Saturday, April 20, 2024

बेअदबी और गोलीकांड मामले में इंसाफ के लिए संघर्ष तेज, मान सरकार की मुश्किलें बढ़ीं


साल 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सिलसिलेवार बेअदबी की घटनाओं अथवा वारदातों की खिलाफत करने वाले सिखों पर पुलिस बल प्रयोग के चलते हुई गोलाबारी में दो सिख मौके पर मारे गए थे और समूचे पंजाब में इसका तगड़ा विरोध हुआ था। उस घटनाक्रम को ‘बहिबल कलां’ कांड का नाम दिया जाता है। इस कांड ने पहले शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार को सत्ता से उतारने में बड़ी भूमिका अदा की और फिर उसके बाद आई कांग्रेस सरकार का भी यही हश्र हुआ। अब मुसीबत में सूबे की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार है।

बेइंसाफी से आजिज और इंसाफ के लिए गुहार लगा रहे लोग इस हफ्ते बाकायदा सड़कों पर उतर आए। पहले बहिबल कलां में पक्का मोर्चा लगा हुआ था लेकिन अब लोगों ने 5 फरवरी से अमृतसर-बठिंडा हाईवे जाम कर रखा है। आप के ही विधायक और पूर्व आईपीएस अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह की इस मामले में अतिरिक्त सक्रियता भगवंत मान सरकार के लिए मुसीबत का सबब बन गई है।

2015 से अब तक पुलों के नीचे से काफी पानी बह चुका है लेकिन मूल मसला वहीं का वहीं खड़ा है। बीते तकरीबन साढ़े सात साल में दबाव में आई गठबंधन, कांग्रेस और आप सरकारों ने कई जांच आयोग गठित किए और पुलिस की विशेष टीमें आला पुलिस अफसरों की अगुवाई में बनाईं। इस पर इंसाफ मोर्चे के कारकून हरबंस सिंह कहते हैं और सही कहते हैं कि “यह सब नाटक साबित हुआ और हो रहा है”। एडवोकेट भूपेंद्र सिंह कालड़ा के शब्दों को सामने रखें तो, “अब तो जांच आयोगों और विशेष पुलिस टीमों की संख्या की लोग भूल गए हैं।”

इस बाबत सबसे ज्यादा चर्चित रही थी कुंवर विजय प्रताप सिंह की अगुवाई में गठित स्पेशल टास्क फोर्स यानी सिट। इसका गठन तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिया था, वह तब राज्य की कांग्रेस सरकार के प्रमुख थे और अब भाजपा का हिस्सा हैं। कतिपय वरिष्ठ अकाली नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा के कुछ प्रमुख लोग तब पर्दे के पीछे कैप्टन अमरिंदर सिंह के ‘अच्छे दोस्त’ थे।

राज्य पुलिस में आईजी आईपीएस कुंवर विजय प्रताप सिंह की छवि महकमे में ही नहीं, आम लोगों में भी बहुत अच्छी मानी जाती थी। उनकी अगुवाई में बनी ‘सिट’ ने अपनी जांच में पाया की बेअदबी की घटनाएं और बहिबल कलां गोलीकांड दरअसल एक बड़े राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा हैं। शासन के भूखे सियासतदानों और उनकी कठपुतली बने चंद बड़े पुलिस अफसरों ने इसे अंजाम दिया है। यहां तक कि डेरा सच्चा सौदा मुखिया और अब उम्र कैद का सजायाफ्ता गुरमीत राम रहीम सिंह भी इसमें संलिप्त हैं। वैसे भी ‘शह और मात’ के सियासी खेल में शुरू से ही वह ‘कभी इधर तो कभी उधर’ रहता आया है।

पूर्व आईपीएस और अब आम आदमी पार्टी के विधायक कुंवर विजय प्रताप सिंह

खैर, बगैर किसी दबाव में आए आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह की अगुवाई में जो जांच हुई- उसकी रिपोर्ट बहुतेरे ‘सफेद कॉलर’ वालों को बाकायदा दागदार करके जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा सकती थी। सूत्रों के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर सिंह इसमें हेरफेर चाहते थे लेकिन आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह को यह सिरे से नामंजूर था।

