झारखंड में दो क्षेत्रों मेडिकल व एजुकेशन हब में बजट प्रावधान की प्राथमिकता पहली शर्त हो

झारखंड की राजधानी रांची के कांके स्थित विश्व भवन के सभागार में कृषि एवं कृषि उत्पादन, खाद्य उपलब्धता, पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य, शहरी व ग्रामीण रोजगार तथा स्थानीय स्वशासन जैसे बुनियादी क्षेत्रों में सरकार के बजट में प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करने की यह गैर सरकारी पहल को लेकर आदिवासी बहुल राज्य झारखण्ड का आगामी वित्तीय वर्ष का बजट से जन अपेक्षाएं विषय पर परिचर्चा हेतु राज्य भर से सामाजिक संगठनों और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ जुटे।

उदघाटन सत्र को संबोधित करते हुए अर्थशास्त्र मामलों के जानकार डॉ. हरीश्वर दयाल ने जोर देकर कहा कि राज्य की आर्थिक सेहत के लिए सरकार को कर संग्रहण प्रणाली पर विशेष फोकस करना होगा। इसमें संघीय व्यवस्था में केंद्र सरकार को भी राज्यों के प्रति अपनी संविधानिक प्रतिबद्धता सुनिश्चित होगी। उदाहरण के लिए माइनिंग रॉयल्टी का दर झारखण्ड के लिए 2014  से नहीं बढाया गया है। इसके कारण राज्य को वृहत पैमाने पर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।

इसी प्रकार केंद्र सरकार जीएसटी के अलावे विभिन्न सेस और सरचार्ज के रूप में जो राशि केंद्र सरकार संग्रहण करती है, उसमें से राज्यों को कोई हिस्सेदारी नहीं मिलती है, जबकि एक बड़ी राशि बतौर सेस और सरचार्ज संग्रहण की जाती है। राज्य की जो मानव संसाधन नियुक्ति संस्थाएं हैं, जैसे जेपीएससी, झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग आदि, ये सारी संस्थाएं बेहद लचर हैं, जिसके कारण नियुक्ति सम्बन्धी प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती रही हैं। मानव संसाधनों के अभाव के कारण राज्य में कर संग्रहण प्रभावित हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बजट राशि समय पर सही तरीके से खर्च भी नहीं हो पाते हैं।

राज्य में दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बजट प्रावधान किये जाने की आवश्यकता है, पहला मेडिकल हब और दूसरा एजुकेशन हब। केरल के बाद झारखण्ड दूसरा ऐसा राज्य है जहां नर्सिंग के क्षेत्र में लड़कियां दाखिला लेना पसंद करती हैं। इसी प्रकार मेडिकल सुविधाएँ नहीं होने से राज्य की जनता इलाज के लिए दक्षिण के राज्य, दिल्ली और मुम्बई जाने को मजबूर है। इससे राज्य का पैसा बाहर दूसरे राज्यों को जा रहा है। यह राज्य की आर्थिक सेहत के लिए शुभ संकेत नहीं है। इसी तरह उच्च शिक्षा और कोचिंग के लिए यहां से बच्चे दूसरे राज्यों में जाते हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि इन दोनों क्षेत्रों में निवेश के लिए पर्याप्त बजट आवंटित करे।

परिचर्चा को संबोधित करते हुए विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति सह अर्थशास्त्री डॉ० रमेश शरण ने कहा कि 22 सालों में भी राज्य में वित्त आयोग का गठन नहीं होना अत्यंत चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि राज्य में कर संग्रहण कभी भी 70-76 फीसदी से ऊपर नहीं गया। इसके कारण सभी विभागों की योजनाएँ बुरी तरह प्रभावित होती हैं। झारखण्ड राज्य तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पर्यावरण संरक्षण में बेहत्तर प्रदर्शन किया है। अतः केंद्र से पर्यावरण टैक्स की मांग करनी चाहिए। दूसरी मांग राज्य सरकार से ये होनी चाहिए कि ग्राम सभाओं को पेसा नियमावली अधिसूचित करते हुए लघु खनिजों को उनके अधिकारों में शामिल करे।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार लगातार राज्य के 24 में से 22 अस्पिरेशन (ASPIRATION/ आकांक्षा)  जिला का ढिंढोरा पीटती है। यदि ये वास्तविक स्थिति है तो ऐसे जिलों के लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान किया जाना चाहिए।

झारखण्ड में पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं लेकिन सरकार इसके लिए कोई बजट प्रावधान नहीं करती। इस वजह से यह क्षेत्र प्राथमिकता से कोसों दूर है। राज्य में राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिबद्धता की सख्त जरुरत है।

उन्होंने सवाल किया कि यहां डीएमएफटी फण्ड के अनुश्रवण और प्लानिंग के लिए कौन जवाबदेह है? इसी तरह म्युनिसिपल कारपोरेशन और पंचायतों में रेवेन्यू श्रोतों की संभावनाओं को भी तलाशना चाहिए। ये संस्थाएं जितनी आर्थिक तौर से स्वायत्त होंगी राज्य पर उतना ही आर्थिक भार कम होगा। केरल की पंचायतें प्रत्येक वर्ष अपने पंचायत के खुद का बजट तैयार करती हैं। एक और महत्वपूर्ण बात है कि जिला स्तर पर कुल 32 विभाग मौजूद रहते हैं, सभी विभागों का जिला स्तर का बजट सार्वजनिक पोर्टल में और एक्सेल शीट में होनी चाहिए, न कि पीडीएफ फॉर्मेट में। इससे नियमित बजट ट्रेकिंग में सुविधा होगी और कोई भी संस्थान या जानकार सरकार को समय पर बजट विशलेषण कर सरकार को आगाह कर सकेंगे। 

सत्र का संचालन करते हुए भोजन का अधिकार अभियान के वरिष्ठ सदस्य बलराम ने कहा कि हमने अपने संविधान में और संविधान के अधीन बने केंद्र एवं राज्यों के कानूनों में जो प्रतिबद्धता की है, वो राज्य बजट में परिलक्षित होनी चाहिए। पंचायतों के विषय पर वर्षों से कार्य करने वाले अजित कुमार ने कहा कि विश्व के देशों ने मिलकर जो सतत विकास लक्ष्य तय किये हैं उन सभी 17 लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में राज्य का बजट कितना निकट है इसे भी ट्रैक किये जाने की जरुरत है।

कार्यशाला का आयोजन झारखण्ड सीएसओ फोरम द्वारा किया गया। सत्र के पहले दिन यह तय हुआ कि सभी फोकस मुद्दों पर प्रतिभागी समूहों में विभक्त होकर गहनता पूर्वक चर्चा निचोड़ बजट मांग प्रस्ताव सरकार को सौंपेंगे।

(विशद कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और रांची में रहते हैं।)

विशद कुमार
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