प्रयागराज (इलाहाबाद)। जिले की फूलपुर विधानसभा में बाबूगंज बाज़ार के पीछे एक डेरा है- मुसहरा का डेरा। प्रयागराज की चुनावी रिपोर्टिंग के लिये हम इसे डेरे में पहुंचे। दोनों तरफ खेतों के बीच एक छोटे से चकरोट से होकर इस डेरे तक जाना होता है। इस चकरोट पर दोनों तरफ बच्चों-बड़ों ने मल-मूत्र विसर्जन कर रखा है। ताजे, झुराये मतलब हर तरह के मल-मूत्र की बदबू हवा के साथ-साथ नाक में घुस रही थी। नाक दबाये किसी तरह हम चकरोट पर पैदल ही आगे बढ़े। डेरे तक जाने के लिये चकरोट छोड़कर मेड़ का सहारा लेना पड़ा। मेड़ से होकर डेरे पर पहुंचे तो मुसहर समुदाय के 2 पुरुष एक झुलझुल खाट पर और एक-दो लोग ज़मीन पर बैठे हुये बात कर रहे थे। एक साड़ी के टेंट में दो बच्चे सो रहे थे। दो बच्चे नंग-धड़ंग मिट्टी में खेल रहे थे। वहीं एक किनारे लकड़ी सूख रही थी जिसे एक सज्जन कहीं से तोड़कर लाये थे। टूटी-फूटी घास-फूस की दो झुग्गियां भारत के विश्वगुरु के दावे का उपहास करती जान पड़ रही थीं। स्त्रियां नीचे ज़मीन पर बैठकर लकड़ी सुखा रही थीं।
मैंने सबसे पहले शौचायल के बारे में पूछताछ शुरू की, तो मुखिया मुकुंद ने बताया “10 हजार रुपये आया था साहेब। 6 हजार रुपये में एक हजार ईंट ले आया। 3 हज़ार रुपये में 3 बोरी सीमेंट और बालू। गड्ढे खुद से खोदे, मजदूरी खुद की लेकिन मिस्त्री का ख़र्च कहां से दे। आधा-अधूरा बनाकर छोड़ दिया।” लालती देवी कहती हैं “यहां चकरोट पर बैठते हैं। क्या करें साहेब खेतों में बैठते हैं लोग गरियाते हैं मारते हैं। कहां जायें शौचायल भी नहीं बना है। सड़क पर बैठने पर भी लोग गाली देते हैं।”
आवास और रोज़गार के सवाल पर घर की सबसे बुजुर्ग महिला मालती देवी कहती हैं “हम लोग आबादी में बसे हैं। ज़मीन पट्टा नहीं मिला है। दलित प्रधान ने डेरा पर क़ब्ज़ा करने की योजना बनाई थी, हम लोग डटकर खड़े हो गये तब जाकर वो लोग पीछे हटे।” मालती देवी आगे कहती हैं “हम लोगों ने भैंस पालने के लिये लोन लेना चाहा। बुलाव हुआ तो हमने कहा कि हमें भैस लेने के लिये लोन चाहिये। अधिकारी ने कहा तुम्हारे फॉर्म में तो सुअर लेने के लिये लिखा हुआ है। और उन्होंने हमारा कागज कैंसिल कर दिया।” उन्होंने बताया कि तीन साल हो गये बच्चों को दूध पिए। तीन साल पहले गाय मर गई उसके बाद से दूध नहीं नसीब हुआ। दो बछिया ले आये थे पकड़कर किसी तरह जीआये हैं, दो-एक साल में दूध देने के लिए तैयार हो जायेगी। मुकुंद बताते हैं “इसी गांव में बड़े लोगों के लिए सरकार ने गौशाला बनवाया है, लेकिन हम लोग गाय रखे हैं उसके बावजूद इनके रहने के लिये कोई कुछ नहीं बनवाया।”
मालती देवी रोते हुये अपनी व्यथा को बताती हैं “डोना पतरी का काम बंद हो गया। कोई काम नहीं है, कभी हफ्ता में एक-दो दिन का काम खांड़ में मिल जाता है, तो कर लेते हैं।” मालती बताती हैं कि ब्लॉक में गैस सिलेंडर के लिये 1 हजार मांग रहे थे। नहीं दिया तो गैस नहीं मिला। कहां से भराते इतना महंगा गैस।
ये लोग बगुला, और वनमुर्गी वगैरह पकड़कर खाते हैं। रोज़ दाल खा पाना इनके वश में नहीं है। मालती देवी बताती हैं कि 7 लोगों के परिवार में एक पाव दाल ख़रीदकर ले आते हैं। दूसरे तीसरे कभी एक टाइम दाल खाते हैं। किसी के खेत से बथुआ, चौराई तोड़कर बना लेते हैं। किसी के आलू वाले खेतों में जब वो लोग आलू बीनकर चले जाते हैं तो हम लोग वहां खेत से बची-खुची आलू बीनकर ले आते हैं।
