अक्षम कुलपतियों को बर्दाश्त नहीं करती इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति का पद अभिशप्त है। यहां जो भी कुलपति बना यदि प्रशासनिक और व्यावहारिक क्षमता के बगैर विश्वविद्यालय को चलाने की कोशिश की तो या तो मैदान छोड़कर भाग जाता है या फिर सुरक्षा घेरे में अपने आवास से या भारी पुलिस बल की तैनाती से अपने कार्यालय में बैठकर किसी प्रकार अपना कार्यकाल पूरा कर निकल जाता है।

इतिहास गवाह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं और फैकल्टी किसी भी कुलपति की मनमानी, स्वेक्षाचारिता, कदाचार और मनमानी आंख मूंदकर बर्दाश्त नहीं करते।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रतन लाल हांगलू ने बुधवार (एक जनवरी) को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और इस्तीफा स्वीकार करके मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया है।

हांगलू वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं को लेकर 2016 से निगरानी में थे। उन्हें यौन उत्पीड़न की शिकायतों को उपयुक्त ढंग से नहीं निपटाने और छात्राओं के लिए शिकायत निवारण प्रणाली की कमी को लेकर पिछले सप्ताह राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी तलब किया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास में कुलपति प्रोफेसर रतनलाल हांगलू दूसरे ऐसे कुलपति हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान बीच में ही कुर्सी छोड़ दी। इससे पूर्व प्रोफेसर एके सिंह ने विवादों में रहने के कारण कुलपति रहते हुए त्यागपत्र दिया था।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में बीते 29 दिसंबर को चार वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले प्रो. रतन लाल हांगलू अपने पूरे कार्यकाल के दौरान विवादों में रहे। कुलपति के रूप में पदभार संभालने के बाद प्रो. हांगलू अपने ओएसडी की नियुक्ति को लेकर सवालों में आए। ओएसडी पद पर नियुक्ति पाने के बाद अमित सिंह सीएमपी डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति पा गए।

अमित सिंह पर अपने प्रमाण पत्रों में गड़बड़ी करके नियुक्ति हासिल करने का आरोप लगने के बाद भी कुलपति ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। ओएसडी और उसके बाद असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर अमित सिंह की नियुक्ति को लेकर विवि के छात्रों की ओर से गंभीर सवाल उठाए गए।

कुलपति के पदभार ग्रहण करने के समय कार्यवाहक कुलपति रहे प्रो. ए सत्यनारायण को डीन के पद से हटाने का मामला हो या विवादों में रहे कुछ शिक्षकों को महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति का, प्रो. हांगलू ने हर आरोप की अनदेखी की। उच्चतम न्यायालय से आदेश होने के बाद भी कुलपति ने प्रो. सत्यनाराण को डीन का पदभार नहीं सौंपा। इसके अलावा विवि में अवकाश प्राप्त शिक्षकों की दोबारा नियुक्ति तथा बिना विज्ञापन के विवि में कुछ पदों पर नियुक्ति मामले में कुलपति ने हमेशा मनमानी की।

विवि में रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक और पीआरओ की नियुक्ति को लेकर कुलपति का पूरा कार्यकाल विवाद में रहा। विवि के एक प्रोफेसर को रजिस्ट्रार पद पर नियुक्त करने के लिए कुलपति ने बड़े दांव चले। इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक कॉलेजों को स्वायत्तता देने और वहां पीजी कक्षाएं चलाने की मंजूरी देने या शिक्षक भर्ती के मामले को लेकर भी विवाद रहा।

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इविवि में कुलपति की ओर से पीआरओ की नियुक्ति को सवालों के घेरे में लिया था। महिला आयोग की सदस्य ने सवाल उठाया था कि एक ऐसे शिक्षक को पीआरओ कैसे नियुक्त कर दिया गया, जो अभी तक प्रोबेशन भी पूरा नहीं कर सका है। महिला आयोग ने कुलपति को एक महिला के साथ बातचीत का ऑडियो लीक होने और महिला छात्रावास की सुरक्षा मामले में तलब किया।

