Thursday, April 18, 2024

चार साल से बंद पड़े स्कूल का खुला ताला, ग्रामीणों में खुशी की लहर

मिरचईपाट, गुमला। चार वर्षों से बंद पड़ा स्कूल खुल गया है। जिससे ग्रामीण काफी खुश हैं। लेकिन अभी भी कई स्कूलों में ताला लगा है। झारखंड राज्य अलग होने के बाद से ही यहां शिक्षा पर काफी कम ध्यान दिया गया। यह सच है कि प्रथम चरण में गांव-गांव में स्कूल खुले, लेकिन दूसरा सच यह भी है कि कुछ दिनों के बाद कई स्कूलों को बंद करना शुरू कर दिया गया।

गैर-सरकारी सूत्रों के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में अब तक 6,500 स्कूल बंद हो चुके हैं। जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5,700 स्कूल विलय के बाद बंद कर दिए गए।

अगर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर गौर करें तो इस शिक्षा नीति को भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई, 2020 को घोषित किया गया। सन 1986 में जारी हुई नई शिक्षा नीति के बाद भारत की शिक्षा नीति में यह पहला नया बदलाव है। यह नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर तैयार की गई है।

बता दें कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अन्तर्गत शिक्षा क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है। इसमें पांचवीं कक्षा तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।

इस नीति के तहत देश के प्रत्येक पंचायत में एक मॉडल स्कूल होगा और आस-पास के छोटे स्कूलों को इसमें विलय किया जाएगा। जाहिर है ऐसे में इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत झारखंड के पहाड़ों, जंगलों में बसे गांवों के और अधिक स्कूल विलय होकर बंद होंगे। नतीजा यह होगा कि आदिवासी, दलित और शोषित वंचित समाज से स्कूल और दूर होता जाएगा।

दुमका जिले के पाथरचाल गांव के 1953 में स्थापित प्राथमिक स्कूल को विलय के बाद बंद कर दिया गया था जिससे गांव के आदिवासी बच्चों की पढ़ाई बंद हो गई। आदिवासी बहुल क्षेत्र के ऐसे स्कूल को बंद करके आदिवासी समाज को शिक्षा से वंचित किया गया जो एक तरह से अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। ऐसे हालात में अगर कोई बंद स्कूल खुल जाता है तो यह एक बड़ी उपलब्धि कही जाएगी और इसकी जितनी सराहना की जाए कम है।

गुमला जिले के मिरचईपाट गांव में पिछले चार सालों से बंद पड़ा स्कूल अब खुल गया है। स्कूल में बच्चे पहुंचने लगे हैं और उनकी पढ़ाई भी शुरु हो गई है। दरअसल झारखंड प्रदेश रसोइया संयोजिका अध्यक्ष संघ सह प्रतिज्ञा महिला एसोसिएशन की अध्यक्षा देवकी देवी की पहल और जिले के उपायुक्त सुशांत गौरव के निर्देश के बाद कई सालों से बंद पड़ा स्कूल एक बार फिर से गुलजार हो गया है।

इस कदम से गांव के लोग बेहद खुश हैं। पहले स्कूल में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई होती थी। फिर लगभग चार साल पहले अचानक स्कूल बंद हो गया। गांव के लोगों को स्कूल बंद होने के कारण का कोई कारण पता नहीं चला। बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई। इसे लेकर ग्रामीणों ने स्थानीय प्रशासन से कई बार गुहार भी लगाई। लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया।

बीते वर्ष देवकी देवी ने डुमरी में स्कूलों के रसोइया और संयोजिकाओं के साथ बैठक की थी। इसी दौरान उन्हें मिरचाईपाट के स्कूल के बंद होने की खबर मिली थी। उन्होंने देखा कि स्कूल तो बंद है ही साथ ही स्कूल के इमारत की स्थिति भी जर्जर हो चुकी है। उन्होंने स्कूल की समस्या को उपायुक्त के सामने रखा। इसके बाद उपायुक्त के निर्देश पर स्कूल को फिर से खोल दिया गया है।

साथ ही बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक भी मुहैया कराये गये हैं। स्कूल खुलने के बाद से रोजाना लगभग 20 बच्चे स्कूल पहुंच रहे हैं। स्कूल में बच्चों को दोपहर में एमडीएम (मध्याह्न भोजन) भी दिया जा रहा है। वहीं अब ग्रामीणों को प्रशासन से उम्मीद है कि गांव में पानी, बिजली, सड़क, चिकित्सा जैसी कमियों को भी दूर किया जायेगा।

ग्रामीण बैशाखु मुंडा कहते हैं कि स्कूल तीन-चार साल से बंद था। स्कूल बंद होने के कारण गांव के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। लेकिन अब स्कूल खुलने से सब ठीक हो गया है। उन्होंने उपायुक्त को धन्यवाद देते हुए कहा कि अब हमारे बच्चे भी पढ़-लिख सकेंगे।

उन्होंने बताया कि स्कूल में पढ़ाई तो शुरू हो गयी है, लेकिन स्कूल की इमारत काफी जर्जर है और स्कूल में पानी, शौचालय की भी सुविधा नहीं है। इन समस्याओं का अभी समाधान होना बाकी है। ताकि बच्चों को स्कूल में पढ़ाई करने में किसी तरह की परेशानी ना हो।

झारखंड प्रदेश रसोइया संयोजिका अध्यक्ष संघ सह प्रतिज्ञा महिला एसोसिएशन की अध्यक्ष देवकी देवी ने उपायुक्त सुशांत गौरव को धन्यवाद देते हुए कहा कि गांव में स्कूल खुलने से बच्चे पढ़-लिख कर जागरूक इंसान बनेंगे। उन्होंने बताया कि गांव में पानी, बिजली, सड़क, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं।

गांव के लोगों को प्रखंड मुख्यालय पहुंचने के लिए लगभग 50 किमी दूर पैदल चलना पड़ता है। यदि मुख्य सड़क से मिरचाईपाट तक लगभग 12 किमी सड़क बना दिया जाये तो गांव के लोगों को 50 किमी की दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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