आदिवासियों पर जारी हिंसा पर ‘बस्तर का बहिष्कृत भारत’ नाम से रिपोर्ट जारी

लोक स्वातन्त्र्य संगठन (पी.यू.सी.एल) ने बस्तर में चल रहे आंदोलनों व प्रदर्शनों पर पुलिस की हिंसा तत्काल बंद करने, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करने, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रशासनिक अमले व ग्राम सभाओं द्वारा निकाले जा रहे आदेशों पर रोक लगाने और सामाजिक कार्यकार्ताओं और याचिकाकर्ताओं की कानूनी प्रताड़ना बंद करने की मांग की है।

दरअसल छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। चाहे अल्पसंख्यक ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं हों, या मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन का सवाल हो या फिर नक़्सल उन्मूलन के नाम पर आदिवासी ग्रामीणों के ऊपर हिंसा की घटना हो- मानवाधिकार हनन के इन अनगिनत मामलों ने प्रदेश को चिंताजनक परिस्थिति में ला खड़ा कर दिया है।

इन्हीं सवालों को लेकर छत्तीसगढ़ लोक स्वातन्त्र्य संगठन (पी.यू.सी.एल) ने 20 जनवरी 2023 को मायाराम सुरजन स्मृति लोकायन भवन, रायपुर में एक राज्यस्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें देश-प्रदेश के मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता एकजुट हुये। सम्मेलन में अल्पसंख्यक ईसाई आदिवासियों पर जारी हिंसा और अत्याचारों पर “बस्तर का बहिष्कृत भारत” के नाम से रिपोर्ट जारी की गई।

सम्मेलन का प्रथम सत्र

सम्मेलन के प्रथम सत्र के विषय थे- “छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले: ईसाई धर्मावलम्बियों के खिलाफ प्रताड़ना की परिस्थितयों पर रिपोर्ट रिलीज” तथा “उभरते सवाल: क्या आदिवासी स्वशासन के नाम पर पेसा कानून का सांप्रदायीकरण हो चुका है? और पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में डी-लिस्टिंग अभियान के क्या परिणाम होंगे?”

प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. व्ही. सुरेश ने रेखांकित किया कि, न्याय पालिका के द्वारा समय पर उचित कदम नहीं उठाए जाने से हिंसा और प्रताड़ना की घटनाएं बढती हैं। वंचित समुदायों के उत्पीड़न के साथ मानव विकास सूचकांक, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों की लूट, शिक्षा, खाद्यान सुरक्षा आदि विषयों पर भी लगातार ध्यान देने की आवश्यकता है।

रवि नायर ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत पुलिस-प्रशासन को प्राप्त “दंड से मुक्ति” समाप्त किये जाने, पीड़ितों को शीघ्र और समुचित मुआवजा, दोषियों पर विधिसम्मत कार्यवाही तथा न्याय के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध प्रावधानों के उपयोग पर ज़ोर दिया।

जनकलाल ठाकुर ने सांप्रदायिकता के विरोध में सर्वहारा वर्ग का बड़ा आंदोलन खड़े किये जाने का आह्वान किया। डिग्री प्रसाद चौहान ने कहा कि, प्रदेश में ईसाई आदिवासी अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और आदिवासियों के मध्य आपसी वैमनस्य कि मूल वजह आदिवासियों का हिंदुकरण तथा हिन्दू राष्ट्रवाद कि अवधारणा है। डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिये पेसा कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाए जाने की मांग रखी।

प्रथम सत्र में एडवोकेट डॉ. व्ही. सुरेश (राष्ट्रीय महासचिव, पीयूसीएल, चेन्नई), रवि नायर (साउथ एशिया ह्यूमन राइट्स डौक्यूमेंटेशन सेंटर, बेंगलुरु) तथा जनकलाल ठाकुर (पूर्व विधायक एवं अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा) मुख्य वक्ता थे। डिग्री प्रसाद चौहान, जेकब कुजूर, आशीष बेक, सेवती पन्ना, किशोर नारायण, केशव सोरी, व्ही. एन. प्रसाद राव, रिनचिन, ए. पी. जोसी, बृजेन्द्र तिवारी, लखन सुबोध, शहजादी खान और राजेंद्र चंद्राकार परिचर्चा में शामिल हुये। सत्र की अध्यक्षता डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज तथा संचालन अखिलेश एडगर ने किया।

छत्तीसगढ़ राज्य के पांचवी अनुसूचित क्षेत्र/आदिवासी इलाकों में आदिवासी समुदायों के मध्य धार्मिक आस्थाओं के सवाल को लेकर आपसी तनाव और तकरार की परिस्थितियों पर पीपल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीस की राज्य ईकाई की पहल पर छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलाएन्स, ऑल इंडिया पीपल्स फोरम (छत्तीसगढ़ ईकाई), दलित अधिकार अभियान, ऑल इंडिया लाएर्स एसोसियशन फॉर जस्टिस (छत्तीसगढ़ ईकाई) आदि जन संगठनों के संयुक्त तत्वाधान में एक फ़ैक्ट फाईंडिंग टीम का गठन किया गया। इस जांच दल ने पांच चरणों में तथ्यान्वेषण किया। तत्पश्चात अल्पसंख्यक ईसाई आदिवासियों पर अनवरत जारी हिंसा और अत्याचारों पर “बस्तर का बहिष्कृत भारत” के नाम से रिपोर्ट जारी की गई।

