बस्तर/रायपुर। राज्य-सत्ता के दमन, काले कानूनों की समाप्ति, राजनैतिक बंदियों की रिहाई आदि मांगों पर लोकतंत्र की रक्षा के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत कल रायपुर बूढ़ा तालाब धरना स्थल में प्रदेश के जनवादी संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से धरना प्रदर्शन कर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया।
धरना में उपस्थित संगठनों ने कहा कि आज देश में असहमति के अधिकार को छीनने की कोशिश हो रही है। इसके साथ ही संवैधानिक तानाशाही एवं राज्य दमन लगातार बढ़ता जा रहा है। सत्ता अपने खिलाफ उठने वाली प्रतिरोध की हर आवाज को कुचल देना चाहती है जिसके लिए सुनियोजित तरीके से यूएपीए, एनआईए व अन्य दमनकारी कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भीमा कोरेगााँव के फर्जी मामलों में गिरफ्तार अधिवक्ताओं, कलाकारों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों सहित देश भर में इस तरह की गिरफ्तारियां और फर्जी अपराधिक मामले लगातर बढ़ रहे हैं। देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को पहले ही कमजोर कर दिया गया है अब मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई न्याया व्यवस्था भी हमें निराश कर रही है। फादर स्टेन स्वामी की संस्थागत हत्या इसका ज्वलंत उदाहरण है।
धरना को संबोधित करते हुए आदिवासी जन वन अधिकार मंच के केशव सोरी ने कहा कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर जंगल जमीन खनिज की कार्पोरेट लूट के लिए सरकारें कार्य कर रही हैं। सीपीआई एमएल रेड स्टार के शोरा यादव ने कहा कि देश में मोदी के नेतृत्व में एक फासीवादी सरकार पूरी ताकत से लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचल रही है। इसके खिलाफ हमें एकजुट होकर पुरजोर तरीके से विरोध करना आवश्यक है। जिला किसान संघ के सुदेश टेकाम ने कहा कि बस्तर की स्थिति भयावह है, माओवादी उन्मूलन के नाम पर लगातार निर्दोष आदिवसियों को मारा जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि राज्यपाल जो पांचवीं अनुसूची की प्रशासक हैं वह कैम्प स्थापना के पूर्व ग्रामसभा की सहमति के प्रावधान का उल्लंघन की जांच क्यों नहीं करवातीं।
भारत जन आंदोलन के विजय भाई ने कहा कि देश की संसद में बिना चर्चा के एक मिनट में कानून बना दिये जा रहे हैं। लोकतंत्र को कुचलने के लिए जन विरोधी कानून बनाये जा रहे हैं। पिछले 9 महीने से देश के किसान राजधानी दिल्ली में आंदोलनरत हैं वाबजूद उसके पूरी खेती किसानी को अडानी अम्बानी को सौंपने के लिए आमादा हैं। जब से देश मे फासीवादी सत्ता काबिज हुई है सभी संसाधनों को चंद कारपोरेट को सौंप रहे हैं।
धरना में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति), जिला किसान संघ राजनांदगांव, गुरु घासी दास सेवा संघ, लोक सिरजनहार यूनियन, आदिवासी जन वन अधिकार मंच, सीपीआई एमएल( रेड स्टार) छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, किसान सभा कोरबा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, ट्रेड यूनियन सेंटर आफ इंडिया, एक्टू, दलित आदिवासी मंच, भारत जन आंदोलन, एसयूसीआई (कम्युनिस्ट) जनहित, किसान संघर्ष समिति कुरूद, नदी घाटी मोर्चा आदि संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
धरना के बाद निम्नांकित मांगों पर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया:
(1) दमनकारी राजद्रोह की धाराओं को भारतीय दंड विधान से निरस्त करें।
(2) गैर क़ानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम (UAPA) को ख़त्म किया जाये और सुरक्षा खतरे के अंदेशे के लिए हिरासत (प्रिवेंटिव डीटेंशन) की अनुमति देने वाले राज्यों में प्रचलित सभी जनसुरक्षा क़ानूनों को ख़त्म करें।
(3) नागरिकों के जमानत का अधिकार बहाल किया जाये और सभी राजनीतिक बंदियों को अविलम्ब रिहा करें।
(4) पुलिस का उपयोग कर झूठे मामले दर्ज करने पर जवाबदेही तय की जाये और पीड़ितों को मुआवज़ा दिया जाये।
(5) अवैध हिरासत और आपराधिक न्याय प्रणाली को दमन के हथियार की तरह इस्तेमाल करने पर सख्त रोक लगायी जाये।
(6) बस्तर में माओवादी उन्मूलन के नाम पर आदिवासियों का दमन, फर्जी मामलो में गिरफ़्तारी एवं फर्जी मुठभेड़ दिखाकर निर्दोष आदिवासियों की हत्याएं करना बंद करो। माओवादियों से सुरक्षा के नाम पर गैर-जरुरी पुलिस कैम्प, थाने व अर्धसैनिक बटालियन के जमावडे को रोका जाये। आदिवासी महिलाओं के साथ पुलिस ज्यादती, बलात्कार एवं छेड़छाड़ के आरोपियों को तुरंत दंड दिया जाये।
(7) किसान व मजदूरों के अधिकारों को अतिक्रमित करने वाले तीनों राष्ट्रीय कृषि कानूनों एवं श्रम संहिता को अविलंब वापिस लिया जाए।
(कांकेर, बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)