Friday, April 19, 2024

गरीब मजदूरों के सच्चे दोस्त थे मजदूर नेता व जनपक्षधर अधिवक्ता कामरेड सत्तो दा

‘कामरेड सत्यनारायण भट्टाचार्य उर्फ सत्तो दा गरीब मजदूरों के सच्चे दोस्त थे। वे ताउम्र गरीबों के हक-अधिकार की रक्षा के लिए लड़ते रहे। वे इस अन्यायी व लूटेरी व्यवस्था के घोर विरोधी थे। वे मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद विचारधारा के प्रबल हिमायती थे और सर्वहारा वर्ग की सत्ता की स्थापना के लिए ही पूरी जिंदगी काम करते रहे। वे एक मजदूर नेता होने के साथ-साथ धनबाद व बोकारो बार एशोसिएशन के वरिष्ठ व सम्मानित अधिवक्ता भी थे, जो गरीबों का मुकदमा मुफ्त में लड़ते थे।’ उक्त पंक्तियां 7 फरवरी, 2020 को झारखंड के कतरास के भंडारीडीह सामुदायिक भवन के मैदान में गूंज रही थी।

मौका था वर्तमान में झारखंड में प्रतिबंधित ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ के संस्थापक केन्द्रीय अध्यक्ष व जनपक्षधर वरिष्ठ अधिवक्ता शहीद कामरेड सत्यनारायण भट्टाचार्य की 8वीं शहादत दिवस पर ‘शहीद-ए-आजम स्मारक समिति, कतरास’ द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा का। दो मंजिला सामुदायिक भवन पर एक बड़ा सा कटआउट उनकी तस्वीर के साथ टंगा हुआ था, जिस पर लिखा हुआ था 01.01.1944 से 07.02.2012 और श्रद्धांजलि सभा। मैदान में उन्हीं के प्रयासों के द्वारा निर्मित स्टेज, जहां कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह की एक स्थायी प्रतिमा स्थापित है, को लाल रंग के कपड़े से घेरकर एक शानदार मंच बनाया गया था, जिस पर भगत सिंह की प्रतिमा के ठीक बगल में कामरेड सत्तो दा की एक फ्रेम की हुई बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी, जिस पर लिखा हुआ था, ‘यू मे हैव गोन फार अवे फ्राॅम अस बट यू विल आलवेज रिमाइन इन आवर हर्ट’ और इसके पीछे श्रद्धांजलि सभा का बैनर लगा हुआ था।

मंच के नीचे उनकी एक और फ्रेम की हुई तस्वीर रखी गई थी, जिस पर कार्यक्रम में शामिल होने वाले तमाम लोगों ने माल्यार्पण किया। मंच के ठीक सामने एक बड़ा सा पंडाल बनाया गया था, जिसमें लगभग 500 लोगों के बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था थी। पंडाल में लगे खम्भों में जगह-जगह कई कैलेंडर टंगा हुआ था, जिसपर कामरेड सत्तो दा की तस्वीर के साथ-साथ ‘श्रद्धांजलि सभा 2020 व आपके जीवन ने दिया, हमें जीने का ज्ञान, शौर्य, मेधा, प्रज्ञा है आपकी पहचान’ लिखा हुआ था।

कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कतरास सहित गिरिडीह, मधुबन, बोकारो थर्मल, ललपनिया, चन्दनकियारी, खलारी, बोकारो स्टील सिटी से झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के बैनर तले व गया (बिहार) आदि से पूरे जोश-खरोश के साथ बड़ी संख्या में महिला-पुरुष मजदूर व धनबाद एवं बोकारो से बड़ी संख्या में अधिवक्ता आए हुए थे। कार्यक्रम की शुरुआत शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा व शहीद कामरेड सत्तो दा की तस्वीर पर माल्यार्पण से हुआ, उसके बाद उनकी याद में दो मिनट का मौन धारण किया गया। कार्यक्रम में उद्घाटन वक्तव्य दिया स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने, फिर तो वक्ताओं के वक्तव्य से ऐसा लगने लगा कि कामरेड सत्तो दा को लोग अपने आप में महसूस कर रहे हैं। सभी वक्ताओं ने उनके साथ बिताये गये लम्हों को याद किया और बताया कि आज के फासीवादी दौर में उनकी कितनी जरूरत थी। आज जब केन्द्र की ब्राह्मणवादी हिन्दुत्व फासीवादी मोदी सरकार एक के बाद एक जनविरोधी कानून बना रही है।

