

इसके बाद 24 नवम्बर को भारी पुलिस फ़ोर्स के साथ सर्वेक्षण करने पहुंची टीम के साथ स्थानीय लोगों की नोकझोक हुई, जिसके बाद पुलिस द्वारा मुसलमानों पर व्यापक हिंसा की गई। पुलिसिया हिंसा में 5 युवक मारे गए और कई को गिरफ्तार किया गया।

गौरतलब है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 बना था। इस अधिनियम के अनुसार आज़ादी के समय (15 अगस्त 1947) देश में जिस भी धार्मिक स्थल में जिस भी धर्म अनुसार पूजा होती थी, वही यथास्थिति हमेशा रहेगी और उन्हें बदलने की किसी प्रकार की कोशिश नहीं की जाएगी।

लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में हिन्दुत्ववादी विचारधारा के लोगों व संगठनों ने देश के विभिन्न ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों के नीचे तथ्यों के विपरीत मंदिर खोजने की होड़ लगा दी है। पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 का उल्लंघन करते हुए ऐसे मुहिम की अनुमति देकर न्यायालय भी इस नफरती राजनीति का हिस्सा बन रहा है।

इस प्रताड़ना और नफ़रत की राजनीति के विरुद्ध पूरे देश के नागरिक संगठन एकजुट होकर 9-15 दिसम्बर 2024 के दौरान Fighting Hate Defending Democracy (नफ़रत से लड़ना, लोकतंत्र की रक्षा करना) अभियान चला रहे हैं।

इसी अभियान के तहत मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को झारखंड की राजधानी रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर अनेक नागरिक व मानवाधिकार संगठनों द्वारा एक रैली निकाल कर जोरदार प्रदर्शन किया गया और भाजपा सरकार द्वारा नदीम खान, मुहम्मद जुबैर समेत साम्प्रदायिकता उजागर करने वाले सभी कार्यकर्ताओं की प्रताड़ना का कड़ा विरोध किया गया।

साथ ही हिंदुत्ववादी संगठनों और लोगों द्वारा, भाजपा के समर्थन से देश को धर्म के नाम पर खोदने और नफ़रत व सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने का विरोध किया। इस राजनीतिक हथकंडे में संलिप्त पुलिस व्यवस्था व न्यायालय का भी विरोध किया गया।

प्रदर्शन के दौरान कहा गया कि लोकतांत्रिक तरीके से नफरत और सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ लड़ने वाले एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता नदीम खान और तथ्यान्वेषी मोहम्मद ज़ुबैर पर भाजपा सरकारों द्वारा फर्जी मामला दर्ज किया गया है।

इस अवसर पर बताया गया कि नदीम और APCR ने लिंचिंग, नफ़रती भाषणों, बुलडोजर राज और सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को उजागर करने तथा इनके पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ज़ुबैर ने मोदी सरकार के झूठे, नफरती एवं सांप्रदायिक प्रचार को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई है।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि एक ओर 29 नवम्बर को APCR ने उत्तर प्रदेश के सम्भल में मुसलमानों पर हुई पुलिसिया हिंसा के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायलय में याचिका दर्ज की और वहीं दूसरी और, मोदी सरकार की दिल्ली पुलिस ने 30 नवम्बर को नदीम और APCR के विरुद्ध एक फर्जी मामले में प्राथमिकी दर्ज कर गिरफ़्तारी की कोशिश की।

ज़ुबैर ने हिंसक हिंदुत्व नेता यति नरसिंहानंद के नफरती भाषण पर आपत्ति जताई, पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने उल्टा उन्हीं पर धार्मिक समूहों के बीच नफ़रत फैलाने और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कर दी है।

प्रदर्शन में उपस्थित लोगों ने कहा कि इन दोनों के मामले एवं उत्तर प्रदेश के सम्भल में मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की होड़ और मुसलमानों पर हुई हिंसा साफ़ रूप से दर्शाता है कि किस प्रकार भाजपा सरकारें देश के संविधान को दरकिनार कर हिन्दू राष्ट्र बनाने में लगी हैं और किस तरह पुलिस व न्यायालय इसमें हिस्सेदार बन रहे हैं।

प्रदर्शन में उपस्थित मानवाधिकार संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने INDIA गठबंधन से मांग की कि वे सड़क से संसद तक इस नफ़रत, साम्प्रदायिकता व दमन का विरोध करें। प्रदर्शनकारियों ने नदीम और ज़ुबैर पर दर्ज फर्जी प्राथमिकियां रद्द करने, नफ़रत की राजनीति और हिंसा बंद करने और सम्भल में मुसलमानों पर हुई हिंसा के दोषियों पर कड़ी कार्यवाई की मांग की।

मानवाधिकार संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को पूर्ण रूप से लागू किया जाये और धार्मिक स्थलों को खोदकर नए धार्मिक स्थल बनाने की कोशिश न की जाये। पुलिस, प्रशासन और न्यायालय अपनी संवैधानिक गरिमा का सम्मान करते हुए भाजपा और आरएसएस के हिंदुत्व अजेंडा का एक हिस्सा ना बने।

विरोध प्रदर्शन का आयोजन झारखंड जनाधिकार महासभा, APCR, बगाईचा, महिला उत्पीड़न विरोधी विकास समिति, वर्किंग पीपल एलायंस, नारी शक्ति क्लब, पीयूसीएल, साझा कदम और अन्य कई संगठनों द्वारा किया गया था।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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