महिला आयोग की ओर से तलब किए जाने के मामले को लेकर सबसे अधिक पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा महत्वपूर्ण भूमिका में रहीं। उन्होंने एक दिन पहले प्रदेश के राज्यपाल एवं डीजीपी से मिलकर कुलपति के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में प्रो. हांगलू की नियुक्ति के बाद लगभग पांच सौ छात्रों का निष्कासन और निलंबन हुआ। इनमें सबसे चर्चित कार्रवाई कुलपति के खिलाफ आवाज उठाने वाले इविवि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सचिव रोहित मिश्र के निलंबन एवं निष्कासन का रहा। रोहित मिश्र ने लगातार कुलपति के खिलाफ आंदोलन जारी रखा।

रोहित के ही साथ छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष एवं शोध छात्रा ऋचा सिंह ने कुलपति के खिलाफ लगातार मोर्चा खोले रखा। महिला आयोग के पास शिकायत से लेकर राज्यपाल, राष्ट्रपति, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, यूजीसी सब जगह ऋचा ने कुलपति की शिकायत की। विवि से निष्कासन एवं निलंबन के बाद कई छात्रों का करिअर खत्म हो गया।

कुलपति प्रो. आरएल हांगलू में नेतृत्व क्षमता का अभाव था। वह एक छोटी से कोठरी के साथ विश्वविद्यालय चलाने का प्रयास कर रहे थे जो अंततः उन पर भारी पड़ा। नेतृत्व क्षमता के अभाव को केवल इस तथ्य से समझा जा सकता है कि वे पत्रकारों के सवालों से भी खफा होकर सीधे संपादक से शिकायत करने लगते थे और विज्ञापन बंद करने की धमकी देने लगते थे।  

नेतृत्व क्षमता के अभाव पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसीसी) की पांच सदस्यीय कमेटी ने भी टिप्पणी की थी, जिसे वर्ष 2017 के नवंबर माह में परफॉर्मेंस ऑडिट के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भेजा गया था। यह कमेटी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बंगलुरू के प्रो. गौतम देसी राजू की अध्यक्षता में यहां जांच करने आई थी।

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कुलपति में नेतृत्व क्षमता का अभाव है। उन्होंने खुद को एक खराब प्रबंधक साबित किया। वह अधिकारों के बंटवारे और प्रशासन के विकेंद्रीकरण में भी नाकाम रहे। वह रोजमर्रा होने वाली समस्याओं में ही उलझे रह गए। कमेटी ने जो देखा, उसके अनुसार विश्वविद्यालय को कुलपति और उनकी एक छोटी सी मंडली चला रही है। कुलपति ने सारी शक्ति अपने पास रखी है या इस मंडली को सौंप दी है।

छात्रों और आम अध्यापकों के साथ उनका कोई संपर्क नहीं रह गया है। कमेटी के सदस्यों ने यह भी कहा है कि बाकी विश्वविद्यालयों में भी प्रबंधन को कम महत्व दिया जाता है लेकिन, इविवि में तो प्रबंधन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई है। यहां कोई काम दूरदृष्टि से नहीं हो रहा है। रोज उत्पन्न होने वाली समस्याओं में ही इनकी ऊर्जा समाप्त हो जा रही है। एक समस्या खत्म होती है तो दूसरी समस्या के आने का इंतजार किया जाता है।

कमेटी ने वित्त अधिकारी के पद पर तत्कालीन प्रो. एनके शुक्ला को नियुक्त किए जाने पर भी सवाल उठाए थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि वित्तीय मामलों की जिम्मेदारी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के एक प्रोफेसर को सौंप देना किसी भी दशा में उचित नहीं है। हालांकि, कमेटी की इस आपत्ति के बाद प्रो. एनके शुक्ला को इविवि का रजिस्ट्रार बना दिया गया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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