Wednesday, April 24, 2024

झारखंड विस चुनाव का पहला चरणः दलबदुलओं ने रोचक किया मुकाबला

झारखंड में 30 नवंबर को पहले चरण में 13 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। इसके तहत 28 नवंबर शाम तीन बजे प्रचार थम गया। प्रथम चरण में चतरा (एससी), गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), लोहरदगा (एसटी), मनिका (एसटी), लातेहार (एससी), पांकी, डाल्टनगंज, बिश्रामपुर, छतरपुर (एससी), हुसैनाबाद, गढ़वा, भवनाथपुर विधानसभा सीट के लिए मतदान होना है।

चतरा: चतरा सीट पर नौ उम्मीदवार मैदान में हैं। भाजपा ने इस बार जर्नादन पासवान को टिकट दिया है। पार्टी ने वर्तमान विधायक जय प्रकाश सिंह भोक्ता का टिकट काटकर चतरा के पूर्व विधायक जर्नादन पासवान को मैदान में उतारा है।

जर्नादन पासवान का मुकाबला महागठबंधन के राजद उम्मीदवार सत्यानंद भोक्ता से है। वहीं जेवीएम के तिलेश्वर राम भी इन दोनों को कड़ी टक्कर देंगे। पिछली बार सत्यानंद भोक्ता को 49169 वोट मिले थे।

वहीं जर्नादन पासवान 2009 में राजद के टिकट पर विधायक बने थे। इसके अलावा पिछली बार भाजपा को चतरा सीट पर कुल 69744 वोट पड़े थे। दोनों समीकरण को देखा जाए तो जर्नादन पासवान के पक्ष में स्थितियां तो हैं, मगर राजद छोड़ भाजपा में आना उन्हें महंगा पड़ सकता है। वैसे सत्यानंद भोक्ता और जेवीएम के तिलेश्वर राम पीछे नहीं हैं, यानी सब मिलाकर त्रिकोणात्मक संघर्ष की संभावना प्रबल है।

डालटनगंज: यह विधानसभा सीट काफी हाई प्रोफाइल मानी जा रही है। इस सीट पर वर्तमान विधायक भाजपा उम्मीदवार आलोक चौरसिया और कांग्रेस प्रत्याशी केएन त्रिपाठी के बीच मुख्य मुकाबला देखा जा रहा है। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार और जिला परिषद उपाध्यक्ष संजय सिंह और जेवीएम के डॉ. राहुल अग्रवाल भी मुकाबले में पीछे नहीं हैं।

उनके जनसंपर्क अभियान में भारी भीड़ इस बात के गवाह हैं। राहुल अग्रवाल लंबे समय से चिकित्सीय सेवा के साथ समाजसेवा से जुड़े रहे हैं। पिछले पांच वर्ष से डॉ. अग्रवाल इलाके में अपनी सेवा दे रहे हैं। हालांकि भाजपा के आलोक चौरसिया का भारी विरोध हो रहा है। बता दें कि 2014 का चुनाव आलोक चौरसिया ने जेवीएम उम्मीदवार के रूप में विजय हासिल की थी। मगर चुनाव जीतते ही भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसका गुस्सा मतदाताओं में देखा जा रहा है। 

केएन त्रिपाठी की बात करें तो वे 2009 में यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने अपने विधायकी के काल में क्षेत्र में कई उल्लेखनीय काम किए हैं। वे जनमुद्दों पर मुखर नजर आते रहे हैं।

पांकी: यहां मुख्य मुकाबला भाजपा उम्मीदवार डॉ. शशि भूषण मेहता और कांग्रेस प्रत्याशी सह निवर्तमान विधायक देवेन्द्र कुमार सिंह के बीच है। शशिभूषण मेहता ने एक माह पहले जेएमएम को छोड़कर भाजपा का दामन थामा है, क्योंकि गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। देवेन्द्र सिंह दिवंगत विदेश सिंह के पुत्र हैं। विदेश सिंह पांकी के 2005 से 2016 तक लगातार तीन बार विधायक रहे। 2016 में उनका निधन हो गया। इसके बाद उपचुनाव में देवेन्द्र कुमार सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे।