जिस कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संपूर्ण जांच के लिए कुंवर विजय प्रताप सिंह का चयन किया था उन्होंने ऐसा दांव खेला कि शासन ने मौखिक तो न्यायालय ने लिखित में आदेश दिए कि कुंवर विजय प्रताप सिंह को जांच से अलहदा कर दिया जाए और नई टीम का गठन किया जाए। इस बाबत कुंवर व्यक्तिगत तौर पर मुख्यमंत्री से बाकायदा मिले भी थे और एक-एक तथ्य से उन्हें खुद वाकिफ कराया था लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पहले की लिखी पटकथा पर काम किया और इधर सिंह भी अडिग रहे।

आखिरकार; जिस मानिंद कुंवर विजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट का खुद सरकार ने लगभग फजीहत भरा हश्र किया- उससे खफा होकर कुंवर ने इस्तीफा दे दिया और बदलाव की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल तथा भगवंत मान के कहने पर आम आदमी पार्टी का झाड़ू थाम लिया। उनसे कहा गया था कि ‘आप’ सत्ता में आते ही उनकी बनाई विशेष रिपोर्ट को तत्काल प्रभाव से लागू करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुंवर विजय प्रताप सिंह से वादा किया गया था कि उन्हें चुनाव लड़वाया जाएगा और जीत की सूरत में गृहमंत्री की कुर्सी दी जाएगी। यह भी नहीं हुआ।

कुंवर विजय प्रताप सिंह ने बेअदबी प्रकरण और गोलीकांड पर कई बार इशारों इशारों में अपनी ही सरकार को घेरा लेकिन जवाब में उन्हें खामोशी ही मिली। अब कुंवर विजय प्रताप सिंह उस सरकार विरोधी लोक फ्रंट का बाकायदा हिस्सा बन गए हैं जो गोलीकांड और बेअदबी के लिए इंसाफ मांगने सड़कों पर आ गया है।

रविवार को आम आदमी पार्टी विधायक ने (जो उनके विधानसभा हलके का हिस्सा भी नहीं है) बहिबल कलां मोर्चे में शिरकत की और दो-टूक कहा कि मौजूदा भगवंत मान सरकार इंसाफ दे। पंजाब में भगवंत मान सरकार गठन के वक्त से ही आंदोलनों और धरना-प्रदर्शनों का सामना कर रही है। कई जगह तो आंदोलन और धरना-प्रदर्शन को दबाने के लिए पुलिसिया हथकंडे भी जमकर इस्तेमाल किए गए।

आंदोलनकारियों के साथ धरने पर बैठे पूर्व आईपीएस कुंवर विजय प्रताप सिंह

गोलीकांड और बेअदबी मामलों पर जारी आंदोलन एवं प्रदर्शनों के खिलाफ सरकार बल प्रयोग नहीं करना चाहती। इसलिए कि ये मसले गहरे तक सिख भावनाओं से वाबस्ता हैं और जरा-सी असावधानी भी सूद समेत बड़ी कीमत वसूलेगी। रविवार से अमृतसर-बठिंडा हाईवे आंदोलनकारियों ने बंद किया हुआ है और धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि रेल ट्रैक भी जाम किए जाएंगे। लोगों की एकमात्र मांग यही है कि इंसाफ दिया जाए और दोषियों को सलाखों के पीछे किया जाए।

मौजूदा सरकार के लिए भी यह क्यों संभव नहीं, इसका जवाब सरकार और आम आदमी पार्टी से जुड़े किसी भी अहम शख्स के पास फिलहाल नहीं है। मुख्यमंत्री, उनके मंत्री और आम आदमी पार्टी के विधायक इस पर अपनी जुबान को ताला लगा लेते हैं। कुंवर विजय प्रताप सिंह ने इस प्रकरण पर बोलने के लिए पांच मिनट का समय बतौर आप विधायक मांगा था लेकिन शोरगुल के बीच उनकी आवाज दब गई।

जिस विधानसभा हलके के अंतर्गत इन घटनाओं को अंजाम दिया गया था, वह मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष कुलतर सिंह संधवां का इलाका है। उन्होंने मध्यस्थता की पहले कई नाकाम कोशिशें कीं। अब वह भी इस मुद्दे पर अवाम के सामने नहीं आना चाहते।

सिख विद्वान डॉक्टर निरंजन सिंह का कहना है कि मौजूदा सरकार के साथ एक दिक्कत यह भी है कि इसके पास कोई बड़े कद का ‘पंथक’ पृष्ठभूमि वाला ‘सिख खांटी सियासतदान’ नहीं है जो समग्रता से इस मामले को समझता हो। उधर यह आलम है तो इधर इंसाफ के लिए लोगों का संघर्ष दिन प्रतिदिन गति पकड़ रहा है। सरकार मुसीबत में है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं)

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