सवाल बहुत बड़ा है और जवाब भाजपा के पास नहीं है। आखिर किस नैतिकता की दुहाई दे कर भाजपा झारखंड विधानसभा में प्रतिपक्ष की कुर्सी का दावा कर रही है ? इन दिनों झारखंड विधानसभा में गतिरोध चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी, लगातार दबाव बना रही है कि उनकी पार्टी के द्वारा चुने गए विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को प्रतिपक्ष का नेता मनोनित किया जाए। जबकि विधानसभा के अध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो इस बात को लेकर विधिविज्ञों से सलाह की बात कर रहे हैं। इस मामले में सत्तारूढ़ गठबंधन की रणनीति अब साफ होने लगी है। महागठबंधन के नेता भाजपा की दबाव वाली राजनीति से बिल्कुल निश्चिंत दिख रहे हैं। इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है, यह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता यदा-कदा यह बात कह दे रहे हैं कि जब भाजपा सत्ता में थी तो क्या कर रही थी, उन्हें उसे भी ध्यान में उन्हें रखना चाहिए।
इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि हमारी पार्टी किसी के खिलाफ नहीं है लेकिन यहां दल बदल विरोधी कानून का मामला भी बन सकता है। बाबूलाल मरांडी अकेले भाजपा में शामिल हुए हैं जबकि उनकी पार्टी, झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) की टिकट पर दो और विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की चुनाव जीते थे। ये दोनों भाजपा में नहीं जाकर कांग्रेस में चले गए हैं। ऐसे में बाबूलाल मरांडी पर दल बदल विरोधी कानून लागू होने की पूरी संभावना दिख रही है। हालांकि फैसला विधानसभा अध्यक्ष को करना है लेकिन कानून तो यही कह रहा है और इस प्रकार के मामले में भाजपा ने क्या किया था, यह उसे याद रखना चाहिए।
बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष बनाने में कोई ऐतराज नहीं है लेकिन कल कोई व्यक्ति मामले को लेकर कोर्ट चला गया तो विधायी संस्था की फजीहत होगी। चूंकि विधानसभा अध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो बेहद समझदार और विधायी मामले के जानकार हैं इसलिए वे किसी का अहित नहीं होने देंगे लेकिन कानून के दायरे में रह कर। वे इस मामले में जल्दबाजी बिल्कुल नहीं करना चाहते हैं। भट्टाचार्य यह भी कहते हैं कि आज हमारी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार वही कर रही है जो रघुवर दास के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार ने किया था। ऐसे मामले में जल्दबाजी करने से काम खराब होता है और सरकार की फजीहत अलग से होती है। हम लोग नहीं चाहते कि न्यायालय में सरकार की फजीहत हो।
यहां बता दें कि जब 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर आयी थी। उस विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिली थी लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के सिद्धांत के आधार पर भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया था। भाजपा ने रघुवर दास के नेतृत्व में सरकार का गठन किया। सरकार बनाने के बाद सदन में बहुमत सिद्ध करना था। चूंकि भाजपा के पास बहुमत का आभाव था इसलिए भाजपा ने बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोर्चा के 6 विधायकों को तोड़ कर अपनी पार्टी में शामिल कर लिया।
उस समय इस बात को लेकर बाबूलाल मरांडी झारखंड उच्च न्यायालय चले गए और इस मामले को चुनौती दी। झारखंड उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद कहा कि हम विधायी मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं आप विधानसभा के न्यायाधिकरण में चले जाएं। यहां विधानसभा न्यायाधिकरण में यह मामला लंबित रहा। गवाह पर गवाह गुजरते रहे और साढ़े चार साल के बाद जब फिर से चुनाव की तैयारी प्रारंभ हुई तो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने फैसला सुनाया कि इस मामले में कोई दल बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है। मामला पाक-साफ है। तत्कालिन विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा छह विधायकों को क्लिन चिट दे दिया गया। इस मामले में 78 गवाहों की गवाई हुई थी। चूंकि मामला सरकार से संबंधित था इसलिए सरकार ने अपने ढंग से इसे सलटाया और फैसला करवा लिया। अब सरकार बदल चुकी है। प्रदेश की कमान कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं के हाथ में है। वैसे भाजपा दबाव तो बना रही है लेकिन भाजपा नैतिक स्तर पर कमजोर दिख रही है क्योंकि भाजपा ने जो किया है, वही भाजपा को काटना है।
यहां भाजपा और बाबूलाल मरांडी के नैतिकता का भी सवाल है। जब भाजपा सत्ता में थी तो भाजपा के खिलाफ खुद अपने और अपनी पार्टी के अस्तित्व के लिए बाबूलाल मरांडी उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटा आए। अब मामला लगभग उसी तरह का है। बाबूलाल मरांडी के दो विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। सत्तारूढ़ दल और विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि पार्टी का विलय जरूर हो गया होगा लेकिन विधयकों का विलय कानूनी प्रक्रिया है। वह विधायी कानून के तहत ही संभव है। जैसी परिस्थिति खड़ी हुई है उसमें बाबूलाल के मामले में विधिवेत्ताओं से मुकम्मल राय के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। इधर इस मामले में भाजपा अपनी नैतिकता पहले ही कमजोर कर चुकी है। उसने कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा को रास्ता दिखा दिया है। अब वह वही कर रहे हैं जो आज से लगभग पांच साल पहले जब भाजपा सत्ता में रहते कर रही थी। मसलन नैतिकता और कानूनी दोनों दृष्टि से बाबूलाल मरांडी और भाजपा कहीं न कहीं कमजोर दिख रही है और सत्तारूढ़ गठबंधन मजबूत। इसका फायदा तो सत्तारूढ़ गठबंधन को मिलेगा ही।
(गौतम चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल रांची में रहते हैं।)
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