पिछले दो चुनावों में शशिभूषण मेहता ने झामुमो के उम्मीदवार के तौर पर विदेश सिंह के बाद देवेन्द्र सिंह को कड़ी टक्कर दी थी और मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे। शशिभूषण मेहता बीजेपी की सदस्यता लेने के बाद चर्चा में इसलिए रहे थे कि उन पर वर्ष 2012 की चर्चित सुचित्रा मिश्रा हत्या कांड में आरोपी बनाया गया था।

ऑक्सफोर्ड स्कूल की वार्डन सुचित्रा की 11 मई 2012 को हत्या हुई थी। जांच के दौरान मोबाइल सर्विलांस और कॉल डिटेल्स के आधार पर ऑक्सफोर्ड स्कूल के डायरेक्टर शशिभूषण मेहता का नाम इस हत्याकांड में शामिल हुआ था। इस सीट पर निर्दलीय मुमताज खां भी चुनाव मैदान में हैं। जो मुस्लिम मतों का बंदरबांट कर कांग्रेस उम्मीदवार को परेशानी में डाल सकते हैं।

विश्रामपुर: इस सीट पर भाजपा के रामचन्द्र चन्द्रवंशी, कांग्रेस के चन्द्रशेखर दुबे और जेवीएम की अंजू सिंह के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। सिंचाई, बिजली और स्वास्थ्य की चरमराती व्यवस्था रामचन्द्र चन्द्रवंशी की किरकिरी कर सकती है।

विश्रामपुर क्षेत्र में स्थापित स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नदारद हैं। खाली भवन का मुंह देखकर मरीजों को गढ़वा-डाल्टनगंज जाने को मजबूर होना पड़ता है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने ददई दुबे के नाम से चर्चित क्षेत्र के दिग्गज-बुजुर्ग नेता चन्द्रशेखर दुबे को रण भूमि में उतार दिया है। चन्द्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे मात्र विश्रामपुर क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में एक मजदूर नेता के रूप में पहचान रखते हैं। वे विश्रामपुर क्षेत्र से विधायक और धनबाद लोकसभा से सांसद रह चुके हैं।

जेवीएम की अंजू सिंह ने 2014 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था और चन्द्रवंशी को कड़ी टक्कर दी थी। अंजू सिंह ने 24064 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रही थीं। इस बार के चुनाव में अंजू सिंह पूरे दमखम के साथ झाविमो की प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरी हैं। अंजू ने चुनावी समर को बहुत संघर्षपूर्ण बना दिया है। हालांकि इस मुकाबले को जदयू के ब्रह्मदेव प्रसाद चतुष्कोणीय बनाने के प्रयास में जुटे हैं। उनके धमाकेदार प्रवेश ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।

छतरपुर: इस विधानसभा क्षेत्र के विधायक राधाकृष्ण किशोर के सामने एक बड़ी चुनौती है क्योंकि भाजपा ने इस बार उनका टिकट काटकर राजद से भाजपा में आए पूर्व सांसद मनोज भुइयां की पत्नी पुष्पा देवी को दिया है। इससे क्षुब्ध राधाकृष्ण किशोर आजसू और भाजपा का चुनावी गठबंधन टूटते ही आजसू में शामिल हो गए और आजसू ने उन्हें अपना उम्मीदवार बना दिया। राधाकृष्ण किशोर को भाजपा की पुष्पा देवी के साथ-साथ राजद प्रत्याशी विजय राम से भी चुनौती मिल रही है। यह चुनाव राधाकृष्ण किशोर का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। वे अपने चुनावी भाषणों में कहते रहे हैं कि वह यह चुनाव भाजपा के अन्याय के खिलाफ अंतिम बार लड़ रहे हैं।