सम्मेलन का दूसरा सत्र

दूसरे सत्र में बस्तर और छत्तीसगढ़  के अन्य स्थानों में हो रहे जनांदोलनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हो रहे दमन के विषय में चर्चा हुई। हिडमे मरकाम, लॉरा जेसानी, हिमांशु कुमार,रिनचिन व डिग्री प्रसाद चौहान इस सत्र के मुख्य वक्ता थे।

बजर जी, आशु मरकाम, पान्डु मरकाम,सुनीता पोट्टाम, तुहिन देव, कलादास डहरिया, संजीत बर्मन, सौरा यादव, इन्दु नेताम परिचर्चा में शामिल हुए। सत्र की अध्यक्षता सोनी सोरी तथा संचालन श्रेया ने किया।

हिड़मे मरकाम, जो एक साल दस महीने के बाद जेल से रिहा हुई है, ने इस सत्र को संबोधित किया। अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों में वो बरी हुई हैं। उन्होंने सभी के प्रति आभार जताया, जिन्होंने भी उनके लिए आवाज उठाई और सबको कहा कि वो बाहर आकर अपनी लड़ाई जारी रखेंगी।

बस्तर के साथियों ने बताया कि, सिल्गर गोली कांड के बाद, किस तरह पुलिस बल दो सालों से अपने जंगल को बचाने के लिए और पुलिस कैंपों के खिलाफ बुर्जी, बेचापाल और अन्य जगहों पर चल रहे शांतिपूर्ण धरनों पर लाठी चार्ज करके जबरदस्ती कैंप बिठाए जा रहे हैं। वीडियो काल पर जुड़कर धरना पर बैठे साथियों ने 18 जनवरी को भी बुर्जी में पुलिस द्वारा की गई लाठी चार्ज के बारे में बताया। इस लाठी चार्ज में कई लोग घायल हुए।

सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने बस्तर में मानवाधिकार हनन के मुद्दों को उजागर करते हुए कहा कि सरकार को दमन करने के बजाय जरूरी है कि, वो धरने पर बैठे आदिवासियों से संवाद करें व उनकी मांगों पर ध्यान दें और जल जंगल जमीन पर कोई कारवाही होने से पहले उनकी राय पर गौर करे। यह पेसा कानून और पांचवी अनुसूची के तहत जरूरी है।

हिमांशु कुमार ने अपनी बात रखे हुए सबका ध्यान आकर्षण 11 और 12 जनवरी को बस्तर की सीमा पर हुये हवाई हमले और इस बात पर ध्यान आकर्षित किया कि ऐसे हमले जहां सरकार अपने नागरिकों पर ही वार कर रही है सरासर गैर-कानूनी है। उन्होंने सिलगेर, बुर्जी ,बेरचापाल में चल रहे आदिवासी  किसानों के आंदोलनों पर बात रखी।

अपने वक्तव्य में डिग्री प्रसाद चौहान, हिमांशु कुमार और रिनचिन ने उजागर किया कि, गोम्पाड और एडेसमेट्टा के फर्जी एनकाउंटर पर चल रहे केसों में किस तरह शीर्ष अदालत याचिकाकर्ताओं पर ही कार्यवाही की मांग कर रही है। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) जैसी संस्थाओं की भी निष्क्रिय भूमिका पर सवाल उठाए ।

दलित उत्पीड़न पर लगातार आवाज उठाते कार्यकताओं पर किस तरह दमन हो रहा है उसका उदाहरण खुद पर और अपने साथियों पर देते हुये संजीत बर्मन ने बात रखी कि, कैसे दलित अधिकार आंदोलन को दबाने के लिए गुंडा एक्ट और अन्य ऐसे कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है व किस तरह संवैधानिक अधिकारों को नकारा जा रहा है।

कलादास डहरिया जी ने चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल के कर्मचारियों व दुर्ग-भिलाई में सफाई कर्मचारियों व अन्य मज़दूर आन्दोलनों पर किए जा रहे दमन पर बात रखी। लखन सुबोध ने कहा कि एक मजबूत विपक्ष खड़ा करने के लिए लोगों को संगठित होने की बेहद जरूरत है। राष्ट्रीय पीयूसीएल की सचिव लारा जेसानी ने कहा कि इन मुद्दों पर ध्यान आकर्षण करने और सरकार को जवाबदार मानते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इन बातों को पहुंचाना जरूरी है और इसके लिए राष्ट्रीय पीयूसीएल हर प्रयास करेगा।

अंत में सौरा यादव, तुहिन देव व इंदु नेताम जी ने भी अपनी बात रखी कि इस दौर में बहुत जरूरी है कि सभी जन पक्षधर ताकते एक साथ आकर इन पूरे मुद्दों पर एक आवाज उठाए ।

सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • बस्तर में चल रहे आंदोलनों व प्रदर्शनों पर पुलिस की हिंसा तत्काल बंद की जाए तथा शासन आंदोलनकारियों के साथ संवाद करे।
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले व हिंसा करने वालों तथा इसे प्रोत्साहित करने वाले तत्वों पर कड़ी कार्यवाही की जाए।
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रशासनिक अमले व ग्राम सभाओं के द्वारा निकाले जा रहे आदेशों पर रोक लगाई जाए।
  • सामाजिक कार्यकर्ताओं और याचिकाकर्ताओं की कानूनी प्रताड़ना बंद हो।
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