पंजाब के महानगर और औद्योगिक राजधानी के तौर पर जाने जाने वाले शहर लुधियाना की दाना मंडी को इन दिनों पंजाब का ‘शाहीन बाग’ कहा जा रहा है। 21 दिन से यहां नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विभिन्न नागरिक संगठनों ने मोर्चा लगाया हुआ है।
इसमें पूरे राज्य से सभी समुदाय के लोग शिरकत कर रहे हैं और भागीदारों की तादाद में दिन-ब-दिन इजाफा हो रहा है। पंजाब का यह शाहीन बाग अब सीएए के मुखर विरोध के साथ-साथ दिल्ली दंगों की मुखालफत का मंच भी बन गया है। नामवर पंजाबी बुद्धिजीवी, लेखक और शायर भी यहां रोज जुटते हैं।
पंजाब के शाहीन बाग में प्रख्यात शायर वरुण कुमार आनंद ने विशेष प्रस्तुति दी। उन्होंने अपनी इंकलाबी शायरी से प्रदर्शनकारियों का हौसला बुलंद किया। इस दौरान बार-बार हिंदुस्तान जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद, हिंदू-मुस्लिम-सिख- इसाई- दलित जिंदाबाद के नारे गूंजते रहे। वरुण की इस ग़ज़ल ने आसमां गुंजा दिया,
‘अपनों को बेगाना समझा लानत है,
वाह रे तेरा गोरखधंधा लानत है…
हाकिम को एक चिट्ठी लिखें सब के सब,
और उसमें बस इतना लिखना लानत है…
इससे बढ़कर उस पर लानत क्या होगी,
बोल रहा है बच्चा बच्चा लानत है,
जिस दीवार पर उसके वादे लिखे थे,
हमने उसके नीचे लिखा लानत है…!’
उससे पहले क्रांतिकारी पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश और संत राम उदासी की कविताएं प्रस्तुत की गईं। यह रोज का सिलसिला है। यहां शायरी के साथ-साथ तकरीरें होती हैं और महान नुक्कड़ नाटककार गुरशरण सिंह, सफदर हाशमी, प्रोफेसर अजमेर सिंह औलख के नाटकों के साथ-साथ नवोदित जन नाट्य मंडलियों के नाटक भी होते हैं।
पंजाब के विख्यात युवा नाटककार सैमुअल जॉन कहते हैं, “पंजाब में सांस्कृतिक हथियारों के द्वारा फासीवाद का ऐसा जबरदस्त विरोध पहली बार देखा जा रहा है और यह निहायत जरूरी भी है। पंजाब का बड़ा सभ्यचारक वर्ग सदा से ही ज्यादती-जुल्म के खिलाफ खड़ा रहा है।”
प्रगतिशील लेखक संघ के अखिल भारतीय महासचिव और पंजाबी के प्रमुख चिंतक प्रोफेसर सुखदेव सिंह कहते हैं, “यह अपना वजूद कायम रखने की लड़ाई है। मौजूदा केंद्र सरकार की नीतियां हमें 1947 के हालात के आगे फेंक रही हैं और यह हमें कतई मंजूर नहीं।” लुधियाना स्थित पत्रकार देवेंद्र पाल के मुताबिक, “महानगर के इस ‘शाहीन बाग’ को देखकर लगता है कि क्रांतिकारी कवि पाश की ये पंक्तियां सार्थक हो रही हैं, हम लड़ेंगे साथी!”।
गौरतलब है कि पंजाब के शाहीन बाग मोर्चे के 21वें दिन राज्य के 16 नागरिक संगठनों के प्रतिनिधि लुधियाना पहुंचे। महिलाओं, बुजुर्गों और पुरुषों का एक बड़ा काफिला था। इस काफिले में राज्य के अलग-अलग हिस्सों के लोग थे जो अपने साथ लंगर और रसद भी लाए थे। झनीर (जिला मानसा) की सतवंत कौर बराड़ ने बताया कि उनके इलाके से 150 महिलाएं भी विशेष तौर पर सीएए और दिल्ली हिंसा के खिलाफ विरोध दर्ज कराने यहां पहुंचे हैं।
93 वर्षीय बुजुर्ग जस्सा सिंह कहते हैं कि वह अपने गांव भल्लनवाड़ा से इस काफिले के साथ शिरकत करने इसलिए आए हैं कि केंद्र सरकार जो एक और विभाजन का नक्शा तैयार कर रही है, उसे फाड़ा जा सके तथा बताया जा सके कि हम मोदी सरकार के तानाशाही-अल्पसंख्यक विरोधी एजेंडे का सख्त विरोध करते हैं।
शाही इमाम पंजाब मौलाना हबीब उर रहमान सानी लुधियानवी ने इस संवाददाता से कहा, “पंजाब का समूचा मुस्लिम समुदाय आश्वस्त है कि पंजाबियत के तमाम पैरोकार उसके साथ तनकर खड़े हैं। सीएएए के खिलाफ लड़ाई अकेले मुस्लिमों की नहीं रह गई। किसी को शक हो तो वह इस शाहीन बाग में आकर देख सकता है। यहां हिंदू, सिख, ईसाई भी एकजुट होकर साथ हैं।”
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)