Wednesday, April 24, 2024

झारखंडः सत्तो दा की बरसी पर ‘मजदूर संगठन समिति’ पर लगी रोक हटाने की उठी आवाज

“लोकप्रिय मजदूर नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कॉ. सत्यनारायण भट्टाचार्य उर्फ सत्तो दा 7 फरवरी, 2012 को इस दुनिया से विदा हो गए और भारतीय क्रांति की राह में अमर शहीद की सूची में अपना नाम अंकित करा गए। सत्तो दा गरीब मजदूरों के सच्चे दोस्त थे। वे पूरी जिंदगी गरीबों के हक-अधिकार की रक्षा के लिए लड़ते रहे। वे इस अन्यायी और लुटेरी व्यवस्था के घोर विरोधी थे। वे मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद विचारधारा के प्रबल हिमायती थे और सर्वहारा वर्ग की सत्ता की स्थापना के लिए ही पूरी जिंदगी काम करते रहे। वे एक मजदूर नेता होने के साथ-साथ धनबाद और बोकारो बार एसोसिएशन के वरिष्ठ और सम्मानित अधिवक्ता भी थे, जो गरीबों का मुकदमा मुफ्त लड़ते थे। झारखंड की वर्तमान सरकार को कॉ. सत्तो दा के द्वारा पंजीकृत कराए गए ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ पर से प्रतिबंध वापस लेना चाहिए, क्योंकि विपक्ष में रहते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और इनकी पार्टी झामुमो ने भी तत्कालीन भाजपाई रघुवर दास सरकार द्वारा ‘मजदूर संगठन समिति’ पर लगाए गए प्रतिबंध का विरोध किया था।” उपरोक्त बातें 7 फरवरी को झारखंड के धनबाद जिला के कतरास स्थित भण्डारीडीह सामुदायिक भवन के प्रांगण में कही गईं। मौका था ‘शहीद भगत सिंह स्माराक समिति, कतरास’ के बैनर तले आयोजित लोकप्रिय मजदूर नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता सत्तो दा के 9वीं शहादत दिवस पर आयोजित ‘श्रद्धांजलि सभा’ का।

स्वागत भाषण देते हुए कॉ. सत्तो दा के पुत्र सह झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के नेता और अधिवक्ता कॉ. दीपनारायण भट्टाचार्य ने कहा कि मेरे पिताजी एक शोषणमुक्त समाज की लड़ाई लड़ रहे थे और उन्होंने कभी भी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। मैं अपने पिताजी की लड़ाई को ही आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हूं।

श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज एक तरफ, केंद्र की ब्राह्मणीय हिंदुत्व-फासीवादी मोदी सरकार ने आम जनता पर चौतरफा हमला बोल दिया है। मजदूरों के श्रम कानून में कटौती कर दी गई है। नये चार लेबर कोड घोर मजदूर विरोधी हैं। अधिवक्ताओं के अधिकारों पर भी हमले बढ़े हैं। तीन कृषि कानूनों के जरिए किसानों पर भी हमला बोल दिया गया है। नयी शिक्षा नीति के जरिये शिक्षा की पूरी तरह से निजीकरण की कोशिश की जा रही है। शोषण-दमन के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को ‘अर्बन नक्सल’ कहकर जेल में कैद किया जा रहा है।

महिलाओं को घर की चहारदीवारी में समेटने की कोशिश की जा रही है। तो वहीं दूसरी तरफ, देश की जनता के विभिन्न तबकों पर जनवविरोधी फासीवादी मोदी सरकार के बढ़ते हमले के खिलाफ आम जनता ने भी मोर्चेबंदी कर ली है। आम जनता आज सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। लाखों किसान लगभग 74 दिन से  दिल्ली को घेरे बैठे हुए हैं। ऐसे समय में कॉ. सत्तो दा की याद आना लाजिमी है, क्योंकि अगर वे आज होते, तो सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आम जनता के पक्ष में सड़क पर होते।

वक्ताओं ने अपील करते हुए कहा कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सत्तो दा के आदर्श थे और हमारे भी हैं। हम भी शहीद-ए-आजम भगत सिंह और सत्तो दा की राह चलें और इस शोषण और लूट पर टिकी व्यवस्था को पलटकर एक शोषणरहित समाज की स्थापना के लिए चल रही लड़ाई में कूद पड़ें। कॉ. सत्यनारायण भट्टाचार्य उर्फ सत्तो दा की 9वीं बरसी पर आयोजित ‘श्रद्धांजलि सभा’ में उनके सपनों को पूरा करने का संकल्प लें और उनके द्वारा पंजीकृत कराए गए ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ पर से प्रतिबंध हटाने की मांग झारखंड सरकार से करें।