श्रम कानूनों में कटौती कर रही है। सीएए, एनआरसी व एनपीआर के जरिए देशवासियों की नागरिकता छीनने की कोशिश हो रही है। साथ ही सरकार के जनविरोधी फैसले पर सवाल उठाने वाले देशभक्तों पर ही ‘देशद्रोह’ का मुकदमा दायर का जेल में डाल दिया जा रहा है। ऐसे क्रूर समय में उनका होना बहुत ही जरूरी था। वक्ताओं ने यह भी कहा कि आज अगर वे होते तो शायद उन्हें भी सरकार ‘अर्बन नक्सल’ कहकर जेल में बंद कर देती। पूरे कार्यक्रम के दौरान बीच-बीच में गया (बिहार) से आए हुए सूरदास (दोनों आंख से अंधे) बिंदू जी के क्रांतिकारी गीत गूंजते रहे और श्रोताओं में जोश का संचार करते रहे (बिंदू जी आंख से अंधा होने के बावजूद भी खुद ही गीत रचते व गाते हैं)। साथ ही पूरे कार्यक्रम में ‘कामरेड सत्तो दा के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाएंगे व कामरेड सत्तो दा अमर रहे’ का नारा भी गूंजायमान होता रहा।

कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में से प्रमुख रूप से शामिल थे- झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केन्द्रीय अध्यक्ष बच्चा सिंह, सीटू के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एसके बख्शी, मार्क्सवादी समन्वय समिति के हलधर महतो, महादेव चटर्जी, धनबाद बार एसोसिएशन के पूर्व पदाधिकारी कंसारी मंडल, सत्तो दा के साथ वकालत शुरु करनेवाले वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप चक्रवर्ती, धनबाद बार एसोसिएशन के महासचिव देवीशरण सिन्हा, कोषाध्यक्ष मुकुल तिवारी, सीपीएम के निमाई मुखर्जी, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के अमित यादव, रज्जाक अंसारी, मो. महबूब, अधिवक्ता अरूण तिवारी, राजेश कुमार झा, चुन्ना यादव, केदार कर्मकार, राजकुमार तिवारी, इंद्रदीप चटर्जी आदि। कार्यक्रम की अध्यक्षता दुर्गाराम और संचालन सुदर्शन तिवारी ने किया।

कामरेड सत्तो दा के पुत्र अधिवक्ता दीपनारायण भट्टाचार्य बताते हैं कि ‘हमारे दादाजी डाॅक्टर देवनारायण भट्टाचार्य 1967 में पश्चिम बंगाल के वर्धमान से कतरास आए थे। मेरे पिताजी उनके चार पुत्रों में से मंझले पुत्र थे। इन्होंने 1970 में धनबाद में वकालत शुरु की और फिर ये झारखंड के ही होकर रह गये। यहां आदिवासियों व मजदूरों के शोषण ने उन्हें काफी व्यथित किया और वे मजदूरों के हक-अधिकार की लड़ाई के लिए एक संगठन निर्माण के बारे में सोचने लगे, जिसका परिणाम था मजदूर संगठन समिति का निर्माण। जब बोकारो जिला का निर्माण हुआ और वहां बार एसोसिएशन 1983 में बना, तो उसके प्रथम अध्यक्ष वही बने। 1983 से 1985 तक वे बोकारो बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। 1997 से लेकर लगातार 10 वर्षों तक यानी कि 2007 तक वे धनबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। आज भी धनबाद-बोकारो के लोग और अधिवक्तागण भी उन्हें काफी याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। वे शहीद-ए-आजम भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे और मुझे भी उनके आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित करते रहते थे। मैं भी भरसक कोशिश करता हूं कि उनके स्वप्न (एक शोषणरहित समाज की स्थापना) को साकार करने की कोशिश ताउम्र करता रहूं।’