खेती में आधुनिक तकनीक और मशीनरी ने खेत मजदूरों के हाथ से काम छीन लिया है, और अब मुश्किल से ही उनके लिए कोई काम बचा है। इस बारे में लालती देवी कहती हैं “पहले थोड़ा बहुत खेतों में कटाई बिनाई का काम कर लेते थे, तो मजदूरी मिल जाती थी। लेकिन अब तो कटाई, मड़ाई का सारा काम मशीनों से होने लगा है, खेतों में भी काम नहीं मिलता है।”
चेहरे पर गुबार, बालों में गर्दा, आंखों में बेबसी लिये मुकुंद, राजेश, रमेश, पवन दिखे। उनका कहना था, “किसी तरह गुज़ारा करते हैं साहेब। लकड़ी लाकर समोसा चाय की दुकान पर 2-3 रुपये किलो लकड़ी बेच देते हैं।”
घर के सबसे बुजुर्ग पुरुष ने बताया, “आधारकॉर्ड नहीं बना है। इसीलिये राशनकार्ड रद्द हो गया। तीन साल से राशन नहीं मिल रहा है। मिड-डे मील मिलता था स्कूलों में, लेकिन वो भी कोरोना में बंद है। स्कूल बंद है तो ड्रेस भी नहीं दिया गया। मुसहर के बच्चे नंगे घूम रहे हैं।” पवन बताते हैं कि बीमार होने पर इलाज की कोई सुविधा नहीं है साहेब। इतना पैसा भी नहीं है कि इलाज करा सकें।
मुसहर बस्ती के बाद हम खेतों की ओर बढ़े। देखा, अपने खेतों में खटिया डाले रखवाली करते बिगहिया गांव फूलपुर विधानसभा के एक किसान रमाशंकर तिवारी मिले, जिनका साफ़ कहना था, “छुट्टा जानवर और पुलिस ने इनकी लुटिया डुबो दी है, अब ये वापिस नहीं लौटने वाले हैं। योगी ने पुलिस और सांड़ों को छुट्टा छोड़कर किसान और आम जनता का जीना हराम कर रखा है। ये जिसका चाहते हैं उसका खत चर लेते हैं, जिसको चाहते हैं उसे गोली मार देते हैं, लेकिन अति बहुत दिन नहीं चलती।”
खेतों से निकलकर फिर हम गंगा किनारे पहुंचे। गंगा किनारे नाव लेकर खड़े मल्लाहों (केवट, निषाद) ने एक स्वर में कहा इस सरकार ने हमारी रोटी रोजी छीन ली। हमारी नावें तुड़वा डालीं। नावो से हम बालू निकालते थे उससे रोटी-रोजी चलती थी। लेकिन योगी सरकार ने नावों से बालू निकालने पर रोक लगा दी है और जेसीबी से बालू खनन का काम शुरु करवा दिया।
निषाद पार्टी के भाजपा के साथ गठबंधन पर मल्लाहों ने कहा “हमारे लिये सबसे पहले अपनी रोटी-रोजी है। हमारे पास कोई हालचाल जानने नहीं आया। प्रियंका गांधी आई थीं। उन्हें हमारे रोटी की फिक्र है। जो हमारे रोटी की फिक्र करेगा हम उसे वोट करेंगे।”
शिवकुटी में गंगा तट पर जाल लगाकर झींगा पकड़ते भारती बताते “मेरी किराने की दुकान है। लेकिन लोगों की ख़रीददारी 10 प्रतिशत रह गई है। जहां रोज़ाना 1500-3000 रूपये की बिक्री करता था वहां अब घटकर 300 रुपये है गई है। सुबह 6 से रात नौ बजे तक परिवार के तीन लोग समय देते हैं।” उनका कहना था कि महंगाई एकदम चरम पर है इस समय। गैस, सरसों तेल, पेट्रोल सब की हालत पर भारती बताते हैं “महीने में एकाध बार तेल डलवा लेता हूँ। गाड़ी चढ़े एक महीने से अधिक हो गया। 2 लीटर तेल का जुगाड़ किसी तरह लगाकर होली में रिश्तेदारों से मिलने जाना है। ज़्यादातर अब साईकिल से ही जाता हूँ। महंगाई-बेरोज़गारी मुद्दा है। कोरोनाकाल की पीड़ा व्यक्त करते हुए भारती कहते हैं कोरोना में एक रिश्तेदार को लेकर 14-15 अस्पताल में घूमा कहीं नहीं लिया। बड़े डॉक्टर लूट रहे थे। प्राइवेट अस्पताल लूट रहे थे। स्वास्थ्य मुद्दा होना चाहिये। सबका इलाज़ मुफ्त होना चाहिये।”