गढ़वा: इस विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबले का संकेत मिल रहे हैं। बावजूद भाजपा विधायक सत्येन्द्र नाथ तिवारी का सीधा मुकाबला झामुमो उम्मीदवार मिथिलेश ठाकुर से दिख रहा है। झामुमो के मिथिलेश ठाकुर बीजेपी प्रत्याशी सत्येन्द्र तिवारी को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। जहां राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मिथिलेश ठाकुर के लिए अब तक कई जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं। वहीं सत्येन्द्र तिवारी के लिए भाजपा के बड़े स्टार प्रचारक भी आ चुके हैं। इस सीट से बसपा के डॉ. एमएन खां मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे रहे हैं।

भवनाथपुर: यहां चुनाव रोचक इसलिए बन गया है, क्योंकि इस सीट पर मुख्य मुकाबला 130 करोड़ का दवा घोटला और आय से अधिक संपत्ति के मामले के आरोपी और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानुप्रताप शाही और पूर्व विधायक अनंत प्रताप देव के साथ है। भानुप्रताप शाही ने अपने सारे आरोपों के साथ इस बार भाजपा का दामन थामा है। अत: भाजपा ने इस सीट पर भानू को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में भानू प्रताप शाही और भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा से जुड़ गया है। अत: इस सीट को बचाने के लिए दोनों को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है।

कई मौकों पर चुनावी सभाओं में भानू का विरोध भी हो चुका है। यह चुनाव भानू के लिए उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। इस सीट से निर्दलीय और भाजपा के नेता रहे अनंत प्रताप देव, लोजपा की रेखा चौबे, बसपा से अपराध की दुनिया से संबंधित ताहिर अंसारी की पत्नी सोगरा बीबी भी शाही के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। वहीं इस मुकाबले में गठबंधन से कांग्रेसी उम्मीदवार केपी यादव और जेवीएम के विजय केशरी चौथे स्थान के लिए संघर्षरत हैं।

लातेहार:  यहां मुख्य मुकाबला विधायक प्रकाश राम और पूर्व मंत्री और भाजपा नेता रहे बैद्यनाथ राम के बीच देखा जा रहा है। प्रकाश राम झाविमो से भाजपा में शामिल हुए हैं, तो बैजनाथ राम भाजपा की गाड़ी से उछलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की लारी में सवार हो गए हैं। वहीं इलाके के वोटरों में दोनों नेताओं के प्रति नाराजगी देखने को मिल रही है, बावजूद किसी सार्थक विकल्प के अभाव में मतदाता दोनों में से किसी एक को चुनने को मजबूर हैं। वैसे कई निर्दलीय मैदान में हैं, मगर उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध इसलिए है कि वे जीत के बाद सत्ता की गोद में बैठने से गुरेज नहीं करेंगे।

हुसैनाबाद: इस विधानसभा सीट पर भी मुकाबला काफी रोचक हो गया है। विधायक कुशवाहा शिवपूजन मेहता बहुजन समाज पार्टी छोड़कर आजसू में शामिल हो गए और वे अब आजसू के उम्मीदवार हैं। वहीं राजद प्रत्याशी संजय कुमार सिंह यादव, भाजपा समर्थित उम्मीदवार विनोद सिंह और एनसीपी के कमलेश सिंह ने उनकी जबरदस्त घेराबंदी कर रखी है, जहां से निकलना उनके लिए मुश्किल लग रहा है। वैसे आजसू में शमिल होने के बाद शिवपूजन मेहता को क्षेत्र में और मजबूती मिली है। उन्होंने पिछला चुनाव बहुजन समाज पार्टी से लड़ा था और सफल भी हुए थे।

मनिका: यहां चुनावी मुकाबले की रोचकता कम नहीं है। मनिका विधानसभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है। विधानसभा क्षेत्र में 52% आदिवासी आबादी है, जिसमें मुख्य रूप से 56% खरवार, 27% उरांव और 9% चेरो हैं। जनजातियों में मुंडा समुदाय भी मौजूद है। इनकी संख्या आदिम जनजाति के बराबर है। कोरवा, परहिया, बिरुजिया, नगेशिया जैसी आदिम जनजातियां भी हैं। वहीं 48% आबादी का हिस्सा गैर-आदिवासी वोटरों का है। इसमें 30 हजार के करीब मुस्लिम हैं। विधानसभा क्षेत्र में 40,000 वोटर पिछड़ी जातियों से हैं, जिसमें सबसे अधिक बनिया समुदाय से हैं। विधानसभा में कुल वोटों का 11%  सवर्ण जातियों का है, जिसमें ब्राह्मण, राजपूत और अन्य जातियां शामिल हैं।

भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक का टिकट काटकर रघुपाल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। वहीं चेरो समुदाय के रामचन्द्र सिंह को गठबंधन की ओर से कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। रामचन्द्र को कांग्रेस का टिकट मिलने से पुराने कांग्रेसियों में उदासी देखी जा रही है। अत: इस सीट पर कांग्रेस के अनुकुल पस्थितियों के बाद भी उम्मीदवार की वजह से भाजपा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है।

बिशुनपुर: विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान झामुमो विधायक चमरा लिंडा को भाजपा के अशोक भगत से कड़ी चुनौती इसलिए मिल रही है कि वे चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र से नदारद रहे, अब चुनाव के आते ही प्रकट हुए हैं। इसका गुस्सा मतदाताओं में देखा जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि मतदाताओं पर उनका अभी भी प्रभाव है। भाजपा के सहमना संगठन संघ के प्रभाव क्षेत्र में रहने वाला विधानसभा का कुछ हिस्सा भाजपा के लिए इस बार राम बाण का काम कर सकता है।

इस सीट पर कुछ इलाकों में जेवीएम के महात्मा उरांव का भी प्रभाव देखा जा रहा है। इस सीट पर अगर चमरा लिंडा को नेतरहाट आंदोलन का साथ मिला तो यह सीट झामुमो के खाते में जा सकती है।

लोहरदगा: यहां भाजपा, आजसू और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिल रहा है। पिछले दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आजसू के बीच बेहद कड़ी टक्कर देखने को मिली है। यह आमतौर पर आजसू की सीट मानी जाती है और कांग्रेस भी इस सीट पर मजबूत ही रही है। भाजपा से आजसू का चुनावी गठबंधन टूटने से भाजपा ने भी अपना उम्मीदवार कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत जो हाल ही में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे, को उतारा है, जिससे पिछले चुनावों में मिलने वाला भाजपा का साथ नहीं रहने का खामियाजा आजसू को उठाना पड़ सकता है। इसका लाभ कांग्रेस के वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव को मिल सकता है।

यहां ग्रामीण इलाकों में आजसू की जबरदस्त पैठ नजर आ रही है, वहीं शहरी इलाकों में कांग्रेस और भाजपा बंटा हुआ है। ईसाई वोटर कहीं कांग्रेस के साथ तो कहीं आजसू के साथ नजर आ रहा है। आजसू से पूर्व विधायक कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत उम्मीदवार हैं।

गुमला: इस सीट पर भाजपा के मिशिर कुजूर, झामुमो के भूषण तिर्की, जेवीएम के राजनील तिग्गा, भाकपा के विश्वनाथ उरांव के बीच मुख्य मुकाबला है। इनके बीच भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही है, क्योंकि भाजपा सिटिंग विधायक शिवशंकर उरांव का टिकट कटने के बाद भी भाजपा का साथ दे रहे हैं।

झारखंड मुक्ति मार्चा के उम्मीदवार भूषण तिर्की को कई स्थानों पर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। झामुमो के केन्द्रीय सदस्य सरोज लकड़ा भी झामुमो को परेशान कर रहे हैं। वहीं गुमला सीट से नेतरहाट आंदोलन की ओर से उम्मीदवार प्लासिदियूस टोप्पो भी चौंकने वाले परिणाम दे सकते हैं। गठबंधन और झामुमो के लिए गुमला सीट अब दूर की कौड़ी बनती दिख रही है। भाकपा के विश्वनाथ उरांव भी गैर भाजपा वोटों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

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