लम्बे समय तक उनके साथ काम करने वाले ‘मजदूर संगठन समिति’ के पूर्व महासचिव व वर्तमान में झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केन्द्रीय अध्यक्ष बच्चा सिंह कहते हैं कि ‘वे न सिर्फ अपनी वकालत के लिए जाने जाते थे बल्कि वे मजदूरों में भी काफी लोकप्रिय थे। अगर आज वे जिंदा रहते, तो अपने दमदार तर्क के द्वारा मजदूर संगठन समिति से प्रतिबंध हटवा चुके होते या फिर मजदूर संगठन समिति प्रतिबंधित होता ही नहीं। आज झारखंड का मजदूर वर्ग उनकी कमी को बहुत ही ज्यादा महसूस कर रहा है। उनके जैसे मजदूर नेता व जनपक्षधर अधिवक्ता विरले ही मिलते हैं।’ उन्होंने उसी कम्पाउंड में स्थित ‘शहीद-ए-आजम भगत सिंह सेन्टिनरी हाॅल’ को दिखाते हुए कहा कि ‘यह भी उन्हीं के नेतृत्व में बना था, जिसमें दूर-दराज से यहां कुछ बेचने आनेवाले आदिवासी या मजदूर, जो रात को अपने घर नहीं जा पाते थे, वे यहां आकर ठहरते थे।’  

7 फरवरी 2020 को न सिर्फ कतरास में बल्कि मधुबन (गिरिडीह) में झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन, धनबाद में बार एसोसिएशन व कतरास में झामुमो कार्यालय में भी श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था।

मालूम हो कि कामरेड सत्यनारायण भट्टाचार्य ने ही 1989 में ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ को तत्कालीन बिहार में पंजीकृत करवाया था, जो कि बहुत ही जल्द मजदूरों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था। इसकी लोकप्रियता व मजदूरों के क्रांतिकारी बदलाव के कार्यक्रम को देखते हुए इसे सरकार द्वारा पहले माओइस्ट कम्युनिसट सेंटर (एमसीसी) का और बाद में भाकपा (माओवादी) का मुखौटा संगठन कहा जाने लगा। लेकिन फिर भी बिना डरे और बिना झुके मजदूर संगठन समिति मजदूरों के हक-अधिकार की लड़ाई इनके नेतृत्व में लड़ते रहे। 7 फरवरी 2012 को इनकी मृत्यु के बाद भी इनके द्वारा बनाये गये मजदूर संगठन समिति ने अपने तेवर को कम नहीं होने दिया और मजदूरों के हक-अधिकार की लड़ाई को और भी ऊंचा उठाया।

9 जून 2017 को जब मजदूर संगठन समिति के एक सदस्य डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या गिरिडीह स्थित पारसनाथ पर्वत से अपने घर लौटने के दौरान सीआरपीएफ कोबरा ने कर दी, तो उसके खिलाफ में एक वृहद जनांदोलन का नेतृत्व भी मजदूर संगठन समिति ने किया। यही नहीं बल्कि नक्सलबाड़ी सशस्त्र किसान विद्रोह की 50 वीं वर्षगांठ और रूस की बोल्शेविक क्रांति की सौवीं वर्षगांठ को भी पूरे झारखंड में पूरे क्रांतिकारी जोश-खरोश के साथ 2017 में ही मनाया। मजदूर संगठन समिति के इस तरह के जनपक्षीय कार्यक्रम को देखते हुए झारखंड की भाजपाई रघुवर दास सरकार ने इसे माओवादियों का मुखौटा संगठन बताते हुए बिना किसी नोटिस के श्रम कानून का उल्लंघन करते हुए 1989 से ही पंजीकृत ट्रेड यूनियन को प्रतिबंधित कर दिया। झारखंड सरकार के इस मजदूर विरोधी फैसले के कारण उस समय कई मजदूर संगठनों ने विरोध करते हुए प्रतिबंध हटाने की मांग की थी। अभी यह मामला रांची उच्च न्यायालय में पिछले दो साल से लंबित है।

मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगाए जाने का विरोध उस समय झारखंड की मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी किया था, आज जब झारखंड में झामुमो के नेतृत्व में ही सरकार का गठन हुआ है और झामुमो के हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं, तो सवाल उठता है कि क्या लगभग तीन दशक से पंजीकृत ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ से प्रतिबंध हटेगा। यह सवाल उठना तब और भी जरूरी हो जाता है जब ‘मजदूर संगठन समिति’ के संस्थापक केन्द्रीय अध्यक्ष कामरेड सत्तो दा की 8वीं बरसी पर यानी 7 फरवरी 2020 को झामुमो के कतरास कार्यालय में बैठक कर श्रद्धांजलि दिया गया हो।

(रुपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल झारखंड के रामगढ़ में रहते हैं।)

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