गंगा किनारे से निकलकर हम सिटी बस में सवार होकर कटरा पहुंचे। मनमोहन पार्क में रेंट पर रहने वाले गुड्डू सब्जी वाले कटरा में सब्जी की दुकान लगाते हैं। गुड्डू कोरोनाकाल में एक सब्ज़ी वाले पर पुलिसिया ज़्यादती का ज़िक्र करते हुए सिहर उठते हैं। पुलिस ने कोरोनाकाल में सब्जी वाले को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया था। उसका हाथ तोड़ दिया था। उसकी सब्जी का ठेला पलट कर सारी सब्जियों को कुचल दिया था। गुड्डू कहते हैं, “इस सरकार में पुलिसवालों का आतंक अपने चरम पर है।”
महंगाई और कमाई के सवाल पर प्रयागराज के सलोरी इलाके की एक सब्ज़ी बेचने वाली महिला दुकानदार कहती हैं “लोग कम ख़रीद रहे हैं। एक तो लोगों के पास कमाई नहीं है, ऊपर से महंगाई कोढ़ में खाज़ का काम कर रही है। जो लोग पहले एक किलो सब्जी ले जाते थे, अब एक पाव में काम चला रहे हैं।”
कटरा से पैदल चलते हुये हम इलाहाबाद विश्वविद्यालय पहुंचे। कोरांव के बड़ोखर गांव के महेंद्र केसरवानी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सामने फुटपाथ पर आंवला, भरवा अचार वाला मिर्चा और शकरकंद बेचते मिले। औपचारिक बातचीत के बाद मैंने पूछा कि क्या आप चुनाव में मतदान करने जायेगें महेंद्र जी? तो जवाब में महेंद्र ने बताया कि और भी लोग हैं कोरांव के यहां। अगर वो लोग जायेंगे तो मैं भी जाऊंगा। चुनाव का क्या माहौल है पूछने पर महेंद्र कहते हैं “त्रिकोणीय मुक़ाबला है लेकिन इसमें सपा नहीं है। भाजपा ने भी कोई काम नहीं किया है क्षेत्र में, पानी और रोज़गार की बहुत दिक्कत है। आदिवासियों में मौजूदा भाजपा विधायक के प्रति नाराज़गी है। कांग्रेस ने आदिवासी समाज के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया है। आसार है कि वो चुनाव जीत जाये।”
यूनिवर्सिटी गेट के सामने खड़ी छात्रा जोया इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी की छात्रा हैं। जोया प्रदेश में महिला सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहती हैं “पहली बार लड़कियों की आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। हम लड़कियां अपने गांवों से इलाहाबाद तैयारी करने आती हैं, लेकिन वैकेंसी नहीं निकल रही है। डिप्रेशन में लड़कियां आत्महत्या कर रही हैं।”
सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहीं प्रतियोगी छात्रा आंचल की आंखों में असुरक्षा छलक पड़ती है। आंचल कहती हैं कि “हम कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। हमें मजबूर किया जा रहा है कि हम वापस अपने घरों की चारदीवारी में कै़द हो जायें। पढ़ें नहीं, नौकरी न करें फिर से बच्चा जनने की मशीन बन जायें।” मौजूदा निजाम के स्त्री विरोधी फ़रमानों से ख़ौफ़ज़दा आंचल के होठों पर पीड़ा उभर आयी- “सरकार हमें प्रेम छोड़िये दोस्ती तक करने पर पहरे बिठा रही है। हर समय डर लगा रहता है कि हम कॉलेज से बाहर किसी कैंटीन या बाहर कहीं किसी दोस्त के साथ चल रहे हैं, बात कर रहे हों, और पीछे से कहीं भगवा गमछा लपेटे बजरंगियों का गिरोह न आ जाए और हमें पीटने लगे। मुस्लिम दोस्तों के साथ बाहर निकलने में डर लगता है, कि पता नहीं कब वे इसे लव-जेहाद का नाम देकर मारने-पीटने से लेकर पुलिस की मदद से हमें जेलों में न डाल दे।”
(इलाहाबाद से जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)
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