इस मौके पर झारखंड के कई जिलों के सैकड़ों मजदूर, धनबाद और बोकारो बार एसोसिएशन के सैकड़ों अधिवक्ता मौजूद थे। श्रद्धांजलि सभा की शुरुआत शोषणमुक्त समाज की लड़ाई में शहीद हुए शहीदों के प्रति दो मिनट के मौन से हुई। श्रद्धांजलि सभा का उद्घाटन स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने किया। सभा को संबोधित करने वालों में प्रमुख रूप से झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष कॉ. बच्चा सिंह, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केंद्रीय महासचिव कॉ. डीसी गोहांई, मार्क्सवादी समन्वय समिति के निरसा के पूर्व विधायक कॉ. अरूप चटर्जी, कांग्रेस के पूर्व विधायक जलेश्वर महतो, मासस नेता हलणर महतो, अधिवक्ता राधेश्याम गोस्वामी, मासूम खान, निताई, डॉ. स्वतंत्र कुमार, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के नेता शहजाद अंसारी, रज्जाक अंसारी, सुमित्रा देवी, अधिवक्ता कंसारी मंडल, कपिल देव सिंह, अशोक लाल, साजिद अंसारी, श्रीकांत साव, रमेश कुमार, कार्तिक महतो, प्रगतिवादी नौजवान सभा के कॉ. कृष्णा समेत कई नेता। श्रद्धांजलि सभा में सांस्कृतिक कार्यक्रम कॉ. बिंदु जी और प्रगतिवादी नौजवान सभा के संस्कृतिकर्मियों ने पेश किया।

मालूम हो कि सत्तो दा का जन्म पहली जनवरी, 1944 को पश्चिम बंगाल के वर्धमान में हुआ था, और इनके पिताजी डॉ. देवनारायण भट्टाचार्य 1967 में वर्धमान से कतरास (धनबाद) पूरे परिवार के साथ आ गए। कॉ. सत्तो दा अपने चार भाइयों में मंझले थे। उन्होंने 1970 में धनबाद में वकालत प्रारंभ की और फिर झारखंड (तत्कालीन बिहार) के होकर ही रह गए।

कोयलांचल के रूप में विख्यात धनबाद में उस समय मजदूरों और आदिवासियों के शोषण ने उन्हें काफी व्यथित किया और वे मजदूरों के हक-अधिकार की लड़ाई के लिए एक क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन के गठन के बारे में सोचने को मजबूर हुए, क्योंकि उस समय वहां मौजूद सारे ट्रेड यूनियनों पर बड़े-बड़े माफियाओं का नियंत्रण था और सभी ट्रेड यूनियन सरकार और मालिकों की दलाली ही करते थे।

अंततः सत्तो दा ने 1989 में ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ को तत्कालीन बिहार में पंजीकृत कराया। एक तरफ वे ‘मजदूर संगठन समिति’ के काम-काज में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे, तो दूसरी तरफ वकालत के क्षेत्र में भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाते थे। जब बोकारो जिला का निर्माण हुआ, तो 1983 में बने बोकारो बार एसोसिएशन के प्रथम अध्यक्ष भी वही बने। 1983 से 1985 तक वे बोकारो बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। 1997 से लेकर लगातार 10 वर्षों तक यानी 2007 तक वे धनबाद बार एसोसिएशन के महासचिव रहे।

सत्तो दा के कुशल नेतृत्व में ‘मजदूर संगठन समिति’ ने तत्कालीन बिहार और पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में कई सफल और ऐतिहासिक मजदूर आंदोलन का नेतृत्व किया। इसी का परिणाम था कि जल्द ही ‘मजदूर संगठन समिति’ को तत्कालीन एमसीसी का मुखौटा संगठन बताकर सरकार ने दमन करना चाहा, लेकिन सरकार की तमाम दमनात्मक कार्रवाइयों का सत्तो दा ने डटकर मुकाबला किया। 7 फरवरी, 2012 को उनकी शहादत के बाद भी इनके ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ ने इनकी कमी को कभी भी मजदूरों में महसूस नहीं होने देने का भरपूर प्रयास किया।

‘मजदूर संगठन समिति’ की बढ़ती लोकप्रियता और जनपक्षधरता से घबराकर 22 दिसंबर, 2017 को झारखंड की तत्कालीन भाजपा की रघुवर दास की सरकार ने सत्तो दा के द्वारा पंजीकृत कराए गए ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ को भाकपा (माओवादी) का मुखौटा संगठन बताकर प्रतिबंधित कर दिया और सत्तो दा के ट्रेड यूनियन को तत्कालिक तौर पर बंद करवाने में सफलता पा ली। हालांकि झारखंड उच्च न्यायालय में ‘मजदूर संगठन समिति’ के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला अभी भी लंबित है।

(स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)

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